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Karnataka Election 2023: कर्नाटक चुनाव और लिंगायत, जानिए क्या है इस समुदाय का महत्त्व

Karnataka Election 2023: इन दिनों कर्नाटक का चुनाव चल रहा है। तो ऐसे में वहाँ भी जातियाँ समूचे चुनाव पर अपने अपने ढंग से असर डाल रही हैं। हर राजनीतिक दल जातियों को लुभाने, जातियों को पटाने और जातियों के मठाधीशों के सामने नतमस्तक नज़र आ रहा है।

Yogesh Mishra
Published on: 10 May 2023 1:02 PM IST

Karnataka Election 2023: जातियों ने हमेशा भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन दिनों कर्नाटक का चुनाव चल रहा है। तो ऐसे में वहाँ भी जातियाँ समूचे चुनाव पर अपने अपने ढंग से असर डाल रही हैं। हर राजनीतिक दल जातियों को लुभाने, जातियों को पटाने और जातियों के मठाधीशों के सामने नतमस्तक नज़र आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने भी वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के सामने बहुत ढेर सारी उम्मीदें जगाई हैं। इन जातियों के वोटरों के प्रति वे बहुत आशान्वित हैं। ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि आख़िर लिंगायत कौन है? वोक्कालिंगा कौन हैं? आजहम लिंगायत पर बात करते हैं। लिंगायत और वोक्कालिंगा के ठोस समर्थन से चुनावी नैया पार हो जायेगी। अन्यथा काफ़ी मुश्किल होगा। यह सबको वहाँ समझ में आने लगा है।

वोक्कालिगा समुदाय कर्नाटक के केवल छह जिलों में पाए जाते हैं, लेकिन लिंगायत पूरे कर्नाटक में फैले हुए हैं। राजनीतिक रूप से लिंगायत लगभग हर प्रमुख राजनीतिक दल में पाए जाते हैं। लेकिन समुदाय के तौर पर लिंगायत 1990 के दशक से भाजपा का समर्थन करते रहे हैं। हाल के वर्षों में भाजपा के लिए उनका समर्थन काफी बढ़ा है। 1918 से 1969 तक लिंगायत कांग्रेस पार्टी में हावी रहे। 1956 से 1969 तक, कांग्रेस के चार मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय से हुए - इनमें एस. निजलिंगप्पा, बीडी जट्टी, एसआर कांथी और वीरेंद्र पाटिल के नाम शामिल हैं। 1969 से 1983 तक कांग्रेस के विभाजन के बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस का साथ छोड़ा। और वे इधर उधर यानि तितर बितर होने लगे।
लेकिन 1983 से 1989 तक जनता पार्टी में लिंगायतों का दबदबा रहा। राज्य में दो लिंगायत मुख्यमंत्री -एसआर बोम्मई और जेएच पटेल रहे। अब लिंगायत भाजपा में दबदबा रखते हैं । भाजपा के शासन में तीन लिंगायत मुख्यमंत्री बने हैं - बीएस येदियुरप्पा, जगदीश शेट्टार और बीएस बोम्मई।

लिंगायत कर्नाटक के उत्तरी, मध्य और कुछ दक्षिणी जिलों में फैले हुए हैं। उत्तरी जिलों में लिंगायतों की आबादी समूची आबादी का एक तिहाई है। दक्षिणी जिलों में, वे मैसूर, चामराजनगर, शिमोगा और हासन को छोड़कर बहुत कम फैले हैं। लिंगायतों की कुल जनसंख्या तकरीबन तीन करोड़ है। कर्नाटक में 1.5 करोड़, महाराष्ट्र में 1.09 करोड़ और तेलंगाना में लगभग 50 लाख लिंगायत समुदाय के लोग रहते हैं। शेष तमिलनाडु, केरल, गुजरात व मध्यप्रदेश में हैं। इस समुदाय ने मुस्लिम आक्रमणकारियों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। पूर्व में कूर्ग, केलाडी, पुंगनूर और मैसूर जैसे कई लिंगायत राज्य थे।

लिंगायत 12वीं सदी के समाज सुधारक बासवन्ना के अनुयायी हैं, जो भक्ति आंदोलन से प्रेरित थे। राजा बिज्जल द्वितीय के दरबार में एक कोषाध्यक्ष, उन्होंने ब्राह्मण अनुष्ठानों और मंदिर पूजा को खारिज कर दिया और एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जो जातिविहीन, भेदभाव से मुक्त हो और जहां पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अवसर हों।

बासवन्ना की प्रमुखता समय के साथ विश्व स्तर पर समय के साथ साथ बढ़ी। लेकिन उनके अनुयायियों ने अलग अलग समय पर अलग अलग चीजों को अंगीकार करना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए, कभी जाति व्यवस्था के खिलाफ खड़े हुए लिंगायत समुदाय में आजकल तारीख़ में नब्बे उप संप्रदाय हैं।
प्रमुख उप-संप्रदायों में पंचमसालिस, गनिगा, जंगमा, बनजीगा, रेड्डी लिंगायत, सदर, नोनाबा और गौड़-लिंगायत शामिल हैं। इस विषय के जानकारों का कहना है कि ये सभी उप-संप्रदाय जन्म, विवाह और मृत्यु के समय एक ही तरह की रस्में निभाते हैं।

