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चमोली में जल प्रलय: सामने आई चौंकाने वाली जानकारी, हर कोई रह गया हैरान

अंतरिक्ष उपयोग केंद्र हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों, ग्लेशियरों और नदियों पर सेटेलाइट के द्वारा नियमित नजर बनाकर रखता है। इसके साथ ही लगातार मैपिंग भी होती है। ऋषिगंगा कैचमेंट में कुल 14 ग्लेशियर स्थित हैं।

Dharmendra kumar
Published on: 8 Feb 2021 4:15 AM GMT
चमोली में जल प्रलय: सामने आई चौंकाने वाली जानकारी, हर कोई रह गया हैरान
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चमोली में ग्लेशियर टूटन से बड़ी तबाही मची है। जल प्रलय में 150 से ज्यादा लोगों के लापता होने की आशंका है। ग्लेशियर टूटने से प्लांट, बांध, पुलों को भारी नुकसान पहुंचा है।

देहरादून: उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटन से बड़ी तबाही मची है। इस जल प्रलय में 150 से ज्यादा लोगों के लापता होने की आशंका है। ग्लेशियर टूटने की वजह से प्लांट, बांध, पुलों को भारी नुकसान पहुंचा है। अभी तक 14 शव बरमाद हो चुके हैं और रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है।

मिली जानकारी मुताबिक, ऋषिगंगा के कैचमेंट क्षेत्र में सात दिन पहले तक कोई झील नहीं बनी थी। अंतरिक्ष उपयोग केंद्र की शुरुआती डाटा रिव्यू में ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं। ग्लेशियर की तलहटी में भूस्खलन, नदी का बहाव रुकने या बर्फ का पहाड़ गिरने की वजह को त्रासदी की वजह माना जा रहा है।

अंतरिक्ष उपयोग केंद्र हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों, ग्लेशियरों और नदियों पर सेटेलाइट के द्वारा नियमित नजर बनाकर रखता है। इसके साथ ही लगातार मैपिंग भी होती है। ऋषिगंगा कैचमेंट में कुल 14 ग्लेशियर स्थित हैं। इनका पानी नंदा देवी पर्वत शृंखला के चारों ओर से निकलता है और ऋषि गंगा में मिलता है। इसके साथ ही ऋषिगंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा, धौलीगंगा, मंदाकिनी समेत दर्जनों नदियों की भी मॉनिटरिंग की जाती है।

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अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने बताया है कि 30 जनवरी को सभी डाटा का रिव्यू किया गया था। तब झील बनने के कोई संकेत नहीं मिले थे। आपदा के बाद केंद्र ने उस क्षेत्र के पिछले सात दिनों के डाटा की भी समीक्षा की है, लेकिन शुरुआती तौर पर झील बनने की पुष्टि नहीं हुई है।

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भूस्खलन के बड़े केंद्र

प्रो. एमपीएस बिष्ट का कहना है कि प्रभावित घाटी में कई स्थान भूस्खलन के बड़े केंद्र हैं। इसकी वजह से कई बार पहाड़ी ढालों के खिसकने, चट्टानों के गिरने जैसी घटनाएं सामने आती हैं जो नदी की राह में बाधा पैदा करती हैं। अगर कुछ घंटे पहले भूस्खलन हो गया हो या बर्फ की कोई बड़ी चट्टान निची आ गिरी जिसने अपने साथ मलबे को लाकर नदी के बहाव को रोक सकती है।

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इसके बाद यह पानी झटके से बाहर आएगा तो वहां की बड़ी ढलानों पर तेजी से नुकसान करता हुआ आगे निकलेगा। जब इन स्थानों पर अस्थायी झील बन जाती है तो पानी और मलबे के दबाव में सिर्फ कुछ ही घंटे में ही वह टूट जाती है।

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Dharmendra kumar

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