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Most Controversial Politicians: बयानवीरों के लिए सबक होने चाहिए राहुल

Most Controversial Politicians: केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इर्द-गिर्द देखा जा सकता है। कोई किसी को कुछ भी बोलने को यहाँ स्वतंत्र है। हद तो यहाँ तक होती है कि आज जो नेता किसी भी दल के सर्वोच्च पद पर बैठे हों या पार्टी के प्रतीक पुरुष बन चुके हों उन्हें भी कुछ कहने के बाद उसी पार्टी में सियासत करने का अवसर पाया जा सकता है।

Yogesh Mishra
Published on: 30 March 2023 2:45 AM IST (Updated on: 30 March 2023 2:47 AM IST)

Most Controversial Politicians: भारत में लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप देखना हो तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में देखा जा सकता है। केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इर्द-गिर्द देखा जा सकता है। कोई किसी को कुछ भी बोलने को यहाँ स्वतंत्र है। हद तो यहाँ तक होती है कि आज जो नेता किसी भी दल के सर्वोच्च पद पर बैठे हों या पार्टी के प्रतीक पुरुष बन चुके हों उन्हें भी कुछ कहने के बाद उसी पार्टी में सियासत करने का अवसर पाया जा सकता है। आज जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व सांसद राहुल गांधी को 2019 केलोकसभा चुनाव में दिये गये बयान के बाद दो साल की सजा सुनाई गई हो, जिसके चलते उनकी लोकसभा की सदस्यता रद हो गई हो। कभी कांग्रेस में रही ख़ुशबू सुंदर आज भले ही भाजपा नेता बन बैठी हों, पर कभी उनके ट्विटर पर यही बात पढ़ी जा सकती थी, जो राहुल गांधी ने कही।

अब तक हर राजनीतिक दल में बयानवीरों की एक टोली बन गई हैं। जिनका काम अपनी पार्टी में बने गुटों व गिरोहों के लिए कुछ इस तरह काम करना है ताकि दोधारी तलवार जैसे उनका इस्तेमाल हो सके। मीडिया ने भी यह तय कर लिया है कि ऐसे बयान देने वालों को इतनी जगह दीजिये ताकि ऐसी प्रवृत्ति वालों का हौसला कम न होने पाये। एक समय था कि ऐसे तत्वों का चैनलों के माइक आईडी के सामने हौसला देखते बनता था। उस समय ये सिर उठा रहे थे। अब इनने गिरोह बना लिया है। इनके हौसलों को पढ़ने और समझने के लिए कई उदाहरण भी कम पड़ सकते हैं। फिर भी चंद नज़ीरें सामने रखनी ही पड़ेंगी। एक समय मायावती की पार्टी नारा लगाती थी- तिलक तराज़ू और तलवार, इनको मारो .. चार। मायावती ने खुद को ज़िंदा देवी कहा था। सोनिया गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर तक कहा था। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे मनोज सिन्हा यह दावा कर बैठते हैं कि महात्मा गांधी के पास किसी विश्वविद्यालय की डिग्री तक नहीं थी। लालू प्रसाद यादव ने एक समय बिहार में भूराबाल साफ़ करो अभियान चलाया था। भूराबाल यानी भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला। शरद यादव ने जून 1997 में महिला आरक्षण पर कहा था - इस बिल से केवल पर कटी औरतों को फ़ायदा पहुँचेगा। शरद यादव ने वसुंधरा राजे के शरीर सौष्ठव और दक्षिण की महिलाओं के सौंदर्य का वर्णन कुछ ऐसे किया कि वह नाराज़गी के शिकार हुए। पर वह सर्वश्रेष्ठ सांसद भी रहे। पचास करोड़ का गर्ल फ़्रेंड वाला बयान भी एक चुनाव में सुर्ख़ियों में रह चुका है। आज के भाजपा नेता नरेश अग्रवाल ने सपा सांसद जया बच्चन को फ़िल्मों में नाचने वाली तक कह दिया था।

शरद यादव ने भाजपा सांसद स्मृति ईरानी पर खेद जनक टिप्पणी की थी, तो कांग्रेस के संजय निरुपम ने 2012 में गुजरात चुनाव के नतीजों पर चल रही टीवी डिबेट में यह कहा-“ कल तक आप पैसे के लिए ठुमके लगा रही थीं। आज आप राजनीति सिखा रही हैं।” 2012 में एकचुनावी रैली के दौरान सीपीआईएम नेता अनिसुर रहमान ने तो यहाँ तक कह दिया था, ”हम ममता दी से पूछना चाहते हैं, कि उनको कितना मुआवज़ा चाहिए। बलत्कार के लिए कितना लेंगी।” कांग्रेस के नेता मणिशंकर के मोदी को नीच कहने के मामले ने भी खूब सुर्ख़ियाँ पाई थीं। कांग्रेस के आनंद शर्मा ने नरेंद्र मोदी को मानसिक तौर पर अस्थिर तक कहा था। दिग्विजय सिंह ने मोदी राज को राक्षस राज और मोदी को रावण कहा था। प्रमोद तिवारी ने मोदी को हिटलर, मुसोलनी और गद्दाफ़ी जैसे नेताओं की सूची में डाला था। एक कांग्रेसी नेता ने नरेंद्र मोदी को बंदर कहा था। जयराम रमेश ने उनकी तुलना भस्मासुर से की थी। बेनी प्रसाद वर्मा ने उन्हें पागल कुत्ता और गुलाम नबी आज़ाद ने उन्हें गंगू तेली कहा था। रेणुका चौधरी ने उन्हें वायरस और इमरान मसूद ने मोदी को टुकड़ों में काटने की बात कही थी।

