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Pushpa Ganediwala : स्किन टू स्किन केस वाली पुष्पा गनेडीवाला कौन हैं, पूर्व CJI रंजन गोगोई ने बनाया था जज
Pushpa Ganediwala Kaun Hai: एडीशनल जज पुष्पा वी गनेडीवाला इसी साल जनवरी महीने में पॉक्सो एक्ट संबंधी दो मामलों में फैसलों को लेकर चर्चा में आईं। सबसे ज्यादा चर्चा एक 12 साल की बच्ची के यौन शोषण से जुड़ा है।
Pushpa Ganediwala Kaun Hai : स्किन टू स्किन केस (Skin To Skin Case) पर अदालत के फैसले से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने भले ही बांबे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा रखी है लेकिन विवादित फैसला करने वाली जज पुष्पा वीरेंद्र गनेडीवाला (Pushpa Ganediwala) अगले साल तक महाराष्ट्र हाईकोर्ट में एडीशनल जज (Maharashtra High Court Additional Judge) बनी रहेंगी। उन्हें पूर्व चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) ने नियुक्त किया था। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने विवादित फैसलों के बाद जनवरी 2021 में उनके स्थायी जज बनने पर रोक लगा दी लेकिन केंद्र सरकार ने एडीशनल जज के तौर पर उनकी नियुक्ति बनाए रखी है।
यौन शोषण मामले में स्किन का संपर्क में आना जरूरी
पॉक्सो एक्ट के तहत किसी नाबालिग के यौन शोषण के लिए स्किन टू स्किन यानी त्वचा का संपर्क में आना जरूरी मानने वाली बांबे हाईकोर्ट की जज पुष्पा वी गनेडीवाला 12 फरवरी 2022 तक अपने पद पर तैनात रहेंगी। 13 फरवरी 2021 के आदेश से भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें यह अनुमति दी है। उनको हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाने का प्रस्ताव था लेकिन पॉक्सो एक्ट के दो विवादित फैसलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 24 अगस्त को मामले की सुनवाई की तो अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि इस तरह तो अगर कोई अपने हाथ में सर्जिकल दस्ताने पहनकर किसी महिला को छूता है तो वह अपराध ही नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित व अजय रस्तोगी ने जस्टिस गनेडीवाला के दोनों विवादित मामलों में सुनवाई जारी रखने का फैसला किया है।
कौन हैं पुष्पा वी गनेडीवाला
Pushpa Ganediwala Profile- महराष्ट्र के बांबे हाईकोर्ट में पुष्पा वी गनेडीवाला एडीशनल जज के पद पर तैनात हैं। उन्हें 13 फरवरी को एडीशनल जज पद पर एक साल के लिए सेवा विस्तार मिला है। हाईकोर्ट में जज पद पर उनकी तैनाती तब चर्चा में आई थी जब उनके चयन प्रस्ताव को बांबे हाईकोर्ट ने रोक दिया था। हाईकोर्ट ने हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया था कि उनका चयन प्रस्ताव क्यों निरस्त किया गया लेकिन इसके एक साल बाद 2019 में अचानक उनको एडीशनल जज बना दिया गया। उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने की है जो अयोध्या मामले का फैसला करने वाली पीठ के चीफ रहे हैं। रिटायर होने के बाद वह राज्यसभा सदस्य बन चुके हैं। एडीशनल जज बनने से पहले पुष्पा वी गनेडीवाला बांबे हाईकोर्ट की रजिस्ट्रार जनरल व महाराष्ट्र में जिला जज के पद पर काम कर चुकी हैं।
दो विवादित फैसलों से चर्चा में आई
Pushpa Ganediwala Controversial Verdicts - एडीशनल जज पुष्पा वी गनेडीवाला इसी साल जनवरी महीने में पॉक्सो एक्ट संबंधी दो मामलों में फैसलों को लेकर चर्चा में आईं। सबसे ज्यादा चर्चा एक 12 साल की बच्ची के यौन शोषण से जुड़ा है। इस मामले में 39 साल के आरोपी के खिलाफ शिकायत आई थी कि उसने 12 साल की बच्ची को अकेले पाकर उसे दबोचा व उसके स्तन दबाए। निचली अदालत ने उसे पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी मानकर सजा सुनाई लेकिन जज गनेडीवाला ने अपने फैसले में आरोपी को पॉक्सो एक्ट से मुक्त कर दिया। उन्होंने कहा कि आरोपी ने कपड़े के अंदर हाथ डालकर ऐसा नहीं किया है। इस मामले में स्किन टू स्किन टच नहीं हुआ है इसलिए यह पॉक्सो एक्ट की धारा सात के तहत यौन हमला नहीं है।
आरोपी को आईपीसी की पूर्व से मौजूद धाराओं में तो दोषी माना लेकिन पॉक्सो एक्ट हटा लिया। इसके साथ ही उनका एक और फैसला आया जिसमें 26 साल के युवक पर अकेली युवती के बलात्कार का आरोप था। इस मामले में भी उन्होंने आरोपी यह कहकर आरोप मुक्त कर दिया कि बिना हाथापाई किए किसी युवती के कपड़े उतारकर अकेले आदमी के लिए रेप करना बेहद असंभव लगता है। यह सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की बात लगती है।
फैसलों की हुई तीखी आलोचना
