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Vijay Lakshmi Pandit: ब्रिटिश कैबिनेट में जगह बनाने वाली इकलौती भारतीय महिला

Vijay Lakshmi Pandit : श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित का जन्म आनन्द भवन इलाहावाद में 18 अगस्त 1900 को हुआ था । उनके पिता मोतीलाल नेहरू तथा माता स्वरूप रानी देवी थे ।

AKshita Pidiha
Written By AKshita PidihaPublished By Monika
Published on: 18 Aug 2021 7:14 AM IST
Vijay Lakshmi Pandit photo
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विजय लक्ष्मी पंडित (फोटो : सोशल मीडिया ) 

Vijay Lakshmi Pandit: 18 अगस्त का दिन हम विजय लक्ष्मी पंडित (Vijay Lakshmi Pandit) की जन्मतिथी के रूप में याद करते हैं। विजयलक्ष्मी पंडित भारत की बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न महिलाओं में से एक थीं । वे राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी थीं । रूस और अमेरिका में भारतीय राजदूत के पद पर रहते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का अध्यक्ष बनने का गौरव भी हासिल किया था ।

श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म आनन्द भवन इलाहावाद में 18 अगस्त 1900 को हुआ था । उनके पिता मोतीलाल नेहरू (Vijay Lakshmi Pandit Father Motilal Nehru) तथा माता स्वरूप रानी देवी (Vijay Lakshmi Pandit Mother Swaroop Rani Devi) थे । भाई जवाहरलाल नेहरू (Vijay Lakshmi Pandit Brother Jawaharlal Nehru) का प्रभाव विजयलक्ष्मी के व्यक्तित्व निर्धारण पर पड़ा । भाई जवाहर की तरह उनका प्रारम्भिक जीवन भी एक राजकुमारी-सा व्यतीत हुआ । उन्होंने घर पर रहकर अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी । वह शिक्षा के साथ-साथ राजनीति साहित्य, घुड़सवारी आदि में भी रुचि लेती थीं । उनका परिवार राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था । अत: उन पर उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था ।

असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ

वह सक्रिय राजनीति में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होकर आयी थीं । उनका विवाह सन् 1921 में श्री रणजीत सीताराम पण्डित (Vijay Lakshmi Pandit husband Ranjit Sitaram Pandit) , जो कि एक सुप्रसिद्ध वकील, इतिहासकार थे, उनसे हुआ । उनकी 3 पुत्रियां चन्द्रलेखा, नयनतारा और रीता थीं ।

विजय लक्ष्मी पंडित (फोटो : सोशल मीडिया )

देश की सेवा का जज्बा

उनके मन में साधारण गृहिणी बनकर अपना जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा देश की सेवा में जीवन देने का ऐसा विचार आया कि सर्वप्रथम 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में गांधीजी के साथ जेलयात्रा पर गयीं । फिर 1934 में इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड की सम्मानित सदस्य निर्वाचित हईं, साथ ही शिक्षा समिति का अध्यक्ष पद भी उन्हें प्राप्त हुआ । 1935 एवं 1937 में केबिनेट स्तर के चुनावों में शासन मन्त्री बनीं ।उन्होंने गांवों की दशा सुधारने के लिए पंचायत राज व्यवस्था अधिनियम भी पारित करवाया । 1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में 4 माह जेल में बिताये । 1942 के "भारत छोड़ो आन्दोलन" में उन्हें अस्वस्थतावश 9 माह उपरान्त रिहा कर दिया गया ।

विजय लक्ष्मी पंडित (फोटो : सोशल मीडिया )

पीड़ितों की सेवा

रिहा होते ती उन्होंने अकाल पीड़ित भारतीयों की सेवा हेतु "बंगाल राहत कोष" भी गठित किया । सन् 1944 में उन्हें अपने पति के स्वर्गवास का दुःख झेलना पड़ा । वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष भी रही थीं ।

अमेरिकी लोगों की दुर्भावना को अपने प्रभावशाली वक्तव्य द्वारा दूर करने का प्रयास किया । 1946 में उन्हें भारतीय शिष्ट मण्डल की अध्यक्षा व प्रतिनिधि के रूप में न्यूयार्क में सम्पन्न होने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में भेजा गया ।

दक्षिण अफ्रीकी सरकार के द्वारा भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों का ऐसा मार्मिक वर्णन किया कि अमेरिका के समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर उन्हें साहसिक नारी के रूप में स्थान दिया गया । 1953-1954 में संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा की अध्यक्षता की ।

विजय लक्ष्मी पंडित (फोटो : सोशल मीडिया )

भारत की स्वतंत्रता के बाद

देश स्वतंत्र होने के बाद विजया लक्ष्मीजी ने 1949 से 1952 तक अमेरिका में भारतीय राजदूत, 1954 से 1961 तक ब्रिटेन में उच्चायुक्त तथा स्पेन और आयरलैण्ड के राजदूतों के पद पर अपनी सेवाएं प्रदान की । 1962 में महाराष्ट्र की गवर्नर रहीं । 1967 में लोकसभा सीट फूलपुर से निर्वाचित हुईं ।

इंदिरा गांधी से मतभेद और फिर सन्यास

कुछ समय तक एकाकी जीवन व्यतीत कर 1975 में उन्होंने इन्दिरा गांधी के आपातकाल के विरुद्ध जनता पार्टी के समर्थन में खुलकर प्रचार किया । इसके पश्चात् इन्दिरा गांधी और उनके बीच कटुता इतनी अधिक बढ़ी कि इन्दिरा गांधी ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद उनकी घोर उपेक्षा करनी शुरू कर दी थी, जिससे व्यथित होकर उन्होंने राजनीति से लगभग सन्यास ही ले लिया था । अपने जीवन का अन्तिम समय राजपुर में बिताया, जहां 2 दिसम्बर 1990 में उनका निधन हो गया ।

