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Maharana Pratap Video: जाने महाराणा प्रताप और उनके घोड़े व हाथी के बारे में कई अद्भुत सत्य

Maharana Pratap Ka Video: कहा जाता है कि अकबर ने कहा था अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं, तो वह आधे हिंदुस्तान के वारिस होंगे।

Yogesh Mishra
Published on: 24 Jun 2024 7:39 PM IST
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Maharana Pratap Ka Video

रण बीच चौकड़ी भर भर कर , चेतक बन गया निराला था।

राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था।

जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड़ जाता था

राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था।

गिरता न कभी चेतक तन पर राणा प्रताप का कोड़ा था,

वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर वह आसमान का घोड़ा था।

इस कविता को सुनने के बाद आप समझ गये होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं।आज हम वीरता के प्रतीक पुरुष महाराणा प्रताप की बात करेंगे। उनके चेतक घोड़े की बात करेंगे। उनके हाथी राम प्रसाद की बात करेंगे। बहुत सी ऐसी चीज़ें जो शायद आप न जानते हों। या जिनको जानने के बाद आप के रोंगटे खड़े हो जायेंगे।

महाराणा प्रताप जी का जन्म 9 मई, 1540 ई.को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था। उनका निधन 29 जनवरी, 1597 को हुआ। उनके पिता का नाम महाराणा उदयसिंह जी था। माता का नाम राणी जीवत कँवर। उन्होंने 1568–1597ई.यानी 29 वर्ष तक राज किया। सिसोदिया राजवंश के सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।उनका राजघराना राजपूताना था। उनकी धार्मिक मान्यता हिंदू धर्म में थी।

उनका सबसे लोकप्रिय युद्ध हल्दीघाटी में हुआ उनके पूर्वाधिकारी का नाम महाराणा उदय सिंह रहा। उनके उत्तराधिकारी राणा अमर सिंह थे।

महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत् कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। महाराणा प्रताप की विशेषता थी कि वह एक ही झटके में दुश्मन को घोड़े पर बैठे ही काट डालते थे।कहा जाता है कि एक बार लिंकन भारत के दौरे पर आ रहे थे। उन्होंने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से वह उनके लिए क्या लायें? तब उनकी माँ का जवाब था- “ उस महान देश की वीरभूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना।जहां का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना।” लेकिन बदक़िस्मती से उसका वह दौरा रद हो गया था।इस बात का ज़िक्र आप प्रेसिडेंट ऑफ यु एस ए नामक बुक में देख सकते हैं। कवच, भाला, ढाल, यह सब जो लेकर के वो चलते थे, अगर इन सब के वजन की बात की जाये तो वह तकरीबन 207 किलोग्राम बैठता था। महाराणा प्रताप की तलवार, कवच सब कुछ उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित हैं |

कहा जाता है कि अकबर ने कहा था अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं।तो वह आधे हिंदुस्तान के वारिस होंगे। हालाँकि बादशाहियत अकबर की ही होगी। लेकिन राणा प्रताप ने किसी की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया । हल्दी घाटी की लड़ाई में राणा प्रताप के साथ 20000 सैनिक थे। जबकि अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए थे। जहां महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक दिवंगत हुआ वहाँ चेतक का एक मंदिर बना हुआ है। महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा। दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं। इसी समाज को आज गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है।

हल्दी घाटी का युद्ध हुए 300 साल हो गये लेकिन वहां आज़ भी तलवारों का जखीरा मिलता है। 1985 में अंतिम बार वहाँ तलवारों को ज़ख़ीरा लोगों को देखने को मिला था। सरकार के हाथ लगा था। महाराणा प्रताप को शस्त्र की शिक्षा जैमल मेड़तिया ने दी थी। जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 लोग मारे गए थे। जिनमें 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप के निधन पर अकबर भी रो पड़ा था।उनके शौर्य, उनकी वीरता और उनकी दृढ़ प्रतिज्ञा के आगे उसका भी सर झुक गया था। मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था । वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे। राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे। आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं। तो दूसरी तरफ भील।

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक 26 फीट का दरिया पार कराने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ था। उसकी एक टांग गई थी तब भी उसने यह पार करके दिखा दिया। जहाँ वह घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है । जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है। राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था । उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना 85 फ़ीसदी मेवाड जीत लिया था। इसके लिए वह सोने चांदी और महलों को छोड़कर कर के 20 साल जंगलों के बीच रहे। कहा तो यह भी जाता है कि महाराणा प्रताप ने घास की रोटियाँ तक खाईं।

महाराणा प्रताप के चेतक पर तो साहित्यकारों की नज़र गयी।चेतक को सब लोग महाराणा प्रताप से जोड़ कर के देखते हैं। चेतक और महाराणा प्रताप पर्याय हैं। लेकिन महाराणा प्रताप का उससे ख़ास भी, उससे भरोसेमंद भी और उससे वफ़ादार भी एक जानवर था।जिसका नाम था- राम प्रसाद। वह था राम प्रसाद हाथी।

आप को जानके हैरत होगा कि जब अकबर ने महाराणा पर चढ़ाई की थी, तो अपने सिपहसालारों से कहा था- दो को बंदी बनाया जाये।एक महाराणा प्रताप को दूसरे उनके हाथी राम प्रसाद को। रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल- बदायूनी ने अपने ग्रन्थ में भी किया है। अल बदायूनी लिखते हैं कि वह हाथी इतना समझदार व ताकतवर था कि उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था। उस हाथी को पकड़ने के लिए 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया गया। उन पर 14 महावतों को बिठाया गया।तब कहीं जाकर उसे बंदी बनाया जा सका। जब राम प्रसाद को अकबर के सामने पेश किया गया तो अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रख दिया। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ना और पानी दिया। लेकिन राम प्रसाद ने मुग़लों का गन्ना और पानी अठारह दिन तक नहीं खाया । भूख से तड़प तड़प के मरना क़ुबूल किया। उसी समय अकबर ने अपने दरबार में कहा था कि जिस राणा प्रताप के राम प्रसाद नाम के हाथी को मैं नहीं झुका पाया, उस राणा प्रताप को मैं कैसे झुका पाऊँगा।इतनी वीरता, इतना शौर्य और इतने वफ़ादार लोगों के साथ महाराणा प्रताप ने अपनी ज़िंदगी के दिन गुज़ारे । हमें महाराणा प्रताप को याद करते समय चेतक और राम प्रसाद को भी याद करना चाहिए ।

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