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उत्तराखंड : एक साल में कहां पहुंची उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार

raghvendra
Published on: 16 March 2018 3:17 PM IST
उत्तराखंड : एक साल में कहां पहुंची उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार
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देहरादून। उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर रही है। सरकार के पास गिनाने को अपनी उपलब्धियों का पूरा बहीखाता है, लेकिन जनता अब भी उन उपलब्धियों के धरातल पर उतरने का इंतजार कर रही है। विपक्षियों के तरकश में सवालों के ढेरों तीर हैं। एक साल में कहां तक पहुंची डबल इंजन सरकार, एक साल में कितने लोगों को मिला रोजगार, एक साल में पलायन रोकने के क्या ठोस प्रयास हुए? पहाड़ों पर अब तक एक भी डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हुई। एक भी नौजवान को रोजगार नहीं मिला। फिर इस एक साल की बुनियाद पर अगले चार वर्ष की क्या तस्वीर उभरती है।

एक साल के कार्यकाल पर सरकार के दावे

राज्य के शहरी विकास मंत्री और प्रदेश प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि इस एक साल में हमने अपनी सरकार के लिए मजबूत नींव तैयार की है। वे एक सुर में कई उपलब्धियां गिनाते हैं जैसे-किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य पर कार्य करना, नौजवानों के रोजगार का मसला, शिक्षा में बुनियादी सुधार का मसला, गरीबों को आवास देने का मसला, राज्य को हवाई मार्ग से जोडऩे का मसला, उत्तराखंड में रेल दौड़ाने का मसला, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रम हों, इन सभी मुद्दों पर उनकी सरकार ने कार्य शुरू कर दिया है।

आर्थिक तौर पर कमजोर बच्चों के लिए कोचिंग की व्यवस्था की है। प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता का कहना है कि हमारी सरकार ने पहली बार पहाड़ों पर डॉक्टर चढ़ाए हैं। पहाड़ों पर डॉक्टरों की कमी दूर करने के प्रयास जारी हैं। पलायन के मुद्दे पर मदन कौशिश ने कहा कि हमने राज्य में पहली बार पलायन आयोग बनाया है और इसका मुख्यालय पौड़ी में रखा। इससे पहले पलायन रोकने के लिए मंत्रिपरिषद की एक समिति भी बनाई गई थी।

पर्यटन के मुद्दे पर उन्होंने 13 जिले 13 डेस्टिनेशन जैसी योजनाओं की बात कही। एंडवेचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए यहां की झीलों का उपयोग किया जा रहा है। मनेरी भाली जलविद्युत परियोजना की खाली पड़ी झील में नौकायन के साथ विभिन्न वाटर स्पोट्र्स आयोजित किए गए जो कि रोजगार देने और पलायन रोकने की भी दिशा में भी कारगर हो सकते हैं। इसके साथ ही ऊंचाई वाले इलाकों को रोपवे के जरिये जोडऩे की कोशिश की जा रही है। गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के मसले पर बीजेपी नेता मदन कौशिक ने कहा कि हम वहां बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं।

त्रिवेंद्र सरकार पर विपक्ष के सवाल

उत्तराखंड कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता मथुरादत्त जोशी कहते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल बेहद निराशाजनक रहा है। प्रदेश की जनता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही है। जोशी के मुताबिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए त्रिवेंद्र सरकार ने शपथ लेने के बाद ही तीन महीने के अंदर लोकायुक्त नियुक्त करने की बात कही थी, लेकिन अब तक सरकार लोकायुक्त नहीं बना पायी।

कांग्रेस के मुताबिक त्रिवेंद्र सरकार ने किसानों का कर्ज माफ नहीं किया और उत्तराखंड के किसान भी आत्महत्या की राह पर बढ़ रहे हैं। वे आरोप लगाते हैं कि राज्य में जीएसटी और नोटबंदी लागू करने के चलते दो व्यापारियों ने आत्महत्या की। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में भी लिखा कि जीएसटी और नोटबंदी की वजह से वे आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार ने कुछ नहीं किया।

जोशी के मुताबिक पर्वतीय जनपद सूखे की चपेट में आ गए हैं, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक कोई टीम वहां नहीं भेजी। इसी तरह राज्य में अब तक सरकारी या गैरसरकारी क्षेत्र में एक नौजवान को भी रोजगार नहीं मिला है। न ही ऊर्जा के क्षेत्र में किसी नए प्रोजेक्ट पर सरकार एक कदम भी आगे बढ़ी है। जोशी के मुताबिक शिक्षा के क्षेत्र में सरकार बुरी तरह भटक गई है।

