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Y-FACTOR शिवाजी-समर्थ रामदास और गुरू शिष्य संबंधों की नई व्याख्या, Yogesh Mishra, EP- 299

Y-FACTOR जजों ने कहा कि शोध कर्ताओं की खोज के मुताबिक शिवाजी तथा समर्थ गुरु रामदास कभी गुरु शिष्य रहे ही नहीं।

Ramkrishna Vajpei
Published on: 17 April 2022 3:04 PM GMT
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Y-FACTOR विप्र द्वेषी, अवर्णों के वोंटार्थी, मराठा राजनेता, प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री शरदचन्द्र गोविन्दराव पवार ने महाराष्ट्र के राज्यपाल तथा उत्तराखण्ड के पूर्व भाजपायी मुख्यमंत्री व अंग्रेज़ी साहित्य के प्रोफ़ेसर प्रोफेसर भगत सिंह कोश्यारी को बेदखल करने की मांग दोहराई है। अन्य मराठे भी राज्यपाल पर पिल पड़े हैं। बात बस इतनी तक है कि 27 फरवरी, 2022 को औरंगाबाद के एक समारोह में प्रो. कोश्यारी ने कहा कि गुरु की महत्ता के कारण ही​ शिष्य की श्रेष्ठता है। जैसे आचार्य चाणक्य के कारण चन्द्रगुप्त मौर्य की । समर्थ गुरु रामदास के कारण छत्रपति शिवाजी की। प्रो. कोश्यारी राजपूत हैं। चीन के सीमावर्ती पिथौरागढ़ जिले से आते हैं। आपातकाल में इंदिरा गांधी की तानाशाही का मुकाबला जेल से कर चुकें हैं।

चूंकि समर्थ गुरु रामदास ब्राह्मण थे । अत: इन मराठों का पुराना अभियान रहा कि शिवाजी की माता जीजाबाई ही पहली गुरु थी। इनका यह भी दावा है कि समर्थ रामदास और छत्रपति शिवाजी गुरु और शिष्य कैसे? कभी वे दोनों मिले ही नहीं थे। इस बात की पुष्टि में ये मराठे औरंगाबाद उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के 16 जुलाई , 2018 के एक निर्णय का उल्लेख करते हैं। इसमें जजों ने कहा कि शोध कर्ताओं की खोज के मुताबिक शिवाजी तथा समर्थ गुरु रामदास कभी गुरु शिष्य रहे ही नहीं।

बम्बई हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी कि बाबा साहेब बलवंत मोरेश्वर पुरंधरे को प्रदत्त ''महाराष्ट्र रत्न'' पुरस्कार निरस्त कर दिया जाये। बाबा साहेब इतिहासकार थे, जो अपने को कवि भूषण की भाँति " शिव शाहिर'' कहते थे। जिन्होंने शिवाजी पर सैकड़ों रचनायें लिखीं हैं। उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इनके ही विरुद्ध कतिपय लोगों ने मांग की थी कि दादासाहेब पुरंधरे को मिला पारितोष वापस ले लिया जाये। बम्बई हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुये, याचिकाकर्ताओं पर दस हजार का जुर्माना भी लगाया । क्योंकि उन्होंने एक ''घटिया वाद पर कोर्ट का समय नष्ट'' किया था। बाबा साहेब पुरंधरे ब्राह्मण थे। अत: ये मराठे उनका भी तिरस्कार करते रहे। पुरंधरे के अनुसार शिवाजी गुरु रामदास के शिष्य थे।

हालांकि शंभाजी ब्रिगेड ने बाबा साहेब पुरंधरे को अपमानित करने की साजिश की थी। इसी संदर्भ में एक वारदात भी हुयी थी। शरद पवार को उनके चन्द चहेतों ने ''जाणता (जागरुक) राजा'' की उपाधि से नवाजा था। यह उपाधि गुरु रामदास ने शिवाजी महाराज को दिया था। इस घटना पर पवार समर्थक भाजपा के सांसद उदयराजे ने आलोचना भी की थी।

विवाद का विश्लेषण यह है कि सात सदियों पूर्व से चले आ रहे इतिहास के सर्वमान्य सिद्ध तथ्य को जाति पर रागद्वेष के कारण क्या विकृत कर दिया जायेगा? अर्थात दशकों से करोड़ों स्कूली छात्रों को पढ़ाया जा चुका है कि गुरु समर्थ रामदास अपने अनन्य शिष्य हिन्दू राज के प्रणेता, मुगलों के कट्टर शत्रु, मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी के पथ प्रदर्शक थे। आज क्या चन्द राजनेता बिना किसी प्रमाण अथवा दस्तावेज के अपनी मनमानी करेंगे?

वह भी तब जब वस्तुस्थिति यह है कि मध्य कालीन भारतीय इतिहास के शोधकर्ताओं ने निस्संदेह प्रमाणित किया है कि गुरु—शिष्य की स्नेहिल भेंट 1672 को हुयी थी। इसका प्रमाण लंदन—स्थित ब्रिटिश पुस्तकालय के दस्तावेजों में उपलब्ध है।

यह शिवाजी द्वारा प्रदत्त सनद है। शिवाजी ने अपने अमात्य दत्ताजी पन्त को निर्दिष्ट किया था कि चाफल मंदिरों की सुरक्षा हो। शिंगनवाड़ी में दोनों मिले थे। 15 अक्टूबर, 1678 की एक शाही सनद शिवाजी महाराज ने मराठी में दिया। इससे भी गुरु शिष्य ​रिश्ता सिद्ध होता है।

इस विवरण के अनुसार जब छत्रपति शिवाजी को यह पता चला कि समर्थ रामदासजी ने महाराष्ट्र के ग्यारह स्थानों में हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित की हे और वहां हनुमान जयंती उत्सव मनाया जाने लगा है। तो उन्हें उनके दर्शन की उत्कृष्ट अभिलाषा हुयी। वे गुरु से मिलने के लिये चाफल, माजगांव होते हुए शिंगनवाड़ी आये। वहां समर्थ रामदासजी एक बाग में वृक्ष के नीचे ''दासबोध'' लिखने में मग्न थे। शिवाजी ने उन्हें दंडवत प्रणाम किया। उनसे अनुकम्पा के लिये विनती की।

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