विजय लक्ष्मी पंडित (फोटो : सोशल मीडिया )

राजनीति से जुड़ी रोचक बातें (interesting facts about politics)

1937 से 1939 तक यूनाइटेड प्रोविन्सेज में 'लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट' और 'पब्लिक हेल्थ' का डिपार्टमेंट संभाला। दोनों ही डिपार्टमेंट गुलाम भारत में आज के भारत की नींव रख रहे थे।

1946 में संविधान सभा में चुनी गईं।औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं।

आज़ादी के बाद 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रहीं. ये दौर भारत के लिए बड़ा सनसनीखेज था. क्योंकि सुभाषचंद्र बोस के रूस में होने की अफवाह उड़ती रहत।

अगले दो साल अमेरिका की राजदूत रहीं. मतलब कम्युनिस्ट देश से सीधा कैपिटलिस्ट देश में! वो भी तब, जब दोनों देशों में कोल्ड वॉर चल रहा थ।

फिर 1953 में यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं। मतलब पहली औरत, जो वहां तक पहुंची भारत का सिक्का जमाने।

1955 से 1961 तक इंग्लैंड, आयरलैंड और स्पेन में हाई कमिश्नर रहीं. 1962 से 1964 तक महाराष्ट्र की गवर्नर रहीं।

1964 में नेहरू का निधन हुआ।और विजया नेहरू के क्षेत्र फूलपुर से लोकसभा में चुनी गईं।

भाई जवाहर लाल नेहरु के साथ विजय लक्ष्मी पंडित (फोटो : सोशल मीडिया )

विजया के जीवन की तीन विवादस्पद बातें

पिता मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद में द इंडिपेंडेंट अखबार चकते थे। 1919 में इस अखबार के एडिटर के लिए उन्होंने सैय्यद हुसैन नाम के धांसू लड़के को बुलाया।शुरुआत में हुसैन को कम ही लोग जानते थे पर एक बार गांधीजी के बारे मे उन्होंने लिखकर डंका बजा दिया। कुछ समय बाद 19 की विजया और 31 के हुसैन एक-दूसरे से बंध गए।समाजवाद और धार्मिक एकता का ड्रम बजाने वाला नेहरू परिवार इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पाया।ठीक उसी तरह जैसे इंदिरा-फिरोज के रिश्ते को नेहरू ने नकार दिया था। हुसैन गांधी के भक्त थे।और गांधी ने खिलाफत आन्दोलन का प्रवक्ता बनाकर हुसैन को इंग्लैंड भेज दिया। पर अफवाह उड़ती रहती कि दोनों ने शादी कर ली है।पर हुसैन से नेहरू का रिश्ता ख़त्म हुआ नहीं था।उन्होंने हुसैन को मिस्र का राजदूत बना के भेज दिया।कहते हैं कि विजया और हुसैन एक-दूसरे को भूल नहीं पाए थे।उस समय इंटरनेशनल मीडिया में इस बात की बड़ी चर्चा होती थी।मिस्र में ही हुसैन चल बसे।विजया उनकी कब्र पर फूल चढ़ाने जाती रहती थीं।

विजया के साथ दूसरा विवाद जुड़ा सुभाष चन्द्र बोस को लेकर रहा ।हमेशा ऐसा कहा जाता रहा कि बोस मरे नहीं हैं।उनको रूस में रखा गया है। मॉस्को में रामकृष्ण मिशन के मुखिया स्वामी ज्योतिरूपानंद ने कहा था कि एक बार विजया को रूसी अधिकारी ने सुभाष से मिलाया था।

तीसरा विवाद इंदिरा गांधी के साथ था। इंदिरा की मां कमला नेहरू एक साधारण परिवार से आती थीं। नेहरू परिवार बहुत हाई प्रोफाइल से था तो हमेशा कमला नेहरू को शर्म महसूस होती थी। जिस वजह से विजय और इंदिरा के बीच कलह होती रहती थी।प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा ने बुआ को एकदम साइड कर दिया। भाई के सामने ताकतवर रहने वाली विजया लाचार हो गईं।जब इंदिरा ने देश में इमरजेंसी लगाई, तो विजया खुल के इंदिरा के खिलाफ आ गई। जब इंदिरा 1977 का चुनाव हार गई तब विजया को अच्छा लगा था ।

श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित को अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टर की मानद उपाधि से भी विभूषित किया गया । वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, वक्ता, मन्त्री, राजदूत, देशभक्त महिला होने के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महिला थीं ।विजय लक्ष्मी के उन्होंने "सो आयी बिकेम ए मिनिस्टर", "प्रिजन डेज", "द स्पोक ऑफ हैप्पीनेस" आदि पुस्तकें लिखकर कुशल लेखकीय व्यक्तित्व का परिचय दिया । हर भारतीय महिला को इन पर गर्व रहेगा ।1990 में विजया की मौत हुई। नयनतारा सहगल विजया की ही बेटी है। वही नयनतारा, जिन्होंने 2015 में अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था। हिंदुस्तान की सबसे बेहतरीन औरतों में विजय लक्ष्मी पंडित का नाम हमेशा आगे रहेगा।

Monika

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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