×

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का हिम्मती फैसला

Newstrack
Published on: 9 Feb 2018 8:48 AM GMT
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का हिम्मती फैसला
X

आलोक अवस्थी

‘पलकें खुली सुबह तो ये जाना हमने,

मौत ने आज फिर हमें जिंदगी के हवाले कर दिया।’

देहरादून: पता नहीं किसका लिखा और किसका जिया यह शेर है, लेकिन जब से इसे पढ़ा है यह दिलो दिमाग को मथे डाल रहा है। पूरी दुनिया में आठ लाख लोग हर साल आत्महत्या कर रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि इसमें इक्कीस फीसदी लोग भारत के होते हैं। दुनिया का तो पता नहीं, लेकिन भारत में होने वाली हर मौत पर एक नई राजनीति जिंदा होती है। भारत में सबसे ज्यादा किसानों ने जान दी। जो जहां सत्ता से बाहर था उसने जमकर सियासत की और हुक्मरानों ने भी कुछ पैसे लगाकर मौत को फायदे की फसल में तब्दील कर दिया।

लेकिन पहली बार देश के इतिहास में किसी सरकार के मुखिया ने हिम्मत जुटाई है और ऐलान किया है कि ऐसी किसी भी मौत पर सरकार एक रुपया भी नहीं खर्च करेगी। जिसको जितनी भी सियासत करनी हो,कर ले। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह फैसला बहुत हिम्मत भरा है। उन्होंने ये फैसला तब लिया जब उनकी अपनी ही पार्टी के कार्यालय में उनकी ही सरकार के मंत्री के सामने एक व्यापारी ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली हो। खुद मुख्यमंत्री ने यह घोषणा तब की जब इस घटना के बाद 11 लोगों ने सरकार को आत्महत्या करने की धमकी दी। त्रिवेंद्र सिंह ने नौजवानों से पूछा कि बताओ क्या ऐसे लोगों को सरकार की मदद मिलनी चाहिए? यह कायराना हरकत है और सरकार ऐसे कायर को एक रुपए की भी मदद नहीं करेगी।

ये भी पढ़ें : उत्तराखंड: तबादला विधेयक पारित, बंद हो जाएंगी कार्मिकों के तबादले में सिफारिशें

त्रिवेंद्र सिंह जानते हैं कि उनके इस बयान का विरोध किस हद तक होगा, उसके बाद भी उनका यह फैसला साहसिक है। उत्तराखंड बीजेपी सीएम के फैसले पर उनके साथ खड़ी है। पार्टी अपने संसाधनों के बल पर मृत व्यापारी के परिवार को सहायता करने जा रही है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने अपने सभी सहयोगियों से मदद की अपील की है।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ईमानदारी से स्वीकारते हैं कि मौजूदा सारा सिस्टम बेईमानी और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा हुआ है और आत्महत्याएं उसी सड़ी गली व्यवस्था की रस्सी से बने फंदे पर लटककर झूलती हैं। अगर सिस्टम को ठीक नहीं किया गया तो आत्महत्याओं के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचेगा। हर सरकार की तरह त्रिवेंद्र सिंह सरकार भी उन्हीं औजारों के सहारे है जो बेईमानी की इमारतों का निर्माण करते हैं, लेकिन कहीं न कहीं तो किसी न किसी को तो आगे बढक़र शुरुआत करनी ही होगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने छात्रों के बीच कहा कि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। आत्महत्या कायर करते हैं।

ऐसे लोगों को सरकार कोई मुआवजा नहीं देगी। रावत ने कहा कि आत्महत्या की धमकी देना फैशन बन गया है, लेकिन अब इसे खत्म करना ही होगा। उन्होंने कहा कि हमारे बीच के कुछ लोग भले इसे बढ़ावा दें, लेकिन मेरी सरकार किसी भी सूरत में ऐसे आत्महत्या करने वालों की मदद नहीं करेगी। ऐसे लोगों को सरकार के खजाने से एक रुपये की मदद नहीं दी जाएगी। उन्होंने युवाओं को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया और कहा कि वो नौकरी के पीछे न भागें बल्कि खुद नौकरी देने लायक बनें।

मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी: कांग्रेस

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय बताते हैं कि राहुल गांधी के चौरीचौरा संकल्प में किसानों का कर्जा माफ और बिजली का बिल हाफ पर कांग्रेस कायम है और जब राज्य में उनकी सरकार थी तब उन्होंने खुद एक प्रतिनिधिमंडल लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत से इसे करने के लिए प्रयास किया था। उनकी सरकार कुछ कर पाती किचुनाव आ गए और कांग्रेस सत्ता से बाहर आ गई। किशोर उपाध्याय मानते हैं कि अगर कोई किसान आत्महत्या करता है और उसके पीछे सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं तो वेलफेयर स्टेट होने के नाते सरकार का दायित्व है कि उस किसान की मृत्यु पर उसके परिवार को मुआवजा दे। उनका सवाल है कि आखिर सरकार बनी किसके लिए है।

