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Yogesh Mishra Y-Factor: Ram Mandir के काज में शुभ मुहूर्त

इनने भी भूमि पूजन के मूर्हत पर सवाल उठाए हैं...

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 10 Aug 2021 11:18 AM GMT
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Yogesh Mishra Y-Factor: पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर के गर्भ गृह के भूमि पूजन करेंगे। पर इस तारीख व समय को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। शुभ अशुभ की बात कही जा रही है। इस तिथि को लेकर ज्योतिषियों व विद्वानों में मतभेद है। बहुत से विद्वान इस तिथि को शुभ नहीं मानते। इनका मानना है कि मन्दिर के लिए 5 अगस्त, 2020 दिन मे 12 बजकर 15 मिनट 15 सेकेंड से 12 बजकर 15 मिनट 47 सेकेंड का जो मुहूर्त निकाला गया है वह सही नहीं।

इनमें काशी के कुछ विद्वानों के साथ ही साथ द्वारिका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती व शुमेरुपीठ के पीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती भी शामिल हैं। इनने भी भूमि पूजन के मूर्हत पर सवाल उठाए हैं। इन्होंने कहा है कि पांचांग की गणना के अनुसार पांच अगस्त को भूमि पूजन का मुर्हूत नहीं है। उन के मुताबिक प्रस्तावित भूमि पूजन शास्त्र सम्मत नहीं है।

लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि जिस दिन भूमि पूजन का पवित्र मुहूर्त निकाला गया है। उस दिन अभिजीत मुहूर्त मिल रहा है। इस मुहूर्त में कोई भी शुभ काम किया जा सकता है। अभिजीत मुहूर्त में किया गया कार्य कभी अशुभ नहीं होता। यह मुहूर्त इतना शुभ है कि भगवान श्रीराम ने जब पृथ्वी पर अवतार लिया था उस समय अभिजीत मुहूर्त ही था।

अभिजीत मुहूर्त खुद प्रभु श्रीराम को प्रिय है।

रामचरितमानस में तुलसी दास जी लिखते है।

जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भये अनुकूल।

चर अरू अचर हर्षजुत राम जन्म सुखमूल।

"नौमी तिथि मधुमास पनीता।

सुकल पच्छ अभिजीत हरिप्रीता।।

मध्य दिवस अति सीत न घामा।

पावन काल लोक विश्रामा।।

जिस शुभ मुहूर्त में प्रभु ने अवतार लिया वह समय अशुभ कैसे हो सकता है।

रामचरित मानस और वाल्मीकि रामायण मे अभिजीत मुहूर्त का बड़ा महत्व बताया गया है।

जब भगवान राम चारों भाइयों के साथ पहली बार शिक्षा हेतु गुरुकुल जाने के लिए घर से निकले उस समय भी अभिजीत मुहूर्त ही था। प्रभु श्रीराम के जीवन काल में यह मुहूर्त बहुत ही शुभ रहा है।

दूसरी बात की जब किसी कार्य का शुभारंभ राजा के हाथों किया जाए तो मुहूर्त कोई भी हो वह शुभमाना जाता है। क्योंकि राजा ईश्वर के समान होता है। यह शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी के हाथों रखा जा रहा है। जो देश के लोकतांत्रिक राजा हैं।

यही नहीं बहुत से विद्वानों का मानना है कि इस दिन दुर्लभ संधिकरण योग का मुहूर्त भी मिलता है। जो भूमि पूजन के लिए ठीक है। अधिकांश विद्वान यह मानते हैं कि जिस भगवान राम के नाम से बड़ी से बड़ी बाधा कट जाती है। उसके लिए सभी मुहूर्त शुभ हैं।

नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव के लिए जिस समय पहली बार नामजदगी का पर्चा भरा था। उसे भी काशी के पंडितों ने भद्रा काल कहा था। लेकिन इसके बाद भी वह नाबाद दूसरी पारी खेल रहे हैं। देश में उनकी लोकप्रियता के ग्राफ के बराबर कोई नेता नहीं है।

