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Countries Economic Crisis: श्रीलंका जैसे संकट में फंसे हुए हैं कई देश, मंडरा रहा गंभीर खतरा
Countries Economic Crisis: तमाम ऐसी अर्थव्यवस्थाएँ हैं जो कोरोना संकट में भी उबरने में कामयाब हो गयी थीं। लेकिन आज वो अर्थव्यवस्थाएँ डूब रही हैं।
Countries Economic Crisis: दुनिया के नामचीन अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने साल भर भी नहीं बीता श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ टिप्पणीयाँ की थीं।उनकी पहली टिप्पणी यह थी हैपीनेस इंडेक्स में श्रीलंका भारत से बहुत ऊपर है। उनकी दूसरी टिप्पणी यह थी कि श्रीलंका हंगर इंडेक्स के मामले में भारत से बहुत अच्छा काम कर रहा है। उनकी तीसरी टिप्पणी थी कि जीडीपी इंडेक्स के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था श्रीलंका की अर्थव्यवस्था से बहुत पीछे है।इसी के साथ दुनिया के कुछ और नामचीन अर्थशास्त्रियों ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ी और तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था बताया था। कहा तो यहाँ तक गया था कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था दुनिया की 41 वें नंबर की अर्थव्यवस्था है।
आज हालत यह है कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को आयात पर प्रतिबंध लगाने पड़ रहे हैं।डीज़ल के संयंत्र न चलें ऐसा आदेश बांग्लादेश में किया गया है। ताकि आयात पर कम से कम धनराशि खर्च हो सके। इसी के साथ विलासिता की वस्तुओं के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाये गये हैं। ताकि इन वस्तुओं के आयात पर खर्च होने वाली धनराशि को बचाया जा सके। हालाँकि इसी के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी बांग्लादेश ने भारी भरकम धनराशि की माँग की है। सवाल यह उठता है कि आख़िर क्या वजह है कि दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाएँ धराशायी हो रही हैं। वह भी कोरोना काल के बाद।
तमाम ऐसी अर्थव्यवस्थाएँ हैं जो कोरोना संकट में भी उबरने में कामयाब हो गयी थीं। लेकिन आज वो अर्थव्यवस्थाएँ डूब रही हैं। बांग्लादेश ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 4.5 अरब डॉलर क़र्ज़ की माँग की है। बांग्लादेश के वित्त मंत्री एएचएम मुस्तफा कमाल ने IMF को इस संबंध में पत्र लिखा है। खस्ताहाल बांग्लादेश सरकार ने IMF से इतनी भारी कर्ज की मांग इसलिए की है, ताकि विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर रखा जा सके। बांग्लादेश की कुल आबादी 16 करोड़ है। और इसकी अर्थव्यवस्था को दुनिया में 41वें पायदान की अर्थव्यवस्था कहा जाता था। आर्थिक संकट से जूझते बांग्लादेश ने डीजल से चलने वाले पावर प्लांट बंद कर दिये हैं।लगातार घटते विदेशी मुद्रा भंडार की वजह से सरकार ने विलासिता से संबंधित सामानों के आयातों पर भी कमी का फैसला लिया है। विशेषज्ञ, बांग्लादेश की बर्बादी की तरफ बढ़ती अर्थव्यवस्था के पीछे दो मुख्य वजहें बताते हैं। पहला, विदेशों में रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों से आने वाले रेमिटेंस में बड़ी गिरावट । दूसरा, निर्यात में भारी कमी आना। बांग्लादेश बैंक के एक आंकड़े के मुताबिक पिछले साल इसी जुलाई महीने से इस साल मई के बीच देश का आयात 81.5 अरब डॉलर रहा। यह एक साल पहले की तुलना में करीब 39 प्रतिशत अधिक है। वहीं, भारत के इस पड़ोसी मुल्क के विदेशी मुद्रा भंडार की बात करें तो इसमें भी तेज गिरावट दर्ज की गई है। 20 जुलाई,2022 तक बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 39.7 अरब डॉलर रहा। इसी जून महीने में महंगाई दर 9 महीने के उच्चतम स्तर पर रही। बांग्लादेश में इस दौरान महंगाई दर 7.56 प्रतिशत रही।
श्रीलंका के आर्थिक हालात से हम आप परिचित हैं। वहाँ लोग सड़कों पर उतरे, सरकार बदली, आंदोलन हुआ, जनक्रांति हुई।इस सब के पीछे सिर्फ़ एक कारण था कि श्रीलंका की आर्थिक स्थिति का ख़स्ता हाल हो जाना। और अमर्त्य सेन ने जो श्रीलंका के बारे में कहा था, उसका ठीक उल्टा हो जाना।
यह स्थिति श्रीलंका व बांग्लादेश की ही नहीं है, तमाम देश गंभीर आर्थिक संकट में हैं।बांग्लादेश, लाओस और पाकिस्तान से लेकर वेनेज़ुएला और गिनी तक दुनिया भर के कई अर्थव्यवस्थाओं के लिए ख़तरे घंटी बज रही है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के ग्लोबल क्राइसिस रिस्पांस ग्रुप की पिछले महीने की एक रिपोर्ट के अनुसार, 94 देशों में लगभग 1 अरब 60 करोड़ लोग भोजन, ऊर्जा और वित्तीय प्रणालियों के संकट का सामना कर रहे हैं। उनमें से करीब 1 अरब 20 करोड़ लोग ऐसे देशों में रहते हैं , जहां बांग्लादेश और श्रीलंका जैसा तूफान कभी भी आ सकता है।
