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Ayodhya Saryu River Video: सरयू ने रास्ता बदला तब भी सुरक्षित रहेगा मंदिर, हैं पुख्ता इंतजाम

Ayodhya Saryu River History: ये जो सरयू के धारा बदलने और मंदिर के भविष्य को लेकर के सवाल खड़े किये जा रहे हैं। उनके लिए जानना ज़रूरी हो जाता है कि अगर सरयू नें धारा भी बदली तो मंदिर का कोई नुक़सान नहीं होगा।

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Published on: 15 Feb 2024 11:13 AM GMT
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Ayodhya Saryu River: सरयू के किनारे भगवान राम का भव्य और दिव्य मंदिर अयोध्या में बन कर तैयार हो गया है। दर्शक राम लला का दर्शन और पूजन करके पुण्य कमाने लगे हैं।लेकिन आलोचना न हो तो यह भारत में संभव नहीं है। आलोचनाओं का दौर भी शुरु हो गया हैं। लोग कहने लगे हैं कि अगर सरयू ने धारा बदली तो राम मंदिर का क्या होगा? लोग यह समझने को तैयार नहीं हैं कि सारी बातों का ख़्याल करके यह दिव्य और भव्य मंदिर साढ़े पाँच सौ साल के संघर्ष के बाद तैयार हुआ है। ये जो छोटी छोटी आलोचनाओं का दौर है, इन सबका का ख़्याल रखा गया हैं। ये जो सरयू के धारा बदलने और मंदिर के भविष्य को लेकर के सवाल खड़े किये जा रहे हैं। उनके लिए जानना ज़रूरी हो जाता है कि अगर सरयू नें धारा भी बदली तो मंदिर का कोई नुक़सान नहीं होगा।

यह तय है कि लगभग सभी नदियाँ समय समय पर अपना रास्ता बदलती रहती हैं। इसकी वजह किनारों पर या बीच में मौजूद बड़े पत्थर या किसी भी तरह का भारी जमाव होता है। कई बार रुकावटों के चलते नदी कई धाराओं में बंट जाती है। भारत में कोसी नदी सबसे अधिक बार अपना रास्ता बदलने के लिए जानी जाती है। उसने अब तक 33 बार अपनी धारा बदली है। इतिहास गवाह है कि सरयू ने भी पाँच बार धारा बदली है।

धारा में किसी भी संभावित बदलाव को ध्यान में रखते हुए मंदिर के चारों ओर एक रिटेनिंग वाल तैयार की गई है। इस दीवार को कंक्रीट से बनाया गया है। जो मंदिर के ऊपर और जमीन के नीचे भी उसे सुरक्षित रखेगी। रिटेनिंग वॉल जमीन के भीतर 12 मीटर और ऊपर की ओर 11 मीटर तक है। इस वॉल में ग्रेनाइट के पत्थर लगे हुए हैं । क्योंकि ग्रेनाइट के पत्थर पानी को ठीक से सोखते हैं।

श्री राम मंदिर बनाने की तैयारी के दौरान कई फीट नीचे तक भुरभुरी मिट्टी मिलती रही। इससे नींव कमजोर हो सकती थी। नीचे रेतीली मिट्टी की वजह से पहले मंदिर परिसर की खुदाई करके 15 मीटर तक की मिट्टी हटा दी गई। इसके बाद वहां खास तरह की मिट्टी लाकर के जमाया गया। उसके ऊपर लगभग डेढ़ मीटर तक मेटल-फ्री कंक्रीट लगाई गयी। इस मेटल फ़्री कंक्रीट को कंक्रीट राफ्ट भी कह सकते हैं। इस पर कर्नाटक से आया 6 मीटर मोटा ग्रेनाइट पत्थर रखा गया। इन उपायों से यह सुनिश्चित किया गया कि नींव एकदम मजबूत रहेगी।

चूंकि किसी भी निर्माण में लोहे के नष्ट होने की संभावना होती है। बढ़िया से बढ़िया लोहा भी नष्ट होता है। इसलिए तीन मंजिल के इस मंदिर में लोहे का इस्तेमाल किया ही नहीं गया है। मंदिर के निर्माण यानी ज्वाइंट में न तो किसी गारे का उपयोग किया गया है, न ही सीमेंट का।

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट का दावा है कि यह 2,500 साल तक ऐसे ही रहेगा, भूकंपरोधी रहेगा। सरयू की बदली धारा भी इसका कोई नुक़सान नहीं कर पायेगी, इसलिए छोटी छोटी बातों को लेकर के जो आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ है। उनके जवान खुद इसके निर्माण कर्ताओं, वास्तुकारों और ट्रस्ट के लोगों ने दे रखे हैं। आप को ज़रूरत है। उसको जान लेने की। फिर बोलने की।

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