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Gandhi Ke Antim Din: बापू का अंतिम दिन, देखें की ये Video रिपोर्ट

Mahatma Gandhi Untold Story Video: आज जब तमाम लोग गांधी को मारने पर तुले हुए हैं, रोज़ मार रहे हैं। रोज उनकी हत्या कर रहे हैं।तब हम ((उनके )) अंतिम दिन गांधी ने क्या किया था, गांधी की मौत कैसे हुई ?इस पर आप के साथ रुबरु होते हैं।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 11 Feb 2025 6:32 PM IST
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Mahatma Gandhi Untold Story Video

Mahatma Gandhi Untold Story Video: कभी राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि भारत में तीन तरह के गांधीवादी हैं। एक मठी गांधी वादी। एक कुजात गांधीवादी।और एक सरकारी गांधीवादी। उन्होंने खुद को कुजात गांधीवादी कहा था। हालाँकि वो गांधी के प्रिय लोगों में शुमार थे।आज की तारीख़ में देश में तमाम तरह के गांधीवादी पैदा हो गये हैं।(और ) सोशल मीडिया पर जाइये तो नाथूराम गोडसे की पूरी की पूरी एक फौज आप को दिखती है। जो रोज़ गांधी की हत्या करने ,गांधी को मारने की साज़िश में जुटी हुई है। जो ऐसी शरारत रोज़ करती है कि गांधी आज मर जायें। जो गांधी को मारती है। गांधी के सिद्धांतों को मारती है। कई लोग तो जैविक कचरे की हद पार करते हुए भी तमाम ऐसे शब्द कह उठते हैं,जो शब्द किसी भी बड़े आदमी के लिए, जो उम्र में आप से बड़ा हो, भारतीय संस्कृति कहने की इजाज़त नहीं देती है। लेकिन जो लोग गांधी को आज भी मारने पर तुले हैं, उन्हें यह नहीं पता है कि दुनिया के एक सौ तीस देशों में गांधी को ज़िंदा करने की कोशिश निरंतर चल रही है। सिर्फ़ भारत में गांधी को मारने की कोशिश चल रही है। उसके बाद भी गांधी मर नहीं रहे हैं। आज जब तमाम लोग गांधी को मारने पर तुले हुए हैं, रोज़ मार रहे हैं। रोज उनकी हत्या कर रहे हैं।तब हम ((उनके )) अंतिम दिन गांधी ने क्या किया था, गांधी की मौत कैसे हुई ?इस पर आप के साथ रुबरु होते हैं।

30 जनवरी के दिन महात्मा गांधी सुबह साढ़े तीन बजे सोकर के उठे। उन्होंने कांग्रेस के कुछ कागजी मसौदों को तैयार किया। फिर सोने चले गये।इस दौरान उन्होंने नींबू और शहद का गरम पेय और मौसमी का जूस पिया। दोबारा वह आठ बजे उठे।अखबारों पर उन्होंने नजर दौड़ाई । फिर बृज कृष्ण ने उनकी तेल से मालिश की। नहाने के बाद उन्होंने बकरी का दूध, उबली हुई सब्जियां, टमाटर, मूली, गाजर का सलाद और संतरे का रस लिया।

उधर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के वेटिंग रुम में नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे सो रहे थे।

इस दौरान उनके पुराने साथी जो डरबन में उनके साथ थे रुस्तम सोराब जी अपने परिवार के साथ गांधी जी से मिलने आए ।इसके बाद बापू दिल्ली के मुस्लिम नेताओं मौलाना हिफ़्ज़ुर रहमान और अहमद सईद से भी मिले।उनसे बोले की मैं आप लोगों की सहमति के बिना वर्धा नहीं जा सकता ।

सुधीर घोष और उनके सचिव प्यारेलाल जी ने सुबह नौ बजे गांधी जी से मुलाक़ात की। नेहरू और पटेल के बीच मतभेदों पर लंदन टाइम्स में छपी एक ख़बर पर उनकी राय मांगी। बापू ने कहा यह मामला वह पटेल के सामने उठाएंगे, जो चार बजे शाम को उनसे मिलने आ रहे हैं । और नेहरू से भी बात करेंगे। जो शाम सात बजे आएंगे।