भाजपा नेता संगीत सोम ने ताजमहल को कलंक कहा। गिरिराज सिंह ने मुसलमानों को भगवान राम की संतान होने का दावा किया। आज़म खां ने संसद में भारत माँ को डायन कहा था। सपा नेता स्वामीप्रसाद मौर्य ने मानस की एक चौपाई पर सवाल उठाते हुए मानस पर प्रतिबंध की माँग कर डाली। बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने मानस को नफ़रत फैलाने वाला बताया। अलवर ज़िले के मालाखेड़ा में एक सभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने बजरंगबली को दलित, वनवासी, गिरवासी और वंचित बताया था। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर कई बार विवादित बयानों के चलते सुर्खियां बटोर चुके हैं। निषाद पार्टी के नेता व योगी कैबिनेट में मंत्री संजय निषाद ने प्रयागराज में मीडिया से बातचीत में कहा कि प्रभु राम का जन्म राजा दशरथ के कुल में नहीं, बल्कि एक निषाद परिवार में हुआ था। जब राजा दशरथ को संतान नहीं हो रही थी। तब उन्होंने श्रृंगी ऋषि से यज्ञ करवाया था। कहा जाता है कि श्रृंगी ऋषि की तरफ़ से दिये गये खीर के खाने के बाद दशरथ की तीनों रानियों को बेटे पैदा हुए थे। जब कि हक़ीक़त है कि खीर खाने से कोई भी महिला गर्भवती नहीं हो सकती। संजय निषाद के दावा था कि उस वक्त के इतिहासकारों ने सच नहीं लिखा।

भगवद्गीता में कहा गया है कि "एक सम्मानित व्यक्ति के लिए मानहानि मृत्यु से भी बदतर है।" इसेयानी मानहानि को महापाप माना जाता है, क्योंकि प्रतिष्ठा व्यक्ति की गरिमा का एक अभिन्न औरमहत्वपूर्ण हिस्सा है। यही वजह है कि कुछ लोग बेइज्जत होने पर क्या कुछ नहीं कर जाते हैं। लेकिनबहुत से लोग ट्रेन, सड़क, थाने, सरकारी दफ्तर और कहां-कहां जिंदगी भर बेईज्जत होने पर भी मनमसोस कर रह जाते हैं।
खैर, जहां तक कानून के जरिये मानहानि से बचाये रखने की बात है तो भारत समेत बहुत से देशों में मानहानि और बदनामी कानून मूल रूप से अंग्रेजी मानहानि कानून से पैदा हुए हैं। इंग्लैंड में भी इनकी उत्पत्ति सन 1272 के आसपास एडवर्ड प्रथम के समय में हुई मानी जाती है। इंग्लैंड ने अपने कानूनों में लगातार सुधार किया है। एक बड़ा और व्यापक सुधार 2013 के डिफेमेशन एक्ट के जरिये किया गया। 2013 के एक्ट के जरिये मानहानि का दावा करने के मानदंड को मजबूत किया गया है। जिसमें वास्तविक या संभावित नुकसान के साक्ष्य को अनिवार्य बनाया गया है। 2013 का कानून 1 जनवरी, 2014 से लागू है। लेकिन अपने यहां मानहानि से सम्बंधित आईपीसी की धाराएं सन 1860 से चली आ रही हैं।

संविधान में क्या कहा गया है

बहरहाल, भारत में संविधान द्वारा प्रतिष्ठा का अधिकार सुरक्षित किया गया है। संविधान का अनुच्छेद21 द्वारा यह गारंटीशुदा अधिकार है। इसे प्राकृतिक अधिकार भी कहा जाता है।यहां तक कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) द्वारा दिया गया भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार पूर्ण नहीं है। इसमें कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं। सिर्फ मानहानि कानून ही नागरिक के निजी हित और प्रतिष्ठा की रक्षा करते हैं। ये तो हुई संविधान की बात।

