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Article 370: आसान नहीं 370 को खत्म करना, देखें Y-Factor...

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 9 May 2021 9:15 PM IST (Updated on: 10 Aug 2021 3:21 AM IST)
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जब-जब कश्मीर में अशांति होती है। तब-तब अनुच्छेद 370 को खत्म करने की आवाज जनता की ओर से बुलंद होती है। ऐसे में जानना यह जरूरी है कि आखिर अनुच्छेद 370 है क्या? क्या इसे खत्म किया जा सकता है? यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। आजादी के समय जम्मू-कश्मीर के राजा हरी सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे। बाद में उन्होंने कुछ शर्तों के साथ भारत में विलय पर सहमति जताई। ये जो शर्तें थीं वही अनुच्छेद 370 का हिस्सा है।

गोपाल स्वामी आयंगर ने अनुच्छेद 306 (ए) के रूप में इसे संविधान में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने यह कहा कि जम्मू-कश्मीर की सीमाओं में युद्ध चल रहा है। राज्य की हालत आसमान्य तथा अशांत है। इस राज्य के प्रशासन का संचालन तब तक इन आसमान्य परिस्थितियों के अनुकूल किया जाए जब कि वैसी शांति स्थापित न हो जैसी कि अन्य राज्यों में है। बाद में यही 306 (ए) अनुच्छेद 370 हो गया।

इसे भाग 21 के तहत अस्थाई व संक्रमण कालीन प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था। हालांकि काफी बड़े तबके का यह मत था कि हैदराबाद रियासत का कोई सदस्य संविधान सभा में शामिल नहीं हुआ और उसका पूर्ण विलय कर लिया गया। यही स्थिति जूनागढ़ के साथ हुई। बड़ौदा रियासत का विलय तो विलय पत्र पर ही हो गया था। ऐसे में जब 557 अन्य रियासतों का भारत में विलय हुआ तब जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष रियायत क्यों?

नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच पांच माह तक चली मैराथन बैठकों के बाद अनुच्छेद 370 को संविधान में जोड़ा गया। जिसके चलते नेहरू और केंद्र के बीच एक समझौता हुआ। जिसमें यह तय किया गया कि इस राज्य में संविधान का 356 लागू नहीं होगा। नतीजतन, राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। 370 के चलते जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता और अलग राष्ट्रध्वज होता है। विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता है।

जम्मू-कश्मीर की संविधान की धारा 35 ए के मुताबिक भारत के भी राज्य का रहने वाला जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता। जम्मू-कश्मीर का कानून 35ए को संरक्षण देता है। जबकि पाकिस्तानी नागरिक अगर जम्मू-कश्मीर का स्थाई नागरिक बन सकता है। देश के अन्य राज्यों में केंद्र से 30 फीसदी अनुदान और 70 फीसदी ऋण के रूप में धनराशि मिलती है। जबकि कश्मीर को 90 फीसदी अनुदान और 10 फीसदी ऋण के रूप में दिया जाता है।

यही नहीं कश्मीर में नीति निर्देशक तत्व और मूल कर्तव्य लागू नहीं होते। हमारे संविधान के 130 ऐसे अनुच्छेद हैं जो जम्मू-कश्मीर में अपना प्रभाव नहीं रखते हैं। 100 अनुच्छेदों को कश्मीर के लिहाज से संशोधित किया गया है। 73वां तथा 74वां संविधान संशोधन तथा आरक्षण के प्रावधान पूरी तरह लागू नहीं हैं। इस राज्य में सूचना का अधिकार भी लागू नहीं है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360 जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। यह अनुच्छेद देश में वित्तीय आपातकाल लगाने से जुड़ा है। जब तक राज्य की ओर से सिफारिश न आये राष्ट्रपति आपातकाल नहीं लगा सकता।

2015 में सर्वोच्च अदालत ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि 370 को हटाने का फैसला सिर्फ संसद कर सकती है। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का कहना है कि संविधान के भाग 21 में अस्थाई प्रावधान शीर्षक होने के बावजूद अनुच्छेद 370 एक स्थाई प्रावधान है। अनुच्छेद 370 के खंड तीन के तहत न तो उसे निरस्त किया जा सकता है और न ही संशोधित किया जा सकता है। हाईकोर्ट कहता है कि जम्मू-कश्मीर बाकी राज्यों की तरह भारत में शामिल नहीं हुआ। इसने भारत के साथ संधि पत्र पर हस्ताक्षर करते समय अपनी संप्रभुता कुछ हद तक बरकरार रखी है।

संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। राज्य के लिए अलग संविधान की मांग हुई। 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई। नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का काम पूरा हुआ। 26 जनवरी 1957 को राज्य में यह विशष संविधान लागू हुआ।

2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की बात कही थी। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला धमकाते हैं कि 370 भारत और कश्मीर के बीच रिश्तों की एक कड़ी है। या तो 370 अनुच्छेद रहेगा। या फिर कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा। भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने वाली पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती का कहना है कि 370 ही है जो भारत को जम्मू से जोड़े हुए है।

जो जम्मू-कश्मीर में राजनीति करते हैं उनकेे बोल आप लोगों ने सुने हैं। उनके यही बोल हैं। राष्ट्रीय राजनीति करने वाली कांग्रेस और भाजपा में से किसी को भी जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार होने का सपना पूरा करने के लिए जम्मू-कश्मीर के नेताओं और उनकी पार्टी पीडीपी या नेशनल कांफ्रेंस से मदद की दरकार रहती है। ऐसे में इन लोगों से 370 समाप्त करने की उम्मीद करना बेमानी होगा। कश्मीरी नेताओं के यह बोल वचन तब हैं जब केवल घाटी के लोग 370 बनाये रखना चाहते हैं।

370 को हटाने की बात करने वाली भाजपा ने भी जब पीडीपी के साथ सरकार बनाई तब उसके एजेंडा फाॅर एलायंस में भी धारा 370 शामिल नहीं थी। 370 को लेकर करके विभिन्न अदालतों में 7 मामले चल रहे हैं। लेह, लद्दाख और जम्मू में 370 को बनाए रखने को लेकर उत्साह नहीं देखा जा सकता है।



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Admin 2

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