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Y-factor Sher Shah Suri: जिनका मकबरा बना कचरा घर, High Court ने कहा था-संजोया जाए!!!

भारत का दूसरा ताजमहल कहलानेवाला बादशाह शेरशाह सूरी का मकबरा देश का बड़ा कचरा घर बन रहा है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Praveen Singh
Published on: 5 April 2021 8:01 AM GMT (Updated on: 12 July 2021 11:03 AM GMT)
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Y-factor Sher Shah Suri : भारत का दूसरा ताजमहल (Taj Mahal) कहलानेवाला बादशाह शेरशाह सूरी (Sher Shah Suri) का मकबरा देश का बड़ा कचरा घर बन रहा है। यदि शीघ्र सासाराम नगर पालिका को न रोका गया तो इस त्रासदी की गति तेज हो सकती हे। ''टाइम्स आफ इंडिया'' के मुम्बई संस्करण में गत सप्ताह के अंक में रिपो​र्टर आलोक की रपट के अनुसार रोहतास जिलाधिकारी धमेन्द्र कुमार को ऐसी कोई सूचना नहीं है। जबकि पालिका मुख्य अधिकारी अभिषेक आनन्द के अनुसार मकबरे की जमीन का अधिग्रहण कूड़ाघर हेतु हो रहा है।

पटना हाई कोर्ट ने 2002 में एक जनहित याचिका पर आदेश दिया था कि इस भारतीय सम्राट के स्मारक को संजोया जाये। क्योंकि इसने मुगल सल्तनत के संस्थापक बाबर के पुत्र बादशाह नसीरुद्दीन हुमायूं को हराया था। हिन्दुस्तान से खदेड़ा था । हुमायूं भागकर, ईरान में पनाह पाकर शिया बन गया था। शेरशाह (Sher Shah Suri) का ही सेनापति था हेमू जो बाद में हिन्दुस्तान का सम्राट हेमचन्द्र विक्रमाजीत बना। यदि मुगल सैनिक का तीर पानीपत के दूसरे युद्ध में उसकी आंख में न लगता तो भारत कभी भी इस्लामी उपनिवेश न बनता। अकबर पराजित हो गया था।

मगर अब राष्ट्र की यह गौरवशाली धरोहर पर कूड़ा—करकट का अंबार लग रहा है। सासाराम के दो लाख वासियों की चिन्ता का यह विषय भी है। उन्हें उद्विग्न कर रहा है।

ऐसा ही कुछ अन्य परिवेश में ताज महल का भी हुआ था। तब भरतपुर के जाट राजा सूरजमल के सैनिकों ने पानीपत में अफगान लुटेरे अहमदशाह अब्दाली से भिड़ने की राह में आगरा में पड़ाव डाला था। उन्होंने अपने घोड़े ताजमहल में बांधे थे। सौंदर्य स्मरणस्थली अस्तबल बन गयी थी।

इस बिहारी पठान शासक शेरशाह की दास्तान भारतीय समैक्य राष्ट्रवाद का अनुपम अध्याय है। पंजाब के होशियारपुर में 1486 में जन्में इस भोजपुरी पठान सैनिक ने उत्तर प्रदेश के जौनपुर में शिक्षा पाई। उसके दादा इब्राहिम खान हरियाणा राज्य के नारनौल इलाक़े के जागीदार थे। उनके गृह नगर सूर के वासी के वंशनाम पर सूरी पड़ा। अपने शासक के प्राण एक बाघ को खाली हाथों से मारकर युवा फरीद ने बचाई। उसका तब नाम पड़ा शेरखॉ। बाद में वह बाबर के शिविर में भर्ती हुआ।

अपनी युद्ध विजय के बाद बाबर ने महाभोज दिया। जब कड़ा गोश्त कट नहीं रहा था तो शेरशाह ने अपनी तलवार खींचकर उसके टुकड़े किये। मगर उस क्षण कई सरदारों की तलवारें आशंका से म्यान से खिंच गईं थीं। बेफिक्र शेरशाह अपना खाना खाता रहा। तभी बाबर ने अपने पुत्र युवराज हुमायूं को किनारे ले जाकर सचेत किया कि इस पठान युवक से सावधान रहना। वह लक्ष्य प्राप्ति हेतु कोई भी साधन अपना सकता है।

यह चेतावनी सही हुयी जब उत्तर प्रदेश के कन्नौज और बिहार के चौसा के युद्धों में शेरशाह ने मुगल बादशाह हुमायूं को हराया और भारत से भगा दिया। मशहूर भिश्ती का किस्सा यहीं चौसा का है। नदी में डूबते हुमायूं को एक भिश्ती ने बचाया जिसे पारितोष में एक दिन की बादशाहत भेंट हुयी थी।

यदि कालिंजर के किले पर आक्रमण के समय बारुद के विस्फोट में शेरशाह न मारा जाता तो भारत का इतिहास ही भिन्न हो जाता। आज ऐसे महान इतिहास पुरुष की समाधिस्थल पर एक कृतघ्न प्रशासन कैसी श्रद्धां​जलि दे रहा है ? नीतीश कुमार भले ही इं​जीनियरिंग पढ़े हों पर स्कूल में तो इतिहास पढ़ा होगा। महान बिहारी पुरोधा शेरशाह के नाम से परिचित तो होंगे ही। मुख्यमंत्री से अपेक्षा है कि बिहार के गौरव की हिफाजत करेंगे।

एक गंभीर गिला और है। सासाराम दलित—आरक्षित चुनाव क्षेत्र से कांग्रेसी नेता जगजीवन राम चालीस वर्षों तक सांसद रहे। आठ बार लोकसभा में चुने गये थे। मगर शेरशाह का मकबरा ज्यों का त्यों रहा। दशकों पूर्व ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता जनरल एलेक्सेंडर कनिंघम ने इसे सुधारा था। अब तो पटना में जनता की सरकार है।

Shashwat Mishra

Shashwat Mishra

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