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International Women's Day 2022: महिलाएं काम करने की मशीन नहीं, सोच बदलने की जरूरत

International Women's Day 2022: महिलाएं काम करने की मशीन नहीं हैं। अब उनके बारे में पुरुषों की सोच बदलने की जरूरत है।

B.K Kushwaha
Report B.K KushwahaPublished By Deepak Kumar
Published on: 6 March 2022 2:18 PM GMT (Updated on: 6 March 2022 3:55 PM GMT)
International Womens Day 2022
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International Women's Day 2022

International Women's Day 2022: बरसों से हमारे समाज का एक तबका महिलाओं को समाज और देश निर्माण के लिए अवांछनीय बताता रहा है और उन्हें निर्बल रखता ही बेहतर समझता आया है। उनके मुताबिक एक महिला की अपनी कोई इच्छा या सपने नहीं होने चाहिए, उनके हिसाब से महिलाओं की जिम्मेदारी समाज और परिवार की जरुरतों को पूरा करना ही है। ऐसे में जो महिलाएं समाज में आगे बढ़ना चाहती हैं उन महिलाओं के साथ कदम कदम पर पक्षपात किया जाता है और उन्हें अपने अधिकार के प्रति लड़ने की आजादी तक नहीं होती।

महिला अपनी अहम भागीदारी निभा रही है: रेखा आर्य

महिला शिक्षक संगठन (women teachers organization) की मोंठ ब्लॉक अध्यक्ष रेखा आर्य (Month Block President Rekha Arya) ने कहा कि घर का काम हो या फिर खेल का मैदान महिलाएं आज हर काम में अपनी अहम भागीदारी निभा रही हैं। इस आधुनिक युग में महिलाएं अपने सारे बंधनों को तोड़कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर ही नहीं, उनसे एक कदम आगे बढ़ रही हैं। फिर चाहे शिक्षा हो फिर साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा और खेल में भारत की महिला खिलाड़ियों ने दुनिया के सामने अपना लौहा मनवाया है।

भारत की खेल महिलाओं ने भारत का नाम किया है रोशन: प्रतिमा कुशवाहा

महिला शिक्षक संगठन (women teachers organization) की जिलाध्यक्ष प्रतिमा कुशवाहा (District President Pratima Kushwaha) ने कहा कि घरेलू खेलों से आगे बढ़कर दुनिया भर में पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं। वह हरखेल में बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं। सीमित संसाधनों का रोना रोने के बजाय अपनी मेहनत और संघर्ष से उन सभी चुनौतियों को पार कर रही हैं जो उनके रास्ते में बाधा बनकर खड़ी हो रही हैं। महिला खिलाड़ियों ने भारत में एक रोल मॉडल की भूमिका निभाई है, बल्कि दुनिया में भारत का नाम रोशन भी किया है।

काम करने की मशीन समझना: निशा शर्मा

महिला शिक्षक संगठन (women teachers organization) की बड़ागांव ब्लॉक अध्यक्ष निशा शर्मा (Baragaon Block President Nisha Sharma) ने कहा कि अक्सर शादी के बाद पत्नी पर घर के हर काम की जिम्मेदारी आ जाती है। पति भी पत्नी को काम करने की मशीन समझ लेते हैं। महिला गृहणी हो या नौकरीपेशा हो लेकिन घर के पूरे काम की जिम्मेदारी उसकी ही होती है। ऑफिस से वापस आकर महिलाएं घर के काम भी करती हैं, वहीं अगर महिलाएं घर पर रहती हैं तो पति को लगता है कि घर पर पत्नी आराम ही करती है, क्योंकि घर के काम उन्हें काम महसूस नहीं होते। किसी भी महिला को पुरुष की यह बात अच्छी नहीं लगती।

घर-परिवार की जिम्मेदारी डालना: दीपा यादव

महिला शिक्षक संगठन (women teachers organization) की जिला महामंत्री दीपा यादव (District General Secretary Deepa Yadav) ने कहा है कि भारत में महिलाओं पर ही घर गृहस्थी की सारी जिम्मेदारी होती है। पुरुषों का मानना होता है कि घर के हर काम और बच्चों व बड़ों की देखभाल करना महिलाओं का कर्तव्य है। लेकिन महिलाओं का पुरुषों की यह सोच पसदं नहीं होती। गृहस्थ जीवन में दोनों है, ऐसे में पत्नी और पति दोनों के ऊपर घर की जिम्मेदारी समान होनी चाहिए।

यह कानून सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर लागू होता है: आरिफा बानो

महिला शिक्षक संगठन (women teachers organization) की मऊरानीपुर ब्लॉक अध्यक्ष आरिफा बानो (Mauranipur Block President Arifa Bano) का कहना है कि हर काम काजी महिला के लिए छह महीने के मातृत्व अवकाश को सुनिश्चित करता है। यह उसके नौकरी के अधिकार और मातृत्व अवकाश के दौरान पूरी सैलरी को सुनिश्चित करता है। यह कानून हर उस सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर लागू होता है, जहां 10 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं। मैटर्निटी बेनिफिट (एमेंडमेंट) बिल या मातृत्व लाभ (संशोधन) बिल 11 अग्सत 2016 को राज्यसभा और 9 मार्च,2017 को लोकसभा में पास हुआ। 27 मार्च 2017 को यह कानून बना, हालांकि मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट 1961 में ही लागू हुआ था, लेकिन तब अवकाश सिर्फ तीन महिने का हुआ करता था, 2017 में इसे बढ़ाकर छह महीने कर दिया गया है।

पिता की संपत्ति को लेकर महिलाओं का अधिकार: अलका गुप्ता

महिला शिक्षक संगठन (women teachers organization) की बबीना ब्लॉक अध्यक्ष अलका गुप्ता (Babina Block President Alka Gupta) का कहना है कि आजाद भारत में महिलाओं के लिए लाया गया सबसे ऐतिहासिक और सबसे जरुरी कानून है हिंदू सक्सेशन एक्ट या हिंदू उत्तराधिकार कानून (2005), हालांकि, ऐसा कानून 1956 के नाम से पहले भी था, लेकिन उसमें लड़के और लड़की के लिए भेदभावपूर्ण नियम थे, उस कानून में लड़कियों का पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था। पिता की सारी संपत्ति लड़कों को मिलती थी, 2005 में इस कानून में संशोधन किया गया और 9 सितंबर ,2005 में यह लागू हुआ।

नए कानून में पुराने लैंगिक भेदभाव को खत्म किया गया और बड़ा फैसला सुनाया गया। न्यायालय में पैतृक संपत्ति में भी लड़कियों को बराबर का अधिकार देने की घोषणा की। समान संपत्ति का अधिकार अब तक सिर्फ पिता की अर्जित हुई संपत्ति पर ही लागू होता था। पैतृत संपत्ति अब भी स्वत: ही बेटों की होती थी, लेकिन अब नए कानून के मुताबिक पैतृत संपत्ति में भी बेटे और बेटी को बराबर का अधिकार सुनिश्चित किया गया है।

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Deepak Kumar

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