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Yogesh Mishra Y-Factor: चाह कर भी Rahul Gandhi नहीं बन सकते Savarkar

नासिक के जिला कलेक्टर जैक्सन की हत्या के आरोप में पहले सावरकर के भाई को गिरफ्तार किया गया

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 10 Aug 2021 7:09 PM IST
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Yogesh Mishra Y-Factor: सावरकर को सिर्फ संघ का प्रतीक पुरुष नहीं मानना चाहिए। उन्हें सिर्फ भारतीय जनता पार्टी से जोडकर नहीं देखा जाना चाहिए। सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक मजबूत स्तंभ हैं। वह 25 साल तक अंग्रेजों के कैदी रहे। कालापानी के दौरान सेलुलर जेल में कोठरी नंबर 52 नसीब हुई, जिसका आकार 13.5 गुणा सात दशमलव पांच फीट था। सेलुलर जेल में वह नौ वर्ष दस माह रहे। सेलुलर जेल में बंदी के दौरान उन्होंने बबूल के कांटों और अपने नाखूनों से जेल की दीवारों पर छह हजार कविताएं लिखीं और उन्हें कंठस्थ किया। वह मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे।

नासिक के जिला कलेक्टर जैक्सन की हत्या के आरोप में पहले सावरकर के भाई को गिरफ्तार किया गया। फिर आरोप लगा कि हत्या के लिए पिस्टल लंदन से दामोदर सावरकर ने भेजी थी। नतीजतन, उनकी गिरफ्तारी हुई। पानी के एसएस मौर्य नामक जहाज से उन्हें भारत लाया जा रहा था। जब वह जहाज फ्रांस के मार्से बंदरगाह के पास पहुंचा तो सावरकर जहाज के शौचालय से समुद्र में कूद गए। वह अच्छे तैराक थे, उनके पीछे सुरक्षाकर्मी भी कूदे। उन पर गोलियां चलाई गईं पर वह बच निकले। सावरकर किसी तरह बच कर किनारे पहुंच गए। भागकर एक पुलिस वाले से कहा- मुझे राजनीतिक शरण के लिए मजिस्ट्रेट के सामने ले चलो। लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें चोर बताकर अपने कब्जे में लेने में कामयाबी हासिल कर ली।

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के वह सात साल अध्यक्ष रहे। इन्हीं के कार्यकाल में हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित किया गया। 1959 में पुणे विश्वविद्यालय ने उन्हें डीलिट की उपाधि दी। जेल से छूटने के बाद सावरकर ने कभी अंग्रेजों के लिए काम नहीं किया। वह अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। 25 फरवरी 1931 को मुंबई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। रत्नागिरी में पतित पावन मंदिर बनवाया था। पतित पावन संगठन की स्थापना भी उन्होंने की थी। एक-एक पैसा चंदा जुटाकर सावरकर ने कई स्कूल भी खोले। जो उनके द्वारा एकत्रित चंदे से काफी समय तक चले भी।

उन्होंने हिन्दू राष्ट्र के विजय के इतिहास को प्रमाणिक ढंग से अपनी किताब 'इंडियन वार आफ इंडिपेंडेंस- 1857' में लिखा है। जिसमें उस समय के इतिहासकारों की इस धारणा को खारिज किया है कि 1857 में सिपाही विद्रोह था। उन्होंने यह स्थापना दी है कि यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई थी। इस किताब को छपवाने के लिए उन्होंने लंदन और पेरिस में संपर्क किया, बाद में किसी तरह हालैंड से यह किताब प्रकाशित हुई। उन्होंने 'हिन्दुत्व-हू इज हिन्दू' शीर्षक किताब लिखकर हिन्दुत्व के बारे में अपनी धारणा स्पष्ट की। पांच मौलिक पुस्तकें उनके हिस्से में आती हैं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सावरकर 1906 से प्रयत्नशील थे। लंदन स्थित भारत भवन में अभिनव भारत के कार्यकर्ता रात में सोने से पहले चार सूत्रीय संकल्प दोहराते थे। इसमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा और देवनागरी को राष्ट्रीय लिपि बनाना भी शामिल था।

