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Y-FACTOR ममता का नया अवतार क्या होगा, टीएमसी के नेतृत्व में बदलाव के क्या हैं संकेत

मोदी का विकल्प बनने के लिए दो लोग बड़े बेताब हैं। एक अरविंद केजरीवाल हैं। दिल्ली व पंजाब में सरकार बनाने के बाद उनके हौसले सातवें आसमान पर हैं। दूसरी ममता बनर्जी हैं।

Yogesh Mishra
Report Yogesh MishraPublished By Ramkrishna Vajpei
Published on: 12 April 2022 2:55 PM IST
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अभी 2024 के लोकसभा चुनाव बहुत दूर हैं, तब तक पता नहीं कितना पानी बह निकलेगा। लेकिन राजनीतिक दल अपनी अपनी गोटियाँ अभी से बिछाने में लगे हुए हैं। और हर राजनीतिक दल की कोशिश है कि उसका जो सुप्रीमों है, नेता है, वह नरेंद्र मोदी का विकल्प बन कर दिखने लगे। इसी के साथ वह यह भी चाहता है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन तैयार किया जाये , उस गठबंधन में भले ही कांग्रेस सबसे बड़ा दल हो । लेकिन चेहरा उसके नेता का हो। ऐसे में इन दिनों दो लोग बड़े बेताब देखे जा सकते हैं। एक अरविंद केजरीवाल हैं। दिल्ली व पंजाब में सरकार बनाने के बाद उनके हौसले सातवें आसमान पर हैं। दूसरी ममता बनर्जी हैं। पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा को पराजित करने के बाद उन्हें लगने लगा है कि वही भाजपा की इकलौती विकल्प हैं। और मोदी के खिलाफ वही एक चेहरा हो सकती हैं।

गोमुख से निकलते वक्त गंगा निर्मल तथा अविरल रहती है। काशी में तनिक मटमैली। मगर हावड़ा के हुगली आने तक एकदम गंदली हो जाती है। आज वहीं की निवासिनी ममता बनर्जी, जो कभी भागीरथी जैसी थीं, अब हुगली जैसी हो गयीं हैं। मलिन, गर्हित राजनीति की मानिन्द। भ्रष्ट तथा मौकापरस्त। इसीलिये उनकी प्रधानमंत्री बनने वाली आकांक्षा भी विकृत हो गयी है। उनके शत्रु नरेन्द्र मोदी की हसरत है कि भारत कांग्रेस—मुक्त हो जाये। लेकिन प्रधानमंत्री से सात साल छोटी ममता की कामना है कि सोनिया—मुक्त कांग्रेस का नजारा दिखे।

दोनों दावा करते हैं कि दूसरे से खुद उनके परिधान ज्यादा बेदाग हैं, सफेद हैं। मगर फर्क गंभीर है। मोदी मानते है कि परिवार से सटोगे तो देश से हटोगे। ठीक विपरीत हैं ब्रह्मचारिणी ममता। वे अपने सगे भतीजे अभिषेक बनर्जी को बढ़ा रहीं हैं। साल 2004 तक वामपंथी लोकसभाई सीट रही डायमंड हार्बर एक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट के कब्जे में थी। अब बुआ ने भतीजे को दिलवा दी। वे उसे क्रमश: प्रोन्नत कर रहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस की इस आजीवन अध्यक्षा ने भतीजे को राष्ट्रीय महासचिव नामित किया है। वे सांसद भी हैं। ''एक व्यक्ति एक पद'' का सिद्धांत बनाया था टीएमसी ने। अपवाद केवल बुआ और भतीजा हैं। बस सियासी उत्तराधिकारी घोषित होने का इंतजार है। हालांकि सोनिया की दोनों संतानों का पार्टी पदारुढ होने की राजीव के समय से ही ममता कांग्रेस की आलोचक रहीं। सोच अपनी—अपनी है।

