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Muslim Leaders: ऐसी है मुसलमानों के नाम पर रोना रोने वाले नेताओं की असलियत, देखें Y-Factor...

आज हम बात करते हैं पण्डित बालमुकुन्द कौल के पड़पोते शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पुत्र मियां मोहम्मद फारूक अब्दुल्ला की।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 18 April 2021 2:13 PM IST (Updated on: 9 Aug 2021 5:50 PM IST)
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Muslim Leaders: आज हम बात करते हैं पण्डित बालमुकुन्द कौल के पड़पोते शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पुत्र मियां मोहम्मद फारूक अब्दुल्ला की। डा. फारूख के समधी थे-गूजर कांग्रेसी राजेश पाइलेट। फारूक अब्दुल्ला के पुत्र उमर अब्दुला अटलजी की सरकार के विदेश राज्य मंत्री थे। एनडीए ने जार्ज फर्नाडिस के आग्रह पर डा. फारूख अब्दुल्ला को 2002 में उपराष्ट्रपति नामित कर दिया था। मगर अंतिम क्षणों में मुलायम सिंह के प्रस्ताव पर एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बन गये। दो मुसलमान उच्च पदों पर एक साथ कैसे रहते ? अतः डा. फ़ारूक़ अब्दुल्ला का नाम कट गया। वह नाराज भी हो गये। नाराज़ होना लाज़िमी था।

अगले नम्बर पर आतें हैं आतंकियों के गढ़ डोडा जनपद के वासी भारतभक्त कृषक मोहम्मद रहमतुल्ला के पुत्र गुलाम नबी आजाद। अन्त में बचे आधे मुस्लमान। वे हैं पूर्वी यूपी में गाजीपुर जनपद के जुलाहा परिवार के मोहम्मद हामिद अंसारी। उनके भतीजे हैं माफिया सरगना विधायक मुख्तार अंसारी, जो पटियाला के निकट रोपड़ जेल से अभी हाल में उत्तर प्रदेश की बाँदा जेल किसी तरह लाये जा सके हैं। मुख्तार अंसारी ने उच्चतम न्यायालय को बताया भी था कि वे सच्चरित्र हैं । क्योंकि पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के सगे भतीजे हैं।

विचारणीय विषय है कि इन ढाई मुसलमानों में निखालिस राष्ट्रवादी कौन कहा जा सकता है? पहला स्थान नबी के गुलाम आजाद को जायेगा। किसी भी देशभक्त हिन्दू से वे कहीं बड़े राष्ट्रवादी हैं। बाल्यावस्था से पाकिस्तान-समर्थक दहशतगर्दों से घिरे डोडा जनपद के भदरवाह-सोती गांव के किसान मियां रहम-उल-अल्लाह के इस पुत्र गुलाम नबी आज़ाद ने खुलकर करोड़ों दर्शकों-श्रोताओं के सामने मंगलवार, 9 फरवरी 2021 को संसद में ऐलान किया कि वे भाग्यशाली हैं कि अपने सात दशकों के जीवन में वह कभी भी इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान नहीं गये।

तुलना करें अवध, बिहार और पंजाब के हजारों मुसलमानों से जो खोजा-शिया मोहम्मद अली जिन्ना का अनुकरण कर पाकिस्तान हिजरत कर गये। हालांकि करोड़ों मुसलमान जो जिन्ना को कायदे आजम मानते रहे, खण्डित भारत में ही रह गये। आज उनकी आबादी दोगुनी हो गयी। इनमें ही एक हैं मियां मोहम्मद हामिद अंसारी।

जिक्र गुलाम नबी का। वे महाराष्ट्र के वाशिम से 1980 में सांतवी लोकसभा के लिये निर्वाचित हुये थे। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रहे। तीस साल के अंतराल के बाद कश्मीर में कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। अर्थात जुगराफिया के हिसाब से पूरे भारत राष्ट्र का संसद में प्रतिनिधित्व वे कर चुकें हैं। गुलाम नबी आज़ाद ने गर्व से कहा भी कि कश्मीरी पंडितों के वोट से वह चुनाव जीतते रहे। कश्मीर के सबसे बड़े संस्थान एसपी कालेज में अपने मुसलमान साथियों के साथ 15 अगस्त मनाते थे। मगर कई छात्र 14 अगस्त यानी पाकिस्तान दिवस भी मनाते थे। अतः एक सप्ताह तक गुलाम नबी आज़ाद पाकिस्तान-परस्त छात्रों की मार से बचने के लिये कालेज नहीं जाते थे।

