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Travel Precautions: ज्यादा ऊंचाई वाले पहाड़ों पर जाने से पहले हो जाएं सावधान

Travel Precautions: हार्ट की कैसी भी समस्या ज्यादा ऊंचाई पर विकराल रूप ले सकती है। हार्ट, बीपी या किसी अन्य व्याधि से पीड़ित व्यक्ति के लिए स्थिति जानलेवा बन सकती है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 16 May 2022 3:17 PM IST
Travel Precautions: ज्यादा ऊंचाई वाले पहाड़ों पर जाने से पहले हो जाएं सावधान
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(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Travel Precautions: इन दिनों उत्तराखंड (Uttarakhand) में चारधाम यात्रा (Chardham Yatra) चल रही है और लाखों लोग इसमें शामिल हो चुके हैं। मैदानी इलाकों में भीषण गर्मी के चलते इस बार पहाड़ों में भीड़ भी जबर्दस्त है। लेकिन खराब बात ये है कि चारधाम यात्रा में अब तक दो दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है। दरअसल, ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाना भी फिटनेस (Fitness) से जुड़ा हुआ है। हार्ट की कैसी भी समस्या (Heart Diseases) ज्यादा ऊंचाई पर विकराल रूप ले सकती है। ये बात सिर्फ चारधाम यात्रा ही नहीं बल्कि किसी भी ज्यादा ऊंचाई वाले इलाके पर लागू होती है।

जो पहाड़ों के बाशिंदे हैं उनकी बात अलग है क्योंकि वे ऊंचाई पर चलने के आदी होते हैं, लेकिन मैदानी इलाकों के लोगों के साथ अलग स्थिति होती है। एक तो पहाड़ों पर चढ़ना उतरना उनके लिए दुष्कर होता है दूसरे ये कि ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी (Lack Of Oxygen) के प्रति वे सामंजस्य नहीं बैठा पाते हैं। ऐसे में हार्ट, बीपी या किसी अन्य व्याधि से पीड़ित व्यक्ति के लिए स्थिति जानलेवा बन सकती है।

चारधाम यात्रा में 2019 में लगभग 38 लाख तीर्थयात्रियों ने यात्रा की और 90 से अधिक तीर्थयात्रियों की मृत्यु (Death Of Devotees) हो गई। 2017 और 2018 में क्रमश: 112 और 102 तीर्थयात्रियों की मौत हुई।

उत्तराखंड में चार धाम यात्रा पर चार पवित्र तीर्थस्थल हिमालय क्षेत्र में ऊंचाई पर स्थित हैं। जहां केदारनाथ लगभग 11,700 फीट की ऊंचाई पर सबसे ऊंचा है, वहीं गंगोत्री सबसे कम 10,200 फीट पर है। अत्यधिक ऊंचाई, ऊंचे ट्रेक और बदलते मौसम की स्थिति में पर्वतीय बीमारी की बहुत संभावना बन जाती है। यहां आने वाले लोग अचानक कम तापमान, कम आर्द्रता, ज्यादा अल्ट्रावायलेट रेडिएशन, कम वायु दाब और कम ऑक्सीजन के स्तर से प्रभावित होते हैं।

केदारनाथ (Kedarnath) जाने के लिए 16 किलोमीटर का ट्रेक भारत में सबसे जोखिम भरा माना जाता है। 16 किमी का ट्रेक संकरे रास्ते वाला है। शॉर्टकट और भी ज्यादा ऊंचाई वाले होते हैं और शरीर पर भारी असर डालते हैं। ट्रेक के अंतिम 8-10 किमी में ऑक्सीजन का स्तर और तापमान अचानक गिर जाता है। यदि आपका शरीर इसके लिए तैयार नहीं है, तो यह घातक हो सकता है।

क्या होता है ऊंचाई में?

