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Unknown Facts About Hijras: क्या होते हैं ट्रांसजेंडर, क्यों नहीं कर सकते रक्तदान, जानिए सब कुछ

Unknown Facts About Hijras: ट्रांसजेंडर को हिंदी में परलैंगिक कहा जाता है। यानी ऐसे व्यक्ति जिसका लिंग उसके जन्म के समय के नियत लिंग से मेल नहीं खाता है। ट्रांसजेंडर में ट्रांस मेन, ट्रांस वीमेन, इंटरसेक्स और जेंडर क्वीयर आते हैं। साथ ही ट्रांसजेंडर में किन्नर भी शामिल किये गए हैं।

Yogesh Mishra
Published on: 8 May 2023 1:19 PM IST

Unknown Facts About Hijra: ट्रांसजेंडर। किन्नर। छक्का। ऐसे तमाम शब्द एक ऐसे वर्ग व समुदाय के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं, जो हमारे समाज में उपेक्षा का पात्र है। जिसके प्रति सहानुभूति नहीं है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी होता है कि आख़िर है क्या उनके पास ऐसा, वे ऐसा करते क्या हैं कि उनके प्रति हमारे समाज का नज़रिया बहुत अच्छा नहीं है। आज कल ये लोग अपने लिए आरक्षण की माँग कर रहे हैं। तब भी हमने कोई सहानुभूति उनको लेकर नहीं जगती है।

ट्रांसजेंडर को हिंदी में परलैंगिक कहा जाता है। यानी ऐसे व्यक्ति जिसका लिंग उसके जन्म के समय के नियत लिंग से मेल नहीं खाता है। ट्रांसजेंडर में ट्रांस मेन, ट्रांस वीमेन, इंटरसेक्स और जेंडर क्वीयर आते हैं। साथ ही ट्रांसजेंडर में किन्नर भी शामिल किये गए हैं। 2014 में नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी और भारत सरकार के बीच एक मुकदमे के फैसला को सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को ”थर्ड जेंडर” यानी तीसरे लिंग के रूप में माना।

ट्रांसजेंडर शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो किसी विशेष हालत के चलते खुद को स्त्री या पुरुष के रूप में महसूस नहीं करते हैं। मिसाल के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति को जन्म के समय स्त्रीलिंग का माना गया हो, किंतु वह अपने आप को स्त्री के रूप में न देखकर पुरुष के रूप में देखे और वैसे ही बर्ताव करे। तो ऐसे व्यक्ति को ट्रांसमैन या परलैंगिक पुरुष कहा जाएगा। इसी प्रकार यदि कोई जन्म के समय शरीर की बनावट को देख कर पुरुष माना गया हो किंतु वह अपने आप को स्त्री के रूप में देखे और वैसे ही व्यवहार करे तो उसे ट्रांसवूमन या परलैगिंक महिला कहा जाएगा। ट्रांसजेंडर शब्द मोटे तौर पर क्रॉस-ड्रेसर को शामिल करने के लिए भी परिभाषित किया जा सकता है।

क्रॉसड्रेसर यानी विपरीत लिंग के समान कपड़े पहनना। यानी कोई अपने को पुरुष समझ रहा हो और स्त्री के तरह के कपड़े पहनना उसे अच्छे लगें। स्त्री की तरह रहना अच्छा लगे। कोई स्त्री की तरह समझा गया हो और पुरुष की तरह कपड़े पहनना उसे पसंद हो। उसे क्रास ड्रेसर कहते हैं। ये न तो पूरी तरह से पुरुष होते हैं, न तो पूरी तरह से स्त्री। समलैंगिकों की तरह ट्रांसजेंडर की कोई लैंगिक अनुरूपता नहीं होती है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति पुरुष और महिला दोनों की तरफ आकर्षित हो सकता है।

ट्रांससेक्सुअल ऐसा ट्रांसजेंडर व्यक्ति होता है जो स्थायी रूप से अपना लिंग परिवर्तित करवा लेता है, जिसमें वह पहचाना जाता है। सर्जरी और हार्मोन चिकित्सा के द्वारा उसके शरीर में परिवर्तन कर उस लिंग से मिलाया जाता है। जिस रूप में वह पैदा हुआ होता है। लिंग परिवर्तित करवाने की इस प्रक्रिया में आमतौर पर कई साल लग जाते हैं। हिंदू, जैन, बौद्ध धर्मग्रंथों और आमतौर पर भारतीय संस्कृति और यहां तक कि कामसूत्र में भी ट्रांसजेंडर के बारे में कई जगह उल्लेख मिलता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ट्रांसजेंडर ब्लड डोनेशन नहीं कर सकता है। 2017 के भारत सरकार के आदेश के मार्फ़त यह तय किया गया है।

केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, होमोसेक्सुअल, और महिला यौनकर्मियों को एचआईवी, हेपेटाइटिस बी या सी के जोखिम वाले व्यक्तियों की कैटेगरी में रखा गया है। ऐसा करना वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित है। सरकार का कहना है कि ये लोग जोखिम श्रेणी के जनसंख्या समूह हैं और कभी-कभी, जनता स्वास्थ्य के परिप्रेक्ष्य को व्यक्तिगत अधिकारों पर हावी होना चाहिए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कई अध्ययनों से यह पता चलता है कि ऐसे लोगों में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी के लक्षण अधिकांश तौर पर देखने को मिलते हैं। विशेषज्ञों ने रक्तदान से दो तरह के लोगों को बाहर रखने के की सिफारिश की है। कई यूरोपीय देशों में समलैंगिक पुरुषों को इसी तरह रक्तदान से बाहर रखा गया है।

सरकार ने कहा है कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि ट्रांसजेंडर्स, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष और महिला यौनकर्मियों को एचआईवी, हेपेटाइटिस का खतरा अधिक रहता है। समाज में उपेक्षा की मार झेलना, एक अजीब तरह की ज़िंदगी जीना, नौकरी के लिए कहीं आरक्षण नहीं होना, लोगों को दुआएँ देना और इनकी ख़ुशियों में शरीक हो कुछ पैसे लेकर के ज़िंदगी बसर करना इन लोगों का अपना काम है। ज़रूरत इस बात की है कि इन्हें भी समाज में जोड़ा जाये, इनमें सचमुच जो लोग बीमारियों से ग्रसित हैं, उन्हें सामान्य बीमार लोगों की तरह ही ट्रीट किया जाये। उपेक्षा भाव इनके अंदर का ख़त्म किया जाना चाहिए क्योंकि ये भी स्मारकों बहुत कांट्रीब्यूट कर सकते हैं। इनके अंदर भी बहुत ऊर्जा होती है। उनके ऊर्जा का इस्तेमाल ज़रूरी होता है।

Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

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