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Yogesh Mishra Y-Factor: Mahatma Gandhi की हत्या की साजिश की जड़ें कितनी गहरी
20 जनवरी, 1948 को जब मदललाल पाहवा ने गांधी जी की प्रार्थना सभा में बम फेंका...
Yogesh Mishra Y-Factor: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या एक लंबी साजिश का नतीजा थी। बाल गंगाधर तिलक के नाती जीवी केतकर को इस हत्या के बारे में तीन महीने पहले पता था। 14 नवंबर, 1964 को इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- तीन महीने पहले ही नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की योजना मुझे बताई थी। 20 जनवरी, 1948 को जब मदललाल पाहवा ने गांधी जी की प्रार्थना सभा में बम फेंका। तो बड़गे उसके बाद मेरे पास पुणे आया था। भविष्य की योजना के बारे में उसने बताया था। मुझे पता था कि गांधी की हत्या होने वाली है। मुझे गोपाल गोडसे ने इस बारे में किसी को कुछ भी बताने से मना किया था। केतकर केसरी और तरुण भारत के संपादक रहे हैं। उन्हें हिंदू महासभा का विचारक माना जाता है।
यही नहीं, गांधी जी की हत्या के कुछ हफ्ते पहले गोडसे ने शिवाजी मंदिर में आयोजित एक सभा में कहा था कि गांधी कहते हैं कि वह 125 साल तक जिंदा रहेंगे। लेकिन उन्हें जीने कौन देगा? गोडसे के इस भाषण से लोग परेशान हो गए थे। गोडसे ने कहा था कि मैं गांधी को मारना चाहता हूं।
10 फरवरी, 1949 को जब नाथूराम गोडसे आठ अन्य अभियुक्तों के साथ लालकिले में चल रही सुनवाई के कोर्ट रूम में लाया गया। तब केवल सावरकर के चेहरे पर गंभीरता थी। बाकी नाथूराम, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे मुस्कुरा रहे थे। अदालत ने सावरकर को बेगुनाह करार दिया। नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई। विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्टया, गोपाल गोडसे और दत्तात्रेय परचुरे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
गोडसे ने 93 पन्ने का अपना बयान पढ़ा था। जो छह हिस्से में था। 45 मिनट पढ़ने के बाद गोडसे चकराकर गिर गए। पांच घंटे का वक्त पूरा बयान पढ़ने में लगा। 9 नवंबर, 1948 को जज आत्मा चरण ने गोडसे से 28 सवाल पूछे। एक सवाल के जवाब में गोडसे ने कहा- 'हां गांधी जी को गोली मैंने मारी थी।'
30 जनवरी, 1948 वह मनहूस दिन था। जब गांधी जी को गोली मारी गई। इस दिन नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे दिल्ली रेलवे स्टेशन के रेस्टोरेंट से नाश्ता करके बिड़ला मंदिर के लिए निकले। गोडसे ने बिड़ला मंदिर के पीछे के जंगल में फायर करके उस पिस्टल को परखा। जिससे गांधी जी को गोली मारी गई। इससे पहले दिन के साढ़े ग्यारह बजे गोडसे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन गए। करकरे मद्रास होटल से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहंुचे। जहां गोडसे और आप्टे उनसे मिले।
शाम साढ़े चार बजे तांगे से दोनों बिड़ला मंदिर निकले। गोडसे ने बिड़ला मंदिर के पीछे लगी शिवाजी की मूर्ति के दर्शन किए। शाम 5.17 मिनट पर प्रार्थना सभा की ओर बढ़ रहे महात्मा गांधी जी को गोडसे ने गोली मार दी। वह पकड़ लिया गया। आप्टे और करकरे दिल्ली से भाग निकले।
थोड़ा पीछे जाना जरूरी लगता है। 13 जनवरी, 1948 को दोपहर 12 बजे गांधी जी भूख हड़ताल पर बैठे। उनकी दो मांगे थीं। पहला, पाकिस्तान को भारत 55 करोड़ रुपया दे। दूसरा, दिल्ली में मुसलमानों पर हमले रुके। तीन दिन बाद 15 जनवरी को भारत सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने की घोषणा कर दी।
