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Y Factor | Israel का Jerusalem क्यों है ईसाई और मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए पवित्र स्थल! | Ep -150

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 3 March 2021 12:47 PM IST (Updated on: 9 Aug 2021 7:28 PM IST)
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रोम की तरह इस पुराने शहर की दिवारें, इसकी एक एक ईंटें,गलियां इस शहर के कई बार उजड़ने व बसने की कहानी कहती हैं।यहाँ लोगों का ख़ूब खून बहा। ईसा मसीह भी यहाँ बख्शे नहीं गये। यहाँ वया डेल्स रोज़ा नाम की वह सड़क है , जिससे गुज़ारते हुई ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने के लिए ले ज़ाया गया। इस शहर में प्रवेश के लिए आठ दरवाज़े हैं। दिल्ली शहर से इसकी इस बात में समानता है कि यह शहर ऊँची दिवारों के अंदर बसाया गया है।

इजराइल की राजधानी जेरुशलम तीन धर्मों - यहूदी, इसाई और इस्लाम का संगम स्थल है। यहूदियों का मानना है कि यह उनकी मातृभूमि है। ईसाईयों का कहना है कि यह ईसा की कर्मभूमि है। यहीं पर ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था। वहीं मुस्लिमों का मानना है कि जेरुशलम की अल-अक्साा मस्जिद से ही इस्लाम की शुरूआत हुई थी। इसी स्थान से पैगम्बार मुहम्महद साहब ने स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया था।

लिहाज़ा यह शहर मुसलमान, यहूदी व ईसाई तीनों धर्मों के अनुयायियों के लिए पवित्र है। यहूदियों के बीच पवित्र मानी जाने वाली वेस्टर्न वॉल, मुसलमानों की पवित्र अक्सा मस्जिद है। यह इस्लाम का तीसरा पवित्र स्थल है। वक़्फ़ नामक एक इस्लामिक ट्रस्ट के प्रशासन के यह अधीन है। मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने मक्का से यहाँ तक का सफ़र किया। सभी प्राफेट की आत्माओं के साथ प्रार्थना की। कुछ ही कदम की दूरी पर डोम ऑफ द राक है। यह पठार पर है। मुसलमानों का मानना है कि यहाँ से वह जन्नत की ओर गये थे। साल भर मुसलमान यहाँ आते हैं।

ईसाई , इस्लाम, यहूदी, तीनों ही धर्म अपनी शुरूआत की कहानी को बाइबल के अब्राहम से जोड़ते हैं। हिब्रू में इसे यरूशलाइम कहते हैं। अरबी में इसे कुद्स कहते हैं।सेंट जेम्स चर्च ओ मोनेस्ट्री में ईसाई समुदाय ने अपनी संस्कृति व सभ्यता बचा कर रखी है। ईसाइयों के कॉटर में चर्च ऑफ द होली स्पेलर है। यह जगह यीशु की कहानी, मृत्यु, सलीब पर चढ़ाने और पुनर्जीवन की कहानी का केंद्र है। दातर ईसाई परंपरायें बताती हैं कि गोलगोथा या कलवारी की पहाड़ी पर यीशु को सूली पर चढ़ाया गया था। इसे ही हिल ऑफ द केलवेरी कहा जाता है।ईसा मसीह का मक़बरा सेपल्कर इसी के भीतर है। माना जाता है कि यहाँ से वह अवतरित हुए थे। यानी यही उनके पुनरूत्थान का स्थल भी है। ग्रीक आर्थोडॉक्स पैट्रि आचेट,फ्रैकिंसन फ्रैगर रोमन कैथोलिक चर्च व आर्मेनियाई पैट्रि आर्क ।

यहूदियों वाले हिस्से में कोटेल या वेस्टर्न वॉल है। यह वॉल ऑफ द माउंट का बचा हिस्सा है। यह दीवार पवित्र मंदिर का अवशेष है। इसी मंदिर के अंदर यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान था।यहूदी मान्यता के मुताबिक़ यही वह जगह है जहां आधारशिला रख कर दुनिया का निर्माण किया गया। यहीं पर अब्राहम ने अपने बेटे आईजैक की क़ुर्बानी दी थी। यहूदी मानते हैं कि डोम ऑफ द राक होली ऑफ होलीज की जगह है। जिसकी देख रेख रबि ऑफ द वेस्टर्न वॉल करती है।

ईसाईयों के धर्म ग्रंथ बाइबिल के प्रथम खण्ड और यहूदियों के सबसे प्राचीन ग्रंथ 'ओल्ड टेस्टामेंट' से यहूदियों के इतिहास के बारे में जानने को मिलता है। ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार 'यहूदी जाति का निकास पैगंबर हजरत अब्राहम से शुरू होता है, जिसे इस्लाम में इब्राहिम, ईसाईयत में अब्राहम कहते हैं।' यानी यह स्थान तीनों धर्म के लोगों की आस्थाओं का केंद्र है।

अब्राहम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई तीनों धर्मों के लोग अपना पितामह मानते हैं। अब्राहम का समय ईसा से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व का है। माना जाता है कि अब्राहम के पोते याकूब का ही दूसरा नाम इजराइल था। याकूब ने यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक किया। इन सब जातियों का यह सम्मिलित राष्ट्र इजराइल कहलाने लगा। लेकिन कुछ राजनीतिक कारण ऐसे बने कि यहूदियों की राजनीतिक स्वाधीनता का अंत हो गया।

