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Yogesh Mishra Y-Factor Ram Mandir: PM Modi ने भी माना, दुनिया में हर जगह 'Ayodhya'...

वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि अयोध्या नगर 12 योजन लम्बाई और 3 योजन चौड़ाई में फैला हुआ था...

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 10 Aug 2021 7:42 PM IST
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Yogesh Mishra Y-Factor Ram Mandir: आज अगर आप भगवान राम की अयोध्या में प्रवेश करते हैं। तो आपको सबसे पहले यही बोर्ड दिखाई देगा। वर्तमान का यह कथन अतीत का बोध भी है। बोध का अतीत भी। अयोध्या के नाम में राम का नाम अंतरर्निहित है। राम यानी हिंदू धर्म के मर्यादा पुरुषोत्तम। रामायण के मुताबिक सरयू नदी के तट पर बसे अयोध्या नगर की विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। अयोध्या का उल्लेख महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है।

वेदों में लिखा है- अयोध्या को देखने से ऐसा प्रतीत होता था मानों मनु ने स्वयं अपने हाथों अयोध्या का निर्माण किया हो। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि अयोध्या नगर 12 योजन लम्बाई और 3 योजन चौड़ाई में फैला हुआ था। यह नगर सरयू नदी के तट पर बसा हुआ कोशल राज्य का सर्व प्रमुखनगर था। स्कंदपुराण समेत कई पुराणों में अयोध्या की गणना मोक्षदायिनी सप्त पुरियों में की जाती है। पुराणों के अनुसार अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया (हरिद्वार), काशी और अवन्तिका (उज्जैन) मोक्षदायनी सप्तपुरियां हैं। अथर्ववेद में अयोध्या को स्वयं ईश्वर की बनाई नगरी के तौर पर वर्णित किया गया है। जिसकी समृद्धि स्वर्ग के समान अक्षय और अनंत है।

अयोध्या के पहले सम्राट के तौर पर इच्छवाकु को माना जाता है। जो वैवस्वत् मनु के ज्येष्ठ पुत्र थे। इस वंश के छठे सम्राट थे। पृथु जिनके नाम पर पृथ्वी का नाम पड़ा। इसी वंश के 31 वें सम्राट हरिश्चंद्र थे। जिन्हें दुनिया उनकी सच्चाई के लिए जानती है। इसी कुल के राजा सागर थे। इनके बारे में कहा जाता है कि उनके प्रपौत्र भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए। इसी कुल में राजा रघु हुए। जिन के नाम पर इस कुल का नाम बाद में रघुकुल पड़ गया। रघु के दशरथ और दशरथ के बेटे भगवान श्रीराम थे।

अवध पुरी मम पुरी सुहावन

उत्तर दिश सरजू अति पावन।

अयोध्या के बारे में कही गयी ये लाइने यह भी बताती हैं कि अयोध्या में रहने वालों के लिये सरयू से पावन कोई नदी हो ही नहीं सकती।

सरयू के बारे में अयोध्या में कहावत है-

सरयू में नित नीर बहत है मूरख जाने पानी। सरयू तारणी नदी है।

कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकी ने अयोध्या में ही रामायण की शुरुआत की थी। रामायण में इसशहर की समृद्धि, विकास, इसके राजाओं का महत्व, उनके सदचरित्र और उनकी महानता का वर्णन किया है। साथ ही अयोध्यावासियों के चरित्र, उनकी सदाशयता और उनके समृद्धि का भी वर्णन है। रामायण के सदियों बाद लिखे गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस में भी इस शहर की विशलता, लावण्य और समृद्धि का बखान है।

कुछ और स्त्रोतों के मुताबिक यह शहर राजा अयुध के नाम पर बना है। यह सूर्यवंश की राजधानी था। जिसमें विष्णु के सातवें अवतार के रूप में श्री राम ने जन्म लिया था। तमिल अलवरो में इस शहर को विश्व के पहले चक्रवर्ती राजा जदभारत, बाहुबली ब्राह्मी, सुन्दरी और अचल भारत के जन्मस्थान के तौर पर जाना जाता है।

वर्ष 636 ईसवी पूर्व जब चीनी यात्री जुबान जांग भारत आया। तब भी यह शहर अयोध्या के नाम से ही जाना जाता था। सातवीं सदी के इस चीनी यात्री ने उल्लेख किया है कि अयोध्या एक छोटी सी जगह थी। कहा तो यह भी जाता है कि थाईलैंड का अयोत्था या अजुधिया और इंडोनेशिया का योग्याकार्ता शहर के नाम अयोध्या से ही पड़े हैं। थाइलैंड व इंडोनेशिया के लोग इन शहरों को भगवान राम की जन्मस्थली मानते हैं।

