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Madhubani के Bhagwatipur का Maa Bhuvneshwari और Bhuvneshwar Nath Mahadev Mandir
मधुबनी का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर भगवतीपुर स्थित भुवनेश्वरनाथ शिवालय है जहां शिवरात्रि के अवसर पर बाबा बैजनाथ सवा पहर के लिए आज भी विराजते हैं।
Madhubani: हमारे शास्त्रों में पंचदेवोपासना पद्धति प्रचलित है जो मैथिल समाज में सर्वत्र दृष्टिगत होता है। मधुबनी नगर से सटे हुए लगभग 10 किलोमीटर पूरब रामपट्टी के नजदीक भगवतीपुर स्थित आदिशक्ति मां भुवनेश्वरी का दरबार मिथिला के वास्तविक संस्कृतिक परिचय दृष्टि को उपस्थापित करता है। महाराज हरि सिंह देव को राज्यारोहण 1295 ई० में हुआ था, उस समय कोईलख के दक्षिण भाग से मधेपुर पर्यन्त 14 कोस लंबा तथा लगभग 2 कोस चौड़ी भूमि का अमरावती नामक महानगर के रूप में उल्लेख मिलता है। भगवतीपुर उस समय अमरावती नगर का मुख्यकेंद्र था। आदिशक्ति मां भुवनेश्वरी भगवती के नाम पर ही इस ग्राम का नाम भगवतीपुर है। इसी ग्राम का 1 भाग नाहर है जो भगवती के वाहन सिंह का पर्यायवाची है। मंदिर में माता का विग्रह अद्भुत है जो अति प्राचीन प्रतीत होता है, ध्यातव्य है की सातवीं सदी से 10 वीं सदी तक मिथिला में पालवंशीय राजाओं का शासन था, जिसके अंतिम राजा मदन पाल को पराजित कर बांग्लादेश के शासक ने सेनवंश की स्थापना की। उक्त वंश का शासक वल्लासेने अमरावतीनगर के उत्तरीछोड़ पर भगवतीपुर ग्राम में माता के विग्रह को स्थापित करवाया। अतः स्पष्ट है कि माता की यह प्रतिमा 1 हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन है, यहां होने वाले साम की आरती भी विशेष दर्शनीय होता है। मां भुवनेश्वरी मंदिर के पृष्ठभाग में एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है जिसमें एक ही वृक्ष में वट, पर्कर तथा पीपल तीनों वृक्षों का समागम है तथा वृक्ष अपने विशाल तना द्वारा मंदिराकार होकर शिवलिंग को अच्छादीत किए हुए हैं। मिथिला का बच्चा-बच्चा जानता है आज तक अयाची के वंशज यही पूजा अर्चना करते हैं कहा जाता है कि उक्त भुवनेश्वर शिवलिंग को ग्रामीणों के द्वारा अन्यव स्थापित करने का पूर्ण प्रयास किया गया था किंतु जितना ही खोदा गया शिवलिंग की विशालता उतनी ही बढ़ती गई। वर्तमान समय में यहां पुजारी के रूप में बाबा राजकुमार तथा बाबा श्रवण कुमार वंशानुगत रूप से संपूर्ण परिसर के संरक्षक हैं।
मधुबनी का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर भगवतीपुर स्थित भुवनेश्वरनाथ शिवालय है जहां शिवरात्रि के अवसर पर बाबा बैजनाथ सवा पहर के लिए आज भी विराजते हैं। यहां तड़के सुबह से पूजा के लिए भक्तों की भीड़ जुटना शुरू हो जाती है। आसपास के ग्रामीण लोगों को पूजा में सहयोग करते हैं।