इसके चलते उग्रपंथी उनसे बहुत नाराज हो गए। गांधी के पौत्र तुषार गांधी हालांकि इसे गांधी की ओर से सांप्रदायिक हिंसा रोकने और सद्भावना कायम करने की दिशा में उठाया गया कदम बताते हैं। लेकिन उस समय के नेता नेहरू और पटेल पाकिस्तान को रुपया नहीं देना चाहते हैं। यह बात जनता में घर कर गई थी। यह बात दीगर है कि विभाजन के बाद दोनों देशों में हुए अनुबंध के मुताबिक पाकिस्तान को बिना शर्त 75 करोड़ रुपये देना ही था। पाकिस्तान को 25 करोड़ रुपये मिल भी गए थे। गांधी जी की हत्या के 17 साल बाद जीवन लाल कपूर की अगुवाई में एक जांच कमीशन बैठा।
इस कमीशन के सामने पेश होकर सरदार पटेल की बेटी मणि बेन ने कहा कि मेरे पिता पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने को लेकर गांधी जी से सहमत नहीं थे। गांधी जी के पोते तुषार गांधी भी मानते हैं कि नेहरू और पटेल 55 करोड़ रुपये देन में सहमत नहीं थे। गांधी जी जब भूख हड़ताल पर थे तो बिड़ला भवन के सामने लोग उनके खिलाफ प्रदर्शन भी कर रहे थे। हिंदू शरणार्थी गुस्से में तो यहां तक कह रहे थे- गांधी मरता है तो मरने दो। 18 जनवरी, 1948 को एक शांति कमेटी बनी। तब दोपहर 12.45 मिनट पर मौलाना आजाद के हाथों संतरे का जूस पीकर उन्होंने अपनी भूख हड़ताल खत्म की।
बस इसी के बाद से हिंदू महासभा के बैनर तले बैठक होने लगी। 19 जनवरी को हिंदू महासभा के सचिव आशुतोष लाहिड़ी ने हिंदुओं को संबोधित करते हुए पर्चा निकाला। उधर 17 से 19 जनवरी के बीच गांधी जी की हत्या की साजिश रचने और हत्या करने वाले दिल्ली आ चुके थे। वे होटल और हिंदू महासभा के भवन में रुके थे। 18 जनवरी को ये लोग गांधी जी की प्रार्थना सभा में शामिल भी हुए। 19 जनवरी को हिंदू महासभा भवन में इनकी बैठक हुई। इनमें से तीन- नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे और नारायण आप्टे गांधी जी की प्रार्थना सभा में सरीक भी हुए। फिर रात दस बजे पांचों लोग हिंदू महासभा भवन में मिले।
20 जनवरी को गोडसे को छोड़ चार लोग बिड़ला भवन गए। नाथूराम की तबीयत खराब हो गई थी। इसलिए वह नहीं जा पाया। फाइनल प्लान दिल्ली के मरीना होटल में मिल बैठकर इन्होंने तैयार किया। पौने पांच बजे बिड़ला भवन पहुंच गए। बिड़ला भवन की दीवार के पीछे से मदनलाल पाहवा ने प्रर्थना सभा में बम फेंका। पाहवा गिरफ्तार कर लिए गए। चाल कामयाब नहीं हुई। गोडसे और आप्टे इलाहाबाद से कानपुर होते हुए बांबे पहुंच गए। गोपाल गोडसे दिल्ली के फं्रटियर हिंदू होटल में रुके थे। 21 जनवरी की सुबह फं्रटियर मेल से वह भी बांबे पहुंच गए। करकरे 23 जनवरी के दोपहर तक दिल्ली में रहने के बाद वह भी 26 जनवरी को कल्यणपुर पहंुचे। दिगंबर बड़गे और शंकर किस्टया 20 जनवरी को बांबे एक्सप्रेस से कल्याण के लिए चले गए।
इस तरह से सभी साजिशकर्ता दिल्ली से फरार होने में कामयाब हो गए। मदनलाल पाहवा ने बम फेंकने का गुनाह कबूल किया। उसने कहा कि गांधी जी के शांति अभियान से वह खफा है। पाहवा ने करकरे का नाम लिया। हिंदू राष्ट्र अखबार के मालिक का नाम लिया। मालिक नारायण आप्टे थे। बड़ी चालाकी से इस अखबार के संपादक का नाम गोल कर गय। संपादक नाथूराम गोडसे थे।
27 जनवरी को गोडसे और आप्टे बांबे से ग्वालियर आए। रात में दत्तात्रेय परचुरे के घर रुके। अगले दिन यहीं से इटली में बनी आटोमेटिक बैरेटा माउजर खरीदी। 29 जनवरी को दिल्ली आ गए। रेलवे स्टेशन के एक ही कमरे में रुके। यहीं इनसे करकरे मिले। 30 जनवरी को गोडसे ने गांधी जी को गोली मार दी। फिर आप्टे और करकरे दिल्ली से भागने में कामयाब रहे इनकी गिरफ्तारी 14 फरवरी को हो पाई।
रुइया काॅलेज के प्रोफेसर जीसी जैन ने बांबे प्रेसिडेंसी के गृहमंत्री मोरारजी देसाई को साजिश के बारे में बताया था। उन्होंने भी बांबे पुलिस को सूचना दी थी।
गांधी जी की हत्या के एक हफ्ते बाद 6 फरवरी, 1948 को संसद का एक विशेष सत्र बुलाया गया। जिसमें तमाम तरह के सवाल उठे। यह भी उठा कि अगर खुफिया एजेंसियां और पुलिस सतर्क रहती तो गांधी जी की हत्या को रोका जा सकता था। यही वजह है कि जयप्रकाश नारायण गांधी की हत्या को लेकर उस समय के नेताओं पर तीखे सवाल तानते रहे हैं।