साउथ कोरिया का भी एक अयोध्या कनेक्शन है। कोरिया के सबसे बड़े राजवंश की राजकुमारी हेओह्वांग ओके अयोध्या की थीं। जो समुद्र के रास्ते कोरिया गयीं थीं। वहां कोरिया के कारा राजवंश के सम्राट किम सुरो से विवाह किया था। बहुत से बौद्ध साहित्य में अयोध्या को साकेत के नाम से बुलाया गया है। पाणिनी द्वारा रचित अष्टाध्यायी और पतंजलि द्वारा रचित ग्रंथों में भी साकेत का जिक्र है। माना जाता है कि साकेत अयोध्या का ही दूसरा नाम था।

जिसे बाद में कुषाण राजा कनिष्क ने अपने पूर्वी क्षेत्रों की राजधानी बना दिया था। इस शहर को कुछ ग्रंथों में फाक्सियान के नाम से जाना जाता है। ये ग्रंथ चीनी और जापानी भाषा में पांचवी शताब्दी की शुरुआत में लिखे गए। ऐतिहासिक तौर पर यह एक विकसित शहर के तौर पर ईसा पूर्व छठी शताब्दी से ही जाना जाता था। यह समय बुद्ध का था। उस समय राजा पसेनदी थे। जिनका संस्कृत नाम प्रसन्न जीत है। राजा की राजधानी श्रावस्ती होती थी। उनके कार्यकाल में अयोध्या की प्रसिद्धि और समृद्धि बरकरार रही। यही वजह थी कि 190 ईसा पूर्व में इस शहर को बैक्ट्रियन ग्रीक योद्धाओं ने जीतने की कोशिश की।

मौर्य और शुंग वंश के बाद अयोध्या का राजा देव और दत्त वंश का होने लगा है। अयोध्या में मिले एक शिलालेख के मुताबिक वहां के राजा का नाम धनदेव था। जो खुद को पुष्यमित्र शंगु की पीढ़ी का छठा सम्राट बताता था। गुप्तकाल में अयोध्या अपने राजनीतिक महत्व के चरम पर थी। चीनी यात्री फास्येन जब पांचवी सदी में भारत आए तब फास्येन ने अयोध्या का वर्णन करते हुए इस शहर का नाम शा- ची लिखा है।

स्कंद गुप्त ने राजधानी को पाटलिपुत्र से अयोध्या स्थानांतरित कर दिया गया था। नरसिंह गुप्त के समय में पूरे राज्य पर हूणों का आक्रमण हुआ। छठी शताब्दी में उत्तर भारत के राजनीतिक केंद्र के तौर पर अयोध्या की जगह कन्नौज ने ले ली। सातवीं शताब्दी में अयोध्या आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के वर्णन में अयोध्या का विस्तार से जिक्र है। अयोध्या को फिर से पूरे देश में एक बार फिर तीर्थ के रूप में स्थापित करने का श्रेय गुरु रामानंद जी को जाता है। जिन्होंने वैष्णव मत की पुनर्स्थापना के लिए पंद्रहवी शताब्दी में काम किया।

अयोध्या हिंदुओं लिए मोक्षदायनी है। तो जैन धर्मावलंबियों के लिए यह अनंत, अविनाशी और सनातन है। एक परवर्ती जैन लेखक हेमचन्द्र ने नगर का क्षेत्रफल 12×9 योजना बताया है। अयोध्या में कंबोजीय अश्व एवं शक्तिशाली हाथी थे। उस समय इसे कौशल देश कहा जाता था। अयोध्या में भगवान राम के अलावा 5 जैन तीर्थंकरों-आदिनाथ, ऋषभानंद, अजीतानंद, अनंतनाथ, अभिनंदननाथ का भी जन्म हुआ था। इसलिए अयोध्या जैन समाज के लिए भी एक तीर्थस्थल है। अयोध्या में भगवान महावीर जैन तथा भगवान बुद्ध ने भी बहुत समय बिताया था।

जैन धर्म के नवें तीर्थांकर पुष्पदंत या सुविधिनाथ का जन्म भी अयोध्या में हुआ। जैन मत के अनुसार वह अरिहंत हो गए। वह सभी कर्मों से मुक्त हो गये थे। अयोध्या बौद्ध धर्म का भी बहुत बड़ा केंद्र रहा है। मौर्य काल और गुप्त वंश के शासन के दौरान यहां पर बौद्ध मंदिर, मठ, स्मारक बनाए गये। यह माना जाता हैकि बुद्ध स्वयं यहां एक से ज्यादा बार आए। हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण अब उपलब्ध नहीं है। चीनी बौद्ध भिक्षु फा ह्यांग ने यहां के कई बौद्ध मठों के बारे में लिखा है।