यहीं नहीं, त्रेता काल में जब मुनि वशिष्ठ से राम के राज्याभिषेक के लिए मुहूर्त के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा कि शुभ अशुभ सब भगवान राम से प्रकाशित होते हैं। राम का जिस दिन राज्याभिषेक होगा वह शुभ दिन बन जायेगा। ऐसे ही जिस दिन भी राम मंदिर का शिलान्यास होगा। वहीं दिन शुभ हो जायेगा।

मोदी अभी तक वह अयोध्या नहीं गये। पहली बार अयोध्या पहुंचेंगे तो मंदिर की सौगात लेकर। उस राम मंदिर की सौगात लेकर जो भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र का हिस्सा रहा है। 1989 में हिमाचल के पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर पर प्रस्ताव पास हुआ।

जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विषय रहा है। जो आजादी के बाद से भारतीय समाज व राजनीति के सबसे ज्वलंत मुद्दे के तौर पर रहा है।

इसके चलते भाजपा ने राजनीतिक नुकसान व फायदा दोनों झेला है। तमाम अवरोधों से निपटने के बाद जब मंदिर का सपना साकार होने का समय आया तब कुछ मुट्ठीभर लोग मुहूर्त को लेकर सवाल खड़ा करने में जुट गये हैं।

हालांकि आजादी के समय से चल रही लंबी अदालती लड़ाई के बाद यह अवसर मिल रहा है। यहां तक पहुंचने के लिए राम और मीर बाकी को बराबर करने वाली ताकतों से पांच सौ साल लोहा लेना पड़ा है। राम की अयोध्या है इसका प्रमाण देना पड़ा है। वह भी तब जब राम भारतीय जन मानस के आदर्श हैं। भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। आजादी की लड़ाई में हमारा लक्ष्य ही राम राज्य की स्थापना करना था।

हमारा सुराज, हमारी स्वतंत्रता राम राज्य के लिए ही है। थक हार कर 1986 में तीस अक्टूबर से अशोक सिंहल जी की अगुवाई में मंदिर आंदोलन लगातार चलाना पड़ा। अनगिनत लोग इस लंबी चली प्रक्रिया में काल कवलित हो गये। धर्म निरपेक्षता व सांप्रदायिक की स्वहितपोषी परिभाषा गढ़ी गयी। सेकुलर शब्द बेमानी बना दिया गया।

नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि 5 नवंबर, 1990 को विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में अयोध्या में मंदिर का भूमि पूजन और शिलान्यास का कार्यपूर्ण हो चुका है।

लेकिन काशी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने भूमि पूजन का मुहूर्त निकाला है। उनकी विद्वता भी कम नहीं है। उसे भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। उन्होंने मंदिर के भूमि पूजन के लिए अभिजीत मुहूर्त निकाला है। जो 12 बजकर 15 मिनट 15 सेकेंड से शुरू होगा। 32 सेकेंड तक रहेगा। इसी बीच प्रधानमंत्री को भूमि पूजन की ईंट रखनी होगी। हालांकि पूजन पाठ सुबह आठ बजे से शुरू हो जायेगा।

राम भक्तों ने 34 किलों की तीस चांदी की ईंटें दान में पहले से दे रखी है। एक शंकराचार्य ने भूमिपूजन किसी धर्माचार्य द्वारा कराने की बात कही है। पर ऐसा कहने व सोचने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते तो यह फैसला इतनी जल्दी नहीं आता। जिसका काम। उसका नाम। यह तो आदि काल से चला आ रहा है। और राम काज करने से कोई पीछे क्यूं हटेगा। किसी को अवसर मिलने पर पीछे क्यंू हटना चाहिए।

हर काम को विवाद में घसीटने की प्रकृति व प्रवृत्ति से बचना चाहिए। हमारे यहां कहा गया है शुभलाभ। पर जो लोग विवाद व अशुभ की बात कर रहे हैं वे सब सिर्फ शुद्ध लाभ (नेट प्राफिट) की बात करने वाली जमात के हैं। शुभ लाभ की जमात के नहीं। राम मंदिर निर्माण शुभ लाभ का काम है।

Admin 2

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