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Uttarakhand New CM: संगठन व सरकार से दोनों मंडलों में संतुलन का संदेश

Uttarakhand New CM: पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री होने जा रहे हैं वह रविवार को शपथ लेंगे।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Dharmendra Singh
Published on: 3 July 2021 10:35 PM IST
Pushkar Singh Dhami
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पुष्कर सिंह धामी (Photo-Social Media)

Uttarakhand New CM: पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री होने जा रहे हैं वह रविवार को शपथ लेंगे। वह विधानसभा में कुमाऊं क्षेत्र की खटीमा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं और दूसरी बार विधायक चुने गए हैं। मिलनसार मृदुभाषी पुष्कर सिंह धामी संभवतः उत्तराखंड में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री होंगे। वह 45 साल की उम्र में राज्य की बागडोर संभालेंगे।

एक जमाने में पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी हुआ करते थे। खास बात यह है कि धामी अभी तक कभी भी किसी कैबिनेट मंत्री या राज्यमंत्री के पद पर नहीं रहे हैं। इसके अलावा सरकार चलाने का भी कोई अनुभव भी उनके पास नहीं है। एक और खास बात यह है कि पुष्कर धामी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल से आते हैं और राजपूत जाति से हैं।

उत्तराखंड की राजनीति में गढ़वाल मंडल का वर्चस्व

धामी के जरिये भाजपा कुमाऊं मंडल में अपना आधार मजबूत करना चाहती है। वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड की राजनीति में गढ़वाल मंडल का वर्चस्व रहा है। खासकर पौड़ी जिले ने सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री दिये हैं हेमवंती नंदन बहुगुणा(अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे), विजय बहुगुणा, त्रिवेंद्र सिंह रावत, मेजर जनरल सेवानिवृत्त भुवन चंद खंडूरी, लक्ष्मीशंकर मिश्र निशंक, तीरथ सिंह रावत भी पौड़ी जिले से मुख्यमंत्री हुए। कुमाऊं से नारायण दत्त तिवारी, भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री रहे। अन्य नेताओं में अजय भट्ट, हरीश रावत भी कुमाऊं मंडल का प्रतिनिधितव करते हैं। धामी कुमाऊं मंडल से तीसरे मुख्यमंत्री हैं।
उत्तराखंड की सियासत में गढ़वाल और कुमांऊ के बीच सियासी वर्चस्व की लड़ाई लंबे समय से चली आ रही है। इसी के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ गई थी, हालांकि, त्रिवेंद्र के बाद पार्टी ने एक बार फिर गढ़वाल के तीरथ सिंह रावत पर दांव खेला ताकि जातीय के साथ क्षेत्रीय समीकरण को भी साधा जा सके लेकिन वह इसमें अनफिट रहे।
देखा जाए तो यह पहाड़ी राज्य भाषा और संस्कृति को लेकर गढ़वाल और कुमाऊं दो क्षेत्रों में बटा हुआ है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस सूबे की सियासत में दोनों ही क्षेत्रों को बैंलेस बनाकर चलने की कवायद करती रही हैं। जैसे ही एक क्षेत्र का सियासी वर्चस्व बढ़ता है, दूसरे क्षेत्र से असंतोष तेज हो जाता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को मंडल बनाकर उसमें कुमांऊ के दो अहम जिलों अल्मोड़ा और बागेश्वर को शामिल किया तो उनके खिलाफ विद्रोह इतना तेज हो गया कि सरकार का चेहरा बदलना पड़ गया। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है।


बैलेंस बनाने की कोशिश
धामी के जरिये बैलेंस सम्हालने की कोशिश हुई है क्योंकि कुमाऊं मंडल में भाजपा के पास कोई बड़ा नेता नहीं है जबकि गढ़वाल मंडल में भाजपा के पास त्रिवेंद्र सिह रावत, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, धन सिंह रावत, सुबोध उनियाल जैसे दिग्गज नेता है जो गढ़वाल क्षेत्र में अपने दम पर बीजेपी को मजबूती देने का मादा रखते हैं। एक बात और 2017 के चुनाव और उसके बाद से गढ़वाल क्षेत्र में बीजेपी का पलड़ा भारी हुआ है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले नेताओं ने इस क्षेत्र में बीजेपी को मजबूती दी है। इसलिए आसन्न चुनाव के नजरिये से भी कुमाऊं पर फोकस करने की जरूरत थी।
वैसे देखा जाए तो भगत सिंह कोश्यारी कुमाऊं मंडल से मुख्यमंत्री थे तो पूरन चंद्र शर्मा कुमाऊं मंडल से ही अध्यक्ष थे। लेकिन भुवन चंद्र खंडूरी गढवाल मंडल से सीएम बने तो कुमाऊं मंडल के बची सिंह रावत पार्टी अध्यक्ष रहे। खंडूरी के कार्यकाल में यही संतुलन रहा। रमेश पोखरियाल निशंक बने तो बिशन सिंह चुफाल अध्यक्ष रहे। त्रिवेंद्र सिंह रावत आए तो अजय भट्ट और वंशीधर भगत अध्यक्ष बने, तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल में मदन कौशिक गढ़वाल मंडल के ही अध्यक्ष रहे लेकिन अब धामी के आने पर यह संतुलन पुनः ठीक हो गया है। यानी एक मंडल से सीएम तो दूसरे मंडल से अध्यक्ष।


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