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Y-Factor Yogesh Mishra: भारत रत्न व पद्म पुरस्कार पाये लोगों के लिए आचार संहिता ज़रूरी
Y-Factor Yogesh Mishra: सरकार को चाहिए, राष्ट्रपति को चाहिए कि वे भारत रत्न, पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्मविभूषण जैसे सम्मानों को पाने वालों के लिए भी एक आचार संहिता बनायें। और उन्हें कहें कि आपको भारत में किस तरह के आदर्श नागरिक की तरह रहना होगा।
Y-Factor Yogesh Mishra Story Aachar Sanhita: भारत रत्न (Bharat Ratna), पद्मश्री (Padma Shri), पद्म भूषण (Padma Bhushan), पद्मविभूषण (Padma Vibhushan) जैसे सम्मानों के बारे में आपने ज़रूर सुना होगा। आप कई ऐसे लोगों को जानते होंगे जिनको ये सम्मान मिले होंगे। आप यह भी सुन चुके होंगे कि ये सम्मान कई बार कई तरह के जुगाड़ से भी मिलते हैं। आप ऐसे लोगों से भी मिले होंगे जिन्होंने यह सम्मान पाया, जिन्हें इन सम्मानों से नवाज़ा गया। बहुत से ऐसे लोगों से भी आपकी मुलाक़ात हुई होगी या आप उनके बारे में जानते होंगे जिन्होंने इस सम्मान का उपयोग हथियार के तौर पर किया।
सरकार की किसी नीतियों के खिलाफ इस सम्मान को लौटाने की कोशिश की। घोषणा की। कुछ ने वापस किया तो कुछ ने सिर्फ़ घोषणा करके खुद को बैक फुट पर लाकर खड़ा कर लिया। ये पुरस्कार भारत के लिए और भारत के किसी नागरिक के लिए सबसे ज़्यादा सम्माननीय हैं। भारत रत्न (Bharat Ratna) तो बिरला ही पुरस्कार हैं। बिरले लोगों को मिलता है। जिसको भी मिलता है, उसकी शख़्सियत में चार चाँद लग जाता है। लेकिन अभी तक इन पुरस्कारों को पाने वालों के लिए कोई आचार संहिता (Code of conduct) बनी ही नहीं हैं। वो क्या करें? कैसे करें?
बहुत से लोग इन सम्मानों को पाकर बहुत सी चीजों के ब्रांड अंबेसडर बन गये हैं। और इन सामानों के लिए बाज़ार तैयार कर रहे हैं। बहुत से लोग इन पुरस्कारों को पाकर ऐसी चीजें कर रहे हैं, जिन चीजों को करना समाज जायज़ नहीं मानता। बीते दिनों इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी। जिसमें उन्होंने भारत के उन यशस्वी लोगों का नाम छापा, जिन्होंने बहुत ज़्यादा पैसे विदेशों में जमा किये हैं। उनमें ही सचिन तेंदुलकर भी हैं।
क्रिकेट का भगवान का नाम आना दुखद
सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से नवाज़ा गया है। आप सोचिये जिसे क्रिकेट का भगवान कहा जाता है। उसके पैसे विदेशों में जमा हों। कर वंचकों की सूची में उनका नाम हो । यह कितनी दुःख देने वाली बात हो सकती है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ उन लोगों ने अरबों रुपये विदेशों में निवेशित किये हैं। टैक्स भुगतान में करोड़ों की वंचना की है। गरीब देश के अमीर नागरिक हैं ये।
प्रथम दृष्टया इन प्रतिष्ठित कर-वंचक महारथियों का अपराध केवल आर्थिक ही हमको आपको प्रतीत होता है। परंतु ये राष्ट्रद्रोह और जनद्रोह दोनों हैं। मगर अब तक रोष का तनिक तिनका भी नहीं हिला। जिस देश में लाखों घर में चूल्हा केवल एक बार जलता हो , वहां की प्रजा को उग्र होना चाहिये। जैसे सदियों पूर्व पेरिस की जनता थी। तब अंतिम महारानी मारियो एन्तोनेत्तो (16 अक्टूबर 1793) थीं। उन्होंने भूखी विद्रोही प्रजा के आक्रोश का कारण पूछा। दरबारियों ने बताया कि डबल रोटी नहीं मिल रही है।
लोगों ने काट डाला महारानी का गला
महारानी ने समाधान सुझाया : ''तो केक खाने को कहो।'' इससे नाराज़ पेरिस के लोगों ने उनका गला काट डाला। राजशाही की इति हो गयी। भारत में अभी ऐसी दशा आने में बहुत वक्त लगेगा। इस देश में पंचमी पर विषधर को भी दूध पिलाते हैं। इतने सहिष्णु ! कलिंग युद्ध के बाद चण्डाशोक तो बौद्ध हो गये। प्रियदर्शी बन गये। जलियांवाला बाग के जुल्म के बाद भी भारतीय क्लीव ही बने रहे। अमूमन अहिंसक रहे। ब्रिटिश साम्राज्य के संस्थापक राबर्ट क्लाइव ने एक दफा अपने लंदनवासी मित्र को लिखा था: '' हम भारत पर युगों तक निश्चिंत रह कर राज कर सकते हैं। यहां लाल रंग देखकर जनता भीरु, कायर बन जाती है।'' सच में ऐसा ही होता रहा।
ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा में भारतीय ही मददगार रहे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में : ''झांसी में किले पर जब फिरंगी के हमले हो रहे थे तो अंग्रेज और रानी के सैनिकों से अधिक लोग मैदान में तटस्थ दर्शक बने रहे थे।'' ऐसा नजारा था।अगर ये लोग झाँसी की रानी के साथ खडे होते तो शायद दृश्य बदल गया होता।
पुरस्कार से सम्मानित लोगों के प्रति खराब हो रही धारणा
लेकिन अब हम फिर उन लोगों की बात करते हैं जो भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्म श्री जैसे पुरस्कार पाकर ऐसे काम कर रहे हैं, जिसके चलते उनके प्रति लोगों की धारणा ख़राब हो रही हैं। उनके प्रति लोगों का मन ख़राब हो रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की जिस रिपोर्ट की बात हम कर रहे हैं, उस रिपोर्ट में सचिन तेंदुलकर का नाम आना सबको दुख दे रहा हैं। आप यह सवाल पूछ सकते हैं कि जब उस सूची में बहुत सारे लोग हैं। सैकड़ों लोगों के नाम हैं। तो सचिन तेंदुलकर की ही बात क्यों की जा रही है? वह महज़ इसलिए कि उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया है। सचिन को देश ने आख़िर क्या नहीं दिया।
सचिन के पास लगा पुरस्कारों का तांता
भले ही सचिन दसवीं फेल हों। पांच लाख रुपये वाले अर्जुन पुरस्कार से नवाजे गये। जब वे मात्र इक्कीस- वर्ष के थे। वह खेल का शीर्ष पारितोष था। फिर मिला राष्ट्र का शीर्षतम खेल पुरस्कार ध्यानचन्द खेल रत्न (Major Dhyan Chand Khel Ratna Award)। इसे पहले राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार (Rajiv Gandhi Khel Ratna Award) कहा जाता था। उसके बाद पुरस्कारों का तांता लग गया। पद्मश्री, पद्म विभूषण और आया भारत रत्न 16 नवम्बर, 2013 को जब वे केवल उंतालिस साल के थे। साल भर पूर्व ही राज्यसभा में मनोनीत हुये। हालांकि पूरी सत्र की अवधि सचिन सदन में एक शब्द भी नहीं बोले। मुँह खोलना जायज़ ही नहीं समझा। यह भी उनका रिकार्ड रहा!
यह बात दूसरी है कि राज्यसभा से मिली 90 लाख रुपये की राशि सचिन ने प्रधानमंत्री कोष में दे दी। सरदार मनमोहन सिंह भी दस वर्ष तक संसद में रहे तथा मौन को आदर्श मंत्र मान कर चले थे। एक दौर था जब में मोहम्मद अजहरुद्दीन को सचिन ने झूठा साबित किया। जब वे बोले थे कि ''छोटे के नसीब में जीत नहीं बदी है।'' अजहर के बाद सचिन ही कप्तान बन बैठे। सचिन को भारत ने सब कुछ दिया, मगर एवज में राष्ट्र को क्या मिला? टैक्स भुगतान को टालकर खरबों की हेराफेरी में उनका नाम आ जाना।
ऐसे लोगों के लिए तैयार हो आचार संहिता
हमारे देश में क़ानून का आदर्श यह है कि भले ही सौ अपराधी छूट जायें पर एक भी निर्दोष आदमी नहीं फँसना चाहिए। लेकिन इस मामले में देखा जाये तो सब कुछ उल्टा हो रहा है। सरकार को चाहिए, राष्ट्रपति को चाहिए कि वे पद्म श्री, पद्म भूषण , पद्म विभूषण पाने वाले व भारत रत्न पाने वाले लोगों के लिए भी एक आचार संहिता बनायें। और उन्हें कहें कि आपको भारत में किस तरह के आदर्श नागरिक की तरह रहना होगा।
जब तक आप उस आदर्श नागरिक की तरह नहीं रहेंगे। तो आपके पास से ये सम्मान वापस ले लिये जायेंगे।। क्योंकि ये सम्मान आप वापस करें उससे बेहतर होता कि यह सम्मान सरकार आपसे वापस लें क्योंकि अगर सरकार की नाराज़गी पर आप इस सम्मान को हथियार बना सकते हैं तो सरकार भी आपकी ग़लतियों पर, संसद भी आपकी ग़लतियों पर , राष्ट्रपति भी आपकी ग़लतियों पर , आपके रास्ते से भटक जाने पर ये सम्मान वापस ले। जब तक हम यह नहीं करेंगे तब तक इस सम्मान को , इस सम्मान का हक़ नहीं मिलेगा।