इस्लामी पाकिस्तान के हालातों पर टिप्पणी करते हुये गुलाम नबी आज़ाद ने भारत में रह रहे मुसलमानों को चेताया । कहा कि वे गुमराह न हों। पहचान लें कि जिन्नावादी इस्लामी मुल्क कैसा है? दुनिया के कई इस्लामी देशों का नाम गिनाकर उन्होंने पूछा : "सीरिया, यमन, ईराक, लीबिया, मिस्र आदि में कौन किसको मौत के घाट उतार रहा है ? वहां न हिन्दू है और न ही ईसाई। मुसलमान ही मुस्लिम बिरादर का कत्ल कर रहा है।"

उनके आकंलन में विश्व में भारत में ही मुसलमान सबसे ज्यादा महफूज है। शायद इन्हीं विचारों को सुनकर बसपा के सांसद वकील सतीशचन्द मिश्र ने सदन में कहा-"यदि कांग्रेस गुलाम नबी आज़ाद को राज्यसभा के लिये पुनर्नामांकित न करके, अलविदा कहती है, तो जनता भी कांग्रेस को अलविदा कह देगी।" अब तनिक तुलना कीजिये । गुलाम नबी आज़ाद से मियां मोहम्मद हामिद अली अंसारी की। जुलाहा कौम के इस अंसारी राजनायिक ने हर तरह का शासकीय मुनाफा कमाया। मलाई खाई। अल्पसंख्यक जो ठहरे। सरदार मनमोहन सिंह ने कहा भी था कि : "भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।" नतीजन, अंसारी लाभ उठाने के हररावल दस्ते में रहे।

वह अप्रैल 1, 1937 को जन्मे थे। करीब 38 वर्ष तक भारत की विदेश सेवा में कमाईदार पद पर डटे रहे। सऊदी अरब में राजदूत रहे तो लगे हाथ हज भी कर लिया होगा। फिर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के काबीना-मंत्री स्तरीय अध्यक्ष पद पर ऊंची पगार लेते रहे। सोनिया-कांग्रेस की मेहरबानी से उपराष्ट्रपति बन गये। राज्यसभा टीवी पर चहेतों को नियुक्त किया। मनमाना प्रोग्राम चलवाया।

पूरे दस वर्षों तक यानी साढ़े तीन हजार दिन सत्ताइस हजार वर्गफीट यानी पौने सात एकड़ जमीन पर फैले मौलाना आजाद रोड में महलनुमा बंगले उपराष्ट्रपति निवास पर काबिज रहे। उधर मौका लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति पद पर भी थे। इस विश्वविद्यालय में भारत-विभाजक तथा हिन्दुओं के घोरतम शत्रु शिया मुस्लिम मियां मोहम्मद अली जिन्ना की फोटो टांगने की जद्दोजहद में लगे रहे। जैसे जिन्ना इन के सगे हों। अंसारी ने कहा कि सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान की तस्वीर भी अलीगढ़ विश्वविद्यालय में लगी है। तो जिन्ना की क्यों नहीं?

अब उन्हें कौन समझाये कि बादशाह खान को ब्रिटिश राज ने पन्द्रह साल और जिन्ना तथा उनके मातहतों ने बीस साल पेशावर की जेल की कोठरी में नजरबंद रखा था। सिर्फ इसीलिये कि बादशाह खान भारत के विभाजन का जमकर विरोध कर रहे थे। मोहम्मद अंसारी अपने उपराष्ट्रपति पद के अंतिम दिन केरल के पापुलर फ्रन्ट आफ इण्डिया के जलसे में गये। वहां के जलसे में वे बोल आये कि ''भारत में मुसलमान खतरा महसूस कर रहा है।'' अंसारी को खुफिया सूत्रों ने सचेत भी किया था कि पीएफआई पाकिस्तानी-समर्थक इस्लामी उग्रवादियों का मंच है। इसी फ्रन्ट के चार लोग अभी हथरस के रास्ते जाते पकड़े गये। मथुरा जिला जेल में अवैध हरकतों के लिये नजरबंद हैं।

मानलें अगर नरेन्द्र मोदी हामिद अंसारी को कानपुर के दलित रामनाथ कोविन्द की जगह राष्ट्रपति बनवा देते तो क्या हिन्दुस्तानी मुसलमान ''सुरक्षित, सुखी और सम्पन्न'' हो जाते? तो ऐसे है ये अढ़ाई मुसलमान, आधे अंसारी को मिलाकर। क्या कहते हैं, इस पर नहीं जाना चाहिए बल्कि क्या करते हैं इस पर गौर फरमाना चाहिए ।



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Praveen Singh

Praveen Singh

Journalist & Director - Newstrack.com

Journalist (Director) - Newstrack, I Praveen Singh Director of online Website newstrack.com. My venture of Newstrack India Pvt Ltd.

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