किसानों के कर्जे माफ करने से इनकार

त्रिवेंद्र सरकार बीजेपी शासित सरकारों में से इकलौती सरकार है जिसने प्रधानमंत्री की किसानों का कर्जा माफ करने की चुनावी घोषणा का पालन नहीं किया है। इतना ही नहीं पिछले महीने रुडक़ी में हुए किसान मोर्चा के कार्यक्रम में साफ तौर पर कर्जे को माफ करने से इनकार कर दिया।

आत्महत्याओं में भारत अव्वल

भारत में आत्महत्या के मामलों ने समाजविज्ञानियों को चिंता में डाल दिया है। वर्ष 2015 में 1.34 लाख लोगों ने अलग-अलग कारणों से अपनी जान दे दी। हाल में जारी सरकारी आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है। आत्महत्या करने वालों की तादाद के मामले में महाराष्ट्र (16970) के बाद तमिलनाडु (15,777) और पश्चिम बंगाल (14,602) का नंबर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी बीते दिनों दुनिया भर में होने वाली आत्महत्याओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। उसमें कहा गया था कि दुनिया भर में सालाना आत्महत्या के लगभग आठ लाख मामलों में 21 फीसदी भारत में ही होते हैं।

उत्तराखंड में आत्महत्याएं बढ़ीं

केंद्र सरकार की ओर से जारी ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2015 के दौरान देश में कुल 1 लाख 33 हजार 623 लोगों ने आत्महत्या कर ली। यह तादाद वर्ष 2014 के मुकाबले डेढ़ फीसदी ज्यादा है। इस मामले में महाराष्ट्र का स्थान सबसे ऊपर है। इसमें कहा गया है कि देश में होने वाली आत्महत्या की कुल घटनाओं में 51.2 फीसदी सिर्फ पांच राज्यों यानी महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक व मध्यप्रदेश में ही हुईं। जहां तक आत्महत्याओं की तादाद बढऩे का सवाल है इसमें सबसे ज्यादा वृद्धि (129.5 फीसदी) उत्तराखंड में दर्ज की गई।

ये भी पढ़ें : उत्तराखंड के एक और कारोबारी ने जहर खाकर दी जान

उसके बाद मेघालय (73.7 फीसदी), नगालैंड (61.5 फीसदी) और जम्मू-कश्मीर (44.2 फीसदी) का स्थान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा आत्महत्याएं पुडुचेरी और सिक्किम में होती हैं। पुडुचेरी में प्रति 10 लाख लोगों में से औसतन 432 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि सिक्किम के मामले में यह आंकड़ा 375 है। जहां तक आत्महत्या करने वालों का सवाल है तो दैनिक मजदूरी करने वालों की तादाद में सबसे ज्यादा 51 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है। आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में ऐसे 17.8 फीसदी मजदूर शामिल हैं। उनके बाद महिलाओं का नंबर है।

मुआवजा बांटकर आत्महत्या को बढ़ावा न दें: सुप्रीम कोर्ट

3 मार्च 2017 किसानों की आत्महत्या और कृषि लोन माफ करने के मसले पर सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से साफ कहा कि आपको इस बारे में गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए एक योजना बनानी चाहिए, ना कि आत्महत्या करने वाले परिवार को मुआवजा बांटकर इसे बढ़ावा देना चाहिए। इससे समस्या का कोई हल नहीं निकलेगा। कोर्ट में तो सरकार ने विभिन्न विभागों से बात कर रास्ता निकालने का वादा किया, लेकिन बीजेपी समेत सभी दलों ने चुनावों में किसानों के कर्ज को माफ करने की न केवल घोषणा की बल्कि सरकार बनने पर अपनी ही सरकार का करोड़ों रुपया इस मद पर खर्च भी कर डाला। उसका परिणाम यह निकला कि मौजूदा 2017-18 के बजट की भारी धनराशि इस पर व्यय हो गई और सरकार को काफी आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा। यहां तक कि नए बजट से पहले ही सरकारों को नवंबर-दिसंबर की तनख्वाह बांटने तक के लिए कर्जा लेना पड़ा। उत्तराखंड सरकार भी हालात के शिकार राज्यों में से एक है।

Newstrack

Newstrack

Next Story