लॉपियर एंड कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के मुताबिक़ बिरला हाउस के लिए निकलने से पहले नाथूराम गोडसे ने नारायण दत्तात्रेय आप्टे से कहा कि उसका मूंगफली खाने का मन कर रहा है।आप्टे उनके लिए मूंगफली लेने गए । थोड़ी देर बाद आकर बोले मूंगफली मिल नहीं रही है । लेकिन गोडसे ने फिर से उनसे मूंगफली लाने के लिए कहा, आप्टे फिर निकले और इस बार वह मूंगफली लेकर लौटे। दोनों ने मूंगफलियां खाईं। आप्टे ने कहा कि काम पर निकालने का समय हो रहा है।

डॉमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिंस ने अपनी किताब 'फ़्रीडम ऐट मिडनाइट' में यह भी लिखा हैं, "किसी ने सुझाव दिया कि नाथूराम एक बुर्का पहन कर गांधीजी की प्रार्थना सभा में जाएं। बाज़ार से एक बड़ा-सा बुर्का भी ख़रीदा गया। जब नाथूराम ने उसे पहन कर देखा तो महसूस हुआ कि यह युक्ति काम नहीं करेगी। उनके हाथ ढीले-ढाले बुर्के की तहों में फंस कर रह सकते हैं।”

वो बोले- यह पहन कर तो मैं अपनी पिस्तौल ही नहीं निकाल पाउंगा। औरतों के लिबास में पकड़ा जाउंगा तो उसकी वजह मेरी ताउम्र बदनामी होगी, सो अलग। आख़िर में आप्टे ने कहा कभी-कभी सीधा साधा तरीक़ा ही सबसे अच्छा होता है।”

उन्होंने कहा कि नाथूराम को फ़ौजी ढंग का स्लेटी सूट पहना दिया जाए। जिसका उन दिनों बहुत चलन था। वो लोग बाज़ार गए और नाथूराम के लिए कपड़ा ख़रीद लाए।

सुबह दस बजे गांधीजी ने अपने एक अनुयायी, सुचेता कृपलानी से मुलाकात की। उन्हें कुछ निर्देश दिए। दोपहर बारह बजे गांधी जी अपने भोजन के लिए बैठे। लेकिन उन्हें भोजन करने का समय नहीं मिला । क्योंकि उन्हें एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेना था।

दोपहर एक बजे गांधीजी ने एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लिया। जिसमें उन्होंने भारत के विभाजन और पाकिस्तान के साथ संबंधों पर चर्चा की। उनसे कुछ शरणार्थी, कांग्रेस नेता और श्रीलंका के एक राजनयिक अपनी बेटी के साथ मिले। उनसे मिलने वालों में इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी भी थे। शाम को उन्होंने अपने एक अनुयायी, ब्रजकिशोर प्रसाद से मुलाकात की और उन्हें कुछ निर्देश दिए।

सायं चार बजे ही सरदार पटेल अपनी पुत्री मनी बेन के साथ बापू से मिलने आए। शाम पांच बजे प्रार्थना के समय तक उनसे बातचीत करते रहे।

उधर 4:15 बजे गोडसे और उनके साथियों ने कनॉट प्लेस के लिए एक तांगा किया।यहां से बिरला हाउस के लिए उन्हें दूसरा ताँगा लिया। बिरला हाउस से कुछ पहले ही वह ताँगे से उतर गए।लेकिन बिरला हाउस जाने से पहले गोडसे और उनके साथियों ने यह तय किया कि वे पहले बिरला मंदिर जाएंगे। करकरे और आप्टे वहां भगवान के दर्शन और प्रार्थना करना चाहते थे। गोडसे को इस तरह की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।मनोहर मुलगाँवकर ने अपनी क़िताब 'द मैन व्हू किल्ड गाँधी' में लिखा हैं, "करकरे जो भी शब्द कहने की कोशिश करते उनकी आवाज़ कांपने लगती। आप्टे उन्हें घूरकर संयत रहने की सलाह देते। गोडसे मंदिर के पीछे वाले बाग में जाकर आप्टे और करकरे की राह देखने लगे। ये दोनों जूते उतार कर नंगे पांव मंदिर के अंदर गए थे। वहां उन्होंने मंदिर में लगा पीतल का घंटा बजाया।”