इन देशों के संकट के सटीक कारण अलग - अलग हैं। लेकिन सभी खाद्य और ईंधन की लगातार बढ़ती लागत से जूझ रहे हैं। ये यूक्रेन पर रूस के युद्ध से अधिक प्रेरित हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि इस साल विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति आय महामारी के पूर्व के स्तर से 5 फीसदी कम होगी।
इस बीच, महामारी राहत पैकेजों के लिए ऊंची ब्याज दरों पर अल्पकालिक उधारी लेने से ऐसे कई देशों पर मोटा कर्ज हो गया है । ये पहले से ही आर्थिक दायित्वों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के आधे से अधिक सबसे गरीब देश कर्ज के संकट से जूझ रहे हैं। इनमें से कई देश पहले से ही गृहयुद्ध, तख्तापलट और प्राकृतिक आपदाओं के नाते परेशानियाँ झेलते चले आ रहे हैं। इन सब के बाद आर्थिक तनाव कई देशों में लोगों को आंदोलन के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
तालिबान के नियंत्रण में आने के बाद से अफगानिस्तान एक गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश के 3 करोड़ 90 लाख लोगों में से लगभग आधे लोगों को खाद्य असुरक्षा के खतरनाक स्तर का सामना करना पड़ रहा है। डॉक्टर, नर्स, शिक्षक और तमाम सरकारी कर्मचारियों को वेतन ही नहीं मिल पा रहा है।
अर्जेंटीना में 40 फीसदी लोग गरीब हैं। अर्जेंटीना का विदेशी भंडार खतरनाक रूप से कम स्तर पर है। देश की मुद्रा कमजोर है। इस साल महंगाई 70 फीसदी से ज्यादा रहने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की 44 अरब डॉलर के कर्ज की वापसी का बड़ा संकट बना हुआ है।
मिस्र की मुद्रास्फीति की दर अप्रैल में लगभग 15 फीसदी तक बढ़ गई थी। जिससे विशेष रूप से गरीबी में रहने वाले 10 करोड़ 30 लाख लोगों में से लगभग एक तिहाई के लिए जिंदगी दूभर हो गई है।मिस्र का शुद्ध विदेशी भंडार गिर गया है। पड़ोसी सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने मिस्र को सहायता देने का वादा किया है।
महामारी की चपेट में आने से पहले लाओस बहुत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश था। लेकिन आज वह देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है। क़र्ज़ के जाल में फँस गया है।लाओस में कर्ज का स्तर इतना बढ़ गया है और श्रीलंका की तरह, यह लेनदारों के साथ बातचीत कर रहा है कि अरबों डॉलर के ऋणों को कैसे चुकाया जाए। विश्व बैंक का कहना है कि इसका विदेशी भंडार दो महीने से भी कम समय के आयात के बराबर है। लाओस की मुद्रा, किप 30 फीसदी तक गिर चुकी है।
लेबनान की स्थिति भी श्रीलंका जैसी है। इसकी मुद्रा बहुत कमजोर हो चुकी है, मुद्रास्फीति चरम पर है और जनता बेहाल है। विश्व बैंक ने कहा है कि लेबनान आज दुनिया में पिछले 150 वर्षों से खराब स्थिति में पड़ा हुआ है।
श्रीलंका की तरह, पाकिस्तान भी कर्जे में फंसा हुआ है। उसे आईएमएफ से 6 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की उम्मीद है, जिसे अप्रैल में इमरान खान की सरकार को हटा दिए जाने के बाद रोक दिया गया था। पाकिस्तान में महंगाई का आलम है कि मुद्रास्फीति 21 फीसदी से अधिक है। पिछले एक साल में डॉलर के मुकाबले पाकिस्तान कि मुद्रा लगभग 30 फीसदी गिर गई। मार्च के अंत तक, पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 13.5 अरब डॉलर हो गया था, जो सिर्फ दो महीने के आयात के बराबर था। पाकिस्तान ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को नियंत्रित करने के लिए आदेश जारी किया है कि कोई भी पाकिस्तानी दिन में दो से ज़्यादा चाय न पिये। ताकि चाय के आयात पर होने वाले खर्च को नियंत्रित किया जा सके। इस तरह हम देख सकते हैं कि जिन अर्थव्यवस्थाओं के बारे में दुनिया के नामचीन अर्थशास्त्रियों ने बड़े बड़े दावे किये थे। वह सारी की सारी अर्थव्यवस्थाएँ औंधे मुँह गिर रही हैं। यह भारत का सौभाग्य है कि नरेंद्र मोदी के आने के बाद से ही दुनिया के ये बड़े और नामचीन अर्थशास्त्री भारत के बारे में सिर्फ़ निगेटिव चीजें देखते हैं। नकारात्मक चीजें देखते हैं। अच्छा हुआ कि उन्होंने भारत के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की, इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि सारे आर्थिक संकट के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था उभर कर सामने आयेगी। अगर उन्होंने टिप्पणियाँ भी की होतीं तो निगेटिव टिप्पणी होती और जिस तरह उनकी पॉज़िटिव टिप्पणी ठीक उलट नतीजे दे रही है, उस तरह निश्चित तौर से उनकी निगेटिव टिप्पणी भी ठीक उलट नतीजे देती। अभी भारत की अर्थव्यवस्था से हमें उम्मीद करनी चाहिए ।