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Y-Factor Yogesh Mishra: बढ़ती जा रही लोकतंत्र खोते देशों की तादाद...

Y-Factor with Yogesh Mishra: दुनिया के सारे लोकतांत्रिक देश ख़ामोश हैं। उनकी महाशक्ति को मानने को तैयार हैं।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Shraddha
Published on: 28 Nov 2021 8:01 PM IST
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Y-Factor with Yogesh Mishra: लोकतंत्र को लेकर के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर के पूरी दुनिया में बड़ा आंदोलन हैं। मानवाधिकार जैसे तमाम संगठन यह सीखाते व बताते हैं कि दुनिया भर में लोकतंत्र मानव के जीवन के कर्तव्य के लिए बहुत ज़रूरी है। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि विचार में भले ही लोकतंत्र आगे बढ़ रहा हो , लोकतंत्र चर्चा का विषय भले ही हो, लेकिन अधिकांश देशों में लोकतंत्र सीमित हो रहा है। लुप्त हो रहा है। कम हो रहा है। आप खुद देखें वीटो पॉवर (veto power) पाने वाले एक देश चीन में लोकतंत्र है ही नहीं। फिर भी संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organisation) इस पर ख़ामोश हैं। दुनिया के सारे लोकतांत्रिक देश ख़ामोश हैं। उनकी महाशक्ति को मानने को तैयार हैं। ऐसे में जब चीन के आगे सारे लोग हाथ बांध कर खड़े हों, तो दूसरे देशों में लोकतंत्र के बहाली की बात करना ज़रूर मुश्किल लगता है। और यह लगता है कि देश लोकतंत्र को छोड़कर किसी दूसरे रास्ते पर चल निकलेंगे। दुनिया में ऐसे देशों की संख्या बढ़ती जा रही है जहां लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो रही हैं।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर डेमोक्रेसी ऐंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (आईडिया) की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में कोरोना महामारी (Corona Virus) का ख़ास तौर पर जिक्र है और कहा गया है कि महामारी के दौरान शासकों और सरकारों का रवैया ज्यादा तानाशाहीपूर्ण हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि तानाशाही शासकों ने महामारी से निपटने में दूसरी सरकारों से बेहतर काम किया हो। रिपोर्ट के अनुसार, महामारी ने तो बेलारूस, क्यूबा, म्यांमार, निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे देशों में जनता के दमन को सही ठहराने के लिए और असहमति को चुप करवाने के लिए अतिरिक्त तौर-तरीके उपलब्ध करवा दिए, सरकारों को मनमानी का लाइसेंस मिल गया।

दुनिया भर में लोकतंत्र मानव के जीवन के कर्तव्य के लिए बहुत ज़रूरी है(कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम करने वाली संस्था 'आईडिया' के मुताबिक इस समय ऐसे देशों की संख्या अधिक है जहां लोकतंत्र अपने कमजोर स्थिति में हैं या ख़त्म हो रहा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक लोक-लुभावन राजनीति, आलोचकों को चुप करवाने के लिए कोरोना महामारी का इस्तेमाल, अन्य देशों के अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों को अपनाने का चलन और समाज को बांटने के लिए फर्जी सूचनाओं का प्रयोग जैसे कारकों के चलते लोकतंत्र खतरे में है।

आईडिया ने 1975 से अब तक जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है । इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि पहले से कहीं ज्यादा देशों में अब लोकतंत्र अवसान पर है। ऐसे देशों की संख्या इतनी अधिक पहले कभी नहीं रही, जिनमें लोकतंत्र में गिरावट हो रही हो। रिपोर्ट में ब्राजील, भारत और अमेरिका जैसे बड़े और स्थापित लोकतंत्रों को लेकर भी चिंता जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार, ब्राजील और अमेरिका में राष्ट्रपतियों ने ही देश के चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े किए जबकि भारत में कहा जाता है कि सरकार की नीतियों की आलोचना करना अच्छा नहीं है।

