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Feroze Gandhi: 'फिरोज़ गांधी की ये सच्चाई क्या पता है आपको', देखें Y-Factor...
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों थे फिरोज आप फिरोज गांधी का नाम जरूर जानते होंगे। यदि नहीं जानते होंगे, तो यह जरूर जानते होंगे कि इंदिरा गांधी के पति का नाम फिरोज गांधी था। फिरोज गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के दादा कहे जाएंगे। फिरोज गांधी का नाम आते ही आपके मन में तमाम तरह के सवाल आ जाते हैं। फिरोज गांधी को लेकर सोशल मीडिया में चलाये जा रहे विवादों से भी आपका साबका पड़ा ही होगा। उनको लेकर चलने वाले विवादों पर हम बात करेंगे।
फिरोज गांधी भारतीय संसद के एक अहम सदस्य थे। उन्होंने भ्रष्टाचार को खत्म करने का बीड़ा उठाया था। फिरोज गांधी का इलाहाबाद के आनंद भवन में प्रवेश इंदिरा गांधी की मां कमला नेहरू के जरिये हुआ था। वाकया यह है कि कमला नेहरू इलाहाबाद के गर्वनमेंट काॅलेज में धरने पर बैठी थीं। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगा रही थीं। वह अचानक बेहोश हो गईं। फिरोज दोस्तों के साथ दीवार पर बैठ कर नजारा देख रहे थे। पर उनके बेहोश होते ही कूद कर उनके पास पहंुच गये। कमला नेहरू को पेड़ की छांव में ले जाया गया। पानी के छींटे डाले गये। कमला नेहरू की बेहोशी की वजह उस दिन की गर्मी थी। बाद में फिरोज, कमला नेहरू को आनंद भवन ले गये। फिर यह सिलसिला शुरू हुआ कि धरना प्रदर्शन के लिए कमला नेहरू जहां जाती वहां फिरोज गांधी को लेकर जाती।
1942 में इंदिरा गांधी और फिरोज का विवाह हुआ। इंदिरा गांधी की पहल पर केरल में नम्बूदरीपाद की सरकार बर्खास्त करने के सवाल पर इंदिरा और फिरोज के राजनीतिक रिश्ते बहुत खराब हुये। उस समय इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। नम्बूदरीपाद की सरकार बर्खास्तगी के फैसले पर इंदिरा और फिरोज के बीच इतनी तेज बहस हुई कि उन्होंने उसी दिन से प्रधानमंत्री आवास नहीं जाने का संकल्प लिया। जीते जी गये भी नहीं। उनका पार्थीव शरीर ही तीन मूर्ति भवन गया। उन दिनों भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पिता पं. जवाहरलाल नेहरू थे, जो तीन मूर्ति में रहते थे। इंदिरा गांधी से नोकझोंक के पहले ही फिरोज ने मूदड़ा कांड में लेनेदेन के सवाल पर नेहरू सरकार को संसद में इस कदर घेरा कि वित्तमंत्री रहे टी.टी. कृष्णामचारी को इस्तीफ देना पड़ा।
वे कांग्रेस के सांसद थे। पर विपक्ष के अनआफीशियल प्रवक्ता थे। फिरोज लोकतंत्र के हिमायती थे। 1957 में जब वह दूसरी बार रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे और उन्हें पता चला कि उनके पुराने प्रतिद्धंदी नंद किशोर नाई के पास जमानत के लिए पैसे नहीं हैं। तो उन्होंने नंद किशोर को बुलाकर अपने पास से पैसे दिये। फिरोज अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक थे। उस कालखंड में संसद के भीतर कुछ भी कहा जा सकता था। लेकिन कोई पत्रकार अगर इसे लिखता था तो उसे सजा मिलती थी। फिरोज ने इसके खिलाफ एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया जो बाद में फिरोज गांधी प्रेस लाॅ के नाम से जाना गया। इंदिरा और फिरोज के बीच रिश्ते काफी उलझे हुए थे। शादी के एक साल बाद ही दोनों अलग रहने लगे थे।
इंदिरा दिल्ली में और फिरोज लखनऊ में रहते थे। 7 सितंबर, 1960 को फिरोज को दिल का दौरा पड़ा। वह खुद कार चला कर विलिंग्टन अस्पताल पहुंचे। 8 सितंबर को सुबह जब फिरोज ने प्राण त्यागे तब इंदिरा गांधी उनके पास खड़ी थीं। वह रात को ही त्रिवेंद्रम हवाई अड्डे से लौट आई थीं। इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाली कैथरिन फ्रैंक ने लिखा है कि इंदिरा ने जोर दिया कि वो खुद फिरोज के शव को नहला कर अंतिम संस्कार के लिए तैयार करेंगी। उस समय वहां कोई मौजूद नहीं रहेगा। नयनतारा सहगल की मानें तो नेहरू अकेले कमरे में बैठे हुए बार-बार कह रहे थे कि फिरोज इतनी जल्दी चले जाएंगे उन्हें उम्मीद नहीं थी। 9 सितंबर को तिरंगे में लिपटे फिरोज की अंत्येष्टि दिल्ली के निगम बोधघाट पर हुई। राजीव गांधी ने फिरोज की चिता को आग लगाई। कहा जाता है जब फिरोज को पहली बार दिल का दौरा पड़ा था, तब उन्होंने अपने दोस्तों से कहा था कि उनकी अंत्येष्टि हिंदू रीति से हो।
उन्हें पारसियों के अंतिम संस्कार का तरीका पसंद नहीं था। जिसमें शव को चीलों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था। हालांकि इंदिरा गांधी ने फिरोज के शव के सामने पारसी रीति से गेह सारनू पढ़ा। उनके मुंह पर एक कपड़े का टुकड़ा रख कर अहनावेति का पहला अध्याय पूरा पढ़ा। फिरोज के अस्थि कलश संगम में प्रवाहित किये गये। कुछ हिस्से सूरत के पुश्तैनी कब्रगाह और कुछ इलाहाबाद के परसी कब्रगाह में दफनाये गये। फिरोज गांधी ने शुरुआती पढ़ाई इलाहाबाद के सी.ए.वी. काॅलेज से की थी। फिरोज की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने कहा था कि मुझे फिरोज की अचानक हुई मौत ने बुरी तरह हिला दिया। मैं फिरोज को पसंद नहीं करती थी पर प्यार करती थी। जब फिरोज ऊपर गये तो मेरी जिंदगी में सारे रंग मेरा साथ छोड़ गये।