लिंगायतों के बीच मृतकों को बैठने की स्थिति में दफनाया जाता है। समुदाय के सदस्य अपने इष्ट लिंग को अपने गले में चांदी के बक्से में लटका कर रखते हैं। जहां ये उप-संप्रदाय भिन्न हैं, उनके पारंपरिक व्यवसायों में है। कुछ जगहों पर वीरशैव और लिंगायत शब्दों का इस्तेमाल एक-दूसरे के लिए किया जाता है। हालाँकि कि इन दोनों के बीच में बहुत अंतर है। वीरशैव हिंदू धर्म से बहुत ही प्रभावित हैं। हिंदू धर्म के बहुत सन्निकट है।

इसके अलावा, लिंगायत अपनी उत्पत्ति बसवन्ना को मानते हैं, जबकि माना जाता है कि वीरशैव शिव के लिंगम से पैदा हुए थे। लिंगायतों के पास इष्ट लिंग है और मानते हैं कि शिव एक निराकार इकाई हैं, वीरशैवों का मानना है कि शिव एक वैदिक देवता हैं। वीरशैवों के विपरीत, लिंगायत वैदिक साहित्य में विश्वास नहीं करते हैं। बासवन्ना के वचनों यानी शिक्षाओं का पालन करते हैं। बासवन्ना के 12वीं शताब्दी के वचन विभिन्न दक्षिणी राज्यों में खो गए या बिखर गए, जिसके बाद कई ग्रंथों ने वीरशैवों और लिंगायतों को एक छतरी के नीचे जोड़ दिया।

एक मत यह भी है कि आठवीं से 11वीं शताब्दी के बीच देश के इतिहास, समाज और आर्थिक व्यवस्था में बहुत बड़े बदलाव का काल था। भारत में बौद्ध धर्म विलुप्त होने के कगार पर था। जैन धर्म का पतन हो रहा था। यह अफ़ग़ान मुसलमानों जैसे गजनी के मुहम्मद और बाद में मुहम्मद घोरी के हमलों का दौर था। 12वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में इन उथल पुथल के दौर में कर्नाटक के वर्तमान विजयपुरा जिले के छोटे से शहर बागेवाड़ी में बसव नामक एक ब्राह्मण लड़के का जन्म हुआ। उनके पिता बागवाड़ी अग्रहार (एक विशेष ब्राह्मण बस्ती) के प्रमुख थे। बसवा, जिसे बसवन्ना भी कहा जाता है, उन्होंने कालांतर में धार्मिक सुधारों और वैकल्पिक धर्म की आवश्यकता महसूस की। इस प्रकार लिंगायत का जन्म वैदिक धर्म के विरोध में तथा विद्रोह की शक्ति में हुआ।

18वीं शताब्दी तक,, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक में एक हजार बडे लिंगायत मठ स्थापित हो गये। लिंगायतों के लिए अलग धार्मिक स्थिति की मांग 1891 में शुरू हुई। 1871 की जनगणना में लिंगायत हिंदू धर्म के बाहर एक अलग धर्म थे। मैसूर में जनगणना के अधीक्षक डब्लू सी लिंडसे द्वारा उन्हें जैनियों के साथ अलग से समूहबद्ध किया गया था। लेकिन दूसरी जनगणना में मैसूर के दीवान सी. रंगाचारलू ने लिंगायतों को हिंदुओं के शूद्र समूह से मिला दिया। इससे सभी लिंगायत नाराज हो गए और 1891 में तीसरी जनगणना से पहले एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ।

बाद में 1940 के दशक में, बॉम्बे प्रेसीडेंसी में अलग धर्म की स्थिति के लिए दूसरा आंदोलन शुरू हुआ। अलग धर्म की स्थिति की तीसरी मांग 2017 में शुरू हुई जो आज भी जारी है। आज लिंगायत समुदाय अनेकता में एकता का प्रतिनिधित्व करता है। इनमें कई प्रमुख जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग हैं। जो अब लिंगायत समुदाय में विलीन हो गये हैं। 2018 के चुनावों में, कांग्रेस ने 38 फीसदी वोट हासिल किये थे। जो भाजपा से 1.5 फीसदी अधिक थे। करीब 28 सीटों पर पार्टी ने 10,000 से कम मतों के अंतर से जीत हासिल की।

जानकारों का कहना है कि अगर लिंगायत वोटों का थोड़ा भी नुकसान होता है, तो निश्चित तौर से भाजपा के लिए यहाँ सरकार बना पाना बहुत ही मुश्किल होगा। लगभग 17-20 फीसदी वोट शेयर के साथ लिंगायत 150 विधानसभा क्षेत्रों में महत्व रखते हैं। उनकी संख्या प्रभावशाली है। तभी तो सभी लिंगायत व वोक्कालिंगा पर अपनी नज़र गड़ाये हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी की सबसे अधिक नज़र है। क्योंकि उसके लिए सरकार बनाना सबसे महत्वपूर्ण है। देखना है कि ये दोनों समुदाय इस बार किसके साथ जाते हैं। और जाति की राजनीति कर्नाटका में किस करवट बैठती है।



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Yogesh Mishra

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