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हरेक खुशी की होती है उम्र, खुशियों को जीना सीखें
Happiness: खुशी एक प्राकृतिक स्वभाव है। फिर भी लोग इससे दूर हो रहे है। लोगों ने खुशी को एक चुनौती मान लिया है।
Happiness: जीवन की सबसे महंगी चीज है आपका वर्तमान। एक बार चला गया तो पूरी दुनिया की संपत्ति से भी उसे खरीद नहीं सकते हैं। लेकिन हममें से अधिकांश वर्तमान में जीते ही नहीं। हम प्रायः भूत और भविष्य में जीने के आदी हैं। वर्तमान में जीने, भूत व भविष्य में जीने से हमारी ख़ुशी का सीधा रिश्ता है। खुशी/प्रसन्नता/आनंद मनुष्य की सबसे सकारात्मक भावना है। हंसी या मुस्कुराहट खुशी के लक्षण हैं। इसे उपजने के कारण जिस तरह अनंत होते हैं, वैसे ही ख़त्म होने के भी अनंत हैं।
आज मानव अपनी सारी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जी जान लगा रहा है । पर सबसे जरूरमंद चीज खुशी को नज़रअंदाज़ कर रहा है। वह भी तब जब पलों की ख़ुशी साल की चिंता पर भारी पड़ती है। हम सोच बैठे हैं कि पैसा,मान, सम्मान, दौलत , शोहरत ख़ुशी के कारक व कारण हैं। यही वजह है कि लोग खुश रहना भूलते जा रहे। खुशी एक प्राकृतिक स्वभाव है। फिर भी लोग इससे दूर हो रहे है। खुशी को लोगो ने एक चुनौती मान लिया है।
हमारे धर्मों और आध्यात्मिक परम्पराओं ने हमारे मन में आनंद की ऐसी छवि गढ़ दी है जिससे हम नहीं निकल पा रहे हैं। अधिकांश का यह मानना है, ध्येय में सफल होना, आनंद है। इसे आनंद कह सकते हैं ।पर इसमें कोई हिलोर नहीं है। यह जीवन अनुभवों की सतत धारा है।
खुशी के लिए पिकनिक पर जाए
एक चीनी कहावत है कि व्यक्ति को एक घंटे की खुशी के लिए झपकी लेनी चाहिए। एक दिन की खुशी के लिए पिकनिक पर जाना चाहिए। जिंदगी भर की खुशी के लिए किसी अनजान व्यक्ति की मदद करनी चाहिए। खुशी व्यक्ति को आंतरिक रूप से मजबूत करती है। खुशी विद्या दान की तरह बाँटने से बढ़ती है।
खुशी व्यक्ति को बनाती है शालीन
खुशी व्यक्ति को शालीन, विनम्र और व्यवहार कुशल बनाती है। जिस के अंदर सच्ची खुशी विराजमान रहती है। उसका लोक व्यवहार उत्कृष्ट होता है। जो खुशी की शक्ति को पहचान जाते हैं। वे छोटी-छोटी बातों में खुशियां तलाशकर अपने जीवन को खुशहाल बना लेते हैं। ऐसे व्यक्ति आध्यात्मिक व नैतिक रूप से भी सशक्त होते हैं।
धरती का सबसे प्रसन्न और संतुष्ट देश है भूटान
'किंगडम ऑफ ड्रेगन' यानी भूटान आज धरती का सबसे प्रसन्न और संतुष्ट देश है। विकिपीडिया कहता है, 'प्रसन्नता अच्छा लगने की मानसिक या भावनात्मक अवस्था है।जिसे संतुष्टी से लेकर तीव्र उल्लास तक की कई सकारात्मक या खुशनुमा भावनाओं से परिभाषित किया जाता है।' सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (ग्रॉस नेशनल हैपीनेस, जीएनएच) की अवधारणा 1972 में भूटान के चौथे राजा जेश्मे सिंग्ये वांगचुक ने गढ़ी। सदियों से भूटान की संस्कृति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वाले भौतिक विकास की बजाय जीवन की गहरी समझ पर आधारित है।
कैम्ब्रिज के ड्यूक व डचेस प्रसन्नता की इस धरती पर आए।उन्होंने टाइगर लायर तक ट्रेकिंग की।इसे भूटान की भाषा 'जोंगका' में पारो तक्तसंग भी कहते हैं। मठों का यह संकुल पारो घाटी में 17वीं सदी में बनाया गया। यहां स्वात में जन्मे गुरु पद्मसंभव ने तीन साल, तीन माह और तीन दिन तक ध्यान लगाया था। पारो तक्तसंग उन 13 तक्तसंग गुफाओं में से है, जिनपर सर्वोच्च आनंद के देवता की कृपा है।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भूटान को खुश राष्ट्रों की सूची में चीन से एक स्थान नीचे 84वां स्थान दिया है। शीर्ष पांच देशों में डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, आइसलैंड, नार्वे और फिनलैंड हैं। यह बताता है कि प्रसन्नता जांचने के पैमाने पश्चिमी मूल्यों पर आधारित है।'वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट' संयुक्त राष्ट्र का संस्थान 'सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क' (एसडीएसएन) हर साल जारी करता है।
यह रिपोर्ट बताती है कि केवल आर्थिक समृद्धि ही किसी समाज में ख़ुशहाली नहीं ला सकती। तभी तो समृद्धि के प्रतीक माने जाने वाले अमेरिका, ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात दुनिया के सबसे ख़ुशहाल दस देशों में अपनी जगह नहीं बना पाए।
