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Political Video: राष्ट्रपति पद के लड़ैय्या Yashwant Sinha, इनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से, देखे Y-Factor

Yashwant Sinha President Candidate: राष्ट्रपति चुनाव के मतदान के पूर्व भारत के 1761 सांसदों और 4120 विधायकों को ठीक से समझ लेना चाहिये कि विपक्ष के प्रत्याशी, पूर्व नौकरशाह यशवंत सिन्हा कैसे व्यक्ति हैं?

K Vikram Rao
Published on: 13 July 2022 7:58 PM IST
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Yashwant Sinha President Candidate: इन दिनों राष्ट्रपति चुनाव की धूम मची हुई है। और दोनों प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू व यशवंत सिन्हा अलग अलग राज्यों में जाकर अपने अपने ढंग से प्रचार अभियान संपर्क अभियान चला रहे हैं। द्रौपदी मुर्मू के बारे में आपने बहुत कुछ सुन रखा होगा। वह चुनी जाती हैं तो पहली महिला जनजाति राष्ट्रपति होंगी। हालाँकि उनके चुने जाने की गुंजाइश सबसे अधिक हैं। और अगर यशवंत सिन्हा चुने जाते हैं, जिनकी गुंजाइश बहुत कम है, तो निश्चित तौर पर कई प्रशासनिक अफ़सर इससे पहले भी राष्ट्रपति पद पर के लिए चुने जा चुके हैं तो कुछ भी नया नहीं होगा।

हालाँकि द्रौपदी मुर्मू के बारे में बहुत सी चीजें आम होंगी। यशवंत सिन्हा के बारे में इन दिनों। बहुत सी चीजें इसलिए आम नहीं हों पायी हैं, इसलिए सरफेस पर नहीं आ पायी हैं, क्योंकि बहुत पहले वह राजनीति करते थे, देश के वित्त मंत्री थे, अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी थे, अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें मानते थे। फिर उन्होंने पार्टी छोड़ दिया। नई पार्टी में गये। ऐसी स्थिति में जब वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हो। तब उनके बारे में सब कुछ जानना बहुत कुछ ज़रूरी हो जाता है। हम आपके बारे में कुछ ऐसे दिलचस्प क़िस्से सुनायेंगे जो बतायेंगे कि उनको राष्ट्रपति होना चाहिए या नहीं होना चाहिए । हालाँकि यह बात तो तय लोकतंत्र से होती है। चुनाव से होनी है। पर गुण दोष की बात तो हम लोग कर ही सकते हैं। पर गुण दोष की बात तो हम लोग कर ही सकते हैं।

राष्ट्रपति चुनाव के मतदान के पूर्व भारत के 1761 सांसदों और 4120 विधायकों को ठीक से समझ लेना चाहिये कि विपक्ष के प्रत्याशी, पूर्व नौकरशाह यशवंत सिन्हा कैसे व्यक्ति हैं? उनका नजरिया और उनकी भावना आमजन के प्रति कैसा है? उनके लिये जनता के लोग बस ''ऐरे गैरे'' ही हैं। 1969 में सिन्हा साहब जनजाति बहुल जिला डुमका में जिलाधिकारी थे। इस जनविरोधी घटना का उल्लेख मशहूर और सम्मानित कम्युनिस्ट मंत्री और अर्थशास्त्री बाबू इन्द्रदीप सिन्हा की आत्मकथा ''संघर्ष के पथ पर'' के पृष्ठ 196—97 पर दर्ज है। इसे अन्वेष प्रकाशक पटना ने छापा है। तब यशवंत सिंन्हा काबीना मंत्री थे। इन्द्रदीप सिन्हाजी का क्षेत्र वेगूसराय रहा जो भारत का लेनिनग्राड कहलाता था। वे गहरे मार्क्सवादी, स्वतंत्रता सेनानी, हजारीबाग के ब्रिटिश जेल में डॉ. लोहिया के संगी थे।

इन्द्रदीप सिन्हा ने लिखा है : ''एक बार दुमका में महामाया प्रसाद और चन्द्रशेखर सिंह जो उस समय सिंचाई मंत्री थे, दोनों विजिट करने गये। देखा कि करीब 4—5 सौ लड़के एक ब्लाक आफिस को घेरे हुए हैं। पुलिस हथियार लेकर खड़ी है । बूंदकें तान रखी थी। इसी बीच ये लोग पहुंच गये, पूछा कि ''क्या हो रहा है''? तो बीडीओ ने कहा, ''हुजूर ये लोग कहना नहीं मानते हैं।'' चन्द्रशेखर सिंह ने कहा : ''पहले सिपाहियों को वापस कीजिए, बंदूक नीचे कराइए, इनका क्या कहना है, इनकी क्या मांग है, सुनो, उनको क्या कहना है।'' उस वक्त वहां डिप्टी कमिश्नर यही यशवन्त सिन्हा थे। उनसे कहा गया कि दो नेता आये हुए हैं, आपसे मिलना चाहते हैं। वह कहने लगे," मैं ऐरे गैरे लोगों से नहीं मिलता हूं।'' चन्द्रशेखर सिंह ने कहा, ''देखिए, हम लोग तुम्हारे मिनिस्टर हैं, तुम अफसर हो, हम कह रहे हैं, उनका डेलीगेशन बुलाकर बात करो, उनकी क्या शिकायत है, सुनो।'' तो वह कहने लगा कि : ''मैंने बहुत मिनिस्टर देखें हैं।''

