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Mahatma Gandhi Video: गांधी की अंतिम वसीयत का रहस्य, देखें Y-Factor...
Mahatma Gandhi Video: कल्याणम की मृत्यु के बाद गांधी जी से जुड़े कई सवाल फिर हवा में उछलने लगे...
Mahatma Gandhi Video: महादेव देसाई महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi Legacy) के लंबे समय तक निजी सचिव रहे। बाद में वेंकटरामन कल्याणम ने महादेव देसाई की जगह ली। उनकी 99 वर्ष की आयु में 4 मई, 2021 को चेन्नई में मृत्यु हो गयी। कल्याणम की मृत्यु के बाद गांधी जी से जुड़े कई सवाल फिर हवा में उछलने लगे। गांधी जी की वसीयत के नाम से बहुचर्चित दस्तावेज जिसे 29 जनवरी, 1948 को कल्याणम द्वारा गांधी जी ने टंकित कराया था। जिसमें कहा गया था कि कांग्रेस का गठन जिस काम के लिए हुआ था। वह काम पूरा हो गया। वह लक्ष्य हासिल हो गया।नतीजतन कांग्रेस को भंग कर दिया जाना चाहिए। उसकी जगह लोक सेवा संघ के नाम से संस्था गठित की जानी चाहिए। जो दलगत राजनीति से परे जनकल्याण का माध्यम बने।
इस बयान को जवाहरलाल नेहरु तथा सरदार वल्लभभाई पटेल को अगले दिन देकर कांग्रेस के सम्मेलन में अनुमोदन हेतु पेश करना तथा क्रियान्वित कराना था। सचिव प्यारे लाल जी को दायित्व सौंपा गया था कि वे इस दस्तावेज को प्रसारित करेंगे। मगर हत्यारे नाथूराम गोडसे की गोली ने सिर्फ़ गांधी को ही नहीं राष्ट्रहित के इस प्रारुप को ही मिटा दिया।
भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लक्ष्य के लिये रचित बापू की कार्य योजना की भ्रूणावस्था में ही हत्या हो गयी। नेहरु डेढ़ दशक तक प्रधानमंत्री बने रहे। पटेल की असामयिक मृत्यु हो गयी। कल्पना कीजिए कि यदि कांग्रेस भंग कर दी गयी होती। तो पहले आम चुनाव में जवाहर लाल नेहरू और उनके साथियों को एक नई पार्टी खड़ी करने में कितनी मेहनत करनी पड़ती। तब शायद नेहरू व उनके साथियों को भी आटे दाल का भाव पता चलता। क्योंकि भारत की आज़ादी को लेकर गांधी जी को कुछ पता नहीं था। पूरा प्रारूप जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल व मौलाना अबुल कलाम आज़ाद तक ही सिमट कर रह गया था।
कांग्रेस के भंग न हो पाने के नाते जो राजनीति तंत्र हमारे यहाँ विकसित हुए वह बापू की उस आशंका को मज़बूत कर रहे थे। जिसमें बापू ने आशंका ज़ाहिर की थी कि सत्ता का स्वाद चखते ही त्याग में तपे ये उत्सर्गी पार्टीजन भ्रष्टाचारी हो जायेंगे। राजकोष की लूट, वंचितों का शोषण तथा गांव की उपेक्षा कर शहरों का विकास होगा।
तभी तो गांधीवादी पुरोधा, उत्सर्ग की आंच में तपे राजेन्द्र प्रसाद 102 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ब्रिटिश सेनाध्यक्ष जनरल क्लाड आचिनलेक के वृहत तीन मूर्ति भवन में जा बसे। स्वदेशी की मान्यतायें धूमिल हो गयीं। जीवन के मूल्य बस शुभ—लाभ में बदल गये।
जवाहरलाल नेहरु ने बापू को पत्र भी लिखा था, जो बंच आफ ओल्ड लेटर्स के नाम से जाना जाता है, कि अब उद्योग को प्राथमिकता मिलेगी। बहुजन हितायवाला कुटीर उद्योग दोयम दर्जे पर जायेगा। तकली—चर्खा अब म्यूजियम में दिखेंगे। सेवाग्राम की कुटी में बापू ने इन महान नेताओं से संडास साफ कराया था। उनका अहंकार तोड़ने के लिये।
गांधीजी की वसीयत का एक पहलू तो सही हुआ। भ्रष्टाचार बढ़ेगा, खूब बढ़ा। वीके कृष्णमेनन के लंदन में जीप घोटाले से सोनिया—कांग्रेस सरकार मनमोहन सिंह के अनगिनत घोटालों की सूची आम आदमी की जानकारी में है। इतिहासकारों के शोध का विषय है कि आखिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भंग कर लोकसेवा संघ बनाने में इतनी हिचक गांधी के इन सिद्धांतवादी, त्यागी चेलों में क्यों गहरायी?
