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Azadi Ka Amrit Mahotsav: Ireland के जिक्र बिना अधूरा है जश्न, देखें Y-Factor Yogesh Mishra के साथ
Azadi Ka Amrit Mahotsav: आयरलैंड का ज़िक्र इसलिए ज़रूरी हो जाता है क्योंकि वहाँ वह पार्टी सत्तासीन हुई है, जिसने भारत के जंग ए आज़ादी में मदद की थी।
Azadi Ka Amrit Mahotsav: एनी बेसेंट, जार्ज बर्नाड शाह व सिस्टर निवेदिता इन तीनों को हम लोग ज़रूर जानते होंगे। एनी बेसेंट व सिस्टर निवेदिता का रिश्ता भारतीय स्वाधीनता संग्राम से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ हैं। यह नहीं, ये लोग उत्तरी आयरलैंड के रहने वाले थे। उत्तरी आयरलैंड का भी रिश्ता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से सीधे तौर पर जुड़ता है। उत्तरी आयरलैंड हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में हमारा हम कदम रहा है। आयरलैंड का ज़िक्र इसलिए ज़रूरी हो जाता है क्योंकि वहाँ वह पार्टी सत्तासीन हुई है, जिसने भारत के जंग ए आज़ादी में मदद की थी। बीते 7 मई, 2022 को आयरलैंड में क्रान्तिकारी शिन फेइन पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया। इस विजय पर नैसर्गिक आह्लाद होना सरल है। स्वाभाविक है।बीते 101 वर्षों में पहली बार ऐसे चुनावी परिणाम आये हैं। भारत तथा आयरिश दोनों ब्रिटिश उपनिवेश रहे हैं।
दोनों राष्ट्रों को आजादी देने की बेला पर ब्रिटिशराज ने विभाजित कर डाला था। जिसकी विभीषिका आज तक दोनों भुगत रहे हैं। आयरलैण्ड तो पांच सदियों (1541 से) बादशाह हेनरी अष्टम के काल से तथा भारत 1857 से मलिका विक्टोरिया द्वारा व्यापारी ईस्ट इंडिया कम्पनी से सत्ता लेने के समय तक परतंत्र रहा। किन्तु उत्तरी आयरलैण्ड और आयरिश गणराज्य अभी भी दो अस्तित्व वाले हैं। विभाजित हैं। इस त्रासद तथ्य को मशहूर आयरिश नाटकाकार जार्ज बर्नार्ड शाह ने आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को पत्र में लिखा था : ''साम्राज्यवादियों ने मेरे स्वदेश की भांति तुम्हारे देश को भी जाते—जाते बांट दिया।'' आर्क्सफोड प्रकाशक द्वारा प्रकाशित बंच आफ ओल्ड लेटर्स में इसे पढ़ा जा सकता है।
यूं प्रमुख आयरिश लोग जो भारतीय जनसंघर्ष से जुड़े उनमें सिस्टर निवेदिता थीं । जो भारतीय कला, इतिहास तथा कांग्रेस आंदोलन में क्रियाशील रहीं। दूसरी थीं एनी बेसेन्ट। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। आल्फ्रेड वेब्स 1894 में कांग्रेस के सभापति थे। कवि—युगल कजिन्स तथा मार्गरेट नोबल ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना जनगणमन का अंग्रेजी में रुपांतरण किया था। लेकिन आयरलैण्ड के तृतीय राष्ट्रपति तथा विद्रोही आयरिश रिपब्लिकन आर्मी से संबद्ध रहे ईमन डि वेलेरा सर्वाधिक मशहूर भारतमित्र रहे। ब्रिटिश जेल गांधी जी की भांति इस आंदोलनकारी का दूसरा घर बन गया था। वे ''शिन फेन'' दल के संस्थापक रहें। इसका मतलब हुआ-हम—हम लोग। एक बार ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी दिये जाने से बच गये । क्योंकि वे अमेरिका के न्यूयार्क में 14 अक्टूबर, 1882 को जन्मे थे। नागरिकता अलग थी।