अभी तक ये ही फाइनल नहीं हो सका है कि कोर्स क्या होगा, बच्चे क्या पढ़ेंगे, शिक्षा का रोडमैप क्या होगा। पहाड़ों पर स्वास्थ्य सेवा सुधारने के मसले पर भी कांग्रेस त्रिवेंद्र सरकार पर बुरी तरह विफल होने का आरोप लगाती है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता तंज कसते हैं कि खुद मुख्यमंत्री के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। देहरादून मेडिकल कॉलेज की व्यवस्थाएं ठीक नहीं हो सकीं, अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज को चालू नहीं कराया जा सका। उनके मुताबिक कोई भी घोषणा अभी अंजाम तक नहीं पहुंची है।

इसी तरह गैरसैंण का मुद्दा भी राज्य के लिए फांस बना हुआ है। वर्ष 2000 में जब तीन नए राज्य बनाए गए थे। दो राज्यों की राजधानी उसी समय तय कर दी गई। उत्तराखंड में उस समय राजधानी को लेकर कोई विवाद नहीं था। फिर यहां राजधानी के लिए आयोग क्यों बनाया गया। जानबूझ कर राजधानी के मुद्दे को उलझाया गया है।

पलायन के मुद्दे पर कांग्रेस का कहना है कि जिस जगह पलायन आयोग का मुख्यालय है पलायन वहीं सबसे ज्यादा है। राज्य के ज्यादातर महत्वपूर्ण लोग इस समय पौड़ी से ही हैं, लेकिन पौड़ी में पलायन की दर सबसे अधिक है ये हैरानी की बात है।

एक वर्ष में सकारात्मक कदम

किसानों की आय वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के उद्देश्य से छोटे किसानों को एक लाख रुपये तक का कर्ज मात्र 2 फीसदी ब्याज पर देने के लिए दीन दयाल उपाध्याय किसान कल्याण योजना लागू की गई है। उत्तराखंड को ऑर्गेनिक हर्बल स्टेट बनाने की कार्य योजना बनाई गई है। इसके साथ ही ढाई लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को निशुल्क गैस कनेक्शन भी दिया जा रहा है।

वर्ष 2022 तक सौ फीसदी साक्षरता का लक्ष्य रखा गया है। उत्तराखंड ने अपनी स्टार्टअप नीति बनाई है। राज्य में 60 स्टार्टअप शुरू हो गए हैं। फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया माध्यमों के जरिए कोई भी व्यक्ति अपनी समस्या सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचा सके, ऐसी व्यवस्था की गई। उड़ान योजना के तहत राज्य के सभी जिलों को हवाई सेवा से जोड़ा जा रहा है। इसके लिए राज्य में हैलीपैड के लिए भूमि चिन्हित करने का कार्य भी शुरु कर दिया गया है।

राज्य की प्रमुख नदियों में सी-प्लेन योजना भी शुरू की जा रही है। केंद्र के सहयोग से जल्द ही टिहरी झील में सी-प्लेन की लैंडिंग भी करायी जाएगी। टिहरी के अलावा नैनीताल समेत राज्य की दूसरी प्रमुख नदियों को भी इस योजना से जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही राज्य की नदियों को पुनर्जीवित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।

देहरादून की ऋषिपर्णा यानि रिस्पना, बिंदाल नदी और कुमाऊँ क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण कोसी नदी को पुनर्जीवन करने का लक्ष्य चिन्हित किया गया है। प्रत्येक जनपद में कम-से-कम एक नदी या जलस्रोत के पुनर्जीवीकरण का अभियान चलाने का निर्णय लिया है। नैनीताल की नैनी झील को संरक्षण के लिए भी योजना चलाई जा रही है।

आरटीआई ने खोली सरकार के खर्चों की पोल

त्रिवेंद्र सरकार के लिए एक वर्ष के कार्यकाल के सटीक आंकलन के लिए दो आरटीआई की बात करना भी जरूरी है। नैनीताल के रहने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत सिंह गौनियां ने सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद अतिथियों के लिए चाय-पानी कराने में कितना खर्च किया गया।

आरटीआई के जवाब में उत्तराखंड के सचिवालय प्रशासन ने जो आंकड़े दिए वो हैरान करने वाले थे। जवाब के मुताबिक रावत के आठ महीने के कार्यकाल में पद संभालने के बाद से अतिथि तक चाय-पानी में 68,59,865 रुपया सरकारी धन खर्च किया गया। इस हिसाब से हर एक दिन लगभग 22 हजार रुपये चाय-नाश्ते में खर्च किये गये। सचिवालय ने 22 जनवरी 2018 को यह जवाब दिया है। आरटीआई के जवाब के मुताबिक त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने ये खर्चे 18 मार्च 2017 से 19 दिसंबर 2017 के बीच किए हैं।