गनेडीवाला के दोनों फैसलों की पूरी देश में तीखी आलोचना हुई। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने भी फैसले को गलत बताया। गुजरात की एक महिला ने जज गनेडीवाला को 150 कंडोम कोरियर से भेजकर अपना विरोध दर्ज कराया। वीरता सम्मान पाने वाली 13 साल की लड़की जेन सदावर्ते ने जज गनेडीवाला के फैसले को गलत बताया और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें तत्काल एडीशनल जज के पद से हटा दिया जाए। देश के कई महिला संगठनों व विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोगों ने भी उनके फैसले की कड़ी निंदा की। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने दोनों फैसलों को लागू करने पर रोक लगा दी। अब सुप्रीम कोर्ट दोनों मामलों की सुनवाई कर रहा है।
अमरावती में हुआ है गनेडीवाला का जन्म
Pushpa Ganediwala Ka Jeevan Parichay- महाराष्ट्र के अमरावती जिले परतवाड़ा में जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला का जन्म साल 1969 में हुआ। उन्होंने बीकॉम के बाद एलएलबी व एलएलएम की शिक्षा हासिल की है। नेट व सेट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह जज बनीं और 2007 में जिला जज के पद पर तैनात हो गईं। इसके बाद वह नागपुर में सेशन जज व मुख्य जिला जज भी रहीं हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट में रजिस्ट्रार जनरल नियुक्त होने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट जज बनने के लिए आवेदन किया। बांबे हाईकोर्ट में नए जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में उनका नाम शामिल था लेकिन ऐन मौके पर बांबे हाईकोर्ट ने उनके प्रस्ताव पर आपत्ति लगा दी। परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया और वह जज बनने में नाकाम रहीं। इसके एक साल बाद अचानक उनके प्रस्ताव पर पुनर्विचार किया गया और जज बनने में कामयाब हो गईं।
जस्टिस गनेडीवाला के कोविड संबंधी फैसले भी चर्चा में
Pushpa Ganediwala Covid-19 Related Order -जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला के कोविड संबंधी मामलों में आए फैसलों ने भी उन्हें मीडिया जगत में चर्चित किया। कोरोना की पहली लहर आने के बाद उन्होंने अक्टूबर 2020 में सरकारी अस्पतालों में एक पैनल बनाने का आदेश दिया जो गर्भवती महिलाओं को इलाज व डॉक्टरी सलाह की सुविधा उपलब्ध कराएगा। अदालत के सामने मामला आया था कि गर्भवती महिलाओं को कोविड 19 संक्रमित होने की वजह से अस्पतालों में घुसने नहीं दिया जा रहा है इससे ऐसी महिलाओं को इलाज नहीं मिल पा रहा है। तब जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि महिलाओं के साथ इस तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता। ऐसा भेदभाव दलित और अछूत समुदाय के लोगों के साथ किए जाने वाले व्यवहार जैसा है और समानता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला है।
महिला मामलों में पहले दिखा चुकी हैं संवेदनशीलता
महिलाओं से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में उन्होंने प्रेमी से ठुकराई गई गर्भवती युवती को बच्चे को जन्म देने के लिए प्रेरित किया। युवती ने अदालत में गर्भपात के लिए गुहार लगाई थी तब गर्भ में भ्रूण के 20 हफ्ते हो चुके थे। ऐसे में जच्चा—बच्चा दोनों की जान को खतरा था। तब जस्टिस गनेडीवाला ने आदेश दिया कि बच्चे को जन्म दिलाया जाए और अगर युवती उस बच्चे को नहीं रखना चाहती है तो उसे किसी दूसरे को गो दिया जा सकता है।
जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने साल 2019 में एक चर्चित फैसला वेश्यालय से बचाकर लाई गई लड़की के मामले में सुनाया है। इस मामले में एक महिला जो खुद को लड़की बॉयोलॉजिकल मां बताकर कोर्ट में पेश हुई थी। लड़की को अपनी सुरक्षा में लेने के लिए महिला ने झूठे दस्तावेज भी अदालत में पेश किए थे जिसमें फर्जी आधार कार्ड व पैन कार्ड था। इस पर जस्टिस गनेडीवाला ने महिला पर तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने बांबे हाईकोर्ट के उस फैसले में भी भूमिका निभाई है जिसमें पैरोल को कैदियों का सीमित अधिकार करार दिया गया है। हाईकोर्ट की इस बेंच में जस्टिस गनेडीवाला भी सदस्य रहीं। बेंच ने फैसला दिया कि कैदी के अच्छे व्यवहार के आधार पर मिलने वाला पैरोल का मतलब प्रशासन की ओर से की जाने वाली कृपा नहीं है। यह कैदी का सीमित अधिकार है। वह एक साल में कई बार पैरोल पर बाहर आ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट करेगा जस्टिस के कार्य का मूल्यांकन
जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला के काम—काज का मूल्यांकन करने के बाद सुप्रीम कोर्ट उन्हें स्थायी जज बनाने के बारे में फैसला कर सकता है। एडीशनल जज के तौर पर दो साल काम करने के बाद उनके स्थायी जज बनने का प्रस्ताव तो रोक दिया गया है लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें एक साल के लिए एडीशनल जज बनाए रखने का फैसला किया है। 12 फरवरी 2022 से पहले उनके काम—काज का मूल्यांकन करने के बाद उन्हें स्थायी जज बनाने या एडीशनल जज पर अगले एक साल और काम करने का मौका देने का विकल्प मौजूद है। तब तक वह बांबे हाईकोर्ट में एडीशनल जज के तौर पर काम करती रहेंगी।