"जब ये लोग बाहर आए तो नाथूराम गोडसे शिवाजी की मूर्ति के पास खड़े थे। उन्होंने इन दोनों से पूछा कि क्या वो दर्शन कर आए? उन्होंने कहा-हाँ। इस पर नाथूराम बोले- मैंने भी दर्शन कर लिए।”

उधर सरदार पटेल के साथ बात करते हुए बापू लगातार चरखा चला रहे थे।उन्होंने शाम के खाने में बकरी का दूध, कच्ची गाजर, उबली सब्जियां व तीन सतरें खाये। उन्हें समय का आभास नहीं हुआ। पर आभा को मालूम था कि गांधी जी को प्रार्थना में देरी से पहुंचना बिल्कुल भी पसंद नहीं है।वह परेशान हो रही थीं। लेकिन सरदार पटेल के सामने उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह गांधी को टोक सकें कि देर हो रही है। इसलिए उन्होंने बापू की जेब घड़ी उठाई। उसे धीरे से हिलाकर बापू को दिखाया। मणिबेन ने देखा। उन्होंने उनकी बातचीत में हस्तक्षेप किया। पाँच बजकर दस मिनट हो चुके थे। आभा और मनु ने बापू को चप्पल पहना कर उनका हाथ अपने कंधे पर रखकर उठाया।

रास्ते में उन्होंने आभा से मजाक किया तुमने आज मुझे मवेशियों का खाना दिया था ।उनका इशारा गाजर की तरफ था। आभा ने कहा हां बा भी इसको घोड़े का खाना कहती थीं। इस पर महात्मा गांधी हंसते हुए बोले अब मेरी दरिया दिल दिली देखो मैं इसका आनंद उठा रहा हूं जिसकी कोई परवाह तक नहीं करता है।

आभा ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा आज आपकी घड़ी सोच रही होगी कि उसे नजर अंदाज किया जा रहा है। तो बापू हंसते हुए बोले मैं घड़ी की तरफ क्यों देखूं ? यह नर्स का काम होता है।तुम्हारी वजह से मुझे 10 मिनट की देरी हो गई । नर्स को अपना काम बिल्कुल समय पर करना चाहिए, ईश्वर के सामने भी।

प्रार्थना सभा में एक की मिनट की देर से मुझे चिढ़ होती है। यही बात करते-करते हुए प्रार्थना स्थल तक पहुंच चुके थे। आभा और मनु ने उन्हें बैठाते हुए अपने कंधों से उनका हाथ हटाया। बापू ने अपने दोनों हाथ लोगों के अभिवादन के लिए जोड़ लिए।

तुरंत ही बाएं तरफ से नाथूराम जाकर उनके पैरों में झुका तो मनु को लगा कि वह उनका पैर छूना चाहता है। आभा ने जोर से बोला बापू को पहले ही देर हो चुकी है उनके रास्ते में व्यवधान न उत्पन्न करिए।लेकिन गोडसे ने मनु को धक्का दिया तो उनके हाथ से माला, नोटबुक , थूकदान और तस्बीह छिटक कर ज़मीन पर आ गिरे।

मनु उसे उठाने के लिए झुकी तो गोडसे ने अपनी बैरेटा एम 9 एमएम पिस्तौल निकाल कर सीधे तीन गोलियां महात्मा गांधी के सीने और पेट में दाग दीं।दो गोली महात्मा गांधी के शरीर से होती हुई निकल गई। एक गोली शरीर में ही फँस गयी।

राम चंद्र गुहा अपनी किताब 'गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड' में लिखते हैं, "गांधी प्रार्थनास्थल के लिए बने चबूतरे की सीढ़ियों के पास पहुंचे ही थे कि ख़ाकी कपड़े पहने हुए नाथूराम गोडसे उनकी तरफ़ बढ़े। उनके हावभाव से लग रहा था जैसे वो गांधी के पैर छूना चाह रहे हों।” रामचंद्र गुहा लिखते हैं, "आभा ने उन्हें रोकने की कोशिश की। तभी गोडसे ने अपनी पिस्तौल निकाल कर गांधी पर पॉइंट ब्लैंक रेंज से लगातार तीन फ़ायर किए।