महामाया प्रसाद सिंह और चन्द्रशेखर सिंह, यह सुनने के बाद पटना चले आए। हालाँकि इन लोगों ने वहां पर जो कमिश्नर थे, उनको बता दिया,उसने डिप्टी कमिश्नर को डांटा।पटना आकर मुख्यमंत्री से शिकायत की। कहा," देखिए, आप कमिश्नर को यहां से आदेश भेजिए कि जो नैक्सट सीनियर अफसर है उसको इसी वक्त चार्ज हैंडओवर कर दे और पटना सेक्रेटरिएट में आकर रिपोर्ट करे।'' वह कहने लगे ''बहुत हार्श पनिशमेंट होगा।'' हम लोगों ने कहा आप नहीं समझते है हार्श पनिश्मेंट वह डिजर्व करता है। एक डिप्टी कमिश्नर है, आईएएस अफसर है और मिनिस्टर के साथ ऐसे व्यवहार करता है।

इन लोगों ने कहा कि ''आप ये आदेश दे दीजिए।'' चीफ सेक्रेटरी ने सूचना भेज दी। इसके बाद यशवंत सिन्हा ने हिदायत तो नहीं माना। भाग कर दिल्ली चले आये। यशवन्त सिन्हा के ससुर एपसी श्रीवास्तव सप्लाई सेक्रेटरी थे, वह भी आईसीएस अफसर थे, यशवंत सिन्हा दिल्ली में बैठे रहे, पैरवी करके अपना ट्रांसफर केन्द्र में करवा लिया। पर वे पटना सचिवालय में आमद करने नहीं गये।

तब इन मंत्रियों ने चीफ सेक्रेटरी को कहा कि : ''देखिए, आपका एक अफसर इस तरह से बदतमीजी करेगा, कहना नहीं मानेगा तो हमको पंच करना ही होगा। रामायण में लिखा है 'जो दण्ड करो नहीं तोरा, भ्रष्ट हो हि श्रुति मार्ग मोरा', प्रशासन तो ऐसे नहीं दुरुस्त होगा।'' तो यह आदेश गया तो वहीं से भाग कर दिल्ली चला गया। कुछ दिन बाद जब संयुक्त मोर्चे की गवर्नमेंट टूट गयी तो वह फिर पटना आये। लेकिन उसके बाद त्यागपत्र दे दिया और राजनीति में आ गया और वित्त मंत्री बन बैठा है।सिन्हा कम्युनिस्ट मंत्रियों के सामने दावा था कि : ''मैं मिनिस्टर बन सकता हूं। आप मेरी भांति आईएएस नहीं बन सकते।'' तो ऐसे हैं राष्ट्रपति पद के एक उम्मीदवार महोदय। इस प्रतीक्षारत पन्द्रहवें राष्ट्रपति यशवंत सिन्हा की समता करें प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से। वे आधा वेतन—भत्ता ही लेते थे। सामान्य गांधीवादी जीवन शैली में रहते थे। जनवादी थे।

यशवंत सिन्हा के विषय में कुछ और भी। वे ठकुर—सुहाती में माहिर है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अगुवा स्व. दत्तोपंत थेंगडी से सिन्हा खुद मिलने गये। भेंट से पहले उनकी सारी किताबें पढ़ लीं थीं। उन्हें ख़ुश करने के सारे हथियार अपने तरकश में तैयार करके रख लिये थे। यशवंत सिन्हा ने ठेंगडी जी की खूब बखान की। अब थेंगड़ीजी बड़े प्रमुदित हो गये। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से सिफारिश कर दी। यशवंत सिन्हा सरकार में आ गये। अटल काबीना में।

यशवंत सिन्हा की एक और बड़ी स्मरणीय उपलब्धि मानी जाती है। ठाकुर चन्द्रशेखर सिंह, बलियावाले, के प्रधानमंत्री काल में सिन्हा ने वित्त मंत्री के नाते भारत के स्वर्ण का स्टाक लंदन में नीलाम कर दिया। भारतीयों के घर का सोना तब बेचा जाता है, जब घर का दिवाला निकट आ जाता है।

यशवंत सिन्हा की तुलना में द्रौपदी मुर्मू की बात हो। वे अभावों में पलीं। जनजाति वालीं हैं। खेतिहर विरंची नारायण टुडु की पुत्री। द्रौपदी के पति और दो पुत्रों की अकाल मृत्यु हो गयी थी। अध्यापिका थीं । फिर सरकारी सिंचाई विभाग में कनिष्ट क्लर्क रहीं। पार्षद निर्वाचित होकर राजनीति में आयीं। दो दफा विधायक रहीं। श्रेष्ठतम विधायक हेतु नीलकण्ठ पारितोष पाया। काबीना मंत्री बनीं। झारखण्ड की पहली महिला राज्यपाल बनीं। नरेन्द्र मोदी की भांति स्वातंत्र्योत्तर भारत में जन्मी वे अब राष्ट्र की नेता बनेंगी। प्रथम सर्वहारा राष्ट्रपति। सोनिया गांधी की अनुयायी प्रतिभा पाटिल नारी थीं। वकील ​थीं। जमीन्दार थीं। सामंत और धनाढ्य भी थीं।

इस लिहाज़ से हम देखें तो यशवंत सिन्हा व द्रौपदी मुर्मू की कोई तुलना नहीं हैं। द्रौपदी मुर्मू की संघर्ष की लंबी कहानी है। यशवंत सिन्हा की हमेशा अच्छी अच्छी जगहों पर रह कर मलाई काटने की बड़ी लंबी दास्तान है। उन्होंने अवसर का लाभ उठाया और द्रौपदी मुर्मू अपने विचार व सिद्धांत से बंधी रहीं । इसलिए आप जब भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट देने जायें, तो इन बातों का ख़्याल ज़रूर रखियेगा।



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