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अमीरों ने गरीब बन कर लूटा, फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर उठाया लाभ
नवीन चौहान के साथ आलोक अवस्थी
देहरादून। गरीबों की भलाई के नाम पर बनाई गई योजना में उत्तराखंड के सैकड़ों करोड़पतियों ने गरीबी का सर्टिफिकेट लगाकर पूरी योजना का मजाक उड़ाया है। दलीय प्रतिबद्धताएं त्यागकर नेताओं ने भी अपने परिवार और चाहने वालों को गरीबों का धन लुटवाने में खूब साथ दिया। पूरी ब्यूरोक्रेसी ने भी कदम से कदम मिलाकर बेईमानी के इस कारोबार में जमकर साथ निभाया।
उत्तराखंड के निर्माण के साथ ही वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के नाम से गरीबों को स्वरोजगार देने की योजना में खूब लूट हुई। मामले का खुलासा होने के बाद पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने जांच के आदेश दिए हैं। इस बाबत सभी जिलाधिकारियों से आख्या मांगी गयी है।
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली योजना में गरीबों को सस्ते दर पर पच्चीस फीसदी सब्सिडी के साथ लोन बंटना था। पर्यटन विभाग की संस्तुति और पंजीकरण के साथ छोटे होटल, रेस्टोरेंट सहित तमाम योजनाओं के लिए सरकार ने ऋण का प्रावधान रखा था। योजना आते ही सभी बड़े व्यापारी गरीब हो गए। इस योजना के तहत सरकारी रकम लूटने में सभी दलों के नेताओं ने भी खूब हिस्सेदारी निभाई।
करोड़ों की संपत्ति के मालिकों ने भी फर्जी हलफनामे लगाकर गरीबों के लिए चलाई जाने वाली योजना में लूट करने में कोई संकोच नहीं किया। सत्रह साल तक हुई लूट का खुलासा एक आरटीआई में लाभार्थियों का ब्योरा मांगे जाने के बाद हुआ। अब यह मामला जांच के घेरे में है। मामले की जांच के आदेश तो दे दिए गए हैं मगर जांच सही दिशा में होगी इसे लेकर संदेह है क्योंकि इस लूट में शामिल लोग काफी ताकतवर व पहुंच वाले हैं। यही कारण है कि कार्रवाई करने वाले हाथ अपनों पर कार्रवाई करेंगे, इसे लेकर संदेह जताया जा रहा है।
कार्रवाई पर संदेह के बादल इसलिए भी मंडरा रहे हैं कि इस मामले में उत्तराखंड के सभी बड़े अधिकारी किसी न किसी रूप में लिप्त हैं। इन अफसरों के हाथ काफी लंबे हैं और इनकी ताकत के कारण कार्रवाई की संभावना नहीं के बराबर मानी जा रही है।
जब कुछ संगठनों ने इस घोटाले से पर्दा उठाना चाहा तो मामले को दबाने की कोशिशें शुरू हो गईं। एक समाजसेवी सतीश चंद्र शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से मामले की जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस प्रकरण पर उत्तराखंड के सभी जनपदों के जिलाधिकारियों से आख्या मांगी है। इसके अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय से भी उत्तराखंड सरकार को पूरे मामले की जांच करने को कहा गया है। इस आख्या के बाद ऐसे सभी लोगों की मुसीबतें बढऩा तय है। शर्मा ने यूट्यूब पर एक वीडियो जारी करके दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।
वर्ष 2003 में शुरू हुई थी योजना
उत्तराखंड सरकार ने बेरोजगार युवाओं के लिए वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना 2003 में शुरू की थी। इस योजना में लाभार्थियों को 20 लाख रुपये तक का ऋण दिया जाता था। बाद में यह राशि बढ़ाकर 40 लाख रुपये कर दी गयी। ऋण के लिए उत्तराखंड का स्थायी निवासी, वार्षिक आय प्रमाण पत्र, रेस्टोरेंट और आवासीय इकाई के लिए भूमि का खसरा खतौनी, नक्शा, आंगणन जबकि वाहन के लिए पांच साल पुराना ड्राइविंग लाइसेंस होना आवश्यक है।
इस योजना के तहत गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को रोजगार देने के लिए सरकार ने 25 फीसदी सब्सिडी पर लोन देने की सुविधा रखी। इसके तहत होटल, फास्ट फूड, टैक्सी वाहन और योग व ध्यान सेंटर खोले जाने थे। ऋण के लिए आवेदन करने वाले बेरोजगारों को पर्यटन विभाग के माध्यम से आवेदन करना था।
