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‘यहां बगावत मना है‘ मुख्यमंत्री पद पर बैठते ही शुरू हो जाती है सुगबुगाहट

Newstrack
Published on: 23 Feb 2018 1:50 PM IST
‘यहां बगावत मना है‘ मुख्यमंत्री पद पर बैठते ही शुरू हो जाती है सुगबुगाहट
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देहरादून : उत्तराखंड के आसमान में सूरज की रोशनी की तरह साफ-साफ लिख दिया गया है कि ‘बगावत मना है।’ अगर भरोसा न हो तो कुंवर प्रणव चैंपियन के प्रसंग को देख सकते हैं। इसे उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की किसी एक व्यक्ति के मुख्यमंत्री पद पर बैठते ही उसके खिलाफ सुगबुगाहट शुरू हो जाती है और यह तब तक नहीं ठहरती जब तक सत्ता न पलट जाए।

केवल नारायण दत्त तिवारी ही अपवाद हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। लेकिन तारीख गवाह है कि तिवारी को भी चैन से नहीं बैठने दिया गया। लेकिन यह अवसर बाकी मुख्यमंत्रियों को नसीब नहीं हुआ। दोनों ही राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा कम से कम उत्तराखंड में षडयंत्रों और उठापटक में एक दूसरे से काफी समानता की भावभूमि में हैं। दोनों ही दलों में नेतृत्व को चुनौती देने वाले एलिमेंट मौजूद हैं।

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इतिहास दोहराता है शायद तभी त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया गया है। इस बार के हालात थोड़े अलग से हैं। भगत सिंह कोश्यारी, कांग्रेस से पधारे विजय बहुगुणा और उत्तराखंड के लिए अपने को ही एकमात्र दावेदार मानने वाले निशंक तीनों ही एक प्लेटफार्म पर हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों से मिले बगावती फार्मूले को मिलाकर एक बार फिर ताल ठोकी जा रही है। तीनों केंद्रीय नेतृत्व की तल्खी से ठीक से वाकिफ हैं और तमाम कोशिशों के बाद भी केंद्रीय नेतृत्व को रिझाने में पूरी तरह असफल भी रहे हैं। तीनों ही जानते हैं कि छींका इनमें से किसी का भी नहीं फूटने वाला है फिर भी रावत को नुकसान पहुंचाने की आस अभी तक बरकरार है।

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इन सब की राजनीति का शिकार बेचारे चैंपियन साहब हो गए हैं। उत्तराखंड में अपनी ही सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हरिद्वार जिले की लंडौर सीट से विधायक प्रणव सिंह चैंपियन को अब कहीं जगह नहीं मिल रही है। चैंपियन की नाराजगी हरिद्वार जिले में जिला पंचायत सदस्य की नियुक्ति को लेकर है। पहले तो उन्होंने प्रदेश सरकार के स्थानीय मंत्री मदन कौशिक पर दबाव बनाया। उसके बाद वे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर दबाव बनाने में जुट गए। सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री द्वारा की गई ऐसी बेइज्जती की उम्मीद भी उन्होंने नहीं की होगी। चैंपियन साहब यह भूल गए होंगे कि वह अब कांग्रेस में नहीं अमित शाह वाली भाजपा के प्रतिनिधि हैं.. जहां अनुशासन का डंडा सजावटी पदार्थ नहीं है।

पार्टी के अध्यक्ष अजय भट्ट ने भले ही यह कह दिया हो कि ऐसी पार्टियां होनी चाहिए ताकि सभी कार्यकर्ता एक दूसरे के करीब आ सकें। लेकिन साथ ही उन्होंने चैंपियन साहब साहब को अनुशासनहीनता की चि_ी पकड़ाने में एकदम समय नहीं गंवाया। भगत सिंह कोश्यारी ने तत्काल मौके की नजाकत समझी और त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ ही जहाज में बगल वाली सीट पकड़ ली। डा. निशंक की चाय अब बहुतों पर भारी पडऩे वाली है।

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त्रिवेंद्र सिंह ने जिस तरह सार्वजनिक तौर पर मंच से चैंपियन साहब को उतारा उससे भी मैसेज जो जाना था सीधे चला ही गया। सूत्रों के अनुसार अमित शाह से मुलाकात के बाद ही यह निर्देश दिल्ली से आ गए थे कि किसी भी कीमत पर बगावत को नहीं बर्दाश्त किया जाएगा। नेतृत्व जानता है यदि एक बार भी इनको पंचायत का अवसर दिया गया तो बीजेपी में ताजा ताजा शामिल कांग्रेसी अपने मित्रों के सहारे पहाड़ सर पर उठा लेंगे। फिलहाल तो प्रणव चैंपियन कठोर कार्यवाही के प्रतीक हैं लेकिन जल्द ही कई कई पुराने सिपाही लाइन हाजिर होंगे और फिर भी ना सुधरे तो कोर्ट मार्शल का विकल्प अभी बाकी है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार के खिलाफ आक्रोश निकालने दिल्ली पहुंचे बागी विधायक प्रणव सिंह चैंपियन को आलाकमान से कोई भाव नहीं मिला। बल्कि आलाकमान ने उनकी हरकतों को गंभीरता से लिया। मात्र एक मिनट की मुलाकात के बाद शाह ने उनको चलता कर दिया था। चैंपियन के अलावा विजय बहुगुणा के साहबजादे सौरभ बहुगुणा भी शाह से मिले थे लेकिन कोई तरजीह नहीं पा सके। उत्तराखंड में बगावत के रुख पर अमित शाह गंभीर हो गए थे। चैंपियन को जानने वाले कहते हैं कि उनका कल्चर पहले से ही जाहिर है। वे स्थिर स्वभाव के नहीं है। जहां भी रहे उनका मनमुटाव रहता है।

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