इस तरह करें रंगभरी एकादशी का पूजन, कष्टों से मिलेगी मुक्ति, खुलेगा मोक्ष का द्वार
फाल्गुन शुक्ल की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है । इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और काशी में होली के पर्व की शुरुआत इसी दिन से होती है। हर साल श्री काशी विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार दीवाली के बाद अन्नकूट , महाशिवरात्रि और रंगभरी एकादशी, पर होता है।
जयपुर: फाल्गुन शुक्ल की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है । इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और काशी में होली के पर्व की शुरुआत इसी दिन से होती है। हर साल श्री काशी विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार दीवाली के बाद अन्नकूट , महाशिवरात्रि और रंगभरी एकादशी, पर होता है। जो कि कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग खोलने वाली मानी जाती हैं। आंवला को शस्त्रों में भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। आज 6 मार्च 2020 को आमलकी एकादशी का व्रत हैं। जानते हैं किस तरह आज का पूजन किया जाए ताकि इसका पूर्ण फल मिल सकें।
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आई थी गौरा शिव की नगरी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के बाद पहली बार उन्हें काशी लाए थे। इस पवित्र दिन पर शिव परिवार की प्रतिमाए काशी विश्वनाथ मंदिर में लायी जाती हैं और बाबा काशी विश्वनाथ मंगल ध्वनि के साथ भ्रमण पर अपनी जनता, भक्त, श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने सपरिवार निकलते है ।
माता के आगमन पर खुशी
ये पर्व काशी में मां पार्वती के प्रथम स्वागत का भी सूचक है | जिसमें उनके गण उन पर और समस्त जनता पर रंग अबीर-गुलाल उड़ाते, खुशियां मानते चलते हैं और हर हर महादेव के उद्गोष से सभी दिशाएं गुंजायमान हो जाती है इससे भगवान शिव के होने के प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते है ।
इसी दिन से होली के रंग की शुरुआत
इस दिन से वाराणसी में रंग खेलने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो लगातार 6 दिन तक चलता है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर है जिससे काशी की जनता का भावनात्मक लगाव है। कहते हैं इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद और तुलसीदास भी आए थे।
विधि ...
आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए तथा आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखते हैं। यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि अपनी शरण में रखें। उसके बाद इस मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।
मंत्र- 'मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये'
* भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
*पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें।
* कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
* अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें।
*रात्रि में भगवत कथा व भजन-कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें। साथ ही परशुराम की मूर्तिसहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।
आमलकी एकादशी
रंगभरी एकादशी को आमलकी (आंवला) एकादशी कहते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है और अन्नपूर्णा की स्वर्ण की या चांदी की मूर्ति के दर्शन किए जाते हैं। ये सब पापों का नाश करता है। इस वृक्ष की उत्पत्ति भगवान विष्णु द्वारा हुई थी। इसी समय भगवान ने ब्रह्मा जी को भी उत्पन्न किया, जिससे इस संसार के सारे जीव उत्पन्न होते हैं।
इस वृक्ष को देखकर देवताओं को बड़ा विस्मय हुआ, तभी आकाशवाणी हुई कि महर्षियों, ये सबसे उत्तम आंवले का वृक्ष है, जो भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसके स्मरण से गौ दान का फल, स्पर्श से दो गुणा फल, खाने से तीन गुणा पुण्य मिलता है। ये सब पापों को हरने वाला है।