दूसरी आरटीआई सरकार के खर्चों पर और भी गंभीर सवाल खड़े करती है। एक तरफ राज्य सरकार कर्ज के बोझ तल दबी हुई है। वहीं गैरसैंण में सत्र के लिए लाखों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। आरटीआई से खुलासा हुआ कि बीते साल में गैरसैंण में आयोजित अब तक का सबसे खर्चीला सत्र साबित हुआ है।

आरटीआई कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह चड्ढा ने एक आरटीआई में गैरसैंण में अब तक आयोजित सत्रों में हुए खर्च के बारे में जानकारी मांगी। आरटीआई के जवाब में चड्ढा को बताया गया कि 2014 में आयोजित तीन दिवसीय सत्र में तकरीबन करीब 58 लाख रुपये खर्च हुए थे।

साल 2015 में आयोजित दो दिवसीय सत्र में लगभग तीन लाख रुपये और 2016 में करीब 37 लाख रुपये खर्च हुए। लेकिन रावत सरकार आने के बाद दिसंबर 2017 में हुए दो दिवसीय सत्र पर करीब 99 लाख रुपये खर्च हुए। करीब दो करोड़ रुपये का जो खर्च दिखाया गया है वह सिर्फ विधानसभा सचिवालय प्रशासन का है।

इसके अलावा राज्य के अन्य विभागों ने भी इन विधानसभा सत्रों के आयोजन पर खर्च किया है। यानी गैरसैंण में सत्र आहूत करने के नाम पर होने वाला खर्च इससे कहीं अधिक है। जिस गरीब राज्य को अपने कर्मचारियों का वेतन देने के लिए कर्ज लेना पड़ता हो, वहां इस तरह के खर्च को कैसे जायज ठहराया जा सकता है।

मजबूत या मजबूर सरकार

इस एक साल के कार्यकाल में त्रिवेंद्र सरकार की मजबूत से ज्यादा मजबूर सरकार की छवि बनी है। सरकार की घोषणा के बावजूद सेना ने श्रीनगर मेडिकल कॉलेज लेने से इनकार कर दिया हो या फिर राज्य की सीमा के अंदर ही मुख्यमंत्री के हेलिकॉप्टर को जीटीसी हैलीपैड पर उतरने नहीं दिया गया। एनएच 74 घोटाला मामले में भी सीबीआई को जांच भेजने के बावजूद सीबीआई जांच नहीं होती।

खुद त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ उनके ही पार्टी के नेताओं के बगावती सुर सुनाई पड़ते हैं। बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उत्तराखंड दौरे के दौरान भी यहां के विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ शिकायतें कर डालीं। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज हों या वन मंत्री हरक सिंह रावत। ये सभी त्रिवेंद्र सिंह रावत से अपनी असंतुष्टि जता चुके हैं। पार्टी के एक विधायक प्रणब सिंह चैंपियन तो दिल्ली तक मुख्यमंत्री की शिकायत कर आए।

जिस रोज बीजेपी अपने आजीवन सहयोग निधि कार्यक्रम को बड़े स्तर पर आहूत कर रही थी, उसी शाम पार्टी सांसद रमेश पोखरियाल निशंक के घर चाय पार्टी होती है और उत्तराखंड बीजेपी के कई स्टार नेता वहां मौजूद होते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि बेशक ईमानदार, सादगी और राजनीतिक शुचिता वाले व्यक्ति की है,लेकिन कई बार ये एक मजबूर नेता की छवि भी बनती दिखती है।

अपने चुनावी विजन डॉक्युमेंट में बीजेपी ने छात्रों को मोबाइल-लैपटॉप देने के वादे किए थे। विश्वविद्यालयों में वाई-फाई सुविधा देने की बातें कही थीं, लेकिन इस एक साल में सरकारी महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों में वंदेमातरम् का गान कराया गया, दीवारों के जरिये देशभक्ति का ककहरा सिखाने की कोशिश की गई।

नदियों के राज्य के गांव प्यासे हैं। ऊर्जा प्रदेश का दावा करने वाले उत्तराखंड के कई गांव अब भी बिजली कनेक्शन से महरूम हैं। जिस राज्य के 58 फीसदी गांवों में अब तक सडक़ें नहीं बनीं वहां ऑल वेदर रोड पर्यटकों के लिए है। केदारपुरी का पुनर्निर्माण हो रहा है, लेकिन आपदा के बाद उजड़े गांवों के पुनर्निर्माण की भी जरूरत है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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