गांधी के मुंह से ‘हे राम ममम’ निकला और वह नीचे की ओर गिरे,आभा ने गिरते हुए बापू को संभाल लिया। ख़ून से भीगी उनकी धोती में मनु को गांधी की इंगरसोल घड़ी दिखाई दी। उस समय उस घड़ी में 5 बज कर 17 मिनट हुए थे। महात्मा गांधी की निजी डॉक्टर एसुषिता नैय्यर ने उनकी नब्ज देखी। उन्हें मृत घोषित कर दिया।

सरदार पटेल, गांधी से मिलकर अपने घर पहुंचे ही थे कि उन्हें गांधी पर हुए हमले की ख़बर मिली। वो तुरंत अपनी बेटी मणिबेन के साथ वापस बिरला हाउस पहुंचे। उन्होंने गांधी की कलाई को इस उम्मीद के साथ पकड़ा कि शायद उनमें कुछ जान बची हो। वहां मौजूद एक डॉक्टर बीपी भार्गव ने एलान किया कि गांधी को इस दुनिया से विदा हुए 10 मिनट हो चुके हैं।”

गांधी की मौत की ख़बर सुनकर वहां सबसे पहले पहुंचने वालों में से सरदार पटेल के साथ ही मौलाना आज़ाद और देवदास गांधी थे। उसके तुरंत बाद नेहरू, ((पटेल, )) माउंटबेटन, दूसरे मंत्री, सेनाध्यक्ष जनरल रॉय बूचर पहुंचे।

वीआईपी लोगों के आगमन के बीच हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार का एक संवाददाता तुगलक रोड पुलिस स्टेशन पहुंच गए।

31 जनवरी, 1948 को प्रकाशित उसकी रिपोर्ट में लिखा है,” गांधी के हत्यारे नाथूराम को एक अंधेरे, बिना लाइट के एक कमरे में बंद किया गया था। उसके माथे से ख़ून निकल रहा था। उसके चेहरे का बायां हिस्सा ख़ून से भरा हुआ था। जब मैं कमरे में घुसा तो हत्यारा अपनी जगह से उठ गया। जब मैंने उससे पूछा कि तुम्हें इस बारे में कुछ कहना है तो उसका जवाब था, मैंने जो कुछ भी किया है, उसका मुझे कतई दुख नहीं है। बाहर निकलते हुए मैंने पुलिस वाले से पूछा कि नाथूराम के पास पिस्तौल के अलावा क्या मिला है।पुलिस वाले का जवाब था, “400 रुपये।”

नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे अपनी किताब 'गांधी वध और मैं' में लिखा हैं, "गोलियां छोड़ते ही अपना पिस्तौल वाला हाथ ऊपर उठा कर नाथूराम चिल्लाए पुलिस... पुलिस। लेकिन आधा मिनट बीतने पर भी कोई उनके पास नहीं आया।”

"तभी एक वायुसैनिक अधिकारी की नज़रें उनसे मिली।आंखों ही आंखों में गोडसे ने उन्हें अपने निकट आने के लिए कहा। उसने आकर नाथूराम की कलाई ऊपर ही पकड़ ली। उसके बाद कई लोगों ने उन्हें घेर लिया। कुछ ने उन्हें पीटा भी।”

"एक उत्तेजित व्यक्ति ने पिस्तौल को नाथूराम के सामने करते हुए कहा कि मैं इसी पिस्तौल से तुम्हें मार डालूंगा। नाथूराम ने जवाब दिया- बहुत खुशी से। लेकिन ऐसा नहीं प्रतीत होता कि पिस्तौल को संभालने का ज्ञान तुम्हारे पास है। उसका सेफ़्टीकैच खुला हुआ है। ज़रा-सा धक्का लग जाने से तुम्हारे हाथों दूसरा कोई मर जाएगा।”

गोपाल गोडसे लिखते हैं, "बात वहां खड़े पुलिस अधिकारी की समझ में आई। उसने तुरंत पिस्तौल अपने हाथ में लेकर उसका सेफ़्टीकैच बंद कर उसे अपनी जेब में रख लिया। उसी समय कुछ लोगों ने नाथूराम पर छड़ी से वार किए जिससे उनके माथे से खून बहने लगा।”

