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Y-FACTOR Yogesh Mishra: रूस है असली वीटो मास्टर, इस अधिकार का किया है सबसे ज्यादा इस्तेमाल

Y-FACTOR Yogesh Mishra: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जब कोई प्रस्ताव विचार के लिए लाया जाता है, तो स्थायी सदस्य इस पर विचार करते हैं। यदि इसमें से कोई भी देश उस प्रस्ताव पर असहमति व्यक्त करता है, तो वह प्रस्ताव पास नहीं किया जाता है

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra / Neel Mani LalPublished By Ragini Sinha
Published on: 11 March 2022 1:19 PM IST
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Y-FACTOR Yogesh Mishra: वीटो एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है "मैं निषेध करता हूँ।" संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में यूक्रेन पर लाये गए एक प्रस्ताव को रूस ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर रोक दिया है। इस प्रस्ताव में रूस से यूक्रेन पर हमला रोकने और सभी सैनिकों को वापस बुलाने की मांग की गई थी।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जब कोई प्रस्ताव विचार के लिए लाया जाता है, तो स्थायी सदस्य इस पर विचार करते हैं। यदि इसमें से कोई भी देश उस प्रस्ताव पर असहमति व्यक्त करता है, तो वह प्रस्ताव पास नहीं किया जाता है। इस असहमति को ही वीटो पावर कहा जाता है। वीटो का प्रयोग सबसे अधिक सोवियत संघ या रूस के द्वारा किया गया है। इसने वीटों का प्रयोग 120 बार किया है। इसके बाद वीटों का प्रयोग 76 बार अमेरिका द्वारा किया गया है। ब्रिटेन ने इसका प्रयोग 32 बार, फ़्रांस ने 18 बार और चीन ने सबसे कम 5 बार इसका प्रयोग किया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा अपरिषद के पांच स्थाई सदस्य हैं - अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। ये सदस्य किसी भी प्रस्ताव को रोक सकते हैं । सीमित कर सकते हैं। ये ठीक अमेरिका की विधायी प्रक्रिया की तरह है । जहाँ किसी कानून पर राष्ट्रपति का वीटो को दोनों सदन और सीनेट का दो-तिहाई वोट रद्द कर सकता है। वीटो किसी भी तरह के परिवर्तनों को रोकने का संभवतः असीमित अधिकार देता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, यूएन की एक शक्तिशाली संस्था है, जिसकी जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। हर महीने इस सुरक्षा संस्थान की अध्यक्षता अंग्रेजी की वर्णमाला के क्रम में बदलती है। इस बार यह ज़िम्मा रूस को मिला हुआ है।

अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन, फ्रांस और तत्कालीन सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही कारण है कि इन देशों को संयुक्त राष्ट्र में कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं। ये पांच देश सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्य देश हैं। इनके पास एक विशेष मतदान शक्ति भी है । जिसे वीटो पावर के रूप में जाना जाता है। सभी पांच स्थायी सदस्यों ने अलग-अलग मौकों पर वीटो के अधिकार का प्रयोग किया है।

वोट न देने की स्थिति

यदि सुरक्षा परिषद का कोई स्थायी सदस्य देश किसी प्रस्तावित प्रस्ताव से पूरी तरह सहमत नहीं है। लेकिन वीटो भी नहीं करना चाहता है, तो वह अलग रहने का विकल्प चुन सकता है। इस प्रकार यदि प्रस्ताव पर नौ वोट पक्ष में पड़ते हैं, तो उसे स्वीकार कर लिया जाता है।

वीटो पावर संभवतः एक स्थायी सदस्य और एक अस्थायी सदस्य के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 27 (3) के अनुसार, सुरक्षा परिषद 'स्थायी सदस्यों के सहमति मतों' के साथ सभी निर्णय लेगी।

वीटो पावर का विषय अत्यधिक विवादास्पद रहा है। वर्षों से संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में इस पर बहस भी होती रही है। यह परिषद के कामकाज के तरीकों की लगभग सभी चर्चाओं के संदर्भ में सबसे अधिक बार उठाए जाने वाले विषयों में से एक है। भारत इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की कई बार वकालत करता आ रहा है।

शुरुआती वर्षों में सोवियत संघ अक्सर वीटो पावर का इस्तेमाल करता था। ये इतना ज्यादा वीटो करता था कि यूएन में तत्कालीन सोवियत दूत मिस्टर वीटो के नाम से जाना जाता था। 1946 के बाद से जब सोवियत संघ ने लेबनान और सीरिया से विदेशी सैनिकों की वापसी के संबंध में एक मसौदा प्रस्ताव पर वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया, तो वह 294वां वीटो था।

पूर्ववर्ती सोवियत संघ औेर बाद में रूस ने भारत के पक्ष में चार बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया है। सोवियत संघ ने पहली बार 1957 में कश्मीर मुद्दे पर भारत के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल किया था। जब पाकिस्तान ने विसैन्यीकरण के संबंध में एक अस्थायी संयुक्त राष्ट्र बल के इस्तेमाल का प्रस्ताव रखा और कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनने के करीब पहुंचा, तो सोवियत संघ ने भारत के पक्ष में वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया और प्रस्ताव खारिज हो गया

1961 में पुर्तगाल ने गोवा के संबंध में सुरक्षा परिषद को एक पत्र भेजा। उस समय गोवा पुर्तगाल के अधीन था। भारत इस क्षेत्र को अपने राष्ट्र का हिस्सा बनाने की कोशिश कर रहा था। जब गोवा में गोलीबारी हुई तो पुर्तगाल ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर को लागू करने की कोशिश की। एक प्रस्ताव प्रस्तावित किया कि भारत को गोवा से अपनी सेना वापस लेनी चाहिए। उस समय इस प्रस्ताव को अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस द्वारा समर्थन मिला था। लेकिन रूस भारत के बचाव में आया और वीटो पावर का उपयोग करके प्रस्ताव को गिरा दिया। इसने भारत के उद्देश्य को मजबूत किया और 19 दिसंबर, 1961 को गोवा अंततः पुर्तगाल के शासन से मुक्त हो गया। यह रूस का 99वां वीटो था।

सोवियत संघ ने इसके बाद 1962 में अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल किया और इस बार फिर से भारत के पक्ष में। सुरक्षा परिषद् में आयरलैंड के एक प्रस्ताव में भारत और पाकिस्तान से कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए एक दूसरे के साथ सीधे बातचीत करने का आग्रह किया गया था। सुरक्षा परिषद के सात सदस्यों ने इसका समर्थन किया। इनमें से चार स्थायी सदस्य थे - अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। फिर, रूसी प्रतिनिधि प्लैटन दिमित्रिच मोरोज़ोव ने वीटो शक्ति का इस्तेमाल करके प्रस्ताव को खत्म कर दिया।

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू होने के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने विरोध में उसका बहिर्गमन किया। 1971 को छोड़कर जब कश्मीर मुद्दे पर प्रस्ताव प्किए गए थे, तब कश्मीर मुद्दा सुरक्षा परिषद् में निष्क्रिय हो गया था । लेकिन दिसंबर 1971 में, जब भारत बांग्लादेश को मुक्त करने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में लगा हुआ था, तब सोवियत संघ ने इस मुद्दे को सुनिश्चित करने के लिए तीन बार अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया। इससे हुआ यह कि कश्मीर कभी भी एक वैश्विक विषय न बनकर एक द्विपक्षीय मुद्दा बना रहा।

Ragini Sinha

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