डि वेलेरा की समता नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से की जा सकती है। उनकी घनिष्टता रही भारत के श्रमिक नेता, वराहगिरी वेंकटगिरी से । जो यूपी के तीसरे राज्यपाल और देश के चौथे राष्ट्रपति रहे। वे डि वेलेरा के साथी थे। सन 1916 में अंग्रेज बादशाह जार्ज पंचम के विरुद्ध डबलिन में बगावत करने पर दण्डित किये गये थे। गिरी तब ट्रिनिटी कॉलेज में कानून का अध्ययन करने आयरलैण्ड गये थे। उन्हें भी निष्कासित कर भारत भगा दिया गया। वे संलिप्त पाये गये थे। कालांतर में दोनों बागी साथी अपने-अपने देशों के राष्ट्रपति निर्वाचित हुये। दोनों ब्रिटिश जेलों में सजा भुगत चुके थे।
गिरि को श्रमिक संघर्ष में प्रेरित करने वाले थे आयरिश पुरोधा जेम्स कोनोली। राजधानी डबलिन के झुग्गी—झोपड़ी में 90 मजदूरों के लिये केवल दो संडास तथा एक नल देखकर कोनोली तथा गिरी ने मानवीय सुविधा हेतु आन्दोलन किया। भारत आकर गिरी ने आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (AIRF) की अध्यक्षता संभाली। बाद में जयप्रकाश नारायण इसके लिए चुने गये थे। गिरी ने नेहरु काबीना से श्रममंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था । क्योंकि वित्त मंत्री सीडी देशमुख (जो आईसीएस से अवकाश पाकर कांग्रेस में आये थे) ने द्रोह किया। वित्त मंत्री के दबाव पर बैंक कर्मचारियों के वेतन पर अदालती निर्णय को नेहरु सरकार ने नकार दिया था। तब ऐतिहासिक हड़ताल हुयी थी।
उधर आयरलैण्ड में भी डि वेलेरो ने मजदूरों को संगठित कर हुकूमते बर्तानिया से आजादी हेतु संघर्ष चलाया। डि वेलेरा द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को समर्थन देने से कृतार्थ भारत की मनमोहन सिंह सरकार ने नयी दिल्ली की चाणक्यपुरी में ''डि वेलेरा मार्ग'' का नामकरण 15 मार्च, 2007 को किया। वहां पधारीं आयरिश प्रधानमंत्री श्रीमती बर्टी अहर्न ने इन दो अंग्रेजी उपनिवेश रहे राष्ट्रों की शाश्वत मैत्री का सड़क को प्रतीक बताया। आज भी हजारों भारतीय छात्र—छात्राएं डबलिन अध्ययन हेतु दाखिला लेते हैं। डि वेलेरा राजनीति में प्रवेश के पूर्व स्वयं एक शिक्षक रहे।
आयरलैण्ड में नारी अधिकार संरक्षण में भी भारत का अपार योगदान है। बात अक्टूबर , 2021 की है। कर्नाटक की दन्त चिकित्सिका डा. सविता हल्लपनबार डबलिन के अस्पताल में कार्यरत थीं। अचानक एक दिन उनके चार माह की गर्भावस्था में मवाद की मात्रा बढ़ गयी थी। गर्भपात अनिवार्य था, वरना जान जा सकती थी। मगर आयरलैण्ड के रोमन कैथोलिक चर्च के धार्मिक नियमानुसार भ्रूण हत्या पाप है। देरी के कारण डा. सविता का निधन हो गया। आयलैण्ड में तब जनआन्दोलन चला। सांसदों ने संविधान में 36वां संशोधन किया। जिससे पुराने निषेधात्मक आठवें संशोधन को निरस्त किया गया। तब से वहां अनिवार्य परिस्थियों में गर्भपात वैध हो गया। यह भी भारत द्वारा आयरिश सामाजिक सुधार आन्दोलन में योगदान कहलाता है।
इन सारे दृष्टांतों में सर्वाधिक यादगार घटना ब्राइटन नगर की है। इंग्लैण्ड के इस महानगर में 12 अक्टूबर, 1984 को प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर अपने पार्टी अधिवेशन में पधारीं थीं। आयरिश क्रान्तिकारियों ने उनके होटल कक्ष में बम फोड़ा। किन्तु प्रधानमंत्री मरीं नहीं। भाग्य था। मार्गरेट थेंचर भी इंदिरा गांधी की भांति लौह महिला कही जातीं थीं। आयरिश जंगे आजादी के दमन में उनकी किरदारी वैसी ही थी जो जलियांवाला बाग में जालिम जनरल डायर की।ब्रिटिश अहंकार तथा हठधर्म का शिकार सारे उपनिवेशों की जनता रही है। भारत और आयरलैंड तो बस एक प्रतीक हैं। दो नाम हैं। ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने कई देशों को और वहाँ रह रही जनता को बहुत परेशान किया।