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Bill Gates Y-Factor: मानव मल हाथ में लेकर मार्केटिंग भाई वाह! देखें Y-Factor...

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 11 Jan 2019 4:05 PM IST (Updated on: 9 Aug 2021 5:43 PM IST)
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Bill Gates Y-Factor: कभी सॉफ्टवेयर इंडस्ट्रीज के बेताज बादशाह रहे बिल गेट्स इन दिनों अपने लिए एक नये बाजार की तलाश में हैं। उनके मन मुताबिक सब कुछ चलता रहा तो जल्द ही गेट्स टॉयलेट के बाजार में कदम रखेंगे। बीते दिनों चीन के बीजिंग के टॉयलेट एक्सपो में जब मानव मल भरे एक जार को लेकर बिल गेट्स ने कदम रखा था तो शायद किसी को यह इलहाम नहीं रहा होगा कि उनका यह 'स्टैंड' किसी नये मिशन की तलाश की जगह नये बाजार के वजूद के लिए है।

स्वच्छता मिशन के लिए भारत ने विश्व बैंक से 1.5 बिलियन डॉलर बतौर कर्ज लिया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष का बजट 33 करोड़ रुपये का है। भारत ने विश्व बैंक से 0.50 बिलियन डॉलर कर्ज के मद में और मांगा है। गेट्स ने नये किस्म का एक टॉयलेट तैयार किया है, जिसमें मल और पानी के लिए गड्ढे की जरूरत नहीं होगी। प्रति व्यक्ति रोजाना इस्तेमाल पर 3.62 रुपये का खर्च आएगा। एक टॉयलेट की कीमत 6.80 लाख रुपये होगी।

अगर इसे बड़े पैमाने पर तैयार किया गया तो यह कीमत 35 हजार रुपये के आस पास आएगी। बदबू मिटाने के लिए गेट्स फाउंडेशन और स्विटजरलैंड की परफ्यूम कंपनी 'फर्मेनिश' ने टॉयलेट में 'स्मेल ब्लाकर' लगा रखा है। अकेले भारत में हर साल स्वच्छता के मद में 32 बिलियन डॉलर खर्च होते हैं, जबकि 2021 तक यह आंकड़ा 62 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। इस टॉयलेट का मॉडल भी बिल गेट्स के हाथ में बीजिंग एक्सपो में था। टॉयलेट के इस डिजाइन पर गेट्स फाउंडेशन ने दो सौ मिलियन डॉलर खर्च किए हैं। इतनी ही धनराशि और खर्च करने का इरादा है। बिल गेट्स दुनिया के दूसरे सबसे अमीर आदमी हैं। फोब्र्स के मुताबिक उनकी चल-अचल संपत्तियों का मूल्य 95.7 बिलियन डॉलर है। इस साल माइक्रोसॉफ्ट की सकल आय 16.57 बिलियन डॉलर रही। वैश्विक स्तर पर गेट्स को इस साल 110.36 बिलियन डॉलर अपने सॉफ्टवेयर कारोबार से मिले। वैश्विक स्तर पर उनके साफ्टवेयर 'विंडोज' का ही मार्केट शेयर 82.88 फीसदी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल एक लाख बच्चे डायरिया की बीमारी के चलते मर जाते हैं। इनमें से 90 फीसदी बच्चों को सुरक्षित और साफ पानी नहीं मिल पाता है। भारत में एक हजार पर 43 बच्चे जिंदगी के पहले साल ही दम तोड़ देते हैं।

दुनिया भर में टाॅयलेट न होने और प्रदूषित पानी की वजह से बीमारी तथा अन्य अनावश्यक मदों पर 223 बिलियन डॉलर का सालाना खर्च होता है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत पूरे देश को 2 अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच मुक्त होना है। गेट्स प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से प्रभावित हैं। इसमें योगदान करना चाहते हैं।

भारत में 2019 तक सात करोड़ पचास लाख टॉयलेट बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि स्वच्छ भारत मिशन के तहत बीते चार सालों में 85 मिलियन टॉयलेट बनाए जा चुके हैं। 2014 में खुले में शौच से मुक्त केवल 39 फीसदी आबादी थी जो अब 95 फीसदी हो गई है। देश के चार लाख पचास हजार गांव, 573 जिले खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। जबकि कुल छह लाख गांव और 699 जिले हैं।

अगस्त 2018 तक 82 फीसदी गांव ओडीएफ हो चुके हैं। गेट्स फाउंडेशन ने 2011 में 'वाटर, सैनीटेशन हंड हाइजीन' प्रोग्राम शुरू किया था। विश्व भर के 16 शोधकर्ताओं को गेट्स फाउंडेशन ने 'री इन्वेंट दि टॉयलेट चैलेंज' ग्रांट दी। 'री इन्वेंट दि टॉयलेट चैलेंज' का लक्ष्य ऐसे टॉयलेट बनाना था, जिससे मानव मल से कीटाणु हटाकर बिजली, साफ पानी व पोषक तत्व बनाए जा सकें। ये टॉयलेट बिना बिजली, पानी या सीवर लाइन के काम कर सकें।