बात आईपीसी की

भारत में मानहानि को एक नागरिक अपराध के साथ-साथ आपराधिक अपराध के रूप में देखा जा सकता है। यह कहा गया है कि इशारे से, बोल कर, या लिख कर ऐसी बात जो किसी की प्रतिष्ठा और अच्छे नाम को नुकसान पहुंचाती है वह मानहानि है। दीवानी मानहानि का उपचार लॉ ऑफ टोर्ट्स के अंतर्गत आता है। दीवानी मानहानि में पीड़ित व्यक्ति, अभियुक्तों से मौद्रिक मुआवजे के रूप में हर्जाना मांगने के लिए अदालत जा सकता है।
दूसरी तरफ, भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 पीड़ित को आरोपी के खिलाफ मानहानि का आपराधिक मामला दायर करने का अवसर प्रदान करती है। आपराधिक मानहानि के लिए दोषीव्यक्ति के लिए सजा साधारण कारावास है । जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों चीज। आपराधिक कानून के तहत, यह जमानती, गैर-संज्ञेय और शमनीय अपराध है।

आईपीसी की धारा 499 और 500

धारा 499 यह परिभाषित करती है कि मानहानि क्या है, जबकि आईपीसी की धारा 500 आपराधिक रूप से किसी व्यक्ति को बदनाम करने के लिए दोषी ठहराए गए लोगों के लिए सजा का प्रावधान करती है।
धारा 499 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से बोला गया, पढ़ा या इशारा किया गया कोई भी शब्द मानहानि माना जाएगा और कानूनी दंड के दायरे में आएगा।
इसमें कुछ अपवादों का भी जिक्र है। इनमें "सत्य का आरोपण" शामिल है जो "सार्वजनिक भलाई" के लिए आवश्यक है। इस प्रकार सरकारी अधिकारियों के सार्वजनिक आचरण, किसी भी सार्वजनिक प्रश्न को छूने वाले किसी भी व्यक्ति के आचरण और सार्वजनिक प्रदर्शन की योग्यता पर लागू किया जाना है।

मानहानि और इसके अपवाद

मानहानि का बयान मौखिक या लिखित या प्रकाशित या दृश्य तरीके से होना चाहिए और किसी व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्यों या जाति की प्रतिष्ठा के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गलत और आहत करने वाला होना चाहिए और जो पीड़ित के मॉरल को कम करता हो। लेकिन कुछ कथनों को मानहानि नहीं माना जा सकता है -
- जनहित में किया गया कोई भी सत्य कथन।
- किसी लोक सेवक के आचरण के संबंध में जनता द्वारा दी गई कोई राय जिसमें उसका चरित्र प्रकट होता है।
- किसी सार्वजनिक मसले को छूने वाले किसी व्यक्ति का आचरण।
- अदालत में मुकदमे और फैसले की कार्यवाही का प्रकाशन।

ऐसा नहीं कि राहुल गांधी सदस्यता गँवाने वाले पहले व्यक्ति हैं। इससे पहले उनकी दादी इंदिरा गांधी, माँ सोनिया गांधी भी अलग-अलग कारणों से सदस्यता गँवा चुकी हैं। इसके अलावा लक्ष्यद्वीप केएनसीपी के सांसद मोहम्मद फैज्सा, उत्तर प्रदेश के विधायक अब्दुल्ला आज़म खां, सांसद आज़म खां, भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर, हरियाणा के प्रदीप चौधरी, लालू यादव, रशीद मसूद, जे. जयललिता, जय बच्चन , सांसद जगदीश शर्मा, बिहार के अनत सिंह , बिहार के अनिल कुमार सहनीऔर मुज़फ़्फ़रनगर के भाजपा विधायक विक्रम सैनी अपनी सदस्यता गँवा चुके हैं। इनमें प्रदीप चौधरीकी सदस्यता बहाल भी हुई है।

जवाहर लाल नेहरू ने अपने गृहमंत्री कैलाश नाथ काटजू को 1953 में एक पत्र लिखा था, ”भारत काभाग्य काफ़ी हद तक हिंदू दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। अगर वर्तमान हिंदू दृष्टिकोण भौतिक रूप से नहीं बदलता है तो मुझे पूरा यक़ीन है कि भारत बर्बाद होने जा रहा है। “2014 के बाद से देखें तो भारत नेअपने हिंदू दृष्टिकोण को बदल लिया है। यानी भारत बर्बादी के राह को पीछे छोड़ आया है। पर पतानहीं क्यों कांग्रेस व उसके नेता इसे समझने, मानने और इस पर चलने को तैयार नहीं हैं। इतिहासकारउत्तरी अफ़्रीका के समाजशास्त्री इब्र खलदून से तैमूर ने राजवंशों के भाग्य के बारे में पूछा था। खलदून का जवाब था-“राजवंशों का वैभव शायद कभी चार पीढ़ियों से आगे नहीं बढ़ पाया।” जवाहरलालनेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी/ सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी। राहुल के लिए आधुनिक समाज शास्त्र के संस्थापक माने जाने वाले इब्र खलदून और अपने पूर्वज जवाहर लाल नेहरू की बातें समझने का समय है।
( लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार ।)

Yogesh Mishra

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