वैसे कहा गया कि माली रघु काका ने नाथूराम के सर पर खुरपी के बट से प्रहार किया। नतीजतन, नाथू राम गोडसे के सिर से खून रिसने लगा। और उसे पकड़ लिया। हालाँकि नाथूराम ने अपनी किताब में इस बात का खंडन किया है। उन्होंने लिखा है कि माली रघु ने खुरपा से नहीं बल्कि किसी ने अपनी छड़ी से वार किया। जिससे नाथूराम के सिर से खून रिसने लगा।

मनु के गोद में गांधी का सिर था। गांधी जी की हत्या के कुछ मिनट बाद माउंटबेटन भी बिरला हाउस पहुँचे। किसी ने गांधी जी का चश्मा उतार लिया था। लिहाज़ा मोमबत्ती की रोशनी के चलते माउंटबेटन गांधी जी को अचानक पहचान नहीं पाये। किसी ने माउंटबेटन को गुलाब की पंखुड़ियां दीं। माउंटबेटन ने उन गुलाब की पंखुड़ियों को गांधी जी के पार्थिव शरीर पर चढ़ा कर श्रद्धांजलि दी।

गांधी जी के शरीर को ढक कर रखा गया था पर उनके सबसे छोटे बेटे देवदास जब पहुँचे तो उन्होंने कपड़ा हटा दिया। ताकि दुनिया शांति और अहिंसा के पुजारी के साथ हुई हिंसा को देख सके।

रात को दो बजे जब भीड़ थोड़ी छंटी तो गांधी के साथी उनके पार्थिव शरीर को बिरला हाउस के अंदर ले गये। गांधी के शव को स्नान कराने की ज़िम्मेदारी ब्रजकृष्ण चाँदीवाला को दी गई।

चाँदीवाला पुरानी दिल्ली के एक परिवार से आते थे। 1919 से ही जब उन्होंने पहली बार गांधी को अपने सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज में बोलते हुए सुना, उस दिन से ही उन्होंने ख़ुद को गांधी की सेवा में लगा लिया था।

ब्रजकृष्ण चाँदीवाला ने गांधी के रक्तरंजित कपड़े उतार कर उनके बेटे देवदास गांधी के हवाले किए। उन कपड़ो में उनकी ऊनी शॉल भी थी जिसमें गोलियों से तीन छेद बन गए थे। ख़ून बहने से उनके कपड़े उनके जिस्म से चिपक गए थे।

बाद में ब्रजकृष्ण ने अपनी किताब 'एट द फ़ीट ऑफ़ गांधी' में लिखा, "बापू का निर्जीव शरीर लकड़ी के तख़्ते पर रखा हुआ था। मैंने उसे नहलाने के लिए टब से लोटे में ठंडा पानी भरा और बापू के शरीर पर डालने के लिए अपना हाथ बढ़ाया।”

"तभी अचानक अपने आप ही मेरे हाथ रुक गए, बापू ने कभी भी ठंडे पानी से स्नान किया ही नहीं था। उस समय रात के दो बज रहे थे। जनवरी की रात की ज़बरदस्त ठंड थी। मैं किस तरह वो बर्फ़ीला पानी बापू को शरीर पर डाल सकता था? मेरे सामने सबसे बड़ी चिंता थी, जिसने मुझे परेशान कर रखा था।”

"मेरे टूटे हुए दिल से एक आह-सी निकली और मैं अपने आँसुओं को नहीं रोक पाया। लेकिन फ़िर मैंने उसी ठंडे पानी से बापू को नहलाया। मैंने उनके शरीर को पोंछा और वही कपड़ा उन्हें पहना दिया जो मैंने उनके पिछले जन्मदिन पर उनके लिए ख़ुद काता था। मैंने उनके गले में सूत की बिनी हुई माला भी पहनाई। मनु ने उनके माथे पर तिलक लगाया।”

