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Ajab Gajab: दामाद बन जाता है नौकर, पीता है सुअर का खून

Ajab-Gajab: भारत में की जनजातियाँ अलग रहन-सहन के साथ रहती हैं। जनजातियाँ मान्यताओं और परम्पराओं के लिए कटिबद्ध होती हैं । उसमें सदियाँ भले ही बीत जाए पर उनके मनाने का तरीक़ा बिलकुल भी नहीं बदलता है। जनजातियाँ को संरक्षण देने के लिए सरकार भी कई तरह की पहल करती रहती है।

AKshita Pidiha
Published on: 21 Oct 2023 5:26 PM IST (Updated on: 21 Oct 2023 5:26 PM IST)
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Ajab-Gajab: भारत में की जनजातियाँ अलग रहन-सहन के साथ रहती हैं। जनजातियाँ मान्यताओं और परम्पराओं के लिए कटिबद्ध होती हैं । उसमें सदियाँ भले ही बीत जाए पर उनके मनाने का तरीक़ा बिलकुल भी नहीं बदलता है। जनजातियाँ को संरक्षण देने के लिए सरकार भी कई तरह की पहल करती रहती है।

अब जनजातियाँ की शादी की बात की जाए तो , जैसे हिंदू समाज में दामाद आदर सम्मान किया जाता है ।ससुराल आए दामाद को किसी चीज की कमी नहीं होने दी जाती है। नाश्ते से लेकर रात का खाना दामाद की पसंद का ही बनाया जाता है। लगभग हर जगह दामाद की आव-भगत इसी तरह से की जाती है। वैसे ही जनजातियाँ भी दामाद को आदर सम्मान देती हैं । पर आदर देने का तरीक़ा अलग होता है । जब तक ये जनजातियाँ लड़के के बारे में निश्चित नहीं हो जाती है तब तक वे सम्मान नहीं देती हैं।

इतिहास की सबसे प्राचीन जनजातियां

आज हम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की रहने वाली गोंड जनजाति के बारे में कुछ खास विशेषताओं की चर्चा करेंगें , जिसके बारे में जानकार आपको आश्चर्य होगा ।ये लोग अभी तक के इतिहास के सबसे प्राचीन जनजातियों में गिने जाते हैं। गोंड जनजाति बाकी जनजातियों की ही तरह बेहद साधारण तरीके से जीवन-यापन करते हैं। वो सीधे-साधे और बेहद ईमानदार होते हैं। इसके अलावा ये बेहतरीन शिकारी भी होते हैं। ये जंगलों में रहते हैं और इनके घर ज्यादातर मिट्टी और घास-फूस के बने होते हैं। गोंड जनजाति की महिलाएं घुटने तक साड़ियां पहनती है जबकि मर्द को आप धोती और गंजी में देख सकते हैं।

गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है। यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है, इसका संबंध प्राक-द्रविड़ प्रजाति से है। इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले, होंठ मोटे, नाक बड़ी व फैली हुई होती है। ये अलिखित भाषा गोंडी बोली बोलते हैं, जिसका संबंध द्रविड़ भाषा से है। पर्दा प्रथा से दूर गोंड नारी अपना जीवनसाथी चुनने में भी पूरी तरह स्वतंत्र होती है। आधुनिक समाज के विपरीत इस समाज में आज भी महिलाओं को सम्मानित समानता का दर्जा प्राप्त है।

भोजन के लिए ये मुख्यत खेती पर निर्भर करते हैं। हालाँकि ये जनजाति शहरी क्षेत्रों से जुड़ने की कोशिश करती है। पर जंगलों में रहने वाली यह जनजाति आज भी प्रथाएँ नहीं भूली है । शादियों में ये जनजाति खूब नाच गाना करती हैं । पर यदि शादी अपनी पसंद की हो तो ये नियम थोड़ा अलग हो जाते हैं ।

लव मेरिज में दामाद के साथ अलग व्यवहार किया जाता है । इसमें लड़के को अपने आप को साबित करना होता है ।इसके लिए लड़के को पहले अपने ससुर के खेत में काम करना पड़ता है , जब ससुर को लगेगा कि वाकई लड़का मेहनती है । तब ही शादी की इजाजत देता है। इसे लमसेना विवाह कहते हैं ।

'करमा' गोंडों का मुख्य नृत्य है

गोंड आदिवासियों की संस्कृति की असली झलक इनके विवाह समारोहों में ही देखी जा सकती है। शादी की हर रस्म, हर आयोजन के अलग-अलग गीत होते हैं। हर गीत का गूढ़ अर्थ और मतलब होता है। 'करमा' गोंडों का मुख्य नृत्य है। पुरुषों द्वारा किया जाने वाले सैला नृत्य का भी चलन गोंड जनजाति में है।

इस बात को सुनकर आपको अजीब लग सकता है। लड़के को सूअर का खून पीकर ससुर को यकीन दिलाना पड़ता है कि वो उसकी बेटी के लिए कुछ भी कर सकता है।हालाँकि गोंड जनजाति हो या अन्य जनजातियाँ ज्यादातर शिकार पर जीवित रहते हैं। इनके भोजन में मांस-मछली का अहम स्थान है।



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Shashi kant gautam

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