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अटल विहारी वाजपेयी उन्हें 1977 का चुनाव लड़ाना चाहते थे...

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 10 Aug 2021 3:38 PM IST
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Arun Jaitley Video: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का निधन हो गया। वह किडनी के अलावा एक दुर्लभ कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। जिसे सॉफ़्ट टिशू सर्कोमा कहते हैं। यह कैंसर मांसपेशियों, ऊतकों, तंत्रिकाओं और जोड़ों में इतना धीरे-धीरे फैलता है कि इसका पता लग पाना मुश्किल होता है। यह बीमारी उनके बाएं पैर में थी। जिसका आपरेशन इसी साल जनवरी में अमेरिका में हुआ था। पिछले साल उनकी किडनी का प्रत्यारोपण भी हुआ था।

25 जून, 1975 को जब इमरजेंसी लगी थी। तब पुलिस उन्हें उनके नारायणा वाले घर गिरफ्तार करने रात को पहुंची। लेकिन वह पिछले दरवाजे से निकल गए। दूसरे दिन विद्यार्थी परिषद के छात्रों के साथ कुलपति कार्यालय के सामने भाषण दिया। इंदिरा गांधी का पुतला फूंका। तब गिरफ्तार हुए। तिहाड़ जेल में अरुण जेटली को उसी सेल में रखा गया। जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और के. आर. मलकानी आदि रखे गये थे। इसका उन्हें बहुत फ़ायदा हुआ। अरुण जेटली ने अपनी पढ़ाई दिल्ली के सेंट ज़ेवियर्स स्कूल और श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स से की। वह 'बीटल्स' वाले जॉन लेनन के अंदाज़ में नज़र का चश्मा पहनते थे। वह बहुत शर्मीले थे। स्टेज पर तो घंटों बोल सकते थे। लेकिन स्टेज से उतरते ही एक 'शेल' में चले जाते थे। जेटली को फ़िल्में देखने का बहुत शौक था। 'पड़ोसन' उनकी फ़ेवरेट फ़िल्म थी।

अटल विहारी वाजपेयी उन्हें 1977 का चुनाव लड़ाना चाहते थे। पर उनकी उम्र कम थी। लेकिन वह राष्ट्रीय कार्यसमिति में रख लिए गये। उन्हें नाचना बिल्कुल नहीं आता था। ड्राइविंग पसंद नहीं थी। जब तक उनकी ड्राइवर रखने की हैसियत नहीं हुई। उनकी पत्नी संगीता ही उनकी कार चलाती थीं। संगीता डोगरा कांग्रेस के बड़े नेता गिरधारी लाल डोगरा की बेटी हैं। वह दो बार जम्मू से सांसद रहे है। जेटली के विवाह में अटल विहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी दोनों शामिल हुए थे। उनको महंगी घड़ियों का शौक था। उनकी पसंद 'पैटेक फ़िलिप' घड़ी थी। 'मो ब्लाँ' पेनों और जामवार शॉलों का संग्रह भी उनके परस ग़ज़ब का है। वह लंदन में बनी 'बेस्पोक' कमीज़ें और हाथ से बनाए गए 'जॉन लॉब' के जूते ही पहनते थे। 'जियाफ़ ट्रंपर्स' की शेविंग क्रीम और ब्रश इस्तेमाल करते थे। रोशनारा क्लब का खाना उन्हें बहुत पसंद था। कनॉट प्लेस के मशहूर 'क्वॉलिटी' रेस्तराँ के चने भटूरों के वो ताउम्र मुरीद रहे। जेटली के जीवन का मूल मंत्र था 'चंगा खाना ते चंगा पाना'। यानी अच्छा खाना और अच्छा पहनना। 1989 में जब वीपी सिंह की सरकार सत्ता में आई तो मात्र 37 साल की उम्र में जेटली भारत का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बने। बोफ़ोर्स मामले की जांच करने कई बार स्विट्ज़रलैंड और स्वीडन गए।

1991 के लोकसभा चुनाव में जेटली नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से लालकृष्ण आडवाणी के चुनाव एजेंट थे। आडवाणी फ़िल्म स्टार राजेश खन्ना के खि़लाफ़ मामूली अंतर से जीत पाए। अदालतों में उन्होंने आडवाणी के पक्ष में पहले बाबरी मस्जिद विध्वंस का केस लड़ा। मशहूर जैन हवाला केस में सफलतापूर्वक आडवाणी को बरी कराया। 90 के दशक में टेलीविज़न समाचारों ने भारतीय राजनीति के स्वरूप को ही बदल दिया। जैसे-जैसे टेलीविज़न की महत्ता बढ़ी। भारतीय राजनीति में अरुण जेटली का क़द भी बढ़ा। वर्ष 2000 में 'एशियावीक' पत्रिका ने जेटली को भारत के उभरते हुए युवा नेताओं की सूची में रखा। 1999 में जेटली को अशोक रोड के पार्टी मुख्यालय के बग़ल में सरकारी बंगला एलॉट हुआ। उन्होंने अपना घर बीजेपी के नेताओं को दे दिया। ताकि पार्टी के जिन नेताओं को राजधानी में मकान न मिल सके, उनके सिर पर एक छत हो। इसी घर से क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की शादी हुई।

अरुण जेटली के बच्चे जहां पढ़ते थे। वहीं उन्होंने अपने ड्राइवर और कुक के बच्चों को भी पढ़ाया। वे अपने स्टाॅफ के परिवार का ध्यान अपने परिवार की तरह रखते थे। उनके एक सहयोगी गोपाल भंडारी का एक बेटा डाॅक्टर और दूसरा इंजीनियर है। दूसरे सहयोगी जोगिंदर की दोनों बेटियां लंदन में पढ़ रही हैं। 1995 में जब गुजरात में बीजेपी सत्ता में आई। तब नरेंद्र मोदी को दिल्ली भेज दिया गया। जेटली ने उनको हाथोंहाथ लिया। उस ज़माने में मोदी अक्सर जेटली के कैलाश कॉलोनी वाले घर पर देखे जाते थे। वह आरएसएस के 'इनसाइडर' कभी नहीं रहे। संसद में उनका प्रदर्शन इतना अच्छा था कि बीजेपी के अंदरूनी हल्कों में उन्हें भावी प्रधानमंत्री तक कहा जाता था। जब लालकृष्ण आडवाणी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दिया। तब लगा कि अब उनकी बारी आएगी। उनके समकालीन वैंकैया नायडू यह पद संभाल चुके थे। लेकिन जेटली को निराश होना पड़ा। उनकी जगह राजनाथ सिंह को पार्टी का नेतृत्व सौंपा गया।

अरुण जेटली के घर में एक कमरा हुआ करता था जिसे 'जेटली डेन' कहा जाता था। यहां वह अपने ख़ास दोस्तों से मिलते थे। वाजपेयी के ज़माने में जेटली को हमेशा आडवाणी का आदमी समझा जाता था। लेकिन 2013 आते-आते वह आडवाणी कैंप छोड़कर पूरी तरह से नरेंद्र मोदी कैंप में आ गये। 2002 में गुजरात दंगों के बाद जब वाजपेयी ने मोदी को 'राज धर्म' की नसीहत दी थी। तब जेटली ने न सिर्फ़ मोदी का नैतिक समर्थन किया था। बल्कि उनके पद पर बने रहने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गुजरात दंगा केस में भी उन्होंने अदालत में मोदी की तरफ़ से वकालत की थी। इस समय अमित शाह को नरेंद्र मोदी के सबसे क़रीब माना जाता है। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व में मोदी के सबसे ख़ासमख़ास होते थे- अरुण जेटली।



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