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Y-Factor | यहां मिलेगी पान के बारे में सारी जानकारी, ऐतिहासिक तथ्य और फायदे...

Y-Factor | यहां मिलेगी पान के बारे में सारी जानकारी, ऐतिहासिक तथ्य और फायदे...

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Aman Deepankar
Published on: 9 May 2021 12:59 PM GMT (Updated on: 24 May 2021 11:29 AM GMT)
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Y-Factor ( Yogesh Mishra ) : पान (Betel Leaf )का भारत के इतिहास( History Of India ), संस्कृति तथा धार्मिक रीति रिवाजों से गहरा सम्बंध है। आरम्भ में पान का केवल औषधीय एवं धार्मिक महत्व था। धीरे-धीरे जन सामान्य ने इसे मुख रंजक और मुख शोधक के रूप में अपना लिया। शिवपुराण में अनेक स्थलों पर ताम्बुल और पुंगीफल का इसी रूप में उल्लेख हुआ है। आदर-सत्कार के प्रतीक के रूप में पान का उल्लेख पुराणों में भी है।

वात्सायन के कामसूत्र व रघुवंश आदि ग्रंथों में ताम्बुल शब्द का प्रयोग है। इस शब्द को अनेक भाषाविद् आर्येतर मूल का मानते है। बहुतों के विचार से यवद्वीप इसका आदि स्थान है। तांबूल के अतिरिक्त नागवल्ली, नागवल्लीदल, तांबूली, पर्ण , जिससे हिंदी का पान शब्द निकला है, नागरबेल आदि इसके नाम हैं। कथा सरित्सागर तथा बृहत्कथा श्लोक में उल्लेख है कि कौशाम्बी नरेश उदयन ने ताम्बुल लता को नागों से दहेज में प्राप्त किया था।

पुराणों, संस्कृत साहित्य के ग्रंथों, स्तोत्रों आदि में तांबूल के वर्णन भरे पड़े हैं। शाक्त तंत्रों (संगमतंत्र-कालीखंड) में इसे सिद्धिप्राप्ति का सहायक ही नहीं वरन् यह भी कहा गया है कि जप में तांबूल-चर्वण और दीक्षा में गुरु को समर्पण किए बिना सिद्धि अप्राप्त रहती है। इसे यश, धर्म, ऐश्वर्य, श्रीवैराग्य और मुक्ति का भी साधक कहा है। इसके अतिरिक्त पाँचवीं शती के बाद वाले कई अभिलेखों में भी इसका उल्लेख है। हिंदी की रीतिकालीन कविता में भी तांबूल की बड़ी प्रशंसा सौंदर्यवर्धक और शोभाकारक रूप में भी और मादक, उद्दीपक रूप में भी मिलती है।

जगनिक रचित लोक काव्य आल्हा खण्ड के अनुसार विख्यात वीर आल्हा ऊदल युद्ध संकल्पों हेतु पान का बीड़ा उठाकर दृढ़-प्रतिज्ञ होते थे। राजाओं और महाराजाओं के हाथ से तांबूलप्राप्ति को कवि, विद्वान, कलाकार आदि बहुत बड़ी प्रतिष्ठा की बात मानते थे। नैषधकार ने अपना गौरव वर्णन करते हुए बताया है कि कान्यकुब्जेश्वर से तांबूलद्वय प्राप्त करने का उन्हें सौभाग्य मिला था।

अरब यात्री इब्न बत्तूता ने लगभग 7500 मील की यात्रा की थी। वह भारत भी आया था। इनका पूरा नाम मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बत्तूता था। इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान माना जाता है। उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में पान के बारे में लिखा है," पान एक ऐसा वृक्ष है । जिसे अंगूर-लता की तरह ही उगाया जाता है। पान का कोई फल नहीं होता।इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है। इसे प्रयोग करने की विधि यह है कि इसे खाने से पहले सुपारी ली जाती है, यह जायफल जैसी ही होती है । पर इसे तब तक तोड़ा जाता है । जब तक इसके छोटे-छोटे टुकड़े नहीं हो जाते। इन्हें मुँह में रख कर पान की पत्तियों के साथ चबाया जाता है।"

पान विभिन्न भारतीय भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है । जैसे संस्कृत में ताम्बूल, तेलगू में तमालपाडू नागवल्ली,तमिल व मलयालम में वित्तील्ला वेत्ता , मराठी में नागवेल और गुजराती में नागुरवेल आदि। बर्मी, सिंहली और अरबी फारसी में भी इसके नाम मिलते हें। इससे पान की व्यापकता का पता चलता है। यह तांबूली या नागवल्ली नामक लता का पत्ता है।

