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Climate change: जरा सोचिए पानी नहीं होगा तो क्या होगा, देखें Y-Factor Yogesh Mishra के साथ...
सच्चाई तो यह है कि पिछले तीन साल से राज्यों में बरसाती पानी के संरक्षण का कोई डाटा भी नहीं है।
Climate change: दुनियाभर के लोगों को पानी के महत्व को समझाने और स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से हर साल विश्व जल दिवस मनाया जाता है। इसी दिन से कैच द रेन यानी वर्षा जल संचय अभियान देश भर में चलाया जा रहा है। हर साल विश्व जल दिवस की एक थीम निर्धारित की जाती है। इस साल की थीम 'वैल्यूइंग वॉटर' है। इसका लक्ष्य लोगों को पानी के महत्व को समझाना है।
दुनिया में जल की किल्लत (Water Crises news) देखते हुए करीब 32 साल पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी गई थी कि अगर समय रहते इंसानों ने जल की महत्ता को नहीं समझा तो अगला विश्वयुद्ध जल को लेकर होगा। यह भविष्यवाणी संयुक्त राष्ट्र के छठे महासचिव बुतरस घाली ने की थी। उनके अलावा 1995 में वर्ल्ड बैंक के इस्माइल सेराग्लेडिन ने भी विश्व में पानी के संकट की भयावहता को देखते हुए कहा था कि इस शताब्दी में तेल के लिए युद्ध हुआ । लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिए होगी।
एक बार संबोधन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने लोगों को चेताते हुए कहा था कि ध्यान रहे कि आग पानी में भी लगती है। कहीं ऐसा न हो कि अगला विश्वयुद्ध पानी के मसले पर हो। लोगों को समझना होगा कि पानी की किल्लत से निपटने में खुद सबको काम करना है। पानी की गंभीर किल्लत के बीच भारत सरकार ने माना है कि अपर्याप्त, अधूरे और बेतरतीब जल-प्रबंधन से बारिश का अधिकांश पानी बरबाद चला जाता है।
सच्चाई तो यह है कि पिछले तीन साल से राज्यों में बरसाती पानी के संरक्षण का कोई डाटा भी नहीं है। हालत इतनी खराब है कि भारत के महानगरों सहित कई बड़े छोटे शहर पानी के संकट से जूझ रहे हैं। बारिश के पानी को लेकर ठोस प्रबंधन का अभाव संकट की गंभीरता दिखाता है। घरेलू उपयोग के पानी की लीकेज या अत्यधिक इस्तेमाल के रूप में बर्बादी एक अलग बड़ा मसला है।
राज्यसभा में एक लिखित जवाब में सरकार ने दावा किया है कि जल प्रबंधन के लिए देश में कई प्रणालियों का उपयोग हो रहा है। इसके बावजूद बड़ी मात्रा में पानी बहकर समंदर में चला जाता है। हर साल भारत के भौगोलिक क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से के सूखाग्रस्त होने की आशंका बनी रहती है । जबकि 12 प्रतिशत क्षेत्र में बाढ़ की आशंका रहती है। तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु परिवर्तन से बरसात, बर्फ के गलने और पानी की उपलब्धता पर असर पड़ने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पैनल के मुताबिक आने वाले वर्षों में अत्यधिक बरसात या बहुत ही कम बरसात जैसी घटनाओं के और बढ़ने का अनुमान है। कुछ इलाके और जलमग्न होंगे तो कुछ इलाके सूखे रह जाएंगे। बेतरतीब मॉनसून से वैसे ही फसल को नुकसान पहुंच रहा है।
पहाड़ी इलाकों, खासकर पहाड़ के शहरों जैसे कि शिमला, मसूरी, दार्जीलिंग, नैनीताल, रानीखेत और काठमांडु जैसे स्थलों पर पानी का गहरा संकट है। अब ये हालात स्थाई रूप ले चुके हैं। 'वॉटर पॉलिसी' में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक बांग्लादेश, नेपाल, भारत और पाकिस्तान के हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले आठ शहरों की जलापूर्ति में 20 से 70 प्रतिशत की गिरावट आई है।
विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि मौजूदा हिसाब से वर्ष 2050 तक मांग और आपूर्ति का अंतर बहुत अधिक बढ़कर दोगुना हो सकता है। पहले ही चेताया गया है कि वर्ष 2050 तक तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के चलते आधे से ज्यादा भारतीय या अनुमानित 80 करोड़ लोग शहरों में रह रहे होंगे। यानी शहरों पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा और संसाधनों की जबरदस्त मांग होगी।