अपनी आमदनी का शपथ पत्र घोषित करना था। इस योजना के शुरू होने के बाद प्रदेश में तमाम अरबपतियों और करोड़पतियों ने खुद को गरीब और बेरोजगार बताते हुए आवेदन किया। तत्कालीन अधिकारियों ने सभी के लोन मंजूर कर भी दिए।
विधायक की पत्नी भी लाभार्थी
ऋण लेने वालों में सबसे प्रमुख नाम रूडक़ी से तत्कालीन कांग्रेस विधायक व वर्तमान में भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा की पत्नी मनीषा बत्रा का है। यह वही प्रदीप बत्रा हैं जिन्होंने विधायक रहते हुए प्रतिवर्ष लाखों रुपये के विज्ञापन दिए और आज भी यह सिलसिला जारी है।
विधायक की पत्नी के अतिरिक्त बिरला रोड निवासी सुनील सोनेजा, गोल गुरुद्वारा ज्वालापुर निवासी ओंकार जैन, तनेजा इलेक्ट्रानिक्स ज्वालापुर के स्वामी महेश तनेजा की पत्नी सीमा तनेजा, हरिद्वार की पॉश कालोनी कही जाने वाली विल्वकेशर निवासी वीरेन्द्र कुमार चड्ढा, व्यवसायी विमल कुमार के पुत्र कर्ण ध्यानी, अभिषेक बंटा समेत ऐसे कई दर्जन करोड़पति हैं, जिन्होंने स्वयं को बेराजगार बताकर इस योजना का लाभ लिया।
भूपतवाला निवासी सतीश चंद्र शर्मा की शिकायत के बाद पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने मामले की जांच के आदेश दिए। इसके बाद पर्यटन विकास परिषद के अधिकारी अमित सिंह नेगी ने सभी 13 जनपदों के जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर आख्या उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
क्या है खेल
काफी समय से यह बात उठ रही थी कि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना कुछ लोगों के लिए सोने का अंडा साबित हो रही है। योजना के नाम पर टूरिज्म डिपार्टमेंट की नाक के नीचे एक बड़ा खेल खेला जा रहा है, लेकिन अधिकारी इन सब शिकायतों को नजरअंदाज करते रहे।
दरअसल, इस योजना के तहत टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 25 प्रतिशत की सब्सिडी पर वाहन खरीदने की सुविधा दी जाती है। यह भी तय है कि उक्त योजना के तहत खरीदे गए वाहन यात्रियों को सेवा देंगे, लेकिन राज्य में दर्जनों वाहन यात्रियों के बजाय अफसरों को सेवाएं दे रहे हैं। दरअसल ये वे वाहन हैं जो अफसरों ने अपने लोगों के नाम से खरीदे हुए हैं। बहाना यह है कि टूरिज्म सीजन ऑफ है, इसलिए ये वाहन सरकारी विभागों में कॉनट्रेक्ट पर लगाए गए हैं। यानी अफसर इस स्कीम के जरिये दोनों हाथों से अपनी जेबें भर रहे हैं। जांच होगी तो वाहन उनके नाम नहीं मिलेगा।
कमाई पूरी उनकी जेब में जा रही है। चलाने वाले को सिर्फ दो-ढाई हजार मिल रहा है। अपनी ही गाडिय़ों में ड्राइवर बने ये लोग अफसरों को ऑफिस लाने व घर छोडऩे का काम बेगारी में कर रहे हैं। इस योजना में एक लाख पर पच्चीस हजार रुपए की छूट दी जाती है, जिसके पीछे टूरिज्म को बढ़ावा व स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराना लक्ष्य रखा गया है।
विभागीय अधिकारियों की मानें तो योजना के तहत खरीदे गए वाहनों को विभागों में चलाना नियम विरुद्ध है, क्योंकि राज्य सरकार ने यह योजना पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए संचालित की है। विभागों में संचालित होने वाले वाहनों के खिलाफ कार्रवाई का प्रïवधान है, जिसमें पहले नोटिस भेजे जाते हैं और अगर फिर भी वाहन को विभाग से नहीं हटाया जाता है तो सब्सिडी समाप्त की जा सकती है।
मामला मेरे संज्ञान में है। मैने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं। पर्यटन विभाग के सीईओ ने जिलाधिकारियों को निर्देश देकर झूठा हलफनामा देकर सब्सिडी हड़प करने वाले लाभार्थियों की जांच कर कार्रवाई करने को कहा है। निर्देश में कहा गया है कि इस मामले में जो भी अधिकारी दोषी पाया जाएं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई
की जाए।
सतपाल महाराज
पर्यटन मंत्री