वह घटना याद आती है जब मौलाना अबुल कलाम आजाद के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का प्रश्न उठा था। उस अवसर का वर्किंग कमेटी का दृश्य फिल्माया जा चुका है। बापू ने सदस्यों को सूचित किया कि सरदार पटेल के नाम को कई प्रदेश समितियों ने प्रस्तावित किया है। फिर बापू घूमे और बोले, ''जवाहर, तुम्हारे नाम का प्रस्ताव किसी राज्य ने भी नहीं किया।'' तनिक रुक कर बापू ने पटेल से कहा, ''सरदार, मैं चाहता हूं कि तुम जवाहर के पक्ष में अपना नाम वापस ले लो।'' और इतिहास की विडंबना थी कि इस बारडोली के सत्याग्रही ने केवल कहा : ''जी बापू''। इन दो शब्दों ने आधुनिक भारतीय इतिहास ही बदल डाला। नेहरु वंश की नींव पड़ गयी। चालू है अभी तक।
पटेल गांधी की अपील को ठुकरा कर कांग्रेस अध्यक्ष और बाद में प्रधान बन सकते थे। लेकिन नेहरू अंग्रेजों की कुटिल नीति में फंस गए।फरवरी 1946 में मुंबई में नौसेना विद्रोह और स्थानों पर सैनिक छावनियों में उठे बगावती स्वरों से ब्रिटिश शासन हिल गया।द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड की आर्थिक स्थिति जर्जर हो चुकी थी।अमेरिका का भी दबाव था भारत और अन्य औपनिवेशिक देशों को मुक्त करने का।ऐसे में सेना की हल्की सी बगावत भी उन्हें खतरनाक लगी और उन्होंने तत्काल ब्रिटिश संसद में भारत में जून 1948 तक सत्ता के हस्तांतरण की घोषणा कर दी।लेकिन सत्ता किसे सौंपे?निगाह टिकी अंग्रेज परस्त नेहरू पर।और उस समय सिंगापुर के प्रशासक माउंटबेटन के जरिए नेहरू को सिंगापुर बुलवाया गया।
नेहरू जी ने बहाना बनाया की द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के श्रद्धांजलि देने सिंगापुर जा रहे हैं।लेकिन सैनिकों के अंतिम स्थल पर पहुंचने से पहले ही माउंटबेटन ने उन्हे अपनी गाड़ी में बिठाया। नेहरू जी मांटबेटन दंपति के सानिध्य में 17 मार्च से 26 मार्च 1946 तक रहे। नौ दिन तक वहां के मौसम और तितलियों पर तो चर्चा नहीं हुई होगी।इस दौरान सत्ता हस्तांतरण की मॉडलिटीज डिस्कस की गई थीं।जिनकी रिपोर्ट माउंटबेटन ने लंदन को भेजी थीं । जो आज भी गुप्त दस्तावेजों के रूप में लंदन के एक आर्काइव्स सुरक्षित रखे हैं।इस वार्ता की रिपोर्ट इंग्लैंड द्वारा लगातार अमेरिका को भी दी गई । जो न्यूयॉर्क के एक पुस्तकालय में गुप्त दस्तावेजों में रखे हैं। केवल एक या दो भारतीय किसी प्रकार से इन रिपोर्टों को देख पाए हैं।
सिंगापुर के इस प्रवास के दौरान माउंटबेटन और एडवीना ने नेहरूजी के दिमाग में ये भर दिया था कि प्रधान पद के लिए उनसे उपयुक्त व्यक्ति कोई और नहीं है। अगर उनके अलावा किसी अन्य incompetent व्यक्ति को सामने लाया गया तो अंग्रेजी हुकूमत सत्ता हस्तंतरण को टाल भी सकती है।
अतः जब लगभग एक मत से पटेल को अध्यक्ष/भावी प्रधान मंत्री के लिए चुना गया तो नेहरूजी मीटिंग छोड़कर बापू के पास गए और उन्हें बता दिया कि अगर नेहरूजी को प्रधान मंत्री नही बनाया गया तो अंग्रेज सत्ता ट्रांसफर नहीं करेंगे।ऐसे में प्रच्छन्न धमकी भी सामने आ गई की अगर पटेल को प्रधान मंत्री बनाने की जिद की गई और आजादी खिसक गई तो इतिहास उन्हे माफ नही करेगा की इन्होंने पटेल को प्रधान मंत्री बनाने की जिद के चलते आती हुई आजादी को ठुकरा दिया।जब गांधी जी ने ये सारी बातें पटेल के सामने रखें तो उन्होंने देश की आजादी के हित में खुद को पीछे कर लिया।