भारत के पास दुनिया के अक्षय जल संसाधन का सिर्फ करीब चार प्रतिशत हिस्सा आता है, जबकि दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी हमारे देश में रहती है। भारत में औसतन हर साल बरसात से चार हजार अरब घन मीटर पानी आता है । जो देश में ताजा पानी का प्रमुख स्रोत भी है। लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में बारिश की दर अलग अलग है। भारत में करीब 20 रिवर बेसिन हैं। घरेलू, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए अधिकांश रिवर बेसिन सूख रहे हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में पानी की मांग भी एक जैसी नहीं है।
कृषि कार्य में सबसे ज्यादा पानी (85 फीसदी) की खपत होती है। भारतीय जल संकट का एक पहलू राज्यों के अधिकारों और पानी के बंटवारे से भी जुड़ा है। कावेरी नदी का सदियों पुराना विवाद जारी है। आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच पानी के अधिकार को लेकर कोई सर्वसम्मत फॉर्मूला नहीं निकल पाया है। पंजाब और हरियाणा के बीच रावी ब्यास नदी को लेकर टकराव होता रहा है।
हरियाणा और दिल्ली भी पानी को लेकर टकराते रहे हैं। नदियों को जोड़ने की परियोजना से एक नदी बेसिन से दूसरे में पानी भेजने की बड़े पैमाने पर व्यवस्था रखी गई है लेकिन इसका जोर सप्लाई बहाल रखने पर है। पानी को संरक्षित और उसके उपभोग में कटौती पर कोई योजना नहीं है। नदियों से अवैध खनन ने भी जलसंकट को तीव्र किया है।
पानी यूं तो राज्य का विषय है । लेकिन केंद्र सरकार की ओर से भी कई योजनाओं और कार्यक्रमों के जरिए तकनीकी और वित्तीय सहयोग दिया जाता है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने 2019 में राष्ट्रीय जल अभियान की शुरुआत की थी। जिसके तहत जलसंकट से ग्रस्त देश के 256 जिलों के 2,836 ब्लॉकों में से 1,592 में यह अभियान चलाया गया था।
इसी कड़ी में पिछले साल 'कैच द रेन' अभियान भी शुरू किया गया। भूजल के आर्टिफिशियल रीचार्ज के मास्टर प्लान के तहत एक व्यापक कार्ययोजना पर विचार किया जा रहा है । जिसके तहत 185 अरब घन मीटर पानी को उपयोगी बनाया जाएगा। इस मिशन में मॉनसून शुरू होने से पहले रेन वॉटर हारवेस्टिंग स्ट्रकचर (आरडब्लूएचएस) बनाए जाएंगें । जो जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के अनुकूल होंगे ।ये लोगों की सक्रिय भागीदारी से बरसाती पानी से भरे जाएंगे।
उत्तर प्रदेश में नल कनेक्शन से अब भी वंचित परिवारों में से कम से कम एक तिहाई को, यानि 78 लाख ग्रामीण घरों तक इस वित्त वर्ष में नल जल कनेक्शन पहुंचा देने का आग्रह किया है। केंद्र सरकार ने 'जल जीवन मिशन' के अंतर्गत, उत्तर प्रदेश को मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 मेँ 10,870.50 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। वर्ष 2019-20 में उत्तर प्रदेश को अनुदान की यह राशि 1,206 करोड़ रुपए थी, जो 2020-21 में बढ़ा कर 2,571 करोड़ रुपए कर दी गई थी।
इस प्रकार, पिछले वर्ष की तुलना में उत्तर प्रदेश को इस वर्ष 'जल जीवन मिशन' के अंतर्गत मिला केन्द्रीय अनुदान चार गुना ज़्यादा है। बताते चले कि उत्तर प्रदेश में 97 हज़ार गावों में 2.63 करोड़ परिवार रहते हैं, जिनमें से 30.04 लाख के घरों (यानि 11.41%) में पीने के पानी का नल कनेक्शन है। 'जल जीवन मिशन' की घोषणा से पहले उत्तर प्रदेश में केवल 5 लाख से कुछ ही ज़्यादा, यानि मात्र 2 फ़ीसदी घरों में ही नल जल कनेक्शन था। इस प्रकार, पिछले केवल 21 महीनों के दौरान निरंतर प्रयासों के फलस्वरूप राज्य में 24.89 लाख और घरों (9.45%) को नल जल के नए कनेक्शन प्रदान किए गए।