गुप्त काल में तो अयोध्या पूरे राज्य के व्यापार का सबसे उन्नत केंद्र बन गई थी। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि अयोध्या में स्थित कसौटी स्तंभ सारनाथ और वाराणसी के बौद्ध विहारों से मेल खाते हैं। इसके लिए वह अंग्रेज पुरातत्वविद् पीटर कारनेज की रिपोर्ट का भी हवाला देते हैं। करीब 1400 साल पहले चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने पूरे उत्तर भारत का भ्रमण किया था। वे उन जगहों पर गए जहां पर गौतम बुद्ध गए थे।

उनके लेख में वर्णन मिलता है कि हम पहुंच गए हैं उस जगह जिसे ओ-यू-टू कहा जाता है। ओ-यू-टूको अयोध्या का अपभ्रंश माना जाता है। वह लिखते हैं, 'हम आ गये हैं ओ-यू-टू के देश में यहां पर इफरात में अनाज है। जमीन भरपूर उपजाऊ है। जिसमें आनाज के साथ फल और फूल भी उगते है। यहां का तापमान मध्यम है। यहां के लोग उच्च विचार और विनम्र व्यवहार के हैं। वह अपने कर्तव्यों के बारे में पूरी तरह जानते हैं। उन्हें ज्ञान से असीमित प्रेम है।'

हैरत की बात यह है कि अयोध्या के छोटे बड़े विहारो में 3000 से ज्यादा हीनयान और महायानमतावलंबी के रहने का विवरण भी है और यहां पर दोनों मतावलंबी बहुत ही सौहार्द से रहते रहे हैं। जबकि बाकी दुनिया में दोनो के बीच गंभीर मतभेद हैं। अयोध्या के सौहार्द से सीख लेने का विवरण भी कई पुस्तकों में मिलता है।

लेखक बलवंत सिंह चारवाक की पुस्तक में उल्लेख है कि शूद्र संत लोमश और ऋषिपुत्र संभूक ने भी अयोध्या को ही अपनी तोपस्थली बनाया था। स्वामी नारायण पंथ के प्रणेता भगवान स्वामी नारायण भी अपने बचपन में अयोध्या में रहे। उन्हेंने अपनी सात वर्ष की भारत यात्रा की शुरुआत अयोध्या में बतौर नीलकंठ से की थी। तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस की शुरुआत विक्रमी संवत 1574 में अयोध्या में ही की थी।

दिल्ली सल्तनत के दौरान वर्ष 1226 में अयोध्या अवध की राजधानी बनी। माना जाता है कि अवधनाम भी अयोध्या से ही बना है। अवध दो भाग से बना हुआ है अ़वध यानी वो शहर जहां किसी का वध ना किया जाता हो। मुगल काल में नवाबों ने अयोध्या और इससे जुडे फैजाबाद पर खूब प्यार लुटाया।

1226 में अयोध्या दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गई। तब के शासक ने अयोध्या के मंदिरों पर टैक्स लगा दिया था। ये टैक्स 1707 में सआदत अली ने खत्म किये। अवध के तीसरे नवाब तक राजधानी के दौरान यह देश के सबसे प्रमुख इदारों में से एक रहा है। अयोध्या पर मुस्लिम वर्ग के शिया राजाओं का शासन ज्यादा रहा। अयोध्या में डेढ़ लाख मुस्लिम रहते हैं। 103 मस्जिदें हैं। इसमें से 35 में तो आज भी इबादत होती है। सिख मतावलंबी मानते हैं कि प्रह्लाद घाट के पास गुरु नानक भी आकर ठहरे थे।

गोस्वामी तुलसी दास द्वारा अवधी बोली में रामायण लिखे जाने से पूर्व भारत में भगवान राम की पूजा संस्कृत में ही की जाती थी। तुलसीदास संस्कृत के विद्वान थे। लेकिन उन्होंने रामचरित मानस की रचना अवधी में की थी।

अयोध्या मोक्षदायनी पुरी है। अयोध्या के बारे में रामचरित मानस, विष्णुपुराण, श्रीमदभागवद्, महापुराण सभी में लिखा है कि यहां आने से ही पाप क्षीण हो जाते हैं। वहीं जैन अगम कहते हैं कि यह शिखर जी के बाद दूसरा अविनाशी शहर है। काल इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यानी हर धर्म, हर कालखंड में अयोध्या अविनाशी, अखंड, अविजित, मोक्षदायिनी, समृद्धिपूर्ण रही है। तभी तो कहा जाता है कि-

गंगा बड़ी गोदावरी, तीरथ बड़े प्रयाग

सबसे बड़ी अयोध्या जहां राम लिहिन अवतार

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