इतिहास से प्रश्न पूछा जा सकता है कि यदि सरदार पटेल बापू के प्रस्ताव को नकार कर कांग्रेस अध्यक्ष बन जाते? प्रधानमंत्री नियुक्त हो जाते? तो क्या होता ? आंकलन स्पष्ट है कि नेहरु उस पुरानी पार्टी कांग्रेस को तोड़ देते। वही हरकत जो उनकी इकलौती पुत्री तीन बार कर चुकी हैं। सिंडिकेट को हटाकर कांग्रेस इंडिकेट बनाया। कम्युनिस्ट सांसदों की बैसाखी पर केन्द्र की सरकार चलायी। अपने कांग्रेसी प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डि को हराकर बागी निर्दलीय वीवी गिरी को राष्ट्रपति निर्वाचित करा दिया।
एस. निजलिंगप्पा, देवराज अर्स, देवाकांत बरुझ, कासु ब्रह्मानन्द रेड्डि को बर्खास्त कर स्वयं पार्टी की सरबराह बन गयीं। पराकाष्ठा आई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रायबरेली में भ्रष्ट आचरण के जुर्म में इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया। प्रधानमंत्री ने कुर्सी के लिये आपातकाल लगा दिया। बाकी सब आज का जानामाना इतिहास है, हर एक को पता है।
बापू की वसीयत — 29 जनवरी 1948।
''भारत को सामाजिक, नैतिक व आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर लोकसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है। हमें कांग्रेस को राजनीतिक दलों और साम्प्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना है। ऐसे ही कारणों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नीचे लिखे नियमों के अनुसार 'लोक सेवक संघ' के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है।''
गांधीजी (बापू) की राय थी कि भारत की आजादी का लक्ष्य पूरा हो जाने के बाद राजनीतिक दल के रुप में कांग्रेस के बने रहने का अब कोई औचित्य नहीं है। अतएव इसे भंग करके लोक सेवक संघ बना देना चाहिए। कांग्रेस के नेताओं को सामाजिक कार्यों में जुट जाना चाहिए। गांधीजी ने अपनी हत्या के तीन दिन पहले यानी 27 जनवरी 1948 को एक नोट में लिखा था कि : ''अपने वर्तमान स्वरूप में कांग्रेस अपनी भूमिका पूरी कर चुकी है। अतएव इसे भंग करके एक लोकसेवक संघ में तब्दील कर देना चाहिए।''
यह नोट एक लेख के रूप में 2 फरवरी , 1948 को ''महात्मा जी की अंतिम इच्छा और वसीयतनामा'' शीर्षक से ''हरिजन'' पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। अर्थात् गांधीजी की हत्या के दो दिन बाद यह लेख उनके सहयोगियों द्वारा प्रकाशित कराया गया था। यह शीर्षक गांधीजी की हत्या से दुःखी उनके सहयोगियों ने दे दिया था। इसी तरह से उन्होंने कांग्रेस का संविधान और स्वरुप दोनों बदल डालने की बाबत स्वयं एक मसौदा 29 जनवरी की रात को तैयार किया था, जिसे उनकी हत्या के बाद कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव आचार्य युगल किशोर , जो बाद में उत्तर प्रदेश के काबीना मंत्री बने, ने विभिन्न अखबारों को प्रकाशनार्थ जारी किया था।
मगर बापू की वसीयत कोई स्वीकार नहीं करता। यीशू मसीह ने सूली पर चढ़ते वक्त ईश्वर से कहा था, ''इन नासमझों को क्षमा कर दो। वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं?'' बापू का उत्सर्ग अपरिहार्य था। गोडसे तो विधि का बहाना था। निजी सहायक वेंकटरामन कल्याणम का भावार्थ यही था। उनके निधन पर शोक संवेदना।