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Coronavirus ने कराया जिंदगी के बाद की जरूरत का अहसास, चढ़ा LIC का ग्राफ, देखें Y-Factor...

भारत में जीवन बीमा लेने वालों की तादाद हमेशा बहुत कम रही है...

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Praveen Singh
Published on: 31 July 2021 10:12 AM GMT
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Coronavirus: कोरोना महामारी ने लोगों की जिन्दगी पूरी तरह बदल दी है। भारत (India) में इस बीमारी की इतनी दहशत है कि अब जीवन बीमा पालिसी (LIC) लेने वालों की भीड़ बहुत तेजी से बढ़ गयी है। जिस तरह से कोरोना से संक्रमित (Corona Cases) लोगों की मौतें हुईं हैं । उसने पूरा परिदृश्य बदल दिया है।

अभी तक तो युवा जीवन बीमा (Life insurance) कराने से हिचकते थे । सिर्फ टैक्स बचत के लिए मजबूरी में बीमा कराते थे। लेकिन जब कोरोना (Corona) की दूसरी लहर में देखा गया कि जवान लोग कोरोना का शिकार बन रहे हैं । तब पूरी सोच ही बदल गई है। बड़ी बड़ी कंपनियों में काम करने वाले एग्जीक्यूटिव हों या टेक कंपनियों के कंप्यूटर प्रोग्रामर। अब यह सोच बन गयी है कि पहले अपने परिवार को पूरे प्रोटेक्शन का इंतजाम कर लेना चाहिए। क्योंकि जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं है। लोगों ने कोरोना की दूसरी लहर में हुई बर्बादी को देखा है । सो तीसरी लहर आने से पहले बीमा करवाने पर ज्यादा जोर है।

भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन बीमा मध्यस्थ पालिसी बाजार के अनुसार, कोरोना की दूसरी लहर की चरम स्थिति के दौरान 25 से 35 वर्ष के युवाओं ने 30 फीसदी ज्यादा बीमा पालिसी खरीदीं। ऑनलाइन साईट 'इंश्योरेंस देखो' के अनुसार टर्म इंश्योरेंस खरीदने वालों की तादाद मार्च की तुलना में मई में 70 फीसदी बढ़ गयी। बीमा कंपनियों ने यह खुलासा नहीं किया कि कितने प्लान बेचे गए । लेकिन इतना जरूर बताया कि दसियों हजार पॉलिसियां बेची गईं हैं।

बीमा कंपनियों (Insurence Companys) का कहना है कि कोरोना महामारी (Corona Mahamari) की वजह से लोगों, खासकर युवाओं में वित्तीय सुरक्षा और व्यापक बीमा कवरेज के प्रति जागरूकता बढ़ी है। लोग बीमा को आवश्यक मानकर उसे शीर्ष प्राथमिकता में रख रहे हैं। इनमें 35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। बीमा एक्सपर्ट्स के अनुसार मिडिल क्लास परिवारों में अब रोटी, कपडा और मकान के बाद बीमा का स्थान आ गया है।

भारत में जीवन बीमा लेने वालों की तादाद हमेशा बहुत कम रही है। आंकडो के अनुसार, 2019 में भारत में जीवन बीमा लेने वालों की संख्या मात्र 2.82 फीसदी थी। जबकि 2001 में ये 2.15 रही थी। यानी 18 साल में कोई ख़ास अंतर नहीं आया है विश्व में जीवन बीमा का औसत 2019 में 3.35 फीसदी था।

भारत में जीवन बीमा न लेने का कारण लोगों के पास अतिरिक्त आमदनी की कमी है। लोगों के पास बेसिक जरूरतें पूरी करने के बाद जीवन बीमा खरीदने के लिए पैसा ही नहीं बचता है।

नेशनल सैंपल सर्वे के 2018-19 के डेटा के अनुसार भारत में नियमित वेतन पाने वाले कामगारों में से 51.9 फीसदी के पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। 2017-18 में ये आंकड़ा 49.6 फीसदी था। यानी सोशल सिक्योरिटी से वंचित कामगारों की संख्या बढ़ी है। यह नहाल तब है जबकि नियमित वेतन पाने वाले कामगारों की संख्या 2017-18 में 22.8 फीसदी से 2018-19 में बढ़ कर 23.8 फीसदी हो गई। लिखित कांट्रैक्ट पर काम करने वाले नियमित वेतन वाले कामगारों की संख्या मात्र 30.5 फीसदी है। यानी करीब 70 फीसदी बिना लिखित कांट्रैक्ट के नौकरियों पर हैं। कैजुअल कामगारों की हिस्सेदारी 24.9 फीसदी से घट कर 24.1 फीसदी हो गई है। 2018-19 में देश में स्व रोजगार करने वालों का हिस्सा 52.1 फीसदी पर टिका हुआ है।

भारत सरकार की वार्षिक लेबर फोर्स सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कोरोना अकाल से पहले भारत में रोजगार की स्थिति सुधार रही थी। जुलाई 2018 से जून 2019 के बीच बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी से गिर कर 5.8 फीसदी पर आ गई थी। जबकि कामगारों की संख्या 34.7 फीसदी से बढ़ कर 35.3 फीसदी हो गई थी।

कोरोना के कारण करीब 2 करोड़ 30 लाख कामगार अपने गाँव को लौटे। नेशनल एकाउंट्स स्टेटिस्टिक्स और लेबर सर्वे के अनुसार भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश की 70 फीसदी जनसंख्या को सपोर्ट करती है। जबकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भारत के जीडीपी में 48 फीसदी का योगदान है।

ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति सालाना आय 2015-16 में 40928 रुपये थी जो शहरी क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय 98435 रूपए से करीब आधी है। भारत की कुल वर्कफोर्स का 71 फीसदी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में है लेकिन जीडीपी में योगदान मात्र 48 फीसदी है जिसका मतलब है कि ग्रामीण वर्क फोर्स की प्रोडक्टिविटी कम है। भारत की कुल वर्क फोर्स 46 करोड़ 50 लाख है।94 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं।26.6 करोड़ मनरेगा मजदूर हैं।11 करोड़ 20 लाख भूमिहीन कृषि श्रमिक हैं। 24 करोड़ 26 लाख श्रमिक गैर कृषि क्षेत्र में कार्य करते हैं।

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