अभिषेक आज के हीरो हैं। उनका वर्णन पहले। 21 मार्च ,2022 नयी दिल्ली ईडी मुख्यालय अभिषेक की पेशी थी। वे आर्थिक अपराधी हैं। हालांकि वरिष्ठ पार्टी पुरोधा सुब्रत मुखर्जी ने अभिषेक को तृणमूल कांग्रेस का शतप्रतिशत सफल नेता करार दिया है। भाजपा की गतवर्ष बंगाल विधानसभा में सत्ता पाने में विफल रहने का श्रेय दूसरे आला नेता पार्थ अभिषेक को ही देते हैं। बुआ की तरह ये सभी पार्टी अगुवा पूर्णतया विप्र वर्ण के हैं। सभी का उपाध्याय उपनाम है।

लेकिन इस फ़ैसले से ममता को जानने वाले लोग अचंभे में हैं। एकदा ममता परिवारवाद की घोर विरोधी थीं। एक समय ऐसा भी था, जब ममता बनर्जी खुलकर परिवारवाद की आलोचना किया करती थीं। अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में न आने देने की बात करती थीं। ''आप पार्टी'' की तरह राजनीति में नया बदलाव लाए जाने की पैरवी करती थीं। सबसे अहम बात तो यह है कि वे अभिषेक को खुद से ज्यादा महत्व देने को नापसंद करती थीं। और कई बार तो यह हद भी देखी गयी कि अभिषेक को जगह देने के खिलाफ भी वह रहीं।

अभिषेक ने भले ही 2014 के लोकसभा चुनाव में सोमेन मित्रा को पराजित किया हो ।पर यह सच भी किसी से छिपा नहीं कि महज एक साल पहले ही ममता उत्तर 24 परगना की एक रैली में भतीजे को अहमियत दिये जाने से बेहद नाराज हो गयी थीं। इस रैली में अभिषेक मुख्य वक्ता थे। वहां जो पोस्टर व बैनर लगाये गये थे । उन पर ममता बनर्जी के साथ उसकी भी तस्वीर छापी गयी थी। उन दोनों के ही बड़े—बड़े कटआउट भी लगाये गये थे। हवाई अड्डे जाते समय जब ममता की नजर उन पर पड़ी, तो वे बौखला उठीं। उन्होंने अपनी कार रुकवायी।साथ चल रहे पार्टी नेताओं व सुरक्षा कर्मियों को उन्हें फाड़ डालने की हिदायत दी।

उन्हें इस बात की नाराजगी थी कि अभिषेक को इतनी अ​हमियत क्यों दी जा रही है? उन्होंने सारे पोस्टर फड़वाए। वह रैली रद्द करवायी। उसके बाद पार्टी की ओर से लिखित निर्देश जारी किये गये कि भविष्य में किसी भी पोस्टर, बैनर पर ममता बनर्जी के अलावा किसी और का फोटो नहीं छपेगा। उनके अलावा किसी और नेता का कटआउट नहीं लगाया जायेगा।''

ममता जो ढाई तीन सौ रुपये वाली नीले बार्डर की सफेद साड़ी और हवाई चप्पल के लिये विश्व विख्यात हैं। लेकिन अब एकदम बदल गयीं हैं। समय तथा अवसर के साथ। अरबों रुपये के ''नारद'' तथा ''शारदा'' घोटाले में लिप्त पायीं गयीं। मगर उनका का दावा है कि उनके दुश्मनों ने उन्हें फंसाया है। ठीक जैसे उनके गुरु रहे पीवी नरसिम्हा राव कहा करते थे। राव की मंत्रीपरिषद में ममता शिक्षा राज्य मंत्री थीं। बात 1991—95 की है। तब तक ममता की नैतिकता उभार पर थी। जब वे मुख्यमंत्री बनी तो उनके कभी सहयोगी रहे सांसद कुणाल घोष तथा डीजीपी रजत मजूमदार घोष ने मांग की थी कि मुख्यमंत्री को कैद किया जाये क्योंकि वे भी भ्रष्टाचार में आकण्ठ लिप्त हैं।

