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सचिव को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे मंत्री, यशपाल आर्य बनाम पांडियन विवाद
आलोक अवस्थी
देहरादून: उत्तराखंड के परिवहन मंत्री यशपाल आर्य आज कल अपने एक सचिव से बेहद खफा हैं। किसी भी कीमत पर अपने सचिव को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार जनवरी के दूसरे सप्ताह में यशपाल आर्य ने इस मामले पर सीएम से मिलकर शिकायत की है साथ ही मुख्य सचिव से पांडियन को हटाने का लिखित तौर पर निवेदन भी किया है। उनकी ये लड़ाई तीन सौ पैंतीस किलोमीटर लंबी है और अब इसमें ‘वाल्वो बस’ भी उतर आई है। आपको ये कुछ अचरज भरी लड़ाई लग रही होगी? लेकिन सच ये ही है। इसको समझने के लिए थोड़ा पीछे यानी हरीश रावत जी के युग में चलना पड़ेगा। उस युग में तब यशपाल, हरीश रावत की सरकार में प्रभावशाली मंत्री हुआ करते थे।
दरअसल 2012 में एन.एच-74 को नगीना से बरेली, उधमसिंहनगर, सितारगंज, जसपुर से काशीपुर तक तीन सौ पैंतीस किलोमीटर तक यात्रा तय करनी थी। जमीन की पैमाइश हुई और जिस-जिस रास्ते से सडक़ गुजरनी थी वो सारी जमीन अकृषि अर्थात कृषि योग्य न होना पाई गई। जब तक सडक़ की योजना कागज पर थी तब तक इस जमीन की कोई कीमत नहीं थी लेकिन अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू होते ही मुआवजा लेने वालों की लम्बी फौज खड़ी हो गई। अचानक ही मुफ्त की जमीन 300 करोड़ की हो गई।
सरकार के प्रभावशाली नेता का दबाव और अधिकारियों की मिलीभगत। सबने अपने-अपने हिस्से का माल कमाया। लेकिन तभी आईएएस अधिकारी पांडियन की एंट्री हुई। पांडियन उस समय कुमाऊं मण्डल के कमिश्रर थे। उन्होंने जांच करवा डाली। जब तक उनका कुछ बिगड़ पाता, उत्तराखण्ड में राजनैतिक क्रांति हो गई। हरीश् रावत सरकार के सभी ताकतवर साथियों ने बगावत की (जिसमें यशपाल भी थे) और अचानक ये सभी भाजपा के साथ आ गए। बहरहाल, सरकार बदल गई, आस्थाएं बदल गईं लेकिन कागज नहीं बदला। 2017 आते-आते बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया और एस.आई.टी. की जांच शुरू हुई। इसमें वो सारे अधिकारी नप गये जो साहेब के इशारे पर अपनों को मुआवजा बांट रहे थे।
जिनके कारण पूरा प्रकरण जांच के दायरे में आ गया वह पांडियन अब यशपाल के ही विभाग में सचिव बनकर आ गए। इसी बीच वाल्वो की खरीद के सौदे का मामला आड़े आ गया। ये किसी से छुपा नहीं है कि किराए की वोल्वो से हो रहे घाटे को बर्दाश्त न करने वाला विभाग अब वोल्वो के बेड़े को खरीदने पर किस तरह उतावला है। मंत्री के वाल्वो खरीदने के प्रस्ताव पर परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी हैरान हैं। यहां यह समझना जरूरी है कि वाल्वो की एक बस की कीमत लगभग एक करोड़ होती है और मंत्री जी ऐसी ही सौ वाल्वो बस खरीदने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार इस खेल में एक मोटी रकम का आदान प्रदान होने की संभावना है और पांडियन वाल्वो की खरीद की फाइल को स्वीकृति देने के लिए कतई तैयार नहीं हैं। यानी पांडियन फिर यशपाल के लिए मुसीबत बन गये हैं।
मुआवजे घोटाले में जिन अधिकारियों ने अहम भूमिका निभाई और दोषी पाए गये
1. दिनेश प्रताप सिंह
2. अनिल कुमार शुक्ला
3. सुरेन्द्र सिंह जगपानी
4. भगत सिंह फोनिया
5. एम.एस. नगनियाल
6. एस.एस.यारतोलिया
एसडीएम स्तर के येअधिकारी इस समय जेल में हैं।