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Muhammad Ali Jinnah: आख़िर क्यों मुहम्मद अली जिन्ना को शिया-सुन्नी दोनों तरह से दफ़नाया गया ?
जिन्ना का निधन १९४८ में हुआ। उनकी मौत पर उनका अंतिम संस्कार शियाओं की तरह हो या सुन्नियों की तरह यह विवाद हुआ।
जिन्ना का निधन १९४८ में हुआ। उनकी मौत पर उनका अंतिम संस्कार शियाओं की तरह हो या सुन्नियों की तरह यह विवाद हुआ। मुस्लिम लीग से जुड़े शब्बीर अहमद उस्मानी नामक मौलवी ने ज़िद कर ली कि उनको सुन्नी तौर तरीक़े से दफ़्न किया जाये। विवाद बढ़ने पर उन्हें शिया व सुन्नी दोनों तरह से दफ़नाया गया। वैसे जिन्ना मूलत: इस्माइली थे। जो बाद में शिया बन गये थे।।इस्माइली छह इमामों को मानते हैं जबकि शिया बारह को।
जिन्ना ने अपने पहले संबोधन में कहा कि भारत के मुसलमानों ने दुनिया को बता दिया कि वे एक राष्ट्र हैं ।हमें अपने व्यवहार व विचार से अल्पसंख्यकों को यह जता देना चाहिए कि जब तक वफ़ादार नागरिकों की तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभायेंगे। उन्हें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। पर बाद में लाहौर के हिंदू व सिख इलाक़े की पानी की लाइन काट दी गयी।
भारत पाक के बीच सरहद महज़ पाँच हफ़्ते में खींच दी गयी।जिन्ना ने कहा कि उन्हें दीमक लगा हुआ पाकिस्तान थमा दिया गया। उनके देश के दो हिस्से एक दूसरे से २००० किलोमीटर की दूरी पर हैं। इनके बीच में हिंदुस्तान पड़ता है। बाद में १९७१ में पाकिस्तान व बांग्लादेश नाम से इसमें दो देश बन गये।
जिन्होंने पाकिस्तान की लकीर खींची। यानी कहाँ से कहाँ तक पाकिस्तान होगा। वे अहमदी थे। आज की तारीख़ में अहमदी को ग़ैर मुस्लिम करार दिया गया है । अविभाजित भारत के समय शिया सुन्नी नहीं था। उस समय हिंदू मुसलमान था। शिया सुन्नी विवाद पाकिस्तान बनने के बहुत बाद १९५८-५९ में शुरू हुआ। पाकिस्तान ने अपने पहले दो स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त के ही मनाये थे। जिन्ना की मौत के बाद इसे १४ अगस्त कर दिया गया।
तुरतुक गाँव बँटवारे के वक्त पाकिस्तान में था। पर १९७१ की लड़ाई में भारत में आ गया। यह काराकोरम पहाड़ों से घिरा है। यह बौद्धों के गढ़ में हैं। मशहूर सिल्क रोड से जुड़ा है। यहाँ से भारत चीन रोम व फ़ारस में व्यापार होता था। यहाँ के लोग बाल्टी भाषा बोलते हैं।कर्नल रिनचेन ने तुरतुक के लोगों को भारत का हिस्सा बनने के लिए राज़ी किया। दोनों देशों में तीन बार जंग हो चुकी है। हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच के रिश्ते दुनिया में सबसे लंबे समय तक चली सामरिक समस्या है।
जोगिंदर नाथ मंडल पाकिस्तान के भीमराव अंबेडकर थे। जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान की संविधान सभा के पहले सत्र की अध्यक्षता सौंपी थी। हालाँकि पाकिस्तान की नेशनल असेंबली की वेबसाइट पर मंडल का नाम मौजूद नहीं है। वह पाकिस्तान के पहले क़ानून मंत्री थे।वह बंगाल के दलित थे।जिन्ना के आश्वासन पर जब पाकिस्तान जाने का उनने फ़ैसला लिया तब अंबेडकर ने उन्हें चेताया था। हालाँकि मंडल ने पाकिस्तान चुनने की वजह इस तरह बयां की,"मुस्लिम समुदाय ने भारत में अल्पसंख्यक के रूप में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। लिहाज़ा वह अपने देश में अल्पसंख्यकों के साथ न्याय करेगा। उनके प्रति उदारता भी दिखायेगा।मंडल को एक दिन के लिए संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया। दूसरे दिन जिन्ना अध्यक्ष हो गये।इसी मॉडल ने लिखा है कि मुझे यक़ीन था कि पाकिस्तान के निर्माण से सांप्रदायिकता की समस्या का समाधान नहीं होगा। यह केवल संप्रदायवाद व नफ़रत को बढ़ायेगा।