हालांकि, महात्मा गांधी को अपने ऊपर हमले का आभास पहले ही हो रहा था। उन पर पहला हमला 20 जनवरी, 1948 को हुआ था।उस समय मदनलाल पाहवा नाम के एक पंजाबी शरणार्थी ने उनके ऊपर बम फेंका था। लेकिन वे बच गए थे। नाथूराम गोडसे ने इससे पहले भी बापू की हत्या की कोशिश की थी। पहली कोशिश मई, 1934 और दूसरी सितम्बर, 1944 को की गई थी। पर असफल रहने पर वह अपने दोस्त नारायण आप्टे के साथ मुंबई आ गया था। मदनलाल पाहवा द्वारा बम फेंके जाने की घटना के दस दिनों तक गांधी ने कई बार अपनी मृत्यु का पूर्वाभास होने की बात कही थी। उन्होंने अखबारों, जनसभाओं और प्रार्थना सभाओं में कम से कम 14 बार इस बात जिक्र किया था।

आकाशवाणी के कमेंटेटर मेलविल डिमैलो ने लगातार सात घंटे तक महात्मा गांधी की शवयात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया था। जब कमेंट्री समाप्त हो गई तो वो अपनी ओबी वैन पर बैठे अपनी थकान मिटा रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक हाथ उनकी वैन के हुड के कोने को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। जब डिमैलो ने ग़ौर से देखा तो उन्होंने पाया कि वह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे।

डिमैलो बताते हैं कि, “मैंने अपने हाथ का सहारा देकर उन्हें अपनी वैन की छत पर खींच लिया। नेहरू ने मुझसे पूछा क्या तुमने गवर्नर जनरल को देखा है? मैंने कहा वो आधे घंटे पहले यहां से चले गए। फिर नेहरू ने पूछा क्या तुमने सरदार पटेल को देखा है? मैंने जवाब दिया कि वो भी गवर्नर जनरल के जाने के कुछ मिनटों बाद चले गए थे। तभी मुझे महसूस हुआ कि उस अफ़रा-तफ़री में कई लोग अपने दोस्तों को खो बैठे थे।”

मशहूर फ़ोटोग्राफ़र मार्ग्रेट बर्के वाइट ने जब अपने लाइका कैमरे के लेंस को फ़ोकस किया तो उनके ज़हन में आया कि वो शायद धरती पर जमा होने वाली सबसे बड़ी भीड़ को अपने कैमरे में कैद कर रही हैं।

जब गांधी जी को अग्नि दी जा रही थी तो मनु ने अपना चेहरा सरदार के पटेल के गोद में रख दिया। वह रोती रहीं। जब मनु ने अपना चेहरा उठाया तो देखा कि सरदार पटेल अचानक बुजुर्ग हो चले हैं। सरदार पटेल गांधी जी से छह साल छोटे थे। दोनों एक दूसरे को अथाह प्रेम करते थे। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम थी कि गांधी जी की कोई भी बात सरदार पटेल जी नहीं टालते हैं। सरदार पटेल कोई भी बात गांधी जी से कर लेते हैं।

गांधी जी की हत्या के मामले में आठ लोगों को आरोपी बनाया गया। इनमें शंकर किस्तैया, दिगंबर बडगे, विनायक दामोदर सावरकर, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, विष्णु रामकृष्ण करकरे, नारायण आप्टे , नाथूराम गोडसे के नाम शामिल थे। दिगंबर बडगे सरकारी गवाह बन गये। लिहाज़ा उन्हें राहत मिल गई। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायलय ने माफ कर दिया। सावरकर के खिलाफ कोई सुबूत मिला ही नहीं।लिहाज़ा अदालत ने उन्हें मुक्त कर दिया। गोपाल गोडसे, मदन लाल पाहवा, विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई।नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे को फाँसी दी गई।

इस तरह महात्मा गांधी के जीवन के अंतिम दिन को ही हम लें। तो जो लोग आज गांधी की हत्या की साज़िश कर रहे हैं, शरारत कर रहे हैं। उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि एक कोई दिन अपनी ज़िंदगी का गांधी की तरह जी कर के दिखायें। जब तक वो ऐसा नहीं कर पाते हैं, तब तक उन्हें यह करने का अधिकार सोशल मीडिया पर भी नहीं मिलता है।



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