कत्था, चूना व सुपारी के योग से इसका बीड़ा लगाया जाता है। मुख की सुंदरता, सुगंधि, शुद्धि, श्रृंगार आदि के लिये चबा चबाकर उसे खाया जाता है। इसके साथ लवंग, कपूर, सुगंधद्रव्य आदि का भी प्रयोग किया जाता है। मद्रास में बिना कत्थे का भी पान खाया जाता है। विभिन्न प्रदेशों में अपने अपने स्वाद के अनुसार इसके प्रयोग में तरह तरह के मसालों के साथ पान खाने का रिवाज है।तम्बाकू के साथ अधिक पान खानेवाले लोग प्राय: इसके व्यसनी हो जाते हैं।

आइने अबकारी में सूबा इलाहाबाद के अन्तर्गत महोबा मुहाल से भू-राजस्व के रूप में मुगल दरबार को पान प्राप्त होने का उल्लेख है। सुश्रुत संहिता के समान आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ में भी इसके औषधीय द्रव्यगुण की महिमा वर्णित है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा विभिन्न रोगों में औषधि के अनुपान के रूप में पान के रस का प्रयोग होता है। संस्कृत की एक सूक्ति में तांबूल के गुणवर्णन में कहा है - वह वातध्न, कृमिनाशक, कफदोषदूरक, मुख की दुर्गंध का नाशकर्ता और कामग्नि संदीपक है। पान को धैर्य , उत्साह, वचनपटुता और कांति का वर्धक भी कहा जाता है।आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी अन्वेषण द्वारा इसके गुणदोषों का विवरण दिया है। हितोपदेश के अनुसार पान के औषधीय गुण हैं -बलगम हटाना, मुख शुद्धि, अपच, श्वांस संबंधी बीमारियों का निदान। पान की पत्तियों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है। प्रात:काल नाश्ते के उपरांत काली मिर्च के साथ पान के सेवन से भूख ठीक से लगती है। ऐसा यूजीनॉल अवयव के कारण होता है। सोने से थोड़ा पहले पान को नमक और अजवाइन के साथ मुंह में रखने से नींद अच्छी आती है। पान सूखी खांसी में भी लाभकारी होता है।कहा जाता है कि पान खाने से वायु नही बढ़ता ।कफ मिटता है। कीटाणु मर जाता है।पान के ऐसे गुण है, जो व्यक्ति के लिए लाभदायक माने गये है।

पान में वाष्पशील तेलों के अतिरिक्त अमीनो अम्ल, कार्बोहाइड्रेट और कुछ विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं। ग्रामीण रासायनिक गुणों में वाष्पशील तेल का मुख्य योगदान रहता है। ये सेहत के लिये भी लाभकारी है। अंचलों में पान के पत्तों का प्रयोग लोग फोड़े-फुंसी उपचार में पुल्टिस के रूप में करते हैं।

पान एक द्विबीजपत्री बेल है। पाइपर बीटल इसका लेटिन नाम है।यह पाइपेरेसी कुल का सदस्य है। प्राय: इस पत्ते की आकृति मानव के हृदय से मिलती जुलती होती है। पान के औषधीय गुणों का वर्णन चरक संहिता में भी किया गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से पान एक महत्वपूर्ण वनस्पति है। पान की विभिन्न किस्मों को वैज्ञानिक आधार पर पांच प्रमुख प्रजातियों बंगला, मगही,सांची, देशावरी, कपूरी और मीठी पत्ती के नाम से जाना जाता है। यह वर्गीकरण पत्तों की संरचना तथा रासायनिक गुणों के आधार पर किया गया है।भारत के विभिन्न भागों में होनेवाले पान के पत्तों की सैकड़ों किस्में हैं - कड़े, मुलायम, छोटे, बड़े, लचीले, रूखे आदि। उनके स्वाद में भी बड़ा अंतर होता है। कटु, कषाय, तिक्त और मधुर-पान के पत्ते प्राय: चार स्वाद के होते हैं। उनमें औषधीय गुण भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। देश, गंध आदि के अनुसार पानों के भी गुणर्धममूलक सैकड़ों जातिनाम हैं जैसे- जगन्नाथी, बँगाली, साँची, मगही, सौंफिया, कपुरी, कशकाठी, महोबाई आदि।

