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आपसी भितरघात, गुटबाजी और खींचतान से उबर नहीं पाई है कांग्रेस

raghvendra
Published on: 2 Feb 2018 2:03 PM IST
आपसी भितरघात, गुटबाजी और खींचतान से उबर नहीं पाई है कांग्रेस
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देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने के लगभग एक साल बाद भी कांग्रेस अभी तक आपसी भितरघात, गुटबाजी और खींचतान से नहीं उबर पाई है। सभी की मंशा भाजपा को टक्कर देने की जगह आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने व टांग खींचने की ज्यादा दिख रही है। इसका नमूना हाल में जनचेतना मोटरसाइकिल रैली में भी दिखायी दिया।

रैली से नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृद्येश, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत अन्य बड़े नेताओं की दूरी सियासी गलियारों में चर्चा में रही। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पार्टी में कुछ ठीक नहीं चल रहा है। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा है कि कांग्रेस सफल विपक्ष की भूमिका निभाएगी। लोग अब इसके भी निहितार्थ समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं यह लंबे वनवास का संकेत तो नहीं।

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रैली में प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह 25 लाख रुपए की बाइक तो महानगर अध्यक्ष भी महंगी बाइक पर सवार थे। पूर्व मंत्री दिनेश अग्रवाल की नाराजगी भी दिखायी दी, वह मंच पर स्थान न मिलने पर भडक़ गए थे। वह बाद में बाइक से रैली में शामिल हुए लेकिन रैली समापन स्थल पर न जाकर बाहर से ही लौट गए। रैली में यातायात नियमों की अनदेखी भी की गई। बाइक सवार युवा ट्रिपलिंग कर रहे थे और बिना हेलमेट के थे। रैली के चलते जो जाम लगा उसको लेकर भी लोगों में खासी नाराजगी रही।

जनचेतना रैली केंद्र और राज्य सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ निकाली गई थी। पार्टी की वरिष्ठ नेता एवं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ.इंदिरा हृदयेश और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह द्वारा हरी झंडी दिखाए जाने की बात कही गई थी। लेकिन नेता प्रतिपक्ष रैली में इसलिए शामिल नहीं हुई कि उनका हल्द्वानी में आंदोलन चल रहा था।

उधर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एक दिन पहले तो देहरादून में दिखे लेकिन रैली के दिन वह कहीं नजर नहीं आये। रैली में विधायकों के नाम पर कुल दो लोग रहे पहले प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और दूसरे केदारनाथ के विधायक मनोज रावत।

किशोर उपाध्याय, जिन्हें उत्तराखंड की राजनीति से दूर कर दिया गया था, रैली में शामिल हुए।

विधानसभा चुनाव के बाद किशोर को हटाकर प्रीतम सिंह को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी और किशोर उपाध्याय को यूपी भेज दिया गया था। इन दोनों का रैली में शामिल होना उत्तराखंड कांग्रेस में एक नये समीकरण के बनने का संकेत दे रहा है। ये समीकरण युवाओं को नेतृत्व देने में सक्षम दिखाई दे रहा है।

किशोर उपाध्याय का कहना है कि युवा कांग्रेस के साथ एकजुट हुए हैं क्योंकि उन्हें अपनी समस्याओं का हल कांग्रेस में ही नजर आ रहा है। वह कहते हैं कि वह तो हल्द्वानी भी जाना चाहते थे इंदिरा हृदयेश के कार्यक्रम में लेकिन अपरिहार्य कारणों से नहीं जा सके।

गौरतलब है कि प्रदेश में नगर निकाय चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस अपनी गुटबाजी को दूर नहीं कर पा रही है। राज्य के कांग्रेस नेताओं का मानना है कि उनकी लड़ाई राज्य सरकार, केंद्र सरकार और मोदी की जनविरोधी नीतियों से है। ऐसे में भले ही निकाय चुनाव की दुंदुभि बजने में अभी वक्त शेष हो, लेकिन पार्टी को कमर कस लेनी चाहिए। लक्ष्य केवल एक ही है।

पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि मोदी लहर के बूते पांच साल पहले नगर निकाय चुनाव और फिर बीते वर्ष विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद अब निकाय चुनाव में दिखाने के लिए भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार के पास कुछ नहीं है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे है। ऐसे में भाजपा से मोहभंग का लाभ कांग्रेस को मिल सकता है।

प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने रैली को पूरी तरह सफल बताया। साथ ही कहा कि पार्टी में कोई धड़ेबाजी नहीं है और सभी वरिष्ठ नेता एकजुट हैं। दूसरी ओर रैली को फ्लॉप शो बताते हुए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा है कि महानगर देहरादून की आबादी साढ़े सात लाख है और कांग्रेस की रैली में मात्र 300 से 400 मोटर साइकिल सवार शामिल हुए, जो इस बात का प्रतीक है कि अब लोग मोटर साइकिल में तेल डलवाने के लिए भी कांग्रेस के साथ जाने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने चुटकी ली कि जो पार्टी खुद अचेत स्थिति में है, उसे स्वयं चेतना की आवश्यकता है। जनता पूरी तरह से सचेत है।

कांग्रेस से नाराजगी के दर्द को बयां करते हुए सचिवालय में सोमवार को कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने साफ तौर पर दो टूक कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं की पार्टी नहीं है, बल्कि अब सिर्फ और सिर्फ गुटबाजी की पार्टी रह गई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में यदि बेहतर तालमेल होता तो वह कांग्रेस से बीजेपी में आते ही क्यों।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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