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निजी स्कूलों की नकेल कसने की तैयारी में उत्तराखंड सरकार
देहरादून। उत्तराखंड सरकार जल्द ही निजी स्कूलों में फीस के नियमितीकरण के लिए एक कानून लाने जा रही है। सरकार ने अभी इसके लिए कोई समयबद्ध योजना तो नहीं बनायी है लेकिन जल्द ही इस पर अमल के संकेत दिये हैं। प्रस्तावित विधेयक के प्रावधानों को अंतिम रूप दिया जा रहा है और लग रहा है कि जल्द ही स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर लगाम लग जाएगी। ऐसा नहीं है कि निजी स्कूलों के फीस ढांचे को सरकार पहली बार नियमित करने जा रही है।
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने भी निजी स्कूलों पर एक बिल लाने का प्रयास किया था। लेकिन स्कूलों के कड़े विरोध के चलते सरकार को पीछे हटना पड़ा था। राज्य के देहरादून, मसूरी और नैनीताल प्रसिद्ध पब्लिक स्कूलों के गढ़ हैं। जहां से तमाम प्रसिद्ध लेखक, उद्योगपति, अभिनेता और राजनीतिक हस्तियां निकली हैं। आल उत्तराखंड पेरेंट्स एसोसिएशन उन अभिभावकों के लिए कवच का काम करती है जिनके बच्चे इन पब्लिक स्कूलों में पढ़ते हैं।
उत्तराखंड में तीन तरह के करीब 650 गैरसहायित स्कूल हैं - केवल डे स्कालर्स के लिए, रेजीडेंशियल और रेजीडेंशियल कम डे बोर्डिंग। ये स्कूल इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकंड्री एजुकेशन (आईसीएसई) और सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंड्री एजुकेशन से मान्यता लिये हुए हैं। इनमें से अधिकांश दून घाटी में हैं। यहां 124 स्कूल सीबीएसई व 72 स्कूल आईसीएसई बोर्ड से संबद्धता लिये हुए हैं। इन गैरसहायित स्कूलों में कुछ तो 19वीं शताब्दी से चल रहे हैं जबकि तमाम पिछले चार दशक में शुरू हुए हैं। हाल ही में कई अंतरराष्ट्रीय स्कूलों ने भी अपनी शाखाएं देहरादून और इसके आसपास खोली हैं।
स्कूली शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे का मानना है कि प्रस्तावित विधेयक तमाम अड़चनों के बावजूद पेश किये जाने योग्य होगा। उन्होंने कहा कि जब हम इन सीबीएसई स्कूलों पर एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाने का दबाव बना लेंगे तो यह स्कूल उनका फीस स्ट्रक्चर मानने के लिए भी बाध्य हो जाएंगे।
मंत्री का दावा है कि अगले शैक्षिक सत्र में सभी स्कूल चाहे वह सरकारी हों या प्राइवेट, छात्रों को एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि यह अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वह एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाया जाना सुनिश्चित कराएं। यह पूछे जाने पर कि सीबीएसई बोर्ड के स्कूलों पर ही एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाने की बाध्यता क्यों होगी आईसीएसई स्कूलों पर क्यों नहीं तो मंत्री ने कहा कि देहरादून उत्तराखंड नहीं है।
इस बीच गैरसहायित निजी स्कूलों के एसोसिएशन (पूसा) ने दोहराया है कि वह स्कूलों को नियंत्रित किये जाने के किसी भी कदम का विरोध करेगा। महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है निजी स्कूल सरकार का ही अभिन्न अंग हैं। इसलिये सरकार को कोई भी कानून बनाने से पहले निजी स्कूल संचालकों की राय जानना और उनकी समस्याओं को समझना जरूरी है।
महासंघ का कहना है कि सभी निजी स्कूलों की अपनी-अपनी सुविधायें हैं जिसके अनुसार ही स्कूल की प्रबंधक कमेटी फीस निर्धारित करती है। इसके अलावा गैर सरकारी स्कूलों को आरटीआई के दायरे में रखा गया है। जो कि किसी हद तक भी न्यायोचित नहीं है। महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि करोड़ों की जमीन पर स्कूल बनाने के बाद सिर्फ फीस का ही सहारा स्कूल संचालकों को होता है। जिससे स्कूल में सुविधायें दी जाती है। ऐसे में सरकार का हंटर रहेगा तो शिक्षण संस्था को चलाना संभव नहीं हो पायेगा।
उत्तराखंड में निजी स्कूलों द्वारा ली जाने वाली कॉशन मनी और री एडमिशन फीस को सत्र 2017 से ही बंद कराया जा चुका है। कहा जा रहा है कि प्रस्तावित विधेयक के मसौदे में निजी स्कूल संचालकों की लापरवाही पाये जाने की दशा में तीन साल की जेल और 50 हजार जुर्माने तक का प्रावधान किया गया है।