सावरकर पर नीलांजल मुखोपाध्याय ने 'द आरएसएस आइकांस ऑफ द इंडियन राइट' नाम की किताब लिखी है। आशुतोष देशमुख ने 'ब्रेवहार्ट सावरकर' लिखा है। निरंजन तकले ने सावरकार पर शोध किया है। वीर सावरकर के कामकाज के तरीकों पर लिखी किताबें यह सचाई सामने रखती हैं कि सावरकर इस माफीनामे को अपनी रणनीति का हिस्सा बताते थे। वह चतुर क्रांतिकारी थे, चाहते थे कि काम करने का जितना मौका मिले, लिया जाना चाहिए। 1920 में सरदार पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून न तोडने और विद्रोह न करने की शर्त पर उनकी रिहाई हुई। वे रूसी क्रांतिकारियों से प्रभावित थे। पुणे के फग्र्युसन कालेज में पढ़ाई के दौरान विदेशी वस्त्रों की होली उन्होंने तब जलाई थी, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पदार्पण भी नहीं हुआ था। इसी आरोप में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था।

बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर 1906 में सावरकर को श्यामजी कृष्ण छात्रवृत्ति मिली थी। 1958 में राजखोसला निर्मित फिल्म कालापानी सावरकर पर बनी, जिसे दो फिल्म फेयर पुरस्कार मिले। 1996 में मलयाली फिल्म निर्माता प्रियदर्शन ने कालापानी फिल्म बनाई, जिसमें हिन्दी अभिनेता अन्नू कपूर ने सावरकर का रोल किया। वर्ष 2001 में वेदराही और सुधीर फडके ने वीर सावरकर पर एक बायोपिक बनाई। शैलेंद्र गौड़ इस फिल्म में सावरकर बने हैं। अक्टूबर 1906 में लंदन में इंडिया हाउस के कमरे में रात्रिभोज पर सावरकर की मुलाकात मोहनदास करमचंद गांधी से हुई थी। गांधी उस समय भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के प्रति दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराने लंदन आए थे। सावरकर से बातचीत में गांधी ने कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ आपकी रणनीति ज्यादा आक्रामक है। रात्रिभोज पर दोनो लोगों को बैठना था पर पसंद का खाना न होने के चलते गांधी को भूखे पेट निकलना पड़ा।

1927 में गांधी उनके घर रत्नगिरी गए थे। 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के पास सावरकर को भारत रत्न देने का प्रस्ताव भेजा था। लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। ठीक दो दिन बाद सावरकर की 131वीं जयंती थी। संसद भवन जाकर नरेंद्र मोदी ने उनके चित्र के सामने सर झुका श्रद्धांजलि दी। संसद में महात्मा गांधी और वीर सावरकर के चित्र इस तरह लगे हैं कि एक की तरफ मुंह करके खड़े होंगे तो दूसरी तरफ पीठ हो ही जाएगी। यह मुद्रा और इसके व्याख्याकार कहते नहीं थकते हैं कि गांधी और सावरकर एक दूसरे के उलट हैं।

गांधी और सावरकर के बीच चेहरे और पीठ का रिश्ता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में भी सावरकर का नाम आया था हालांकि अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। इस हत्या की जांच पड़ताल के लिए बने आयोग ने सावरकर को दोषी तो नहीं ठहराया पर शक की सुई इस तरह उनके सामने लटका दी कि अपने जीवन के अंतिम दो दशक उन्हें अभिशाप और गुमनामी में गुजारने पड़े। शायद इसी वजह से अस्वस्थ होने पर 1 फरवरी, 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया और 26 फरवरी, 1966 को बम्बई में उन्होंने प्राण त्याग दिये।



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