हम जिस हवा में सांस लेते हैं, उसमें विभिन्न अणु होते हैं, जिनमें नाइट्रोजन (78 प्रतिशत) और ऑक्सीजन (21 प्रतिशत) सबसे अधिक मात्रा में होते हैं। हवा की यह संरचना जमीनी लेवल पर सही कॉम्बिनेशन में रहती है। ऊंचाई में वृद्धि के साथ, ऑक्सीजन का आंशिक दबाव, या हवा में ऑक्सीजन के अणुओं की संख्या में परिवर्तन होता है। ज्यादा ऊंचाई पर, ऑक्सीजन के अणु कम हवा के कम दबाव के कारण अलग हो जाते हैं। हवा का दबाव ही ऑक्सीजन के अणुओं को पास - पास धकेलता है। इसका मतलब है कि ज्यादा ऊंचाई पर हम हवा का सेवन तो करते हैं, लेकिन उस हवा में ऑक्सीजन के अणु कम होते हैं।

शरीर पर प्रभाव

कम ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर हमारा शरीर प्रतिक्रिया करता है और हम ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के प्रयास में अधिक सांस लेने की कोशिश करने लगते हैं। हालांकि, शरीर के भीतर कम ऑक्सीजन पहुंचती है, जिसका असर विभिन्न अंगों पर होता है।

इसके अलावा कम ह्यूमिडिटी के कारण ऊंचाई के संपर्क में आने के पहले कुछ घंटों के भीतर, पानी की कमी भी बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप डिहाइड्रेशन होता है। लयकीन कुछ समय बाद हमारा शरीर कम-ऑक्सीजन स्तर के अनुकूल होने लगता है, और रक्त वाहिकाओं के मांसपेशियों के अनुपात के साथ हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ जाता है। इसे एक्लेमेटाइज़ेशन कहते हैं।

लेकिन सबके साथ ऐसा नहीं होता। कम ऑक्सीजन और अधिक ऊंचाई का प्रभाव उम्र के अनुसार अलग-अलग होता है, और लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। वृद्ध लोगों और कॉमरबिडिटी वाले लोगों के लिए, प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। हृदय की मांसपेशियों को ब्लड सप्लाई करने वाली कोरोनरी धमनियों का ह्रास 25 वर्ष की आयु के बाद शुरू हो जाता है सो बुजुर्गों के लिए जोखिम अधिक होता है। क्योंकि तनाव के प्रति सहनशीलता कम होती है और धमनियों में रुकावट अधिक होती है। अगर किसी को मधुमेह है, तो लैक्टिक एसिडोसिस के कारण मृत्यु तक हो सकती है।

वैसे ज्यादा ऊंचाई पर ज्यादातर मौतें कार्डियोवैस्कुलर रेस्पिरेटरी अरेस्ट के कारण होती हैं। ये मुख्य रूप से तब होते हैं जब हृदय की विद्युत प्रणाली खराब हो जाती है। यह खराबी वेंट्रिकुलर टैचीकार्डिया या वेंट्रिकुलर फाइब्रिलेशन जैसे असामान्य धड़कन का कारण बनती है। कुछ कार्डियक अरेस्ट अत्यधिक धीमी धड़कन के कारण भी होते हैं। तापमान में अचानक बदलाव से कोरोनरी वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं और इससे शरीर में ब्लड सप्लाई कम हो जाती है। ऐसे में जब फिजिकल एक्टिविटी होती है तो इसका असर और भी पड़ता है।

क्या सावधानियां बरतें?

ज्यादा ऊंचाई वाले पहाड़ की यात्रा की योजना बनाने से पहले सबसे जरूरी है मेडिकल चेकअप करवाना।

- बुजुर्ग, पुरानी बीमारी वाले और कोरोना से उबरने वालों को यात्रा से बचना चाहिए।

- चारधाम यात्रा पर जाने वालों को ट्रेक पर एक दिन का विश्राम अवश्य करना चाहिए।

- शरीर को कम ऑक्सीजन के स्तर में समायोजित करने के लिए प्रति दिन 800 से 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई कवर न करें।

- सिर दर्द, जी मिचलाना, दिल की धड़कन तेज होना, उल्टी, हाथ-पैरों का काला पड़ना, थकान, सांस लेने में दिक्कत या खांसी जैसे लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टरी मदद लेनी चाहिए।

- गर्म कपड़े ले जाएं और दिन के दौरान सनस्क्रीन (एसपीएफ़ 50) का उपयोग करें। धूप के चश्मे का भी प्रयोग करना चाहिए। नियमित रूप से पानी पीना और भोजन का सेवन अनिवार्य है।

- धूम्रपान और तैलीय भोजन से बचना चाहिए।

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