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Gyanvapi ASI Survey Report: मुगल कैद से बाबा कब मुक्त होंगे ? काशी कब तक कराहेगी ?

Gyanvapi ASI Survey Report: काशी विश्वनाथ देवालय पर डॉ. लोहिया की कार्य-योजना का उल्लेख ज़रूरी है।

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Newstrack Network
Published on: 26 Jan 2024 8:41 PM IST
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Gyanvapi ASI Survey Report: इन दिनों काशी में बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा है। लाखों लोग हर महीने बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद ग्रहण करने पहुँच रहे हैं। बाबा विश्वनाथ को स्पर्श कर रहे हैं। और रोमांचित हो रहे हैं। बाबा की पूजा, अर्चना और स्पर्श करने का पुण्य कमा रहे हैं। पहले काशी जाकर भी बाबा का दर्शन कर पाना एक मुश्किल काम होता था। कारण था-जनरव, अपार भीड़। संकरे प्रवेश-मार्ग, गंदगी अलग। अब ऐसा कुछ नहीं है। सब कुछ साफ सुथरा है। तिरुपति-तिरुमला से भी ज़्यादा रमणीय, यादा सुरम्य और ज़्यादा सुविधाजनक भी। स्थानीय सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के सौजन्य से।आप के पुण्य फल के मोदी भी भागी ज़रूर होंगे।

जब जब कृष्ण जन्मभूमि (मथुरा), राम जन्मभूमि (अयोध्या) और काशी विश्वनाथ देवालय जाइये तो हर आस्थावान हिन्दू होने के नाते मन में विचार आता है कि अतिक्रमण सेक्युलर भारत में असहय हैं। हिन्दू जन कितने क्लीव, कापुरूष, मुखन्नस रहे कि इन अतिक्रमणियों को सदियों से बर्दाश्त करते रहे ? ऐसे में याद आया केसरिया शूरवीर महाराणा प्रताप सिसोदिया। जिसे हल्दीघाटी में हराने के लिए जयपुर का युवराज मानसिंह राठौर मुगलों का सेनापति बनकर गया था। तेलुगुमणि विजयनगर सम्राट आलिया रामाराया को तालिकोटा में 23 जनवरी, 1565 को रणभूमि में दक्कन बहमनी सुल्तानों ने धोखे से हराया था। सम्राट की सेना के इस्लामी सैनिक युद्धभूमि में दुश्मनों यानी सुल्तानों की फौज में शामिल हो गए थे। विजयनगर साम्राज्य का अंत हो गया। यानी हिंदू धोखा खाते रहे। आस्थास्थल खोते रहे। ज्ञानवापी मस्जिद भी इसी क्रम की एक त्रासदपूर्ण उपज है।

काशी विश्वनाथ देवालय पर डॉ. लोहिया की कार्य-योजना का उल्लेख ज़रूरी है। पुणे के मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के संस्थापक स्व. हामिद उमर दलवाई और लोहिया का प्रस्ताव था कि मुस्लिम युवजन को सत्याग्रहियों के रूप में प्रशिक्षित किया जाए। वे अयोध्या, मथुरा और काशी में आंदोलन चलायें। लक्ष्य था कि हिंदुओं के आस्था के इन तीनों केन्द्रों को जिस तरह पाशविक बल से मुगलों ने ज़बरदस्ती नष्ट किया। उस पर क़ब्ज़ा किया। यह हिंदुओं को बातचीत से सौंप दिया जाये। जब देश आज़ाद हुआ तबका यह उम्मीद की गई थी कि आज़ाद भारत की सरकार इस अन्याय को ख़त्म करेगी। बहुसंख्यक को क़ानूनी रुप से उनके आस्था के केंद्र लौटा देगी। उनके पूजा स्थल वापस कर दिये जायेगें। लेकिन हुआ बिल्कुल उलटा।

जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने यथास्थिति बरकरार रखी। भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय एकीकरण समिति बनाई।इस समिति के सदस्यों ने काशी, मथुरा और अयोध्या का दौरा भी किया। इन स्थलों को देखते ही उस समिति के सदस्य पूर्णतया विभाजित हो गए। मगर सवाल यही उठा था कि जहीरूद्दीन बाबर को अयोध्या में ही मस्जिद निर्माण क्यों सूझी ? वह इस मस्जिद को गांव धन्नीपुर में बनवाता। यही अपेक्षा आलमगीर औरंगजेब से भी होती है कि बजाय ज्ञानवापी के, काशी के निकट बंजरडीहा में वह बड़ा मस्जिद बनवा देता। आगरा के सिकंदराबाद में, जहां उसके माता-पिता की कब्र है, उस के पास, बजाय ईदगाह के, मस्जिद बनवा देता।

ऐसी सांप्रदायिक विभीषिका का अंजाम था कि इस्लामी पाकिस्तान का सृजन और भारत का विभाजन हुआ। इतना सब होने के बाद भी ये तीनों मस्जिदें ऐतिहासिक नाइंसाफी और राजमद में डूबे बादशाहों की नृशंसता के प्रतीक को यह सेक्युलर भारत कैसे सह पाया ? समय रहते मथुरा और काशी में न्याय नहीं हुआ तो वहां भी अयोध्या जैसा नजारा पेश आ सकता है। यह समय की चेतावनी है।इसे समझने की ज़रूरत है।

इसीलिए काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद सेक्युलर भारत को सुदृढ़ कराने की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए। क्या तर्क है कि भारतवासियों को सिद्ध करना पड़ रहा है कि राम, शिव, कृष्ण पहले आए थे अथवा इस्लाम ? ज्ञानवापी के खंडन को अदालत प्रमाणित करेगी कि यह मंदिर था ? वहां की शिल्पकला पर्याप्त प्रमाण नहीं है ? हिंदुओं की सौजन्यता और सहनशीलता को कमजोरी माना जाता रहा है। यह प्रक्रिया लंबी चली। अब नहीं चलेगी। भारतवासियों का मूड बदला है, खासकर युवाओं की ऐतिहासिक न्याय के प्रति मांग बढ़ी है। अयोध्या में 6 सितम्बर, 1992 को यह भावना समुचित रूप से प्रकट भी हो चुकी है। अब नेहरू का भारत नहीं रहा । जहां हिंदू कोड तो लागू हो गया, समान नागरिक संहिता पर हिचक हो, बवाल उठाया जाए।

काशी विश्वनाथ और मथुरा के दर्शन करने के बाद ऐसे विचार आप के मन में भी उठते ही होंगे। वक्त का तकाजा है कि राष्ट्रीय सोच में परिवर्तन हो। इतिहास गवाह है कि सत्ता जब अन्याय खत्म नहीं करती है तो फ्रांसीसी क्रांति जैसा उथल-पुथल होता है। जनविद्रोह होता है। देश को इससे बचाने की ज़रूरत हैं।



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Admin 2

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