टाॅयलेट में इस्तेमाल किये गये पानी को नये डिजाइन वाला टाॅयलेट इस कदर शुद्ध करेगा कि इससे सिंचाई हो सकेगी। आदमी भी स्नान करे तो कोई दिक्कत नहीं। मानव मल राख में तब्दील हो जाएगा, इसका खेतों में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इससे बिजली भी पैदा की जाएगी। चीन में 2020 तक 64 हजार पब्लिक टॉयलेट को गेट्स अपने नये टॉयलेट से 'रिप्लेस' करेंगे।

2013 में डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नालॉजी, मिलिंडा गेट्स फाउडेशन एवं बायोटेक्नालॉजी इंडस्ट्रीज रिसर्च काउंसिल ने मिलकर इस नये तकनीक वाले टॉयलेट पर भारत में काम शुरू किया। मार्च, 2014 में 'रि इनवेट द टॉयलेट' प्रदर्शनी भी लगाई। भारत में हर साल छह लाख लोग स्वच्छता न होने के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं। प्रतिवर्ष जीडीपी के छह फीसदी की क्षति उठानी पड़ती है। टॉयलेट की कमी की वजह से 25 फीसदी लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं। स्वच्छता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों, मानव श्रम की क्षति आदि के चलते देश को सालाना 106 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। पांच साल से कम आयु के आधे बच्चों पर सालाना दो सौ बिलियन डॉलर दवाओं के मद में खर्च करना पड़ता है। भारत में दस में से तीन लोग ऐसे हैं जिनके पास टॉयलेट नहीं है।

विश्व में मात्र 27 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनके पास घरों में शौचालय व सीवर है। दुनिया में नौ फीसदी बीमारियां प्रदूषित पानी और स्वच्छता की कमी के नाते होती हैं। 2.3 बिलियन लोग वैश्विक स्तर पर स्वच्छता मानदंडों को पूरा नहीं कर पाते। दुनिया में 61 फीसदी लोग सुरक्षित सेनिटेशन सुविधाएं नहीं पाते। दुनिया में 892 मिलियन लोग खुले में शौच के लिए अभिशप्त हैं। जबकि भारत में 522 मिलियन लोग खुले में शौच करते हैं।

टॉयलेट एक बिग बिजनेस है। तीन साल पूर्व विश्व की बड़ी कंपनियों, सोशल इन्वेस्टर्स, सैनीटेशन एक्सपट्र्स और नॉन प्रॉफिट संगठनों ने मिलकर टॉयलेट बोर्ड कोलिशन (टीबीसी) बनाया था। इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक विश्व को खुले में शौच से मुक्त कराना और पर्याप्त व समान स्वच्छता उपलब्ध कराना है। 'टॉयलेट इकोनॉमी' में बेशुमार अवसर हैं। यह बिजनेस सिर्फ बिल्डिंग बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें टॉयलेट फिटिंग्स, वेस्ट मैनेजमेंट, स्मार्ट टेक्नोलॉजी और डेटा कलेक्शन का काम भी शामिल है। टीबीसी के कार्यकारी निदेशक शेरिल हिक्स के अनुसार स्वच्छता सिस्टम को स्मार्ट इकोनॉमी में परिवर्तित करने का यह सदी का सबसे बड़ा अवसर है। प्रति वर्ष विश्व में टॉयलेटों से 3.8 ट्रिलियन लीटर मल व पानी निकलता है।

इसका ट्रीटमेंट करके साफ पानी, नवीनीकृत ऊर्जा, आर्गेनिक उर्वरक व प्रोटीन प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं। स्वच्छता इकोनॉमी में कैसे-कैसे अवसर हैं, इसका एक उदाहरण 'फर्मेनिश' कंपनी है जो परफ्यूम व फ्लेवर के कारोबार में है। फर्मेनिश इंडिया के चेयरमैन सतीश राव के अनुसार टायलेट्स की दुर्गंध विकासशील देशों में बड़ी समस्या है। कंपनी इसमें बड़ा अवसर देख रही है। इसी तरह भारत में 'स्वधा' नामक कंपनी ग्रामीण क्षेत्रों में टॉयलेट निर्माण का कारोबार कर रही है। माइक्रो साफ्ट की तरह गेट्स का इस बाजार पर भी एकाधिकार होगा। इसकी कोशिश जारी है।



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