'आईडिया' ने अपनी रिपोर्ट में आंकलन का आधार सरकार और न्यायपालिका की आजादी, मानवाधिकार व मीडिया की आजादी जैसे मूल्यों को भी रखा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में सबसे ज्यादा नाटकीय बदलाव अफगानिस्तान में देखा गया , जहां पश्चिमी सेनाओं के विदा होने से पहले ही तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। म्यांमार में 1 फरवरी, 2020 को हुए तख्तापलट ने भी लोकतंत्र को ढहते देखा।

लोकतंत्र के मामले में अफ्रीका का हाल सबसे बुरा रहा। यहाँ सूडान में इस साल ऐसी दो ऐसी घटनायें हुईं। एक घटना सितंबर में हुई जिसमें सरकार के तख्ता पलट की विफल कोशश हुई। लेकिन अक्टूबर में फिर प्रयास किया गया जिसमें जिसमें जनरल आब्देल-फतह बुरहान ने सरकार और सेना व नागरिक प्रतिनिधियों को मिलाकर बनाई गई संप्रभु परिषद को भंग कर दिया और 25 अक्टूबर,2021 को सूडान में सेना में आपातकाल लागू कर दिया।


लोकतंत्र के मामले में अफ्रीका का हाल सबसे बुरा रहा (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

माली में तो दो बार सरकार का तख्ता पलटा गया ।जबकि ट्यूनिशिया में राष्ट्रपति ने संसद भंग कर आपताकालीन शक्तियां हासिल कर लीं। 5 सितंबर , 2021 को पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में विद्रोही सैनिकों ने तख्तापलट करने के बाद राष्ट्रपति अल्फा कोंडे को हिरासत में ले लिया ।और संविधान को अवैध घोषित कर दिया। जिम्बाब्वे में 2017 में सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और रॉबर्ट मुगाबे को गिरफ्तार कर लिया था। पश्चिमी अफ्रीका में बुरकीना फासो ने सबसे सफल तख्तापलट का झेला । जिसमें सात सफल अधिग्रहण और केवल एक असफल तख्तापलट हुआ। खनिज संपन्न मध्य अफ्रीकी गणराज्य में 2013 में तख्तापलट हुआ था। अफ्रीका की हालत पर सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि सैन्य तख्तापलट वापस आ गए हैं।

महामारी की भूमिका

आईडिया की रिपोर्ट में हंगरी, पोलैंड, स्लोवेनिया और सर्बिया जैसे यूरोपीय देशों का नाम गिनाया गया है , जिनमें लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। तुर्की ने 2010 से 2020 के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों में सबसे ज्यादा गिरावट दिखी है। रिपोर्ट के अनुसार, 70 प्रतिशत आबादी ऐसे मुल्कों में रहती है जहां या तो लोकतंत्र है ही नहीं, या फिर नाटकीय रूप से लोकतंत्र वहाँ जीवित है। धीरे धीरे लोकतंत्र का वहाँ अवसान हो रहा है। रिपोर्ट में कोरोना महामारी का ख़ास तौर पर जिक्र है और कहा गया है कि महामारी के दौरान शासकों और सरकारों का रवैया ज्यादा तानाशाहीपूर्ण हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि तानाशाही शासकों ने महामारी से निपटने में दूसरी सरकारों से बेहतर काम किया हो। रिपोर्ट के अनुसार, महामारी ने तो बेलारूस, क्यूबा, म्यांमार, निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे देशों में जनता के दमन को सही ठहराने के लिए और असहमति को चुप करवाने के लिए अतिरिक्त तौर-तरीके उपलब्ध करवा दिए, सरकारों को मनमानी का लाइसेंस मिल गया।यानी यह कह सकते हैं कि कोरोना काल में जहां लोकतंत्र था वहाँ भी सरकारों ने ठीक ढंग से काम नहीं किया। इस लिहाज़ से हम देखें तो जो लोग भी लोकतंत्र को पसरते देखना चाहते हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क़ायल हैं, जो मानते हैं कि लोकतंत्र ही दुनिया में इकलौता ऐसा तरीक़ा है, जिसमें आदमी अपने ढंग से जी सकता है। उनके लिए यह रिपोर्ट बेहद निराश। करने वाली है।



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Shraddha

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