गर्म देशों में, नमीवाली भूमि में ज्यादातर इसकी उपज होती है। पान की खेती सर्वत्र यह अत्यंत श्रमसाध्य है।सिंचाई, खाद, सेवा, उष्णता सौर छाया आदि के कारण इसमें बराबर सालभर तक देखभाल करते रहना पड़ता है। सालों बाद पत्तियाँ मिल पानी हैं। जो प्राय: दो तीन साल ही मिलती हैं। कहीं कहीं 7-8 साल तक भी प्राप्त होती हैं। कहीं तो इस लता को विभिन्न पेड़ों-मौलसिरी, जयंत आदि पर भी चढ़ाया जाता है। इसके भीटों और छाया में इतनी ठंढक रहती है कि वहाँ साँप, बिच्छू आदि भी आ जाते हैं। इन हरे पत्तों को सेवा द्वारा सफेद बनाया जाता है। तब इन्हें बहुधा पका या सफेद पान कहते हैं। बनारस में पान की सेवा बड़े श्रम से की जाती है। मगह के एक किस्म के पान को कई मास तक बड़े यत्न से सुरक्षित रखकर पकाते हैं जिसे "मगही पान" कहा जाता है। जो अत्यंत सुस्वादु एवं मूल्यवान माना जाता है।

मुगल काल से यह मुसलमानों में भी खूब प्रचलित है। सांस्कृतिक दृष्टि से तांबूल का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहाँ वह एक ओर धूप, दीप और नैवेद्य के साथ आराध्य देव को चढ़ाया जाता है, वहीं शृंगार और प्रसाधन का भी अत्यावश्यक अंग है। इसके साथ साथ विलासक्रीड़ा का भी वह अंग रहा है।

डिकैनडल (1884) के अनुसार पान की जन्म-भूमि मलाया प्रायदीप समूह है। जहां लगभग 2000 वर्षो से पान की खेती की जाती है। कुछ मतों के मुताबिक़-पान मध्य तथा पूर्वी मलेशिया का पौधा है।पान के लिए उष्णकटिबन्धीय जलवायु, विस्तृत छायादार और नम वातावरण चाहिए। देश के पूर्व तथा पश्चिमी भागों के उन क्षेत्रों में जहां वर्षा ज्यादा तथा सामान्य रूप में होती है, वहाँ इसकी पैदावार अच्छी होती है।

प्रमुख कृषि उद्योगों में पान की खेती का एक प्रमुख स्थान है। कुछ इलाकों में यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि खाद्य या दूसरी नकदी फसलें। देश में आजकल यह लगभग 50 हजार हैक्टेयर में उगाया जाता है।उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में लाखों लोग इसी व्यवसाय में लगे है।हर वर्ष अनुमानतः आठ सौ करोड़ रूपये के मूल्य के पान का उत्पादन होता है।उत्तर प्रदेश के कई जिलों में गर्मी और शुष्क हवाओं तथा जाड़ो में तेज ठंडक और पाले के कारण इसकी खेती भीट (बरेजा) में करते है। इसकी खेती के स्थान को कहीं बरै, कहीं बरज, कहीं बरेजा और कहीं भीटा आदि भी कहते हैं। खेती आदि करने वालों को बरे, बरज, बरई कहते हैं।

उत्तर प्रदेश में गुणवत्ता युक्त पान उत्पादन प्रोत्साहन योजनान्तर्गत बरेजा (भीट) निर्माण के 15 सौ वर्ग मीटर क्षेत्रफल में पान की फसल करने वाले किसानों को लागत का 50 प्रतिशत या रूपये 75680 अनुदान दिया जा रहा है। उसी तरह एक हजार वर्गमीटर क्षेत्रफल में पान की फसल को उगाने की लागत का 50 प्रतिशत या 50453 रूपये अनुदान दिया जाता हैं।

उत्तर प्रदेश में व्यवहारिक दृष्टि से इसे बनारस, गोरखपुर, लखनऊ, महोबा, ललितपुर इत्यादि जिलों में उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य होने के साथ ही औद्यानिक फसलों में पान उत्पादन में अपना विशेष महत्व रखता है जिसमें महोबा का पान उत्पादन के क्षेत्र में पहला स्थान है।

Praveen Singh

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Journalist & Director - Newstrack.com

Journalist (Director) - Newstrack, I Praveen Singh Director of online Website newstrack.com. My venture of Newstrack India Pvt Ltd.

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