भारत में गिरा खुशियों का स्तर
भारत भूमि से वर्धमान महावीर ने अपरिग्रह का संदेश दिया। इसी धरती पर बाबा कबीर भी हुए। लेकिन दुनिया को योग और अध्यात्म से परिचित कराने वाले इस देश में लोगों की ख़ुशी का स्तर गिर रहा है। कारण लोगों ने 'ऋणं कृत्वा, घृतं पीवेत' की तर्ज पर क्रेडिट कार्डों और कर्ज़ के जाल में खुद को लपेट लिया है। लोगों में लालसा का तांडव ज़्यादा दिख रहा है। तृप्त हो चुकी लालसा से अतृप्त लालसा अधिक ख़तरनाक होती है।
देश के उन्हीं इलाकों में अपराधों का ग्राफ़ सबसे नीचे है, जिन्हें बाज़ारवाद ज़्यादा स्पर्श नहीं कर पाया।यानी आवारा पूंजीवाद के सहारे पैदा हुई अनैतिक समृद्धि और उसके सह-उत्पादों को पाने की तृप्त/ अतृप्त लालसा में जो पिछड़ता है वह निराशा और अवसाद का शिकार हो जाता है।जो सफल होता है । वह मानसिक शांति गंवा बैठता है।
एकल और डिज़ाइनर परिवारों के चलन ने बड़े-बुज़ुर्गों के सानिध्य की उस शीतल छाया से भी वंचित कर दिया, जो अपने अनुभव की रोशनी से यह बता सकती थी कि ज़िंदगी का मतलब सिर्फ़ 'सफल' होना नहीं, बल्कि समभाव से जीना है। फ़ील गुड करने के साथ ही सफलता के साधन व साध्य भी देखना है। हर सफलता की एक क़ीमत होती है। हम देखते हैं कि कई बार हम उस क़ीमत को अदा करने को तैयार नहीं होते फिर भी असफलता का दंश जीने लगते हैं। जबकि इसकी ख़ुशी मनाना चाहिए ।इसका आनंद जीना चाहिए । क्योंकि संपन्न होने का मतलब सुखी होना नहीं है।कानून बनाकर खुशियां लाना संभव नहीं है।
खुशी के मायने अलग- यून्कुक एम. सुह
योन्शी यूनिवर्सिटी (Yonshi University) के हैप्पीनेस एंड कल्चरल साइकोलाजी लैब (Happiness and Cultural Psychology Lab) के डायरेक्टर यून्कुक एम. सुह (Yunkuk M. Suh) कहते हैं कि "अलग-अलग सभ्यताओं में खुशी के मायने अलग हैं। अमरीका और ब्रिटेन जैसी व्यक्तिवादी सभ्यताओं में हर व्यक्ति खुशी के अपने पैमाने बनाता है।कोरिया जैसी समष्टिवादी सभ्यताओं में खुशी समाज से जुड़ी होती है।यहां मैं अपनी ज़िंदगी के बारे में क्या सोचता हूं, यह मायने नहीं रखता।मेरे बारे में दूसरों के खयाल क्या हैं, यह मायने रखता है।"
'खुशियां आज़ाद पंछी की तरह हैं'
अमेरिकी लेखिका एलिजाबेथ गिलबर्ट (Elizabeth Gilbert) ने अपनी बेस्ट सेलिंग किताब 'ईट, प्रे, लव' (Eat, Pray, Love) में लिखा है कि खुशियां इंसान की अपनी कोशिशों का नतीजा हैं। ख़ुश रहने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।पर अगर मेहनत के बाद भी ख़ुशी ना मिले, तो इंसान तनाव का शिकार हो सकता है। नाकामी का एहसास इंसान को ख़ुशी और उदासी में फर्क भुला सकता है। ख़ुशियां आज़ाद पंछी की तरह हैं। जितना पकड़ो उतनी ऊंची उड़ जाती हैं।ख़ुशियों के पीछे भागना नहीं चाहिए।
खुशी एक एहसास
दरअसल, हम ख़ुश रहने को एक काम समझ बैठे हैं। जबकि यह एक अहसास है। पाया खोया का हिसाब नहीं। मुश्किल हालात में ख़ुशी की ज़रूरत महसूस नहीं होती। आप ख़ुश रहने का प्रयास भी नहीं करते। ख़ुशियों की ज़रूरत भी तभी होती है जब हम आप सुकून में होते हैं। जब हम ख़ुश रहने का प्रयास करते हैं तो हमारा ध्यान सिर्फ़ अपने आप पर होता है। हम आस-पास के लोगों को भूल ही जाते हैं। जबकि कई बार उन लोगों की मौजूदगी और साथ में ही हमारी ख़ुशियां छिपी होती हैं।
इंसान में खुशी पाने की ललक
कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी (Toronto University) के प्रोफ़ेसर सेम मेग्लियो का कहना है कि ख़ुशियों के लिए जान-बूझ कर की गई कोशिशें हमें एहसास कराती हैं कि वक़्त गुज़र रहा है। हमारे पास ख़ुशियां नहीं हैं। किसी शख़्स के लिए यह कह पाना मुश्किल है कि उसने ख़ुशियों की बुलंदियां छू ली हैं। हरेक ख़ुशी के बाद चाहत और बढ़ जाती है। वह उस ख़ुशी को हमेशा के लिए अपने पास रखना चाहता है। जबकि हरेक ख़ुशी की एक उम्र होती है । जिसके बाद नई ख़ुशी उसकी जगह लेती है। इंसान में ख़ुशी पाने की ललक बनी रहती है। इससे मुक्ति के लिए ज़रूरी है कि अपनी ज़िंदगी को ज़्यादा से ज़्यादा मानीख़ेज़ कैसे बनाएं। अपने लिए और दूसरों के लिए भी । क्योंकि यह बाँटने से विद्या की तरह ही बढ़ती है। ज़िंदगी को वर्तमान के साथ जियें। भविष्य को लेकर आशंका व भूत को लेकर तुलना न करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)