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सीनोवैक वैक्सीनः ये भगाएगी कोरोना, चीन ला सकता है सबसे पहले

कोविड-19 की वैक्सीन के लिए चल रहे 200 से ज्यादा प्रोजेक्ट नयी टेक्नोलॉजी यानी आरएनए या फिर जेनेटिकली मॉडिफाइड वायरस पर आधारित हैं।

Newstrack
Published on: 26 Aug 2020 11:25 AM GMT
सीनोवैक वैक्सीनः ये भगाएगी कोरोना, चीन ला सकता है सबसे पहले
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सीनोवैक वैक्सीनः ये भगाएगी कोरोना, चीन ला सकता है सबसे पहले

लखनऊ: कोविड-19 की वैक्सीन के लिए चल रहे 200 से ज्यादा प्रोजेक्ट नयी टेक्नोलॉजी यानी आरएनए या फिर जेनेटिकली मॉडिफाइड वायरस पर आधारित हैं। लेकिन वैक्सीन की रेस में चीन की कम्पनी सैकड़ों साल पुराने तरीके पर दांव लगाये हुए है।

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सीनोवैक वैक्सीनः ये भगाएगी कोरोना, चीन ला सकता है सबसे पहले

बीजिंग स्थित जानीमानी फार्मा कम्पनी सीनोवैक बायोटेक लिमिटेड और सिनोफार्म ने जुलाई में कोरोना की वैक्सीन 'कोरोनावैक’' के अंतिम चरण का ट्रायल शुरू किया था। इस वैक्सीन में कोरोना वायरस के निष्प्रभावी स्वरूप का इस्तेमाल किया जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि ये मानव शरीर में पहुँच कर इम्यून सिस्टम को असली वायरस को पहचाने और उसे नष्ट करना सिखाएगा। सीनोवैक का अंतिम चरण का ट्रायल ब्राजील में और सीनोफार्म का ट्रायल यूएई में चल रहा है।

चीनी सेना को लगाये जा रहे टीके

अभी चीनी कंपनियों की वैक्सीन का अंतिम चरण का ट्रायल पूरा नहीं हुआ है लेकिन इनके टीके चीनी नागरिकों को लगाये जा रहे हैं। खबरों के मुताबिक आपातकालीन उपयोग के नियम के तहत 22 जुलाई से ही टेके लगाने का काम शुरू कर दिया गया था। इसकी वजह सर्दियों के मौसम में बीमारी का प्रसार रोकना है।

सीनोवैक सबसे आगे

वैक्सीन डेवलपमेंट की टाइमिंग की बात करें तो सीनोवैक अन्य संभावित वैक्सीनों से काफी आगे थी। जहाँ अन्य जगहों पर वैक्सीन के नए मॉडल्स पर काम किया जा रहा था कि पुख्ता सेफ्टी और तेज प्रोडक्शन की सहूलियत प्राप्त की जा सके वहीं सीनोवैक परंपरागत रास्ते पर चल रही थी।

आज की स्थिति की बात करें तो सीनोवैक की वैक्सीन का कमर्शियल प्रोडक्शन, किसी भी अन्य कंपनी की तरह जल्द से जल्द शुरू हो सकता है। सीनोवैक अमेरिका की मोडेरना या यूके की ऑक्सफ़ोर्ड-आस्ट्रा ज़ेनेका के बराबर ही आगे बढ़ रही है।

सीनोवैक वैक्सीनः ये भगाएगी कोरोना, चीन ला सकता है सबसे पहले

सैकड़ों साल पुराना सिद्धांत

वैक्सीन डेवलपमेंट के लिए सीनोवैक और सीनोफार्म का तरीका अन्य कंपनियों की तुलना में काफी पुराना है। सीनोवैक और सीनोफार्म उसी सिद्धांत पर काम कर रही हैं जिसपर चलते हुए 18वीं सदी के ब्रिटिश वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ने चेचक का टीका बनाया था। इम्यूनोलोजी के पितामह कहे जाने वाले एडवर्ड जेनर ने गाय में पाए जाने वाले हलके काऊपॉक्स वायरस से स्मालपॉक्स यानी चेचक का टीका बनाया था। सीनोवैक और सीनोफार्म इसी तकनीक पर चल रहे हैं जो सफल भी हो सकती है। इसे इस्तेमाल में लाना भी आसान होगा। वहीं अन्य कम्पनियाँ जिन रास्तों पर चल रहीं हैं वे नए हैं और पहले कभी अपनाये नहीं गए। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैक्सीन एक्सपर्ट माइकल किंच का कहना है कि हमें इतिहास से सीखना चाहिए और ये नहीं भूलना चाहिए कि बीते समय में कौन सा तरीका काम आया है।

नई बनाम पुरानी तकनीक

कोरोना की वैक्सीन डेवलप करने में ज्यादातर कंपनियों का अप्रोच असली वायरस की नक़ल बनाने का है। इसमें कोरोनावायरस के ख़ास स्पाइक प्रोटीन यानी ऊपरी सतह पर स्थित प्रोटीन जिससे मानव कोशिकाओं को संक्रमित करने में मदद मिलती है उसे कृत्रिम तरीके से बनाया जाता है। ऐसा अमाना जाता है कि यदि इम्यून सिस्टम उस प्रोटीन को ब्लॉक कर देता है तो वायरस का हमला निष्प्रभावी हो जाएगा। यानी हमला तो होगा लेकिन वो बेकार जाएगा।

लेकिन दूसरी ओर ये भी माना जाता है कि शरीर को पूरे वायरस या उसके अधिकांश हिस्से के प्रति एक्सपोज़ करना ज्यादा बेहतर है जिससे इम्यून सिस्टम को ज्यादा बेहतर तरीके से अपना टारगेट चुनने का मौक़ा मिल सकेगा। एड्स के प्रख्यात शोधकर्ता विलियम हेज़लटाइन का कहना है कि समूचे वायरस का एप्रोच इस तरह से लाभप्रद हो सकता है कि शरीर में वायरस के संग कई तरह की प्रोटीन पहुँचती हैं और इनमें से कई के द्वारा कोशिकाओं की इम्यूनिटी ट्रिगर हो सकती है।

सीनोवैक वैक्सीनः ये भगाएगी कोरोना, चीन ला सकता है सबसे पहले

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फ्रेज़र में रखने की जरूरत :

प्राचीन तकनीक के मुकाबले नयी तकनीक की एमआरएनए वैक्सीन को कोल्डचेन में रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे विकासशील देशों और ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन पहुंचाने में सहूलियत रहेगी। दूसरी ओर एक्टिव वायरस वाली सीनोवैक को 2 से 7 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ही स्टोर करना होगा। इसके अलावा सीनोवैक और सीनोफार्म वैक्सीन के साथ नियमित समय पर बूस्टर शॉट लेने होंगे जिसके अपनी अलग दिक्कतें होंगी।

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