दरअसल, सन् 66 ईसा पूर्व में प्रथम यहूदी-रोम युद्ध के बाद रोम के जनरल पांपे ने जेरुशलम के साथ-साथ सारे देश पर अधिकार कर लिया। इतिहासकारों का कहना है कि हजारों यहूदी इस लड़ाई में मारे गए। छठी ईस्वी तक इजराइल पर रोम का प्रभुत्व कायम रहा। लेकिन इसी समय मध्य एशिया में एक और नई शक्ति का उदय हुआ। यह शक्ति थी इस्लाम के झंडे के नीचे खड़ा हुआ खलीफा साम्राज्य।

636 ई. में खलीफ़ा उमर की सेनाओं ने रोम की सेनाओं को रोंद डाला। इजराइल पर अपना कब्जा कर लिया। इस तरह इजराइल और उसकी राजधानी जेरुशलम पर अरबों की सत्ता स्थापित हो गई, जो 1099 ई. तक रही।

इसके बाद 1099 ई. में जेरुशलम पर ईसाई शक्तियों ने तीन दिनों में ४० हज़ार लोगों का कत्ल करके शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। मारे जाने वाली लोगों में मुसलमान व यहूदी दोनों थे। हालांकि ईसाईयों का शासन ज्यादा दिन नहीं चल सका। उन्होंने दोबारा से इस्लामी शासकों के हाथों इजराइल गंवा दिया।सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने दोबारा इस शहर पर मुसलमानों को क़ाबिज़ कराया।

ईसाइयों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए 1095 और 1291 के बीच सात बार जो युद्ध किए उसे क्रूसेड कहा जाता है। इसे इतिहास में सलीबी युद्ध भी कहते हैं। यह युद्ध सात बार हुआ था । इसलिए इसे सात क्रूश युद्ध भी कहते हैं। उस काल में इस भूमि पर इस्लाम की सेना ने अपना आधिपत्य जमा रखा था, जबकि इस भूमि पर मूसा (मोजेज़) ने अपने राज्य की स्थापना की थी।

इस तरह इस भूमि पर यहूदी भी अपना अधिकार चाहते थे। यह युद्ध भी महाभारत के युद्ध की तरह भूमि के अधिकार का युद्ध माना जा सकता है। 11वीं सदी की शुरुआत में क्रूसेडरों ने जब यरुशलम के लिए मोर्चाबंदी की तो पहली बार मुसलमानों को जिहाद के लिए इकट्ठा किया गया। यहीं से जिहाद के पवित्र मायने बदल गए। इन सात युद्धों में कई लाख लोगों की जान चली गयी थी। क्रूसेड में भाग लेने के लिए ब्रिटन और अन्य जगहों से सेनाएं फलस्तीन आ कर युद्ध करतीं थीं।

अंततः इस्लामी शासकों का इजराइल पर कब्जा हो गया, तब से लेकर उन्नीसवीं सदी तक इजराइल पर कभी मिस्र शासकों का आधिपत्य रहा, तो कभी तुर्क शासकों का। इजराइल के वर्तमान स्वरूप से पहले वह तुर्की शासकों के हाथों में ही था, जिसे ओटोमन साम्राज्य कहा जाता था, जिसके ऊपर खलीफा का शासन था।

उन्नीसवीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य अपने चरम पर था तब मध्य एशिया के एक बड़े हिस्से तक फैला ओटोमन साम्राज्य कमजोर हो चला था। इस समय तक कई देशों में राष्ट्रवाद की लहर चल रही थी। इटालियन एक अलग राज्य इटली की मांग कर रहे थे, तो जर्मनी अपने लिए एक अलग जर्मन राज्य की मांग करने लगे। यहूदियों में भी अपनी अस्मिता, अपने अस्तित्व, अपनी पहचान के लिए तीव्र भावनाएं उमड़ीं और यहूदी भी एक अलग देश की इच्छा करने लगे, जहां वह चैन से रह सकें। उनके मन में अपने पूर्वजों के देश इजराइल को दोबारा से आबाद करने की भावना घर करने लगी, जहां फिलहाल ओटोमन शासकों का कब्जा था। उन्नीसवीं सदी के मध्य में यूरोप में सब जगह यहूदियों पर अत्याचार हो रहे थे, निरंतर होते अत्याचारों के कारण यूरोप के कई हिस्सों में रहने वाले यहूदी विस्थापित होकर फिलिस्तीन आने लगे। चूंकि फिलिस्तीन में इस्लामी मान्यता के लोग बहुमत में थे, अतः यह लड़ाई एक कभी न खत्म होने वाला विवाद बनने जा रही थी।

येरूशलम ३००० साल से इसरायल की राजधानी है। यह कभी किसी और की राजधानी नहीं रही है।

इसके चार इलाक़ों- ईसाई, इस्लामी, यहूदी, आर्मेनियाई है।अर्मेनियाई भी ईसाई होते हैं।इसका साधा मतलब है कि शहर के दो हिस्से पर ईसाई हैं।सेंट जेम्स चर्च और मोनेस्ट्री में आर्मीनियाई समुदाय ने अपनी संस्कृति व सभ्यता सहेज कर रखी है।

यहूदियों का आधुनिक येरूशलम भी है। पूर्वी येरूशलम में इसरायली अरब रहते हैं।

फ़िलिस्तीन वेस्ट बैंक व ग़ज़ा में रहते हैं।।जो जुड़े नहीं हैं।यहाँ के लोगों को एक दूसरे से मिलने के लिए परमिट की ज़रूरत होती है। संयुक्त राष्ट्र पूर्वी येरूशलम पर इसरायल का क़ब्ज़ा नाजायज मानता है। जबकि इसरायली सरकार येरूशलम को इसरायल की राजधानी मानती है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसरायल के दावे को मान्यता दी है। अमेरिकी दूतावास का तेल अवीव से येरूशलम लाने की मंज़ूरी दे दी।



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