गत वर्षों से ममता का नया अवतार दिखता है। वे अब मोदी का पद चाहती हैं। यानी अगले लोकसभा चुनाव में विपक्ष उन्हें मोदी के सामने खड़ा करें यह उनकी अभिलाषा है। उन्होंने पूछा है कि ''क्या संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा जिन्दा है?'' हालांकि इसकी अध्यक्षा सोनिया गांधी स्वस्थ हैं। ममता ने पूछा था कि राहुल गांधी हमेशा विदेश में क्यों रहते हैं? ममता ने अब सुझाया कि सभी विपक्षी दल एकजुट होकर सलाहकार परिषद का गठन कर भाजपा को अगले लोकसभा चुनाव में हरायें। नारीसुलभ प्रवृत्ति के कारण सोनिया गांधी ने अनसुनी कर दी। उनका मानना है कि उनकी राष्ट्रव्यापी स्वीकार्यता अत्यधिक है।

ममता पर भाजपाईयों ने, विशेषकर योगी आदित्यनाथ ने तोहमत लगाया था कि,"वे मुस्लिम तुष्टिकरण की प्रवृत्ति से ओतप्रोत है।'' ममता का प्रत्युत्तर आक्रामक था। तभी ममता दहाड़ी थी," मैं ब्राह्मणी हूं। मुझे न समझाइये कि हिन्दू कौन है?'' फिर कहा, "मैं कट्टर हिन्दू हूं। नित्य चण्डी का पाठ करतीं हूं।'' वे दो बार अटलजी की काबीना में मंत्री रहीं हैं। ममता ने 11 मार्च,2021 को नंदीग्राम के शिव मंदिर में पूजा अर्चना किया था। नामांकन के पूर्व पैर में चोट भी यहीं खाई थी। और हार भी गयीं। उनके भाजपाई प्रतिद्वंदी विजेता शुभेन्दु अधिकारी ने टोका,"ममता ने पूजा गलत रीति से की थी। उन्हें कलमा पढ़ना चाहिये था।''

गत माह अखिलेश यादव के समर्थन में लखनऊ और वाराणसी की रैलियों में ममता पधारीं थीं। उन्होंने कहा था, "मैं लड़ाकू हूं। भाजपायी श्रीराम कहते हैं । सीता का नाम नहीं पुकारते।'' उन्होंने मुसलमानों से अपील की थी कि अपने वोट बंटने मत दो। सिर्फ साईकिल को दो। किन्तु हिन्दुओं से कहा था , '' धर्म के नाम पर वोट मत देना''

लेकिन धमाका तुरन्त बाद किया। बोली, "यूपी में भाजपा को हरायें।देश से मैं उन्हें हटा दूंगी।''मगर यूपी के वोटरों ने बात उलटी कर दी। ममता द्वारा विषय पलट देना कदापि नया नहीं है। उन्होंने 2008 में अवैध बांग्लादेशियों को ''आपदा'' बताया था। पर पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में अपनी जीत को मुक्कमल करने के लिए उन्हीं के साथ खड़ी दिख रही थीं।

एक महाशय हैं मार्कण्डेय काटजू । जो ममता के घनिष्ठ प्रशंसक हैं। उच्चतम न्यायालय के जज तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। देश की अर्थव्यवस्था सुधारने हेतु वे ममता का नाम सुझाते हैं। उच्चतम न्यायालय ने इन काटजू साहब को दण्डित किया था । क्योंकि वह एक बार बोले थे कि ''महात्मा गांधी ब्रिटिश राज के एजेंट थे। सुभाष चंद्र बोस जापान के गुर्गे थे।'' तो ऐसे है ममता के समर्थक ! यूपी के वोटर भली भांति जान गये कि ममता के समर्थक कैसे हैं, इसीलिए उन्होंने ममता की बात नहीं मानी। और वह जिसके समर्थन में आईं , उसको जिताने की जगह भारतीय जनता पार्टी को जिता कर रख दिया। ममता ने प्रधानमंत्री बनने के लिए जो नया अवतार धारण किया है। यह नया अवतार उन्हें लोकसभा तक पहुँचा पायेगा या नहीं? लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में इतिहास ममता का मूल्यांकन जो करेगा, उससे ममता के समर्थकों,ममता की आने वाली पीढ़ियों और ममता के पार्टी के कार्यकर्ताओं को बहुत ख़राब लगेगा। ममता को चाहिए किअपने नये अवतार को ठोंक पीट कर पुराने अवतार में ढाल लें, यही उनके चिरजीवी होने का एकमात्र रास्ता है।

Ramkrishna Vajpei

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