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Uttarakhand election 2022 : उत्तराखंड चुनाव में भाजपा की राह आसान नहीं

Uttarakhand election 2022 : उत्तराखंड के सत्ता में भाजपा दोबारा वापसी के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। भाजपा ने एंटी-इन्कम्बैंसी फैक्टर को नाकाम करने के लिए कई विधायकों का टिकट काटा है, लेकिन भाजपा की राह इस पहाड़ी राज्य में आसान नहीं लगती है

Neel Mani Lal
Report Neel Mani LalPublished By Ragini Sinha
Published on: 21 Jan 2022 1:17 PM IST
Uttarakhand election 2022
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Uttarakhand election 2022 : भाजपा की राह आसान नहीं (सोशल मीडिया)

Uttarakhand election 2022 : उत्तराखंड की 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए 14 फरवरी यानी वेलेंटाइन डे को मतदान होगा। प्रेम प्रदर्शन के इस दिन मतदाताओं के मन से प्रेम भी उमड़ेगा और कड़वाहट भी। वेलेंटाइन डे पर प्रेम की उम्मीद दोनों बड़ी पार्टियों ने लगा रखी है। वैसे, उत्तराखंड में राजनीतिक दलों की सोच, सीएम का चेहरा, प्रत्याशियों की छवि और पूर्व में उनका कामकाज चुनावों में मतदाताओं की कसौटी रहा है। चूंकि इस बार, कोरोना के साये में चुनाव हो रहे हैं, लिहाजा गुजरे दो सालों में कोरोना प्रबंधन में सरकार और जनप्रतिनिधियों की भूमिका का असर भी मतदाता के मन मस्तिष्क पर दिखेगा।

भाजपा की सत्ता में वापसी की राह में कई मसले हैं

उत्तराखंड में सत्ता में भाजपा है और दोबारा वापसी के लिए उसने पूरी ताकत लगा रखी है। भाजपा ने एंटी-इन्कम्बैंसी फैक्टर को नाकाम करने के लिए कई विधायकों का टिकट काटा है। लेकिन भाजपा की राह इस पहाड़ी राज्य में आसान नहीं लगती है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा की सत्ता में वापसी की राह में कई मसले हैं। साल भर के भीतर तीन-तीन मुख्यमंत्रियों का बदला जाना, चार धाम देवस्थानम बोर्ड का गठन (हालाँकि ये बोर्ड बाद में खत्म कर दिया गया), बेरोजगारी, तराई क्षेत्र में किसानों की नाराजगी, नए जिलों का गठन न होना और कुम्भ मेला के दौरान हुई अव्यवस्था और फर्जी कोरोना टेस्टिंग घोटाला जैसे कई मसले भाजपा के खिलाफ जाते हैं।

21 साल में यहाँ 11 मुख्यंत्री रहें

कांग्रेस ने बार बार मुख्यमंत्री बदले जाने को एक बड़ा मुद्दा बनाया हुआ है और एक नारा भी बनाया है – तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा, उत्तराखंड में नहीं आयेगी बीजेपी दोबारा। वैसे, जबसे उत्तराखंड बना है तबसे राज्य में मुख्यमंत्री संकट बना हुआ है और बीते 21 साल में यहाँ 11 मुख्यंत्री हो चुके हैं।

चुनावी मुद्दे

  • 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद से उत्तराखंड में एक भी नया जिला नहीं बना है। कांग्रेस ने सरकार में आने पर 9 नए जिले बनाने का वादा किया है। आम आदमी पार्टी ने वादा किया है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो 6 नए जिले बनाएंगे। वहीं सत्तारूढ़ भाजपा का कहना है कि नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा।
  • रोजगार के अवसर नहीं होने के कारण पहाड़ी इलाकों से लोगों का पलायन भी उत्तराखंड में शुरुआत से चुनाव का बड़ा मुद्दा है। पलायन यहां इतना बड़ा मुद्दा है कि सरकार ने इसके लिए पलायन आयोग तक गठित कर रखा है। आयोग की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड से करीब 60 प्रतिशत आबादी घर छोड़ चुकी है। बेरोजगारी पर विपक्ष का दावा है कि राज्य में बेरोजगारी का दर औसत राष्ट्रीय दर से दुगनी हो चुकी है। भाजपा भले ही विकास के मुद्दे पर चुनाव मैदान में है लेकिन पिछले साल में कितने रोजगार सृजित हुए ये बड़ा सवाल है जिसका जवाब मुश्किल होगा।
  • इसके अलावा ख़राब कनेक्टिविटी और ख़राब स्वास्थ्य सेवाएँ भी लोगों की परेशानी वाले मसले हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड में भ्रष्टाचार को लेकर पहले की और मौजूदा सरकार पर निशाना साधा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों पर आक्रामक तरीके से हमलावर आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में बिजली, पानी वगैरह जनसुविधाओं को भी चुनावी मुद्दा बना रही है। चारधाम यात्रा, प्राकृतिक आपदा से निपटने की तैयारी, नए उद्योग लगाने और मैदानी इलाकों में खेती वगैरह के स्थानीय मुद्दे भी चुनाव में सामने हैं।
Ragini Sinha

Ragini Sinha

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